ऐपवा की राष्ट्रीय सचिव कविता कृष्णन ने बिहार के महिलाओं संबंधी डीजीपी के बयान पर कड़ी प्रतिक्रिया जाहिर की है जिसमें उन्होंने कहा है कि “बेटियां बिना मां-बाप की अनुमति के शादी के लिए घर से निकल जाती हैं, उनको ऐसा करने से रोका जाए”।
कविता ने कहा कि एक तरफ बिहार के सीएम नीतीश कुमार “समाज सुधार अभियान” चला रहे हैं दूसरी तरफ उनके डीजीपी पुरातनपंथी और दकियानूसी विचारों का प्रसार कर रहे हैं।
कविता कृष्णन ने कहा कि प्यार करने वाले युवा ही तो जाति के जकड़न, पितृसत्ता की शृंखलाओं और धर्म के नाम पर नफ़रत को तोड़कर सबसे सच्चे और अच्छे समाज सुधारक हैं! जो प्यार के दुश्मन वे समाज सुधार के दुश्मन हैं नीतीश जी!
उन्होंने कहा कि वैसे भी महिलाओं की मर्ज़ी पर हमले, भारत में महिला हिंसा का नं 1 तरीक़ा है। बलात्कार के केसों में से 40% केस मर्ज़ी से घर से भाग कर शादी करने के मामले हैं जिनमें कोई बलात्कार नहीं हुआ पर घर वालों द्वारा महिला के साथ मार पीट ज़रूर हुआ है, और पुलिस ऐसे में घरवालों को बढ़ावा देती है।
उन्होंने कहा कि DGP साहब को कौन बताए कि बच्चों और महिलाओं के साथ होने वाले बलात्कार के 99% मामले घरों के भीतर होते हैं, या घर वालों के भरोसेमंद लोगों (जैसे टीचर, धर्म गुरु/इमाम/पादरी आदि) द्वारा होता है।
देश में ज़्यादातर शादियाँ पिता माता ही तो तय करते हैं – तब भी दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा और हत्या सबसे ज़्यादा पति और ससुराल वालों द्वारा होता है। इस सच्चाई को डीजीपी झुठलाने में लगे हैं, यह कहकर कि प्यार करके शादी करने वाली महिलाओं की हत्या हो जाती है।
कविता ने कहा कि नीतीश जी, अगर आप और आपका पुलिस प्रशासन संवैधानिक नैतिकता का पाठ पढ़ाने, जाति-धर्म के बंधनों को तोड़कर होने वाले प्रेम विवाहों का स्वागत करने की हिम्मत नहीं रखते तो “समाज सुधार” का ढोंग करना तो छोड़ दीजिए।
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