बिहार चुनावः प्रवासी बच्चे किसी भी दल के घोषणा पत्र में नहीं हैं शामिल

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एक दशक के भीतर हुए लोकसभा और विभिन्न राज्यों के विधानसभा के तमाम चुनावों में बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य से जुड़ी चिंताएं लगभग नदारद रही हैं। कोविड-19 महामारी के चलते पिछले लगभग 10 महीने से ज़्यादा समय से स्कूल बंद हैं। बिहार में लगभग चार लाख से अधिक प्रवासी बच्चे वापस लौटे हैं, लेकिन बिहार सरकार या दूसरी पार्टियों द्वारा बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य से जुड़ी कोई बात अपने मेनिफेस्टो या चुनावी सभाओं में नहीं कही हैं। बच्चों की शिक्षा और महामारी से बचाव के लिए एक स्थायी नीति बनाने को लेकर ‘राइट टू एजुकेशन फोरम बिहार’ द्वारा ‘एजुकेशन इन बिहार इलेक्शन मैनिफेस्टो-2020’ नाम से एक सूची पत्र बनाया गया है। इसमें बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य से जुड़ी 11 मांगों को शामिल किया गया है।

राइट टू एजुकेशन फोरम बिहार के संयोजक मित्ररंजन और डॉ. अनिल कुमार राय बताते हैं कि वो वोट मांगने आ रहे हर उम्मीदवार और तमाम राजनीतिक दलों को ‘एजुकेशन इन बिहार इलेक्शन मैनिफेस्टो-2020’ सौंप कर उन्हें बच्चों की शिक्षा और महामारी से बचाव के जुड़ी चिंताओं से परिचित करवा रहे हैं। साथ ही उन्हें इस दिशा में काम करने का आग्रह कर रहे हैं।

बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में राइट टू एजूजेकश फोरम बिहार की 11  प्रमुख मांगें इस तरह हैं-
1. महामारी एवं अन्य आपदाओं से बचाव के लिए विद्यालयों में बच्चों की पूर्ण सुरक्षा संबंधी ठोस नीति, स्वच्छ पेयजल, चालू (फंक्श्नल) शौचालय और कोविड से बचाव प्रावधानों के अनुरूप हाथ धोने, मास्क और सेनिटाइजर की व्यवस्था।
2. बाहर से लौटे नागरिकों के बच्चों का चिन्हांकन (मैपिंग), शिक्षा अधिकार कानून के प्रावधानों के अनुरूप पड़ोस के स्कूल में उनके दाखिले, मुफ्त शिक्षा और इसके लिए पर्याप्त अतिरिक्त संसाधन की व्यवस्था। कोरोना-काल में बालविवाह, बालश्रम एवं बाल-तस्करी (चाइल्ड ट्रैफिकिंग) के बढ़ते खतरों समेत बाल अधिकारों के किसी भी किस्म के हनन के प्रति विशेष ध्यान और निगरानी।
3. राज्य के बजट का कम से कम 25 प्रतिशत शिक्षा के लिए, सार्वजनिक शिक्षा व्यवस्था को बढ़ावा और शिक्षा के निजीकरण-बाजारीकरण पर रोक।
4. शिक्षा का अधिकार कानून, 2009 के जमीनी क्रियान्वयन और शिक्षा में गुणवत्तापूर्ण सुधार सुनिश्चित करने के लिए राज्य से लेकर संकुल स्तर तक सक्रिय निगरानी समितियों का गठन।
5. 18 वर्ष तक के बच्चों की शिक्षा के लोकव्यापीकरण के लिए शिक्षा का अधिकार कानून, 2009 के दायरे को पूर्व-प्राथमिक से लेकर उच्चतर माध्यमिक स्तर तक बढ़ाने (3-18 वर्ष) का प्रस्ताव विधानसभा से पारित करवाना, इसके लिए अतिरिक्त व्यय का निर्धारण और उसकी व्यवस्था।
6. प्रो. मुचकुंद दूबे की अध्यक्षता में गठित बिहार कॉमन स्कूल सिस्टम शिक्षा आयोग की रिपोर्ट को संज्ञान में लेते हुए शिक्षा में समान अवसरों एवं समावेशिता की गारंटी करने वाली प्रमुख अनुशंसाओं को लागू करना।
7. बालिका शिक्षा के विशेष प्रोत्साहन एवं लैंगिक भेदभाव/असमानता की चुनौतियों के मद्देनजर बिहार के लिए एक ‘जेंडर-सेंसिटिव यानी लिंग-संवेदी शिक्षा नीति’ की घोषणा। लड़कियों की सामाजिक सुरक्षा के लिए अनिवार्य पहलकदमी और प्रत्येक विद्यालय में महिला शिक्षिका की नियुक्ति।
8. विकलांग छात्रों की पढ़ाई के लिए गरिमापूर्ण शिक्षण और पठन-पाठन की यथोचित व्यवस्था और विशेष प्रशिक्षित शिक्षकों की बहाली।
9. शिक्षकों के सभी खाली पदों पर नियमित, गुणवत्तापूर्ण रूप से प्रशिक्षित, पूर्ण वेतनमान वाले शिक्षकों की भर्ती, शासनिक-प्रशासनिक कार्यों के निर्वहन के लिए आवश्यकतानुरूप गैर-शैक्षणिक कर्मचारियों की नियुक्ति और गैर-शैक्षणिक कार्यों के बोझ और दबाव से शिक्षकों की मुक्ति।
10. बंद किए गए स्कूलों को तत्काल प्रभाव से पुनः शुरू करना और आवश्यकतानुसार सारे संसाधनों से लैस नए विद्यालयों (प्राथमिक एवं उच्चतर माध्यमिक स्तर तक) की स्थापना।
11. सभी आंगनबाड़ी केंद्रों के लिए समर्पित अपने भवन की व्यवस्था, आंगनबाड़ी कर्मियों और मध्यान्ह भोजन कर्मियों को न्यूनतम कुशल मजदूरी के मुताबिक उचित वेतन। मध्यान्ह भोजन के लिए सभी विद्यालयों में रसोई और भोजनालय की व्यवस्था।

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