ब्रिटिश संसद ने बीबीसी के खिलाफ कार्रवाई की निंदा की, ब्रिटिश सरकार ने कहा-हम बीबीसी के साथ खड़े हैं

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ब्रिटेन की संसद हाउस ऑफ कॉमन्स में सांसदों ने पिछले सप्ताह नई दिल्ली और मुंबई में बीबीसी कार्यालयों पर आयकर (आईटी) के छापे के संदर्भ में ब्रिटिश सरकार से तीखे सवाल पूछे। इन सवालों का जवाब ब्रिटेन के विदेश, राष्ट्रमंडल और विकास कार्यालय के संसदीय अवर सचिव डेविड रटली ने ब्रिटिश सरकार के प्रतिनिधि के रूप में दिया।

21 फरवरी को दिए अपने जवाब में डेविड रटली ने बीबीसी का पुरजोर तरीके से बचाव किया और उसकी स्वतंत्रता के पक्ष में मजबूती से खड़े हुए। बीबीसी की स्वतंत्रता और भारत में उसके खिलाफ हुई कार्रवाई के बारे में सभी पार्टियों के सांसदों ने चिंता जाहिर की और सरकार से सवाल पूछा।

सरकार की ओर से सांसदों के सवालों का जवाब देते हुए डेविड रटली ने बीबीसी के पक्ष में मजबूती से खड़े होते हुए कहा,“ हम बीबीसी के साथ खड़े हैं, हम बीबीसी को फंड मुहैया कराते हैं, हम सोचते हैं कि बीबीसी सेवा बहुत ही महत्वपूर्ण है।” उन्होंने आगे कहा, “ ब्रिटेन की सरकार बीबीसी की संपादकीय स्वतंत्रता चाहती है। हमारे देश में बीबीसी कंजरवेटिव पार्टी और लेबर पार्टी दोनों की आलोचना करती है”।  

यह वह (बीबीसी) स्वतंत्रता है, जो बहुत ही महत्वपूर्ण है। यह स्वतंत्रता बुनियादी चीज है। हम अपने सहयोगियों को उसकी स्वतंत्रता के महत्व को संप्रेषित करना चाहते हैं जो दुनिया भर में फैले हुए हैं, जिसमें भारत सरकार भी शामिल है।” 

ब्रिटिश सांसद जिम शैनान ने बीबीसी के कार्यालयों पर भारत सरकार की कार्रवाई के बारे में संसद में कहा, “ हमें यह बात पूरी तरह स्पष्ट होनी चाहिए कि यह जानबूझकर बदले के तहत की गई कार्रवाई है और इसका कारण देश (भारत) के नेता के बारे में बीबीसी द्वारा एक पक्षपात रहित डाक्यूमेंटरी जारी करना है।” यहां उस डाक्यूमेंटरी के बारे में बात हो रही है, जो दो भागों में बीबीसी ने 2002 के गुजरात दंगों के बारे में ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ शीर्षक से जारी की। जिसमें दंगों में मोदी की भूमिका को प्रमाणों के साथ प्रस्तुत किया गया। जिसे भारत सरकार ने रोक लगा दी और उसके बाद बीबीसी के दिल्ली और मुंबई स्थिति कार्यालयों पर आईटी की रेड पड़ी।

डेविड रेटली ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा, “ मीडिया की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जीवंत लोकतंत्र की बुनियादी तत्व हैं।” उन्होंने यह भी कहा कि भारत में एनजीओ और धर्म आधारित संगठन जिस तरह की स्थितियों का सामना कर रहे हैं, वह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है।

कंजरवेटिव पार्टी के सांसद जूलियन लेविस ने बीबीसी कार्यालयों पर रेड के बारे में कहा कि “ यह बहुत ही परेशान करने वाली बात है।” लेबर पार्टी के सांसद फाबियन हैमिल्टन ने कहा ‘यह कार्रवाई बहुत ही परेशान करने वाली है। यह क्यों हुई। ब्रिटिश सरकार बदले की कार्रवाई से बीबीसी की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए क्या कर रही है। इस संदर्भ में क्या बातचीत चल रही है। बीबीसी के कर्मचारियों के हितों की रक्षा के लिए ब्रिटिश सरकार क्या कदम उठा रही है?’’

सांसदों ने कहा कि हम इस बात से बहुत परेशान हैं कि बीबीसी के कर्मचारियों को बाध्य किया गया कि वे पूरी रात अपने ऑफिस में रहें और भारी-भरकम सवालों का जवाब दें। सांसदों ने यह भी कहा कि “किसी भी लोकतंत्र में मीडिया को राजनीतिक नेताओं की आलोचना करने और उनके बारे में छान-बीन करने की क्षमता, किसी तरह का परिणाम भुगतने के डर के बगैर होना चाहिए। यह बात बीबीसी की डाक्यूमेंटरी के बारे में भी लागू होती है।”

ब्रिटिश की सरकार की तरफ से जवाब देते हुए डेविट रटली ने कहा कि हम यह प्रश्न भारत सरकार के सामने रखेंगे। ब्रिटेन की सरकार लगातार स्थिति की समीक्षा कर रही है। उन्होंने यह भी बताया कि बीबीसी अपने कर्मचारियों का समर्थन कर रही है और यदि वे निवेदन करेंगे तो उन्हें ब्रिटिश दूतावास की सहायता भी मिलेगी। ब्रिटेन की स्कॉटिश नेशनल पार्टी ने हाउस ऑफ कॉमन्स में भारत सरकार की कार्रवाई खुलकर निंदा की और कहा कि यह बहुत ही खतरनाक स्थिति है। 

ब्रिटेन की संसद में बीबीसी के मुद्दे पर बहस एक समय इस बिंदु पर पहुंच गई कि लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी के सांसद ने यहां तक कह दिया कि “ब्रिटिश सरकार को अमेरिका (यूएस) और अन्य लोकतांत्रिक देशों के साथ मिलकर भारत पर दबाव बनाना चाहिए और भारत सरकार से यह कहना चाहिए कि “यह कार्रवाई पूरी तरह अस्वीकार्य व्यवहार है।”

( जनचौक डेस्क की रिपोर्ट)

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