वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में वर्ष 2024-2025 के लिए अपने बजट भाषण में कहा कि देश की टॉप 500 कंपनियों में अगले वर्ष एक करोड़ युवाओं को इंटर्नशिप मिलेगा और उनको प्रधानमंत्री पैकेज से 12 महीने वित्तीय सहायता दी जाएगी। उन्होंने बिहार में मौर्य राजाओं के समय के नालंदा विश्वविद्यालय को टूरिस्ट स्पॉट बनाने के साथ ही ओडिशा को भी इसी तरह टूरिस्ट स्पॉट बनाने वित्तीय सहायता देने की घोषणा की। पहले संसद में बजट प्रस्तावों को पेश करने के एक दिन पूर्व इकोनॉमिक सर्वे ऑफ इंडिया पेश किया जाता था जिसे 2014 के लोक सभा चुनावों के बाद नरेंद्र मोदी के प्रधानममंत्री बनने पर बजट प्रस्तावों में ही जोड़ दिया गया है।
बजट प्रस्तावों को संसद में पेश किये जाने के बाद मोदी सरकार के प्रधान आर्थिक सलाहकार ने बताया कि देश की 33 हजार कंपनियों के सैंपल के अनुसार 2020 से 2023 के दौरान उनका मुनाफा 5.3 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 20.6 लाख करोड़ रुपये यानि चार गुना ज्यादा हो गया। पर वास्तविकता यह है कि इन कंपनियों ने देश में रोजगार नहीं बढ़ाया और उनके रिकॉर्ड मुनाफे के बाद भी निजी क्षेत्र में पूंजी निवेश नहीं बढ़ा। नतीजा यह हुआ कि एक ओर आम लोगों की जिंदगी में दुख तकलीफ बढे हैं तो दूसरी ओर महंगे चौपहिया वाहनों और मोबाइलों हैन्डसेटों की बिक्री बढ़ी, सोना-चांदी का आयात बढ़ा , मकानों के दाम बढ़े और शेयर बाजार आसमान छूने लगे। लोक सभा के 2024 के चुनावों के बाद भारत के फासिस्ट शासकों ने पूंजीपतियों का मुनाफा और बढ़ा दिया जो उत्पादक निवेश में नहीं लग रहा।
नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस यानि एनडीए में शामिल बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के जनता दल यूनाइटेड यानि जेडीयू और आंध्र प्रदेश के फिर मुख्यमंत्री बन गए चंद्रबाबू नायडू की तुलुगू देशम पार्टी यानि टीडीपी के समर्थन से बनी और फिलहाल टिकी हुई इस लंगड़ी सरकार ने अब देश की आर्थिक वृद्धि के लिए चीनी पूंजीनिवेश के लिए नियम-कानून ढीले कर दिए। अमेरिकी शासकों और उनकी कंपनियों को समझ आ गया कि नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी यानि भाजपा के मूल संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानि आरएसएस फासिस्ट ही है पर वह साम्राज्यवादी पूंजी के लिए वह सब नहीं करेंगे जो पूर्ववर्ती यूनियन ऑफ सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक यानि यूएसएसआर में शामिल रहे यूक्रेन और रूस के मौजूदा शासकों ने आपस में युद्ध शुरू कर किया है।
भारत के संविधान की ड्राफ्टिंग कमेटी के चेयरमैन रहे डॉ. बाबासाहब भीमराव आंबेडकर के दिए टर्म इंडिया दैट इज भारत में एक समय था जब उच्च वर्गों के धनबल के प्रदर्शन और किसी का अपनी थाली या पत्तल में भोजन छोड़ देना आम लोगों द्वारा हेय दृष्टि से देखा जाता था।
बहुत बाद में ब्रिटिश हुक्मरानी के राज में बंगाल प्रोविन्स में ब्रिटेन के युद्ध की तैयारियों के लिए अनाज बाहर भेजे जाने से भीषण अकाल पड़ गया तो अमेरिका से पीएल 480 करार के तहत पानी के जहाजों में लाए गेंहू और मिल्क पाउडर की कीमतें विदेशी मुद्रा में चुकानी पड़ती थीं। स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उनके वित्त मंत्री को भ्रष्टाचार में लिप्त होने के बारे में अपने दामाद फिरोज गांधी के लगाए आरोपों के बाद हटा दिया। नेहरू मंत्रिमंडल में शामिल रेल मंत्री लालबहादुर शास्त्री ने एक ट्रेन दुर्घटना की नैतिक जिम्मेवारी लेकर मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
निर्मला सीतारमण ने भारत में ब्रिटिश हुक्मरानी के राज से चली आ रही परिपाटी के अनुसार बजट प्रस्ताव अपराह्न साढ़े 5 बजे पेश किये। इसके एक दिन पहले दुकानों में लोकप्रिय ब्रांड के सिगरेट हटा कर बजट प्रस्तावों के संसद में पेश किये जाने के बाद नए करों के साथ कुछ और अधिक कीमत पर बेचे जाने लगे। उसी तरह साग सब्जी , डेयरी उत्पादों आदि की कीमतें बढ़ा दी गई। यूनाइटेड प्रोग्रेसिव अलायंस यानि यूपीए 1 की कांग्रेस की अगुवाई की मनमोहन सिंह सरकार ने 1991 में मुक्त बाजार की तथाकथित नई आर्थिक नीतियों पर चल कर उन कॉर्पोरेट पूंजीपतियों का साथ दिया जिनमें से कुछ को भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने जेल भेज दिया था। उनकी बेटी इंदिरा गांधी की सरकार ने 14 बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया।
कॉर्पोरेट पूंजीपतियों ने लोक सभा के 2014 के चुनावों के बाद भारत को कांग्रेस मुक्त करने के नरेंद्र मोदी के प्रयासों का समर्थन किया है। यूनियन ऑफ इंडिया की आंध्र प्रदेश के कांग्रेस नेता पी. वी. नरसिंह राव की सरकार के दौरान अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 को दिन-दहाड़े बाबरी मस्जिद ध्वस्त करने के बाद संसद में तब के वित्त मंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के बजट प्रस्तावों को पारित कराने राव सरकार ने झारखंड राज्य के सांसदों रिश्वत दिए जिनमें से कुछ को राव सरकार का कार्यकाल खत्म होने पर ही जेल भेजा जा सका। भाजपा के अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के 2002 में 28 फरवरी को पेश बजट प्रस्तावों के बाद सत्ताधारी वर्गों को भारत की वित्तीय व्यवस्था से खिलवाड़ करने का और ज्यादा मौका मिला।
वर्ष 2024-2025 के लिए नए बजट प्रस्तावों पर लोक सभा में बहस का कोई खास अर्थ नहीं है क्योंकि सदन में एनडीए का बहुमत है और इस बार के लोक सभा में राजस्थान के बूंदी क्षेत्र से चुने गए उसके स्पीकर ओम बिड़ला फासिस्ट ताकतों के हाथों में सिर्फ एक खिलौना है। राज्य सभा में नए बजट प्रस्तावों पर बहस हो सकती है पर वोटिंग नहीं हो सकती और उसे 14 दिनों के भीतर लोक सभा को लौटा देने की संवैधानिक बाध्यता है।
भारत के मध्य वर्ग के लोग बजट प्रस्तावों से कुल मिलाकर खुश नजर आते हैं बेशक उनको आय आदि करों में खास छूट नहीं मिली है। ऐसे में धान की फसल की कटाई के बाद लोक सभा के संभावित नए चुनावों के पहले भारत के गरीब किसान, मजदूर आदि कुछ नहीं कर सकते हैं।
(चंद्र प्रकाश झा स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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