उत्तर प्रदेश का बजट: शिक्षा, स्वास्थ्य व कृषि के मदों में कटौती, पूंजीगत व्यय निजि क्षेत्र के फायदे के लिए 

Estimated read time 1 min read

उत्तर प्रदेश सरकार ने 6.9 लाख करोड़ का बजट पेश किया है। प्रदेश की अर्थव्यवस्था का आकार (राज्य जीडीपी) करीब 24 लाख करोड़ है। जबकि प्रदेश पर कर्ज बढ़ कर करीब 8.5 लाख करोड़ हो गया है जोकि कुल राज्य जीडीपी का 35.50 फीसद है। पूर्व में पेश बजट के आंकड़ों से यह स्पष्ट है कि वास्तविक आय- व्यय पेश बजट की अपेक्षा काफी कम रहा है।

बजट के आंकड़ों से यह देखा जा सकता है कि प्रदेश की आय का प्रमुख स्रोत आम जनता पर लगाये गए कर हैं। जबकि ग्रामीण क्षेत्र, शिक्षा-स्वास्थ्य व कृषि क्षेत्र के बुनियादी ढांचे पर नाममात्र खर्च है। उसमें भी गत वर्ष के सापेक्ष तुलनात्मक रूप से खर्च में गिरावट दर्ज की गई है।

बजट का सबसे बड़ा हिस्सा वेतन, पेंशन और ब्याज में खर्च है जोकि कुल बजट के 43% से अधिक है। इसके अलावा सामाजिक कल्याण के महत्वपूर्ण मदों में बजट शेयर में गत वर्ष के सापेक्ष कमी आयी है। शिक्षा में बजट शेयर 12.2 % से घट कर 11.22%, स्वास्थ्य 6.67 % से घट कर  5.41 % , कृषि एवं संबद्ध क्रियाकलाप 2.8 फीसद से घटकर 2.37 %, सिंचाई एवं बाढ़ नियत्रंण  4.46 % से घटकर 1.86 %, समाज कल्याण में 5.08 फीसद से घटकर 4.63 % हो गया है।

पूंजीगत परिव्यय 147492 करोड़ रुपये है। अवस्थापना यानी इंफ्रास्ट्रक्चर पर बड़ी चर्चा है। लेकिन जो इस मद में जो खर्च किया गया है वह कॉर्पोरेट व निजी क्षेत्र के मुनाफे व उपयोग के लिए है। जैसे मेडिकल कॉलेज, अस्पताल और तकनीकी संस्थाओं का निर्माण पीपीपी मॉडल के तहत हो रहा है।

सरकार इनके निर्माण में संसाधनों को खर्च कर रही है जबकि इनका संचालन निजी क्षेत्र के अधीन होगा और निजी क्षेत्र द्वारा बिना किसी खास निवेश के ही अकूत कमाई की जायेगी। इनमें निजी संस्थानों की तरह ही छात्रों से फीस वसूली जायेगी, पीपीपी मॉडल से संचालित मेडिकल कॉलेज व अस्पतालों  में मंहगा ईलाज होगा।

जबकि जरूरत है कि सार्वजनिक क्षेत्र में शिक्षा व स्वास्थ्य के इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत किया जाता। इसके अलावा इंफ्रास्ट्रक्चर में प्रमुख रूप से एक्सप्रेस वे, मेट्रो आदि में खर्च किया गया है। इससे कारपोरेट्स व निजी क्षेत्र को फायदा होगा।

ग्लोबल समिट से 33 लाख करोड़ के निवेश समझौते से प्रदेश के विकास और रोजगार सृजन की तस्वीर पेश की जा रही है। दरअसल इन तरह के आयोजनों के पूर्व के अनुभव के आधार पर जो तथ्य हैं उससे स्वतः स्पष्ट होता है कि जो प्रोपैगैंडा किया जा रहा है उससे वास्तविक स्थिति एकदम अलग है।

बेरोजगारी के आंकड़ों का जो हवाला दिया जा रहा है, उसमें कहा जा रहा है कि 2017 के पूर्व बेरोजगारी की दर 14 फीसद थी जो घटकर 4.2 % हो गई है, तथ्यों से मेल नहीं खाता। प्रदेश में श्रम शक्ति भागीदारी दर 33% के करीब है। अन्य राज्यों में रोजी रोटी की तलाश में युवाओं का पलायन बढ़ रहा है।

बजट में ही उत्तर प्रदेश कौशल विकास मिशन के आंकड़े बताते हैं कि 6 वर्षों में महज 12.50 लाख पंजीकरण और 4.88 लाख युवाओं को कंपनियों में रोजगार मिला है। हालांकि सर्वे रिपोर्ट है कि काम की बेहद खराब स्थिति और कम वेतनमान की वजह से इसमें से बहुतायत युवाओं ने प्लेसमेंट के बाद नौकरी छोड़ दी।

इसी तरह प्रदेश में एमएसएमई सेक्टर (लघु, सूक्ष्म व मध्यम  उद्योग ) संकटग्रस्त है, इनके पुनर्जीवन के लिए ठोस रूप से कुछ भी नहीं किया गया। प्रदेश में महज 7200 स्टार्टअप कार्यरत हैं, वे गाजियाबाद व नोयडा क्षेत्र में हैं, जो कि राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में स्थित है।

मनरेगा में वित्तीय वर्ष 2022-23 में महज 26 लाख मानव दिवस का सृजन हुआ, इस तरह प्रति व्यक्ति औसतन 20 दिनों का काम मुहैया कराया गया है। प्रदेश में 6 लाख से ज्यादा रिक्त पद हैं, इन्हें भरना अब सरकार के ऐजेंडा में ही नहीं है। आंगनबाड़ी, आशा आदि स्कीम वर्कर्स के सम्मानजनक वेतनमान के लिए भी बजट में किसी तरह का प्रावधान नहीं है। कुल मिलाकर बजट कारपोरेट की मदद के लिए है और जनविरोधी है।

(ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट उत्तर प्रदेश के प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित)

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author