महाराष्ट्र चुनाव को लेकर लोकपाल के ताजा सर्वे में बताया गया है कि दोनों गठबंधनों के बीच कड़ी टक्कर हो रही है लेकिन एमवीए (MVA) को बढ़त हासिल है। इसमें महायुति को 115 से 128 सीटें मिलने का अनुमान है, वहीं MVA को 151 से 162सीट का अनुमान है। सर्वे के अनुसार महायुति को 37से 40% वोट का अनुमान है जबकि MVA को 43 से 46% वोट का अनुमान है। सर्वे में यह तथ्य भी सामने आया है कि ध्रुवीकरण की कोशिशों से महायुति को कोई फायदा नहीं हुआ बल्कि नुकसान होने का अनुमान है क्योंकि जनता के मन में कृषि, रोजगार, महिला सुरक्षा, महंगाई जैसे जीवन से जुड़े मुद्दे अहम हैं।इसके अलावा सरकार के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी है।
दरअसल महाराष्ट्र के चुनाव बेहद महत्वपूर्ण हैं। लोकसभा चुनाव में भाजपा को जो धक्का लगा और वह अपने दम पर बहुमत से दूर रह गई, उसमें UP के साथ देश के दूसरे सबसे बड़े राज्य महाराष्ट्र की भूमिका भी अहम रही। यहां विपक्ष की तीस सीट के बरक्स भाजपा गठबंधन को केवल 17 सीटें मिलीं। इस चुनाव में दोनों गठबंधनों की परीक्षा होगी।
क्या महाविकास अघाड़ी अपने लोकसभा चुनाव के परफॉर्मेंस को दोहरा सकती है या भाजपा गठबंधन लोकसभा के नतीजों को पलटते हुए उस हार का बदला ले सकता है और आर्थिक राजधानी मुंबई वाले महत्वपूर्ण राज्य महाराष्ट्र में फिर से सरकार बना सकता है?
चुनाव में महायुति की ओर से भाजपा 148, शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना 80 था अजित पवार की पार्टी 52 सीटों पर लड़ रही है। वहीं महा विकास आघाड़ी की ओर से कांग्रेस 102 शिव सेना 96 और NCP 87 सीटों पर लड़ रही है।
चुनाव में सीपीएम, MVA के साथ तालमेल में दो सीटों पर लड़ रही है। ये दोनों आदिवासी सीटें हैं। दहानू ठाणे पालघर की सीट पर वर्तमान विधायक विनोद निकोले उम्मीदवार हैं।तो नासिक में 5 बार के विधायक जेपी गवित प्रत्याशी हैं। सोलापुर सिटी सेंट्रल सीट पर दोस्ताना लड़ाई हो रही है।
हाल ही में CSDS द्वारा कुछ अन्य संस्थाओं के साथ मिलकर किए गए सर्वे में कई रोचक तथ्य सामने आए हैं। सर्वे में यह बात सामने आई है कि सबसे अधिक 24% लोग बेरोजगारी को चुनाव का सबसे बड़ा मुद्दा मानते हैं।देश में आज चौतरफा बेरोजगारी का संकट है, और सब जगह लोग इसको लेकर चिंतित हैं। लेकिन मुंबई जो देश की आर्थिक राजधानी है और महाराष्ट्र तुलनात्मक रूप से देश के विकसित राज्यों में है, वहां अगर डबल इंजन की सरकार के बावजूद सर्वाधिक लोग रोजगार को सबसे बड़ा मुद्दा मानते हैं, तो यह सरकार के खिलाफ बहुत बड़ी टिप्पणी है और उसके लिए खतरे की घंटी है।
दूसरे नंबर पर सबसे ज्यादा 22%लोग महंगाई को सबसे बड़ा मुद्दा मानते हैं।इस तरह लगभग आधे लोगों के लिए महंगाई और बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा हैं। यह fatal combination है। समझा जा सकता है कि महंगाई और बेरोजगारी की गाज एक साथ गरीबों पर कैसे गिर रही होगी। 9% लोगों ने विकास, 8% लोगों ने कृषि और 7% लोगों ने इंफ्रास्ट्रक्चर को सबसे बड़ा मुद्दा बताया।
इन आंकड़ों से यह स्पष्ट है कि आम जनता के मन में आर्थिक स्थिति को लेकर गहरा असंतोष है। गौर करने की बात है कि जनता को उद्वेलित करने वाले मुद्दों में सारे ही जीवन से जुड़े हुए मुद्दे हैं। अब धारा 370, राम मंदिर या कॉमन सिविल कोड जैसे मुद्दे जनता के बीच प्राथमिकता में नहीं हैं।
रोजगार चुनाव में सबसे प्रभावी मुद्दा बन गया है। इसके साथ ही 74% ने यह माना कि मौजूदा सरकार के कार्यकाल में महंगाई पहले से बढ़ गई है और 51%ने यह माना कि पिछली सरकार की तुलना में भ्रष्टाचार बढ़ गया है। कहने की जरूरत नहीं कि जनता के बीच इस तरह का परसेप्शन बनना सरकार के लिए बेहद खतरनाक है। महंगाई और भ्रष्टाचार ने अतीत में तमाम सरकारों को सत्ता से बेदखल किया है।
सर्वे के अनुसार बहुमत का मानना है कि पिछले 5 साल में महंगाई में असाधारण वृद्धि हुई है। यह पूछने पर कि अगले 5 साल वे किसकी सरकार चाहते हैं, महा विकास आघाड़ी को थोड़ी बढ़त हासिल है। बेरोजगारी को जो लोग प्रमुख मुद्दा मानते हैं, उनमें 5 में से 3लोग, लगभग 58%लोग MVA, 31% लोग महायुति को समर्थन देने की बात करते हैं।
वहीं आरक्षण को जो लोग प्रमुख मुद्दा मानते हैं उनमें 46% MVA को समर्थन करते दिखे जबकि 26% ही महायुति का समर्थन कर रहे। महिला सुरक्षा के सवाल पर जनता के बीच महायुति मजबूत विकेट पर दिखी। लेकिन आर्थिक मुद्दों पर MVA मजबूत है। जाहिर है जनता के जीवन के ज्वलंत सवाल चुनाव में प्रमुख सवाल बने, तो महा विकास अघाड़ी की बढ़त रहने की संभावना है।
मराठा आरक्षण आंदोलन के नेता मनोज जरंगे पाटिल को चुनाव में उतरना चाहिए कि नहीं इस पर 10 में से 4 लोगों का मानना था कि हां उन्हें ऐसा करना चाहिए। लोगों का यह मानना है कि पाटिल द्वारा समर्थित स्वतंत्र उम्मीदवार दूसरे दलों की संभावनाओं को प्रभावित करेंगे। पाटिल लगातार भाजपा नेता देवेंद्र फडनवीस को टारगेट कर रहे हैं। इसके माध्यम से वे जातीय गोलबंदी को भी हवा दे रहे हैं। बहरहाल उन्होंने अंततः चुनाव न लड़ने का फैसला किया है, इससे निश्चय ही विपक्ष को फायदा होगा।
एक रोचक सवाल कि मांगे मनवाने के लिए आंदोलन सही रास्ता है कि नहीं, इस पर 40% लोगों का मानना था कि आंदोलन सही रास्ता है, 30% ने दूसरे तरीकों की वकालत की, 30% ने कोई राय नहीं जाहिर की।
लोकसभा चुनाव के पहले 10% लोग ही मानते थे कि मराठों के बीच जो योग्य हैं उन्हें आरक्षण मिलना चाहिए। लेकिन अभी बहुमत ने समर्थन किया कि आरक्षण मिलना चाहिए, 10%ने कहा कि नहीं मिलना चाहिए, मराठों में 60% आरक्षण से सहमत थे, एक तिहाई लोग कुछ हद तक सहमत थे। ST और कुनबी समुदाय के लोग आरक्षण का समर्थन कर रहे हैं, 10% ओबीसी ने इसका विरोध किया, 20% SC और सवर्ण जातियां इसके विरोध में हैं। कुल मिलाकर सर्वे का निष्कर्ष है कि मराठा आरक्षण का अधिक लोग विरोध नहीं कर रहे हैं। बाहर से जैसा लगता है मराठा और ओबीसी में आरक्षण को लेकर वैसी लड़ाई नहीं है।
सर्वे का निष्कर्ष है कि महाराष्ट्र में किसी की लहर नहीं है, लेकिन अधिकांश लोग मानते हैं कि विकास और सामाजिक सौहार्द की दृष्टि से MVA की सरकार बेहतर थी। लोगों का मानना है कि दो साल से हालात जस के तस हैं। यह देखना रोचक होगा कि लोग दो साल में कोई बेहतरी न होने के लिए सरकार को सजा देते हैं या यथास्थिति बनाए रखने के लिए उसका समर्थन करते हैं। वैसे सरकार से 20% लोग पूरी तरह संतुष्ट हैं तो 18% लोग पूरी तरह असंतुष्ट हैं।
एक और बहुत रोचक तथ्य सर्वे में सामने आया कि केंद्र और राज्य सरकार की कल्याणकारी योजनाओं से फायदा उठाने वालों के अंदर सरकार के प्रति कोई खास रुझान नहीं दिखा। आधे लोग यह मानते हैं कि मौजूदा सरकार के कार्यकाल में बेरोजगारी, महंगाई और भ्रष्टाचार बढ़ा है। यह साफ है कि महायुति को इसका बड़ा खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
महाराष्ट्र का कपास बेल्ट विदर्भ लड़ाई के सबसे निर्णायक मैदान के रूप में उभर रहा है। प्रदेश में जिन 76 सीटों पर भाजपा कांग्रेस के बीच आमने सामने की टक्कर हो रही है, उसमें 36 विदर्भ क्षेत्र की हैं। कांग्रेस ने इस इलाके में अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष इसी इलाके से दिया है। वैसे परम्परागत रूप से कांग्रेस यहां मजबूत रही है, लेकिन यह गौरतलब है कि RSS का मुख्यालय नागपुर इसी क्षेत्र में है और वह महायुति के समर्थन में लगी हुई है। जहां भाजपा ने ओबीसी और दलितों पर सचेत ढंग से जोर बढ़ाया है, वहीं कांग्रेस के साथ दलित, मुस्लिम और कुनबी समुदाय के लोग रहे हैं। कांग्रेस अपने प्रचार में रोजगार को बड़ा मुद्दा बना रही है।
MVA के घटकों शिव सेना और NCP की ओर से गद्दारी को भी एक बड़ा मुद्दा बनाया जा रहा है और उनके गढ़ों में इसका असर देखने को मिल सकता है। उद्धव ठाकरे ने अपना घोषणापत्र जारी करते हुए सबसे ज्यादा रोजगार के सवाल पर फोकस किया है। उन्होंने कहा कि राज्य में भारी बेरोजगारी है और रोजगार सबसे बड़ा मुद्दा है। उनके सरकार की यह सर्वोच्च प्राथमिकता होगा। उन्होंने वायदा किया कि वे इंटरनेशनल फाइनेंस सेंटर बनाएंगे ताकि धारावी के आसपास नौजवानों के लिए रोजगार पैदा हो सके। उन्होंने वायदा किया कि हर जिले में हर 3 महीने में रोजगार मेला लगाया जाएगा। उन्होंने कहा कि पुरानी पेंशन योजना को बहाल किया जाएगा।
उनके घोषणापत्र में वायदा किया गया है कि आरक्षण की 50%की ऊपरी सीमा खत्म की जाएगी। उन्होंने धारावी में अडानी ग्रुप के डेवलपमेंट प्रोजेक्ट को बंद करने का भी उन्होंने ऐलान किया। उन्होंने वायदा किया कि बढ़ते शहरीकरण से निपटने के लिए नई आवास नीति बनाई जाएगी जिससे शहरी, अर्ध शहरी तथा ग्रामीण इलाकों के आम लोगों को सस्ते दर पर आवास सुलभ हो सके। उन्होंने वायदा किया कि जरूरी चीजें स्थिर कीमत पर उपलब्ध कराई जाएंगी। महिलाओं पर खाद तौर पर फोकस करते हुए उन्होंने कहा कि महिलाओं को फ्री बस सेवा उपलब्ध कराई जाएगी। उन्होंने 18000 महिलाओं की पुलिस में भर्ती का ऐलान किया और आश्वासन दिया कि ऐसे थाने बनाए जाएंगे जिसमें सब महिलाएं ही होंगी।
शरद पवार ने कहा है कि महाराष्ट्र विकास के पैमाने पर देश में अव्वल था लेकिन वह छठे पायदान पर खिसक गया है। महाराष्ट्र से आ रही ग्राउंड रिपोर्ट से लग रहा है कि मुख्यमंत्री माझी लड़की बहन योजना से महायुति को कुछ फायदा मिल रहा है। उधर ऐसे संकेत हैं कि मराठा आरक्षण आंदोलन के नेता मनोज जरंगे पाटिल MVA को समर्थन कर रहे हैं। उन्होंने अपने प्रत्याशियों को वापस ले लिया और स्वतंत्र मराठा उम्मीदवारों का भी समर्थन नहीं कर रहे हैं। उन्होंने खुले आम भाजपा को हराने का आह्वान किया है।
CSDS सर्वे का निष्कर्ष है कि महाराष्ट्र में किसी की लहर नहीं है, लेकिन अधिकांश लोग मानते हैं कि विकास और सामाजिक सौहार्द की दृष्टि से MVA की सरकार बेहतर थी। क्या महा विकास अघाड़ी जनता के इस समर्थन को अपनी चुनावी जीत में बदल सकती है ?
(लाल बहादुर सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं)
+ There are no comments
Add yours