मजदूरों को मानदेय, पलायन, सुरक्षा, और जीविका की गारंटी पर केंद्र बनाए कानून : खेग्रामस

पटना। अखिल भारतीय खेत एवं ग्रामीण मजदूर सभा (खेग्रामस) की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक पश्चिम बंगाल के हुगली में पिछले 24-25 मई को हुई जिसमें प्रधानमंत्री के नाम गांव के दलितों, वंचितों और मजदूरों के ज्वलंत सवालों को लेकर एक स्मारपत्र भेजने का फैसला लिया गया। आज सभी राज्यों से इस आशय का स्मारपत्र भेजा जाएगा जिसमें 5 मांगों को उठाया गया है।

संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए खेग्रामस के राष्ट्रीय महासचिव धीरेंद्र झा ने कहा कि केंद्र सरकार की नीतियों के चलते बिहार मजदूरों का पलायन प्रदेश बन गया है। 3 करोड़ से ज्यादा रोजी-रोटी की तलाश में बिहार से बाहर हैं। इन प्रवासी मजदूरों की सुरक्षा, सम्मान और जीविका की गारंटी के लिए केंद्र सरकार ने कोराना काल की त्रासदी के बावजूद कोई कानून नहीं बनाया है।

हजारों प्रवासी मजदूर प्रति वर्ष दुर्घटना, बीमारी अथवा असामयिक मृत्यु का शिकार होते हैं लेकिन केंद्र सरकार एक पैसे का मुआवजा नहीं देती है। देश के विकास के लिए जरूरी है बिहार का विकास, लेकिन बिहार के विशेष राज्य के दर्जा के सवाल को मोदी सरकार ने दबा देने का काम किया। प्रवासी मजदूरों के लिए विशेष आयोग का गठन समय की मांग है। उम्मीद है कि मोदी जी अपने बिहार दौरे पर इन न्यायपूर्ण प्रश्नों पर नजर डालेंगे।

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री को चुप्पी तोड़नी होगी कि मनरेगा मजदूरों को देश के कानूनों को नकारकर देश की न्यूनतम मजदूरी से काफी कम 245 रुपए दैनिक मजदूरी क्यों दी जाती है? क्या पीएम और सीएम इस दर पर कोई मजदूर बिहार में उपलब्ध करा पाएंगे? केंद्र सरकार के स्कीमों के तहत कार्यरत विद्यालय रसोइयों, आशा कार्यकर्ताओं, आंगनबाड़ी सेविका-सहायिकाओं, सफाईकर्मियों को न्यूनतम मजदूरी आधारित सम्मानजनक मासिक मानदेय क्यों नहीं मिलता है? बड़ी-बड़ी बातें करने के बजाय बिहार के लाखों मजदूरों-कर्मचारियों की जीने लायक पारिश्रमिक मिलने के सवाल पर उन्हें अपनी चुप्पी तोड़नी होगी।

संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए खेग्रामस नेता सह-विधायक गोपाल रविदास ने कहा कि मंहगाई बेरोजगारी से त्रस्त बिहार के भूमिहीनों के घरों पर बुलडोजर चल रहे हैं। भूमिहीनों के वास-आवास के लिए सरकार के पास कोई योजना नहीं है। उन्होंने कहा कि भूमिहीनों के लिए पक्का मकान और मकान बनाने के लिए 5 लाख रुपए का प्रावधान होना चाहिए।

खेग्रामस के राज्य अध्यक्ष सह-पूर्व विधायक मनोज मंजिल ने कहा कि मोदी सरकार दलित आदिवासियों के अधिकारों पर हमला कर रही है। दलित विरोधी दमन और हिंसा में भारी वृद्धि हुई है। अनुसूचित जाति/जन जाति सब प्लान को निरर्थक बना दिया गया है।

खेग्रामस के राज्य सचिव शत्रुघ्रन सहनी ने कहा कि बिहार की दलित गरीब महिलाएं कर्जों के जाल में फंसी हैं। माइक्रो-फाइनेंस कंपनियां उन्हें लूट रही हैं और दमन ढा रही हैं। तंग आकर परिवार आत्महत्या कर रहा है अथवा गांव छोड़कर भाग रहा है। प्रधानमंत्री को महिलाओं के कर्ज माफी का ऐलान करना चाहिए। संगठन इन सवालों को केंद्र कर 200 से ज्यादा प्रखंडों में सम्मेलन आहूत करेगा।

(प्रेस विज्ञप्ति)

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