अशोका विश्वविद्यालय में विवाद जारी, अर्थशास्त्र के एक और प्रोफेसर ने दिया इस्तीफा

नई दिल्ली। अर्थशास्त्री सब्यसाची दास (Sabyasachi Das) के हालिया शोध पत्र से उपजे राजनीतिक विवाद और इसी सप्ताह अशोका विश्वविद्यालय (Ashoka University) से उनके इस्तीफे के बाद अर्थशास्त्र विभाग के दूसरे प्रोफेसर पुलाप्रे बालाकृष्णन (Pulapre Balakrishnan) ने इस्तीफा दे दिया है।

विवाद के बाद विश्वविद्यालय से इस्तीफे की यह कोई पहली और दूसरी घटना नहीं है। इस विश्वविद्यालय से जुड़े प्रोफेसरों के अकादमिक पेपर या मीडिया में प्रकाशित लेखों पर विवाद होते रहे हैं, और अक्सर विवाद उस प्रोफेसर के इस्तीफे पर जाकर रूकता है। इस विवाद में भी यही हो रहा है।

शोध पत्र पर विवाद होने के बाद इस्तीफा देने वाले सब्यसाची दास एक सहायक प्रोफेसर थे, जबकि बालाकृष्णन प्रोफेसर हैं, जो ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय, भारतीय सांख्यिकी संस्थान, कोझिकोड में भारतीय प्रबंधन संस्थान और विश्व बैंक में काम करने के बाद 2015 में अशोका विश्वविद्यालय में शामिल हुए थे। वह कई प्रसिद्ध पुस्तकों के लेखक हैं, जिनमें हाल ही में नेहरू से मोदी तक भारत की अर्थव्यवस्था (India’s Economy from Nehru to Modi)भी शामिल है, जिसे 2022 में अशोका विश्वविद्यालय के सहयोग से परमानेंट ब्लैक द्वारा प्रकाशित किया गया था।

हालांकि बालाकृष्णन के इस्तीफे की अभी तक अशोका विश्वविद्यालय ने घोषणा नहीं की है और उनका त्याग पत्र सार्वजनिक नहीं हुआ है, विश्वविद्यालय के सूत्रों ने कहा कि वरिष्ठ अर्थशास्त्री ने दास के साथ “एकजुटता दिखाते हुए” विश्वविद्यालय छोड़ने का फैसला किया है।

सोमवार को सब्यसाची दास के इस्तीफे की खबर सामने आने के तुरंत बाद, अशोका विश्वविद्यालय के कुलपति सोमक रायचौधरी ने कहा कि विश्वविद्यालय ने दास का इस्तीफा स्वीकार कर लिया है।

रायचौधरी ने कहा कि “संकाय के सदस्यों को अपने चुने हुए क्षेत्रों में पढ़ाने और अनुसंधान करने की स्वतंत्रता है। विश्वविद्यालय अपने संकाय सदस्यों और छात्रों को उच्च शिक्षा संस्थान में शैक्षणिक स्वतंत्रता के लिए सबसे सक्षम वातावरण प्रदान करता है। यह शैक्षणिक स्वतंत्रता श्री दास पर भी लागू होती है।”

हालांकि, बालाकृष्णन के इस्तीफे से इस आशंका को बल मिलने की संभावना है कि दास का इस्तीफा विश्वविद्यालय द्वारा उनके 25 जुलाई, 2023 के पेपर- ‘डेमोक्रेटिक बैकस्लाइडिंग इन द वर्ल्ड्स लार्जेस्ट डेमोक्रेसी’ के कारण उपजे विवाद से निपटने के कारण हुआ।

विश्वविद्यालय ने 1 अगस्त को एक ट्वीट में सार्वजनिक रूप से खुद को उनके शोध से अलग करने की घोषा की थी और इस आधार पर इसकी गुणवत्ता पर भी सवाल उठाया कि इसकी सहकर्मी-समीक्षा नहीं की गई थी।

वास्तव में, दुनिया भर के प्रमुख विश्वविद्यालयों में शिक्षाविदों के लिए किसी सहकर्मी-समीक्षा पत्रिका में अंतिम प्रकाशन से पहले टिप्पणी और चर्चा के लिए अपने शोध के मसौदे अपलोड करना आम बात है, और इस तरह दास से खुद को अलग करने के लिए अशोका विश्वविद्यालय की भारत और विदेशों में शिक्षाविदों द्वारा व्यापक रूप से आलोचना की गई थी।

2015 में उनकी नियुक्ति के तुरंत बाद, अशोका विश्वविद्यालय ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि “अशोका विश्वविद्यालय में संकाय की ताकत इस साल दोगुनी से अधिक हो गई है क्योंकि भारत और दुनिया भर से सर्वश्रेष्ठ शिक्षाविद और विद्वान विश्वविद्यालय में शामिल हुए हैं।”

“अर्थशास्त्र के प्रोफेसर पुलाप्रे बालाकृष्णन, अशोका से जुड़ने के लिए अपनी प्रेरणा साझा करते हैं और कहते हैं, ‘अशोका ने खुद को भारत में उदार कला में विश्व स्तरीय शिक्षा प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध के रूप में पेश किया है। इसने मुझे आकर्षित किया, क्योंकि प्राकृतिक विज्ञान और इंजीनियरिंग से बाहर की शिक्षा को यहां उसका उचित अधिकार नहीं मिला है। लेकिन सबसे बढ़कर, आप जो भी करें उसमें विश्व स्तरीय होने का लक्ष्य रखना महत्वपूर्ण है।”

बालाकृष्णन के इस्तीफे की खबर को अशोका विश्वविद्यालय पर प्रभाव के अलावा, भारत में शैक्षणिक स्वतंत्रता की संकटग्रस्त स्थिति के सबूत के रूप में देखा जाएगा।

(द वायर में प्रकाशित खबर पर आधारित।)

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