दिल्ली की अदालत ने सीबीआई से आकार पटेल के खिलाफ लुकआउट नोटिस वापस लेने को कहा

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दिल्ली की एक अदालत ने शनिवार को केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को एमनेस्टी इंटरनेशनल, इंडिया के पूर्व अध्यक्ष आकार पटेल के खिलाफ जारी लुक आउट सर्कुलर (एलओसी) को वापस लेने का निर्देश देने वाले पहले के आदेश को बरकरार रखा। पटेल को मौजूदा नरेंद्र मोदी सरकार का मुखर आलोचक माना जाता है। पटेल के खिलाफ विदेशी अंशदान नियमन अधिनियम (एफसीआरए) के कथित उल्लंघन से संबंधित मामले में लुक आउट सर्कुलर जारी किया गया था।अदालत ने सीबीआई निदेशक को पटेल से उनके खिलाफ एजेंसी की कार्रवाई के लिए माफी मांगने के लिए जारी निर्देश को खारिज कर दिया।

कोर्ट ने अपने आदेश में नोट किया कि प्रतिवादी आरोपी को लिखित माफी देने के लिए, सीबीआई निदेशक को ट्रायल कोर्ट का निर्देश, अपने अधीनस्थ की ओर से चूक को स्वीकार करते हुए, मानसिक उत्पीड़न की क्षतिपूर्ति करने के लिए, कायम नहीं रह सकता है और इसे रद्द करने के लिए उत्तरदायी है।अदालत ने पटेल को उसकी पूर्व अनुमति के बिना देश नहीं छोड़ने का निर्देश दिया। पटेल को एक सप्ताह के भीतर निचली अदालत में पेश होना होगा और सीआरपीसी की धारा 88 के तहत पेश होने के लिए बांड भरना होगा।

दरअसल पटेल अमेरिका जा रहे थे, जब 6 अप्रैल को उन्हें विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम, 2010 के तहत एक मामले के संबंध में सीबीआई द्वारा उनके खिलाफ जारी एक एलओसी का हवाला देते हुए बेंगलुरु हवाई अड्डे पर देश छोड़ने से रोक दिया गया था। 8 अप्रैल को उन्हें फिर से बेंगलुरु हवाई अड्डे पर अमेरिका की यात्रा करने से रोक दिया गया था, हालांकि दिल्ली मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट की अदालत ने उन्हें पहले दिन में विदेश यात्रा करने की अनुमति दी थी।
दरअसल सीबीआई ने आकार पटेल के खिलाफ एयरपोर्ट अलर्ट जारी किया था, जिस पर अदालत ने पहले ही आदेश जारी कर इसे वापस लेने को कहा था, इस आदेश को केंद्रीय जांच एजेंसी ने चुनौती दी थी। इस सर्कुलर की वजह से आकार पटेल विदेश नहीं जा पा रहे हैं। कोर्ट ने यह भी कहा कि सीबीआई को मानवाधिकार कार्यकर्ता से माफी मांगने की आवश्यकता नहीं है, जैसा कि पहले ट्रायल कोर्ट ने आदेश दिया था। इससे पहले सीबीआई को कोर्ट ने 7 अप्रैल को आदेश दिया था कि वो आकार पटेल के खिलाफ लुकआउट सर्कुलर वापस ले।

केंद्र सरकार ने आकार पटेल के खिलाफ विदेशी चंदा नियमन कानून के कथित उल्लंघन के मामले में मुकदमा चलाने की अनुमति पहले ही दे रखी है। इस कारण स्पेशल कोर्ट में उनके खिलाफ पिछले दिसंबर में चार्जशीट पर कार्यवाही आगे बढ़ी है।वहीं पटेल ने एयरपोर्ट अलर्ट को लेकर कोर्ट का आदेश दरकिनार करके उन्हें अमेरिका से दोबारा रोके जाने को लेकर अवमानना का मामला सीबीआई के खिलाफ दायर कर रखा है।दिल्ली कोर्ट ने अपने प्रारंभिक आदेश में सीबीआई की कड़ी आलोचना की थी। कोर्ट ने कहा था कि लुकआउट सर्कुलर केवल जांच एजेंसी के भ्रम और कल्पनाओं से उत्पन्न आशंकाओं के आधार पर जारी नहीं किया जाना चाहिए।
दिल्ली हाईकोर्ट और राउज एवेन्यू जिला कोर्ट ने तीन दिन के अंतराल पर ये दो अलग अलग फैसले दिए। मोदी सरकार के दो हाई-प्रोफाइल आलोचकों को विदेशी कॉन्फ्रेंस में शामिल होने के लिए देश से बाहर जाने पर इससे पहले लुकआउट नोटिस के जरिए रोक लगाई गई थी। ये दोनों आलोचक पत्रकार राणा अयूब और एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया के बोर्ड चेयर आकार पटेल हैं। इनको रोकने के लिए ईडीऔर सीबीआई ने याचिका दी थी।

राणा अयूब दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के बाद विदेश जाने में कामयाब रहीं, वहीं आकार पटेल नहीं जा पाए।ये दोनों ही घटना बताती है कि आखिर किस तरह एलओसी की प्रक्रिया जिनका वास्तविक इस्तेमाल अपवाद के तौर पर किया जाना चाहिए, जहां जांच में आरोपी सहयोग नहीं करते हैं या फिर जांच में मदद के लिए उनको विदेश जाने से रोका जाना जरूरी होता है लेकिन अब इसका इस्तेमाल किसी के मौलिक अधिकार को खत्म करने के लिए किया जा रहा है।

साल 2010 के सुमेर सिंह सल्कान बनाम असिस्टेंट डायरेक्टर एवं अन्य मामले से लुकआउट सर्कुलर को आधार मिला। इसमें हाईकोर्ट ने सफाई देते हुए कहा था कि लुकआउट नोटिस जांच एजेंसी तभी जारी कर सकती हैं जब केस इंडियन पैनल कोड या आपराधिक मामले में चल रहा हो।जहां आरोपी गिरफ्तारी से बचने के लिए या ट्रायल कोर्ट में पेशी से बचने के लिए गैर जमानती वारंट और दूसरे नोटिस जारी किए जाने के बाद भी कोर्ट में नहीं आ रहा हो या फिर इस बात की आशंका हो कि वो ट्रायल से बचने के लिए देश छोड़कर विदेश भाग सकते हैं।

संसद से आज तक कोई ऐसा कानून पास नहीं हुआ है जिसके तहत एलओसी जारी करने को अधिकार मिल गया है।उन्हें जारी करने की प्रक्रिया पहली बार 1979 में गृह मंत्रालय ने शुरू की और फिर 2010 में सुमेर सिंह साल्कन मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय के निर्देशों के बाद गृह मंत्रालय के मेमोरेंडम से इसे अपडेट किया गया। 2010 के ज्ञापन के तहत, सर्कुलर मांगने के लिए जांच अधिकारी को इसका कारण और विवरण एक संबंधित रैंक के अधिकारी से लिखित में देना होता था।
वर्ष 2018 में इसको और अपडेट किया गया। इसे इकोनॉमिक सिक्योरिटी के लिए बनाया गया, क्योंकि तब कई हाई प्रोफाइल लोन डिफॉल्टर जैसे नीरव मोदी और विजय माल्या देश भाग गए थे। साल 2018 के संशोधन के जरिए इसका विस्तार किया गया। इसमें पब्लिक सेक्टर बैंक के सीनियर अधिकारी एलओसी जारी करने के लिए अनुरोध कर सकते हैं। इसके लिए गृह मंत्रालय का एक फॉर्मेट है जिसके जरिए ये होता है।

संविधान के आर्टिकल 21 के अंतर्गत विदेश यात्रा करने के अधिकार को मेनका गांधी केस के ऐतिहासिक फैसले से और मजबूत बनाया गया था।1978 में मेनका गांधी केस में मेनका गांधी के पासपोर्ट को जब्त कर लिया गया था, जब सार्वजनिक हित का हवाला देकर उन्हें देश छोड़ने से रोका गया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने मेनका के पक्ष में फैसला देकर विदेश यात्रा के संवैधानिक मौलिक अधिकार को और मजबूत कर दिया था।
(जेपी सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं और कानूनी मामलों के जानकार हैं।)

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