3 महीने बाद कम हो जाता है कोविशील्ड वैक्सीन का असर, बूस्टर डोज ज़रूर लें, लैंसेट की नई स्टडी का दावा

“कोविशील्ड’ से मानव शरीर को मिलने वाली सुरक्षा 3 महीने बाद कम होने लगती है। यानी कोविशील्ड का असर 3 महीने बाद कम होने लगता है।” 
उपरोक्त तथ्य मशहूर वैज्ञानिक जर्नल्स द लैंसेट के ताजा अध्ययन में सामने आया है।  गौरतलब है कि भारत में कोविशील्ड वैक्सीन का उपयोग बड़े पैमाने पर लोगों को वैक्सीनेट करने के लिए किया गया है। भारत में ओमिक्रोन वैरियंट के बढ़ते तादात के बीच फरवरी मार्च में भारत में कोविड-19 की तीसरी लहर की आशंका जताई जा रही है ऐसे में लैंसेट के अध्ययन के नतीज़े काफ़ी चिंताजनक हैं।

बता दें कि कोविशील्ड वैक्सीन को ऑक्सफोर्ड और एस्ट्राजेनेका (AstraZeneca) ने मिलकर डेवलप किया है है जबकि इसका भारत में उत्पादन सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (SII) ने किया है। 

स्कॉटलैंड और ब्राजील में किया गया अध्ययन

 लैंसेट की स्टडी में कोविशील्ड वैक्सीन के दो डोज का हालिया अध्ययन स्कॉटलैंड और ब्राजील में किया है। इस अध्ययन के बाद शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष में कहा है  कोविशील्ड वैक्सीन का असर 3 महीने बाद धीरे धीरे कम होने लगता है। अध्ययन में यह भी पाया गया कि कोविशील्ड की दूसरी खुराक़ लेने के 3 महीने बाद इम्यूनिटी में स्पष्ट अंतर देखा गया है। स्कॉटलैंड और ब्राजील दोनों में अस्पताल में भर्ती और मौतों को लेकर कोविड-19 के ख़िलाफ़ ChAdOx1 nCoV-19 वैक्सीन की सुरक्षा कम हो गई है। 
यूनिवर्सिटी ऑफ ग्लासगो के प्रोफेसर श्रीनिवास कटीकिरेड्डी ने कहा कि इस स्टडी के दौरान स्कॉटलैंड में कोविशील्ड की खुराक़ ले चुके 9,72,454 लोगों को शामिल किया गया जबकि ब्राजील में वैक्सीन लेने वाले  4,25,58,839 लोगों को शामिल किया गया था. लैंसेट के मुताबिक इस स्टडी की शुरूआत स्कॉटलैंड में 19 मई 2021 से की गई थी जबकि  ब्राजील में अध्ययन की शुरूआत 18 जनवरी 2021 से की गई और 25 अक्टूर 2021 तक चली। 

कोविशील्ड वैक्सीन लेने वाले लोगों को बूस्टर डोज ज़रूर लेना चाहिए 

अध्ययन के बाद शोधकर्ताओं ने कहा है कि कोविशील्ड वैक्सीन लेने वाले सभी व्यक्ति और जिन देशों में बड़े पैमाने पर इस वैक्सीन का इस्तेमाल किया गया है उन्हें बूस्टर डोज के तौर पर तीसरी खुराक़ लेने के बारे में ज़रूर सोचना चाहिए।
अध्ययन में कहा गया कि जिन देशों में कोरोना वैक्सीन लेने वाले लोगों की संख्या ज्यादा थी वहां का भी संक्रमण ज्यादा पाया गया। हालंकि ऐसा नए वेरिएंट के पाए जाने के कारण भी हो सकता है। लेकिन इस बात को भी अनदेखा नहीं किया जा सकता कि समय के साथ टीके की प्रभावशीलता कम हो रही हो। कोविड-19 के ओमिक्रॉन वेरिएंट को लेकर इस स्टडी में शोधकर्ताओं ने कुछ नहीं कहा है। इससे पहले कोविशील्ड वैक्सीन को लेकर लैंसेट ने ही हाल ही में किए गए अपने एक अन्य अध्ययन के बाद कहा था कि कोवीशिल्ड कोरोना के डेल्टा वेरिएंट से बचाव में काफ़ी असरदार है। यह वैक्सीन मानव शरीर को कोरोना से 63 फीसदी तक सुरक्षा प्रदान करता है। 

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