नई दिल्ली। भाकपा माले की केंद्रीय कमेटी ने बयान जारी कर कहा है कि हमास के सैन्य आक्रमण की निंदा का अर्थ इजराइल द्वारा फिलिस्तीन को निरंतर बंधक बनाए रखने और फिलिस्तीन के खिलाफ जारी युद्ध का समर्थन करना नहीं है। भारत को शांति स्थापना और राजनीतिक समाधान की दिशा में प्रयास करना चाहिए और फिलिस्तीनियों के संप्रभु देश के अधिकार को मान्यता देते हुए राजनीतिक समाधान को संभव बनाने की दिशा में काम करना चाहिए।
माले की केंद्रीय कमेटी ने कहा कि “7 अक्टूबर को हमास द्वारा अचानक इजराइली जमीन पर किए गए सैन्य हमले ने, जिसमें इजराइल के हालिया इतिहास में सर्वाधिक इजराइली जाने गयीं, उन मिथकीय शक्तियों की कलई खोल दी जिनके नाम पर इजराइल के इंटेलिजेंस व सुरक्षा तंत्र को अजेय बताया जाता रहा है।
हालांकि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने हमास के आक्रमण और उसकी क्रूर प्रकृति की आलोचना की, पर इजराइल इसे गाज़ा के लोगों का जनसंहार करने के लिए बहाने के तौर पर इस्तेमाल कर रहा है। इजराइली रक्षा मंत्री योआव गैलेंट ने फिलिस्तीनियों को “पशु मनुष्य” कहा और गाज़ा पर घोषित “युद्ध की अवस्था” में अस्पतालों, स्कूलों, घरों को बमबारी का निशाना बनाने के साथ ही खाद्य आपूर्ति, पानी, बिजली और ईंधन की आपूर्ति को रोक दिया है।”
भाकपा माले ने कहा कि “हम अंतरराष्ट्रीय समुदाय और संयुक्त राष्ट्र संघ से अपील करते हैं कि 20 लाख से अधिक लोगों, जिसमें आधे से अधिक बच्चे हैं, जो एक खुले यातना गृह बनाये जा चुके गाज़ा में फंसे हुए हैं, को बचाने के लिए हस्तक्षेप करें। यह शर्मनाक है कि अमेरिकी प्रशासन और उसके सहयोगी, एक बार फिर इजराइल के लिए सैन्य सहयोग में वृद्धि करके उसे और अधिक युद्ध अपराध करने के लिए मजबूत कर रहे हैं।”
माले की केंद्रीय कमेटी ने कहा कि “हम यह भी आग्रह करते हैं कि इजराइली बंधकों की नियति के संबंध में फैलाई जा रही भड़काऊ फर्जी खबरों पर निगाह रखी जाए, जिसमें से बहुत सारी तो भारत के संघी प्रचार तंत्र की उपज है। हमास द्वारा बड़े पैमाने पर बंधक बनाने की कार्रवाई अतीत के उस अनुभव से उपजी प्रतीत होती है जहां एक बंधक इजराइली सैनिक के बदले इजराइल, 1000 फिलिस्तीनी राजनीतिक बंदियों को छोड़ने को तैयार हो जाता था।”
माले ने कहा कि “इस समय मांग यह है कि सभी फिलिस्तीनी राजनीतिक बंदियों को छोड़ा जाए, जिसमें बहुत सारे ऐसे भी हैं, जो किसी अपराध के आरोपी नहीं हैं और बहुत सारे बच्चे हैं, जो इजराइल की जेलों में बरसों से यातना झेल रहे हैं।”
माले ने अपने बयान में कहा कि “हमास के हमले के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तत्काल इजराइल से एकजुटता जाहिर की पर इजराइल द्वारा गाज़ा में छेड़े गए जनसंहारक युद्ध पर वे खामोश हैं। फिलिस्तीन पर लंबे औपनिवेशिक कब्जे के इतिहास और वर्तमान में उसके लोगों के दमन व निर्वासन को देखते हुए, भारत की स्वीकार्य भूमिका यही हो सकती है कि वो राजनीतिक समाधान के रूप में फिलिस्तीनियों के संप्रभु देश (होमलैण्ड) के अधिकार का समर्थन करे, यही शांति स्थापित करने का एकमात्र संभव रास्ता है।”
माले की केंद्रीय कमेटी ने कहा कि “बीजेपी, भारत में आतंकी हमलों और हमास के वर्तमान हमलों के बीच फर्जी समानता प्रदर्शित करने की कोशिश कर रही है। एक बार फिर मोदी सरकार और भाजपा ने फिलिस्तीन पर कब्जे तथा फिलिस्तीनियों के विरुद्ध किए जा रहे अपराधों की तरफ पीठ फेर ली है और इस स्थिति का उपयोग भारत के अपने मुस्लिम समुदाय के विरुद्ध घृणा भड़काने के लिए करना चाहते हैं।
फिलिस्तीन के प्रति एकजुटता जाहिर करने के लिए अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्रों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया है और उत्तर प्रदेश के एक मंत्री एएमयू को आतंकियों का अड्डा बता रहे हैं। फिलिस्तीन के प्रति एकजुटता जाहिर करने को आतंकवाद और “जेहाद” करार दिया जा रहा है।”
भाकपा माले ने कहा कि “हमें याद रखना चाहिए कि फिलिस्तीन को गुलाम बनाने की प्रक्रिया लगभग उसी समय शुरू हुई, जिस समय भारत ने ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन से मुक्ति पायी। आज़ाद भारत, फिलिस्तीनी लक्ष्य का विश्वसनीय समर्थक रहा है और वाजपेयी सरकार ने भी इस परम्परागत भारतीय रुख को कायम रखा था। मोदी सरकार, भारत की इस नीति को पूरी तरह बदल कर, भारत को इजराइल का रणनीतिक सहयोगी बना देना चाहती है।”
माले की केंद्रीय कमेटी ने कहा कि “इजराइल के विरुद्ध सैन्य हमले की निंदा का पतन गाज़ा में उत्पीड़ित फिलिस्तीनी लोगों के विरुद्ध इजराइल के जनसंहारक युद्ध का समर्थन करने और उसके सहअपराधी बन जाने के रूप में नहीं होना चाहिए। भारतीय विदेशी नीति को तत्काल हिंसा की तीव्रता कम करने व युद्धविराम व शांति स्थापित करने के लिए काम करना चाहिए और फिलिस्तीनियों के संप्रभु होमलैण्ड के अधिकार को मान्यता देते हुए राजनीतिक समाधान को संभव बनाने की दिशा में काम करना चाहिए।”
(भाकपा-माले की केंद्रीय कमेटी द्वारा जारी।)