देहरादून। ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ के तहत देश में बाघों के संरक्षण के कारण एक तरफ जहां देश भर में बाघों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है तो दूसरी ओर उत्तराखंड राज्य में बाघों का आतंक ऐसा सिर चढ़कर बोल रहा है कि कॉर्बेट नेशनल पार्क से सटे पौड़ी गढ़वाल जिले के कई गांवों में कर्फ्यू लगाना पड़ रहा है। हाल के तीन दिनों में बाघ के हमले में हुई दो मौतों के बाद पूरे गढ़वाल में दहशत का माहौल है। प्रशासन हाई अलर्ट मोड पर है। बाघ को पकड़ने के लिए दिन-रात की गश्त के अलावा पिंजरे लगाए जा चुके हैं। लेकिन आदमखोर बाघ से निजात पाना ग्रामीणों के लिए मुश्किल भरी चुनौती बना हुआ है।
लंबे समय से वन्यजीवों के आतंक से त्रस्त गढ़वाल मंडल में खौफ की ताजा पटकथा रिखणीखाल ब्लॉक के ग्राम डला (गाडियू) में तब लिखी गई जब एक बाघ ने 60 वर्षीय बुर्जुग पर हमला कर उसी समय मौत के घाट उतार दिया था, जब वह रोज की तरह अपनी गायों को गौशाला में चारा देने गए थे। 13 अप्रैल की शाम हुई घटना में बाघ का शिकार बने बीरू मिस्त्री नाम के बुजुर्ग की ग्रामीणों द्वारा लाठी, डंडे, भाले और बरछे लेकर खोजबीन की गई।
कॉर्बेट नेशनल पार्क से सटे इस इलाके के जंगल में कुछ दिन पूर्व ही पांच बाघ दिखाई देने का वीडियो बनाया गया था, जो काफी वायरल भी हुआ था। इसकी ग्रामीणों द्वारा वन विभाग को भी सूचना दी गई थी। ग्रामीण अभी प्रशासन की कार्रवाई का इंतजार कर ही रहे थे कि इसके दो दिन बाद ही 15 अप्रैल को पौड़ी जिले के नैनीडांडा ब्लॉक के भैड़गांव (सिमली) में बाघ ने फिर एक सेवानिवृत्त शिक्षक की जान ले ली।
धुमाकोट के थाना प्रभारी दीपक तिवारी के मुताबिक सेवानिवृत्त शिक्षक रणवीर नेगी (75) का मकान गांव से कुछ दूरी पर सुनसान जगह में स्थित है। रविवार को उनका क्षत-विक्षत शव उनके घर से करीब 100 मीटर नीचे झाड़ियों से बरामद हुआ। लगातार इन दो घटनाओं से गुस्साए ग्रामीणों ने रिखणीखाल ब्लॉक के कार्बेट पार्क से लगे गांवों में बाघ के आतंक से निजात दिलाने की मांग को लेकर वन विभाग के दफ्तर में प्रदर्शन किया और मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजकर बाघ के आतंक से निजात दिलाने की मांग की।
बाघ की दहशत से सहमे मंदाल घाटी के दर्जनों गांवों के लोगों ने “बाघ के आतंक का अन्त, जनता चाहे तुरन्त” के नारे के साथ पौड़ी जिले में रिखणीखाल ब्लॉक की आड जंगलात चौकी रथुवाढाब की तरफ पैदल मार्च भी किया। चौकी पहुंचकर उन्होंने प्रदर्शन के साथ ही वन विभाग के रेंज कार्यालय का घेराव किया।
पूर्व ब्लॉक प्रमुख रिखणीखाल पिंकी नेगी के आह्वान पर लोग इकठ्ठा होकर वन विभाग की चौकी रथुवाढाब प्रदर्शन के लिए पहुंचे। प्रदर्शन व घेराव में जिला पंचायत सदस्य कर्तिया विनयपाल सिंह नेगी सहित समीपवर्ती गांव रथुवाढाब, कर्तिया, नौदानू, कुमाल्डी, बंजा देवी, कालिन्कौ, ज्वालाचौड, गजरजाल, झर्त, ढिकोलिया आदि दर्जनों गांवों के लोग शामिल थे।
21 अप्रैल तक स्कूल बंद
आदमखोर बाघ की दहशत के चलते लोग घरों में कैद होने को मजबूर हो गए हैं। पौड़ी जिले के जिस रिखणीखाल, धुमाकोट क्षेत्र के 25 गांवों में इस आदमखोर बाघ की दहशत है, वहां प्रशासन ने नाइट कर्फ्यू लगा दिया है। रिखणीखाल और धुमाकोट क्षेत्र के भैड़गांव पट्टी के अंतर्गत आने वाले सभी स्कूलों व आंगनबाड़ी केन्द्रों में पहले एहतियातन 17 व 18 अप्रैल (दो दिन) की छुट्टी का ऐलान किया था। जिसे बढ़ाकर अब 21 अप्रैल तक कर दिया है।
बाघों की दहशत के बीच पौड़ी के जिलाधिकारी आशीष चौहान समेत गढ़वाल वन विभाग व लैंसडाउन वन विभाग की टीम, उप जिलाधिकारी, पुलिस कर्मी सहित अन्य विभागों के अधिकारियों ने इन गांवों में पहुंचकर पीड़ित परिवारों से मुलाकात की है। हमलावर बाघ को पकड़ने के लिए प्रशासन द्वारा गांव में तमाम जगहों पर ट्रैस कैमरे लगाते हुए घटनास्थल के आसपास बाघ को कैद करने के लिए पिंजरे लगाए गए हैं। फिलहाल, वन विभाग व पुलिसकर्मियों की टीमें यहां डेरा जमाए हुए हैं।
अगली सूचना तक बाघ प्रभावित इलाके में शाम सात बजे से सुबह के छः बजे तक कर्फ्यू लगा दिया गया है। जिलाधिकारी आशीष चौहान का कहना है कि धुमाकोट के भैड़गांव गांव व उसके आसपास के इलाकों में भय का माहौल व्याप्त होने व विद्यालय जाने वाले बच्चों की सुरक्षा के मद्देनजर स्थिति सामान्य होने तक स्कूलों व आंगनबाड़ी केन्द्रों की छुट्टी का ऐलान किया गया है। इसके अलावा मुख्य पशु चिकित्साधिकारी पौड़ी को निर्देश दिया कि अगले आदेश तक प्रभावित क्षेत्रों में ग्रामीणों के पशुओं के चारे की व्यवस्था सुनिश्चित करें, जिससे ग्रामीणों को इसके लिए जंगल की तरफ न जाना पड़े।
मंगलवार को भी गच्चा दे गया बाघ
रिखणीखाल ब्लॉक के बाघ प्रभावित ग्राम पंचायत मेलधार के डल्ला गांव (लड्वासैंण) में दिनभर दोनों बाघों की मूवमेंट बनी रही। इस दौरान वन विभाग की ट्रैंकुलाइज टीम ने हमलावर बाघ को ट्रैंकुलाइज करने का प्रयास किया, लेकिन रेंज से बाहर होने के कारण सफलता नहीं मिल पाई।
ग्राम पंचायत मेलधार के प्रधान खुशेंद्र सिंह ने बताया कि डल्ला गांव के लड्वासैंण में बाघ मंगलवार को भी दिनभर गांव के आसपास मंडराते रहे। इस दौरान बाघ को ट्रैंकुलाइज करने के कई प्रयास किए। लेकिन हमलावर बाघ ट्रैंकुलाइज गन की रेंज में नहीं आया। इसके बाद जैसे ही वह ट्रैंकुलाइज गन की रेंज में आया तो टीम ने उस पर निशाना दागा, लेकिन सफलता नहीं मिल पाई। इसके अलावा बाघ को ट्रैंकुलाइज करने के लिए एक छोटा पिंजरा भी लगाया गया है।
गढ़वाल रेंज के डीएफओ स्वप्निल अनिरुद्ध ने बताया कि वरिष्ठ अधिकारियों के मार्गदर्शन में बाघ को पकड़ने अथवा ट्रैंकुलाइज करने के प्रयास किए जा रहे हैं। मंगलवार को मुख्य वन संरक्षक गढ़वाल सुशांत पटनायक भी डल्ला गांव पहुंच गए हैं। कालागढ़ टाइगर रिजर्व वन प्रभाग के डीएफओ नीरज शर्मा, लैंसडाउन के डीएफओ दिनकर तिवारी, एसीएफ हरीश नेगी समेत वन अधिकारियों की टीमें बाघ प्रभावित क्षेत्र में ड्रोन व ट्रैंकुलाइजर आपरेशन टीम में काम कर रहे हैं।
इन गांव में लगा है नाइट कर्फ्यू
ग्राम डल्ला, पट्टी मर पैनो-4, मेलघार क्वीराली, तोल्यू, गाडियू, जुई, द्वारी, काण्डा, कोटी एवं तहसील धुमाकोट के अंतर्गत ग्राम ख्यूणाई तल्ली, ख्यूणाई मल्ली, ख्यूणाई बिचली, उम्टा, सिमली मल्ली, चमाडा, सिमली तल्ली, घोडकन्द तल्ला, काण्डी तल्ली, काण्डी मल्ली, मन्दियार गांव, खडेत, गूम व बेलम गांव में कर्फ्यू लगाया गया है।
दस सालों में जिले में 45 लोगों ने गंवाई जान
जिस पौड़ी गढ़वाल जिले में बाघ का आतंक इन दिनों सिर चढ़कर बोल रहा है वहां पिछले दस सालों में करीब 45 लोग वन्य जीवों के हमलों में अपनी जान गंवा चुके हैं। इस इलाके में तमाम खूंखार गुलदार गांव के निकट ही घूमते रहते हैं। सबसे ज्यादा मौत भी इन्हीं के हमलों में हुई है।
बाघों की बढ़ती संख्या और बढ़ता खतरा
हर जंगल में बाघों की मौजूदगी का एक विज्ञान है। इनकी संख्या इससे अधिक होने पर या तो बाघों में आपसी संघर्ष होगा या फिर कमजोर बाघों को जंगल छोड़कर आबादी की ओर बाहर का रुख करना पड़ेगा। भारत में विलुप्ति के करीब पहुंचे बाघों को बचाए रखने के लिए ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ शुरू किया गया था। बाघों के संरक्षण की वजह से इनकी संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई।
अभी पिछले सप्ताह ही भारत में बाघों की संख्या के जो ताजा आंकड़े आए हैं उनके मुताबिक भारत में बाघों की संख्या पिछले चार वर्षों में 200 बढ़कर 2022 में 3,167 तक पहुंच गई। आंकड़ों के अनुसार, देश में 2006 में बाघों की संख्या 1411, 2010 में 1706, 2014 में 2,226, 2018 में 2,967 और 2022 में 3,167 थी।
एक अप्रैल, 1973 को ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ की शुरुआत में इसमें 18,278 वर्ग किलोमीटर में फैले नौ बाघ अभयारण्य शामिल थे। वर्तमान में इसके तहत 75,000 वर्ग किलोमीटर (देश के भौगोलिक क्षेत्र का लगभग 2.4 प्रतिशत) से अधिक में फैले 53 बाघ अभयारण्य शामिल हैं।
(देहरादून से समील मलिक की रिपोर्ट)
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