रांची। झारखंड में भूख से हो रही मौतों पर चर्चा करें तो 2017 से लेकर 2021 तक झारखंड में दो दर्जन से अधिक लोगों की मौत भूख से हुई है, जबकि राज्य सरकार इसे नकारती रही है।
वैसे राष्ट्रीय स्तर की बात करें तो वैश्विक भूख सूचकांक 2022 में भारत अपने पड़ोसी बांग्लादेश, पाकिस्तान, नेपाल और श्रीलंका जैसे देशों से भी नीचे चला गया है। दुनिया के 121 देशों में भारत 107वें पायदान पर खिसक गया है। वहीं भारत सरकार ने इस रिपोर्ट पर काफी तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की, लेकिन देश के अंदर की वास्तविक सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता है। राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5 जो 2019-21 में हुए हैं। इसके आंकड़े आईने की तरह देश में गंभीर भुखमरी की स्थिति को साफ करते हैं। देश भर में 15 से 49 वर्ष की 59.1% महिलाएं एनीमिया की शिकार हैं और 67.1 प्रतिशत बच्चे कुपोषित हैं।
वहीं आदिवासी बहुल राज्य झारखण्ड में भी 67.5 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैं और 65.7 फीसदी महिलाएं एनीमिया ग्रस्त हैं। जबकि देश में 37 फीसद लोगों में फोलिक एसिड की कमी है। 53% लोग विटामिन बी-12 की कमी से जूझ रहे हैं, 19 प्रतिशत भारतीय विटामिन ए एवं 61% आबादी विटामिन की कमी में ही जीवनयापन कर रहे हैं। ऐसा पर्याप्त और पौष्टिक आहार मुहैया नहीं होने की वजह से है। इसका दुष्प्रभाव सीधे-सीधे इंसान की कार्यक्षमता पर पड़ता है। खाद्यान्न न मिलने के अधिकांश कारण मानवकृत हैं। उदाहरण के तौर पर राशन कार्ड, पेंशन योजना, मनरेगा इत्यादि में आधार नम्बर नहीं होने से उनको इन बुनियादी योजनाओं से वंचित करना है।

आंगनबाड़ी केन्द्रों में वर्ष 2021 में और आज भी 6-6 महीने तक बच्चों को पोषाहार नहीं दिया जा रहा है। मनरेगा जैसी योजनाओं को सरकार ने इतना तकनीक आधारित कर दिया है कि आम अकुशल मजदूर काम करके भी मजदूरी नहीं ले पाता है। ऐसे आंकड़ों से देश अंदर ही अंदर कमजोर हो रहा है, जिसका समय रहते बुनियादी मुद्दों पर केन्द्रित नीतियों में बदलाव और उनका बेहतरीन अमल आवश्यक है, अन्यथा आज नहीं तो कल देश को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
इन तमाम मुद्दों पर झारखंड में भोजन का अधिकार अभियान और झारखंड नरेगा वॉच का पांच सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव से मिला और उनके सामने आगामी 2023-24 के झारखंड सरकार के बजट के सिलसिले में कई महत्वपूर्ण मांगे रखी। जिसमें स्कूलों और आंगनबाड़ियों में हर दिन अंडा मुहैया कराने, सामाजिक सुरक्षा पेंशन का सार्वभौमीकरण एवं पेंशन की राशि बढ़ाकर न्यूनतम 2,500 रुपये प्रति माह करने की माँग शामिल है, जो अभी 1,000 रुपये मात्र है। इसी प्रकार ग्रीन कार्ड धारकों को 5 किलो खाद्यान्न प्रति माह प्रति व्यक्ति वितरण करने एवं राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना के तहत सभी गर्भवती महिलाओं को चाहे उसका वह दूसरा या तीसरा गर्भधारण ही क्यों न हो, विस्तार की भी मांग की।

मंत्री से मुलाकात के दौरान उनका ध्यान 1 जनवरी 2023 से जारी ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा मनरेगा मजदूरों के एप से जुड़ी तकनीकी दिक्कतों की ओर भी आकर्षित कराया गया। जिसमें झारखण्ड जैसे राज्य के जहां मोबाइल नेटवर्क, बिजली की समस्या, स्मार्ट फोन की आम जनों तक पहुंच न होना, टास्क आधारित काम में दूर जाकर दो बार हाजिरी देना जैसी परेशनियों से मजदूरों को जूझना पड़ रहा है।
बताया गया कि अभियान का स्पष्ट मानना है कि स्कूल एवं आंगनबाड़ी केन्द्रों में 5 दिन अंडा देने से जहां इन सरकारी संस्थाओं में बच्चों की उपस्थिति में इजाफा होगा, वहीं बच्चों के पोषण में भी उत्तरोत्तर सुधार संभव है और ग्रामीण स्तर पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष तौर पर रोजगार के अनेक अवसर पैदा होंगे। इसमें जेएसएलपीएस की महिलाओं को जोड़ा जाए ताकि ग्रामीण स्तर पर मुर्गी पालन, चारा उत्पादन एवं पशुपालन में लगे लोगों को रोजगार मिलेगा।

मांग पत्र देखकर वित्त मंत्री ने स्वीकार किया कि सर्वे रिपोर्ट में उल्लिखित तथ्य बिल्कुल सही हैं। आप लोगों की सारी मांगें जायज हैं और इनको नए बजट में शामिल करने की पूरी कोशिश की जाएगी। लेकिन उन्होंने यह भी कहा कि राजस्व उगाही में कई तरह की कठिनाइयां भी हैं। जिसके चलते सरकार को अपने बजट के दायरे में रहकर कदम उठाने पड़ते हैं। बैठक के अंत में वित्त मंत्री ने प्रतिनिधिमण्डल के सदस्यों को सुझाव दिया कि वे इन मांगों को विभागीय मंत्रियों के समक्ष भी ले जाएं और मुख्यमंत्री के साथ भी बैठक करें ताकि सही समय पर काम पूरा हो पाए। प्रतिनिधि मण्डल में जाने माने अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज़ सहित भोजन का अधिकार अभियान के संयोजक अशर्फी नन्द प्रसाद, झारखण्ड नरेगा वॉच के संयोजक जेम्स हेरेंज, और परन आमितावा शामिल थे।
(झारखंड से वरिष्ठ पत्रकार विशद कुमार की रिपोर्ट।)
+ There are no comments
Add yours