शनिवार, 15 फरवरी को रात 11 बजे नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हुई भगदड़ से मौतों पर रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव की पहली टिप्पणी रात 11:36 मिनट पर कुछ इस प्रकार से थी, “नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर स्थिति काबू में है। दिल्ली पुलिस और आरपीएफ मौके पर पहुंच चुकी है। घायलों को अस्पताल ले जाया जा चुका है। अचानक से हुई भीड़ को कम करने के लिए विशेष ट्रेनें चलाई जा रही हैं।”
इसके कुछ मिनट बात 11:52 मिनट पर मंत्री जी सोशल मीडिया से जानकारी साझा करते हैं कि नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर अचानक से आई भीड़ को कम करने के लिए 4 स्पेशल ट्रेन की व्यवस्था कर दी गई है। उच्च स्तरीय जांच का निर्देश दे दिया गया है।
फिर 16 तारीख को सुबह 1 बजकर 9 मिनट पर उन्हें पता चल जाता है कि बड़ी दुर्घटना घट चुकी है तो उनका अगला संदेश आता है कि वे इस दुर्भाग्यपूर्ण भगदड़ से बेहद दुखी हैं, और उनकी सारी टीम इस घटना से प्रभावित लोगों की सहायता के लिए मुस्तैदी से काम कर रहे हैं।
एक और हादसे से नाराज आम भारतीय और विपक्ष रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव से इस्तीफे की मांग कर रहा है। वैष्णव के सोशल मीडिया हैंडल पर हजारों की संख्या में देश का नागरिक अपनी हताशा बयां करता जाता है।
एक भुक्तभोगी ने हादसे से दो दिन पहले का एक वीडियो साझा करते हुए अपने जवाब में लिखा है, “इस नुकसान और असुविधा के लिए सिर्फ़ आप और आपकी सरकार ही ज़िम्मेदार है। बिना टिकट यात्रा करने वालों को मुफ़्त में पास देना और टिकट लेकर यात्रा करने वालों को परेशान करना। 2 दिन पहले नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से ट्रेन में यात्रा की तस्वीर को आप देख सकते हैं कि लोगों को किस तरह जानवरों की तरह ठूंस दिया गया है, क्योंकि आप सुविधाएं नहीं दे सकते।”
लेकिन आम भारतीय और विपक्षी दलों का शायद इस बात का अभी भी अहसास नहीं है कि मोदी सरकार में इस्तीफे नहीं दिए जाते। फिर अश्विनी वैष्णव तो उन चंद केंद्रीय मंत्रियों में से एक हैं, जो प्रधानमंत्री के सबसे प्रिय हैं। हां, यह सही है कि आख़िरकार हारकर मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह से इस्तीफा मांगना पड़ा, लेकिन कोई यह समझने की भूल न करे कि उनका इस्तीफ़ा किसी जनदबाव का नतीजा है।
क़ायदे से देश को हादसे के बाद ही समझ लेना चाहिए था कि नतीजा कुछ नहीं निकलेगा। नोटबंदी, कोविड लॉकडाउन की घोषणा और उसके प्रभावों से मरने वालों और प्रभावितों की संख्या करोड़ों में थी, लेकिन कुछ हुआ? प्रयागराज कुंभ तो वह मौका है, जिसमें किसी को जबरन प्रयागराज भी नहीं लाया जा रहा। फिर हादसों की जिम्मेदारी और इस्तीफे का तो सवाल ही नहीं उठता।
उल्टा, भारी भीड़ और हादसों से तो नया रिकॉर्ड ही बनता है, और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री आदित्यनाथ के इस दावे को कोई भी विपक्षी नकार पाने की स्थिति में नहीं रहेगा कि इस बार के कुंभ (भाजपा के हिसाब से महाकुंभ) में 40 करोड़ से भी अधिक हिंदुओं ने आस्था की डुबकी लगाई है।
भाजपा के आईटी सेल के मुखिया अमित मालवीय प्रमोट किये जा चुके हैं। अब वे भाजपा के राष्ट्रीय सूचना एवं तकनीक विभाग के सर्वेसर्वा हैं, इसलिए उनकी सूचना सबसे अहम हो जाती है। हादसे की रात जब रेलवे प्रशासन और आरपीएफ हरकत में आ चुकी थी, उसके बाद की वीडियो को साझा कर जनाब देश को बता रहे थे कि दिल्ली रेलवे स्टेशन में तो सब कुछ चंगा है, कोई हादसा हुआ ही नहीं।
आज उन्होंने एक और ख़ुफ़िया जानकारी साझा की है। बकौल अमित मालवीय, “प्रयागराज में चल रहा महाकुंभ हिंदू समाज का महापर्व है। अब तक 53 करोड़ लोग त्रिवेणी संगम में गंगा मैया का आशीर्वाद ले चुके हैं। यह पर्व 26 फरवरी, महाशिवरात्रि की पुण्य तिथि को संपन्न होगा। अभी नौ दिन शेष हैं। कठिनाई हो सकती है, परंतु यदि संभव हो तो सपरिवार प्रयागराज आइए। यह शुभ संयोग फिर 144 साल बाद आएगा।
इस दौरान महाकुंभ में जनमानस की परम आस्था और हिंदू समाज की एकता से कुंठित अखिलेश यादव, लालू प्रसाद जैसे तथाकथित सेक्युलर और सामंतवादी विचारधारा रखने वाले लोग भी अपनी हिंदू-विरोधी मानसिकता का प्रचार कर सकते हैं।”
गौर किया जाये कि 120 करोड़ हिंदुओं, जिनमें बच्चे, बूढ़े भी शामिल हैं, उसमें से 53 करोड़ गंगा मैया का आशीर्वाद ले चुके हैं। फिर आगे बताया गया है कि अभी यह पर्व 26 फरवरी, अर्थात 9 दिन और चलने वाला है। यह संयोग फिर 144 बाद ही मिल सकेगा, कठिनाई हो तो हो, लेकिन सपरिवार पधारें।
इस झूठे, फर्जी दावे से यही ध्वनित हो रहा है कि आधे हिंदू तो संगम में डुबकी लगा चुके। सिर्फ आप ही बचे हैं, जिन्हें पुण्य कमाने से नहीं चूकना चाहिए। अगर अगले 9 दिनों तक भी ऐसा ही रेला, भगदड़ चलता रहा तो सीना ठोंककर अगले कई वर्षों तक भाजपा कह सकती है कि 60-70 करोड़ हिंदू इस बार के महाकुंभ में आये, जो ऐसा विश्व रिकॉर्ड है जिसे आज तक दुनिया में किसी देश में संभव नहीं किया जा सका है। जो काम अयोध्या में राम मंदिर निर्माण से संभव न हो सका, उसे सदियों से जारी कुंभ पर्व में अपना प्रयास बताकर वसूला जा सकता है।
यह सरकार अच्छी तरह से जानती है कि कुंभ में बदइंतजामी, दसियों किलोमीटर पैदल चलने की मजबूरी, सड़क मार्ग, रेल मार्ग से आने-जाने में होने वाली कठिनाइयां या हवाई यात्रा में दस गुना महंगे टिकट वसूले जाने की घटनाओं को 60 करोड़ सनातनियों के जमावड़े से आसानी से दबाया जा सकता है।
उसके ऐसा समझने के पीछे ठोस वजह है। उसने देशवासियों को नोटबंदी और कोविड महामारी में दो-दो बार ठोक-बजाकर टेस्ट कर लिया है। इस सरकार को मणिपुर की बर्बरता या नई दिल्ली में अंतर्राष्ट्रीय महिला पहलवानों का संघर्ष डिगा नहीं सका, और अंततः अपनी गलती न स्वीकार करने से पब्लिक की नजर में सरकार ढीठ लेकिन दृढ़ दिखी, तो यही फार्मूला यहां भी क्यों नहीं काम करेगा।
हादसे के तत्काल बाद रेलवे प्रशासन सख्ती से मौतों के आंकड़ों को छुपाने में जुटा दिखा। मौके पर मौजूद एक महिला पत्रकार को रेलवे प्रशासन की सख्ती तक का सामना करना पड़ा था। आरपीएफ ने उसके आईडी कार्ड को देख उसे पत्रकार मानने से भी इंकार कर दिया था, और उसका मोबाइल जब्त कर लिया था।
लेकिन चूंकि यह हादसा देश की राजधानी में हुआ था, इसलिए इसे हजम कर पाना सरकार के लिए संभव नहीं था। पीटीआई की रिपोर्ट भी इस तथ्य को पुख्ता करती है कि मृतकों की संख्या 18 पहुंच चुकी है। हालांकि मीडिया के साथ घटना की गवाह एक महिला के अनुसार कम से कम 35 महिलाएं कुचली गईं थीं, जिनके ऊपर 3-400 लोग गिर गये थे।
मृतकों और घायलों को लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल ले जाया गया। लेकिन यह क्या? अस्पताल के गेट के बाहर दिल्ली पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों की भारी तैनाती ने मीडिया के प्रवेश को पूरी तरह से अवरुद्ध कर दिया था। राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री सहित तमाम गणमान्य लोगों की ओर से हादसे में मरे लोगों के प्रति भावभीनी श्रद्धांजलि और प्रशासन की ओर से हर मृतक पर 10 लाख और घायलों को 2.5 लाख रुपये की घोषणा कर मामले को रफा-दफा कर दिया गया।
और यही कारण है कि शनिवार रात को हुए इस हादसे के बाद भी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर आज भी प्रयागराज जाने वाले लोगों का सिलसिला नहीं रुका है। बड़ी संख्या में आज भी लोग ट्रेनों में खड़े होकर यात्रा करने के लिए तैयार हैं। एक न्यूज़ चैनल ने दिखाया है कि कैसे कुछ लोग सामान रखने वाली जगह पर भी लेटकर यात्रा कर रहे हैं। बूढ़े लोगों को यात्रियों ने अपनी सीट के नीचे बिठाया हुआ है।
ये सभी लोग 144 साल बाद होने वाले महाकुंभ में किसी तरह शामिल होने के लिए 2-3 दिनों के कष्ट को सहन कर लेने का मन बनाकर यात्रा कर रहे हैं। उन्हें मोदी-योगी सरकार, गोदी मीडिया और बागेश्वर बाबा टाइप के साधू संतों की घोषणाओं ने साफ़-साफ़ बता दिया है कि ऐसा मौका उन्हें अब इस जिंदगी में दोबारा नहीं मिलने वाला है।
लालकृष्ण अडवानी ने एक बार कभी अपने शिष्य रहे पीएम मोदी के बारे में बताया था कि इवेंट मैनेजमेंट के मामले में उनका कोई सानी नहीं है। इस काम में अब बीजेपी के लगभग सभी बड़े नेता अच्छी तरह से पारंगत हो चुके हैं।
एक भव्य इवेंट के आयोजन के लिए आवश्यक तत्व कुछ इस प्रकार से होता है। किसी भी धार्मिक आस्था से जुड़े आयोजन के लिए भव्य तैयारी की शुरुआत उसके जबरस्त तरीके से प्रचार-प्रसार में निहित है। इसके लिए सरकारी संसाधनों का जमकर उपयोग-दुरुपयोग भी हो तो विपक्ष की परवाह करने की जरूरत नहीं है।
यदि उसने ज्यादा खिलाफत की तो उसे हिंदू विरोधी, सनातन विरोधी और मुस्लिम परस्त बताकर किनारे किया जा सकता है। साधू-सन्यासियों की जमकर आवभगत और महिमामंडन कार्यक्रम की सफलता और उनके आशीर्वाद से अगले चुनाव में फलित होता है। आयोजन का अखबारों में जमकर प्रचार-प्रसार और विज्ञापन से मीडिया का मुंह बंद करने और हादसों को मैनेज करने की कुंजी साबित होती है।
फिर इस बार के कुंभ में तो जिस मात्रा में भाजपा सहित विपक्षी नेताओं, केंद्रीय मंत्रियों, राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री के साथ-साथ कॉर्पोरेट जगत से अंबानी, अडानी घराने का एक-एक कर आने-जाने का सिलसिला बना रहा, उसने इस बार के कुंभ आयोजन को लगातार मीडिया में सुर्ख़ियों में बनाये रखा।
गोदी मीडिया भला इस हाइप को कई गुना और बढ़ाने में कैसे पीछे रह सकती थी? जिस मीडिया ने सरदार का नमक खाया हो, उसे इसका हक तो अदा करना बनता ही है। लिहाजा ‘आज तक’ जैसे न्यूज़ चैनलों के एंकर्स सुधीर चौधरी अपने प्रोग्राम ब्लैक एंड व्हाईट में बताने से नहीं चूकते कि अगला महाकुंभ तो 2169 में आएगा।
अब जिस किसी भी धर्म परायण हिंदू ने इसे देखा होगा, उसे अच्छी तरह से समझ आ गया होगा कि यदि उसने 2025 के इस महाकुंभ में डुबकी नहीं लगाई तो 144 वर्ष बाद आने वाले महाकुंभ में स्नान का सौभाग्य तो वह किसी भी सूरत में हासिल नहीं कर पायेगा।
नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर हुई इन 18 मौतों की सबसे बड़ी वजह यही 144 साल बाद आये कुंभ की है, जो बरबस ही आम हिंदुओं को सभी मुश्किलात के बावजूद आने के लिए विवश कर रही है। ग्रामीण आबादी के बीच में यह धारणा भी बड़ी तेजी से फैली है कि महाकुंभ में जाने के लिए उन्हें रेलवे टिकट लेने की भी जरूरत नहीं है, क्योंकि देश में हिंदुओं की सरकार है।
इसका जीता-जागता उदाहरण, बिहार के बक्सर में रेलवे के डीआरएम के एक वायरल वीडियो में देखा जा सकता है। न्यूज़ चैनल आजतक में साफ़ देखा जा सकता है, कि डीआरएम कुछ महिलाओं और पुरुषों के झुंड से पूछ रहे हैं कि आप लोगों में किसी के पास भी टिकट नहीं है? आप लोगों को किसने कहा कि बिना टिकट के जाना है? जवाब में डीआरएम साहब से अपना चेहरा छिपाते हुए एक लड़की कह रही है, “नरेंद्र मोदी।”
वहां पर मौजूद भीड़ ठठाकर हंस पड़ती है, जिसपर डीआरएम साहब खामोश हो जाते हैं। फिर कहते हैं कि नरेंद्र मोदी ने तो ऐसा नहीं कहा होगा। लेकिन आस्था के इस ज्वार और सत्तारूढ़ दल की मनोदशा से भलीभांति परिचित डीआरएम साहब जल्दी से घटनास्थल से भाग खड़े होने में ही अपनी भलाई समझते हैं।
ऐसे में भला रेलवे अधिकारी या कर्मचारी भी क्या करें? उन्हें स्पष्ट निर्देश हैं कि श्रद्धालुओं की भीड़ को आने देना है। यही कारण है कि शनिवार की रात नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर एक घंटे में 1500 जनरल बोगी के टिकट बेचे जा रहे थे। रेलवे को क्या यह बात पता नहीं थी कि प्रयागराज जाने वाली जिस स्पेशल ट्रेन की व्यवस्था की गई है, उससे कई गुना टिकट वह बेच चुकी है।
रेलवे को तो यह भी पता है कि जितनी संख्या में टिकटों की बिक्री हुई है, उतनी ही संख्या में बिना टिकट यात्री भी स्टेशन पर मौजूद हैं। लेकिन किसी भी तीर्थयात्री के साथ सख्ती बरतने का मतलब होगा धर्म विरोधी कृत्य करना और लोगों को प्रयागराज जाने से रोकना। ऐसे में कौन होगा जो धर्मद्रोही घोषित किये जाने के साथ-साथ सरकार के कोप का भाजन बनना चाहेगा?
इस बार के कुंभ का फल भले ही करोड़ों हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले लोगों को अगले जन्म में मिले या न मिले, लेकिन उन राजनेताओं, कॉर्पोरेट घरानों और जगतगुरुओं, कॉन्ट्रैक्टर्स और गोदी मीडिया को इंस्टेंट मिलने जा रहा है, जिन्हें मेला प्रशासन ने वीवीआईपी ट्रीटमेंट देकर स्नान कराया और उनकी चुंधियाती रंग-बिरंगी तस्वीरों को देख गठरी बांध आने वाला परंपरागत श्रद्धालु ही नहीं आया, बल्कि इस बार मिडिल क्लास भी लगे हाथ गंगा, यमुना और विलुप्त सरस्वती की त्रिवेणी में डुबकी लगाने से खुद को रोक नहीं पाया।
(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं)
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