सरकार की ओर से कल खुदरा महंगाई के ताजे आंकड़े जारी कर घोषणा की गई थी कि इसमें रिकॉर्ड गिरावट के साथ अब 3.16% रह गई है, जो कि जुलाई 2019 के बाद सबसे निचला स्तर है। आज थोक महंगाई की 0.85% की घोषणा के साथ यह ऐलान किया जा रहा है कि 13 महीनों में यह सबसे निचले स्तर पर है। निश्चित रूप से आम भारतीय के लिए एक बड़ी राहत की खबर है, लेकिन अगर शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे बुनियादी जरूरतों में बेतहाशा वृद्धि बनी हुई हो, तो ये सारे आंकड़े भला किसके गले उतर सकते हैं।
सरकारी दावों, नीति आयोग की खुशगवार रिपोर्टों से यदि जमीनी हकीकत की ओर देखें तो हम पाते हैं कि दिल्ली के एक नामचीन स्कूल ने अपने स्कूल से 34 विद्यार्थियों का नाम इसलिए काट दिया है, क्योंकि उनके माता-पिता बढ़ी फीस नहीं दे रहे थे। खबर है कि दिल्ली के सबसे प्रतिष्ठित स्कूलों में से एक, डीपीएस (दिल्ली पब्लिक स्कूल), द्वारका ने कल इस कार्यवाही को अंजाम दिया। इन 34 विद्यार्थियों के माता-पिता बढ़ी हुई फीस के हिसाब से भुगतान करने के बजाय पुराने स्वीकृत दर पर ही शिक्षण शुल्क जमा करा रहे थे।
यह अलग बात है कि पिछले माह ही दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली के निजी स्कूलों को फीस न चुका पाने वाले विद्यार्थियों पर दंडात्मक कार्यवाही के खिलाफ चेतावनी जारी की थी, और नवनियुक्त बीजेपी सरकार ने भी इस मुद्दे पर बिल लाने की बात कह आम नागरिकों से खूब वाहवाही लूटी।
आम आदमी पार्टी (आप) नेता, सौरभ भारद्वाज ने आज एक प्रेस कांफ्रेंस कर दावा किया है कि दिल्ली के लगभग सभी निजी स्कूलों ने नए सत्र के साथ स्कूल फीस में भारी बढ़ोत्तरी की है, जब सरकार की ओर से दावा किया गया कि हर स्कूल में एसडीएम के द्वारा ऑडिट किया जायेगा, जिसे आप पार्टी ने पिछले दस वर्षों में नहीं कराया था। सौरभ भारद्वाज के अनुसार, “डीएम की ओर से भी बीजेपी सरकार को रिपोर्ट सौंपी गई थी कि बच्चों का शोषण हो रहा है, लेकिन सरकार ने कोई कार्यवाही नहीं की। सरकार द्वारा जो फीस निर्धारित की गई थी, अभिभावक उसे दे रहे थे। लेकिन डीपीएस स्कूल प्रबंधन द्वारा ऐसे बच्चों को क्लास में नहीं घुसने दिया जा रहा है।”
भारद्वाज ने कहा, “डीपीएस द्वारका में 34 बच्चों के नाम स्कूल से काट दिए गये, उन बच्चों को स्कूल बस से वापस भेज दिया गया। बच्चों को स्कूल बस से वापस भेज देने पर उन्हें कौन लेने आएगा? इन स्कूलों की फीस को लोअर और मिडिल क्लास वहन करने की क्षमता पहले भी नहीं रखता था, और अधिकांश अपर मिडिल क्लास परिवार ही अपने बच्चों को पढ़ा पाता है। लेकिन दो बच्चों वाले परिवार 4 लाख रूपये की सालाना फीस कैसे वहन कर सकता है? केजरीवाल की 10 साल सरकार रही, क्या किसी स्कूल की हिम्मत हुई कि बढ़ी हुई फीस नहीं दोगे तो नाम काट देंगे?”
कल जब डीपीएस स्कूल ने इन बच्चों को स्कूल से निकाल दिया, तो इसपर द्वारका में बड़ा हंगामा खड़ा हो गया। सूचना मिलते ही अभिभावक स्कूल गेट पर जमा होने लगे, क्योंकि यह उनके बच्चों के भविष्य का सवाल था, जिसे स्कूल प्रशासन दोगुने से भी ज्यादा फीस की मांग कर नष्ट करने पर तुला हुआ है।
अभिभावकों के मुताबिक, कल मंगलवार को उनके बच्चों को स्कूल परिसर में प्रवेश की अनुमति नहीं दी गई। उनका कहना था कि वे शिक्षा निदेशालय (डीओई) द्वारा स्वीकृत 93,400 रुपये की वार्षिक फीस के आधार पर मासिक किश्तों का भुगतान कर रहे हैं, जबकि स्कूल उनसे फीस के नाम पर 1,95,000 रुपये मांग रहा है। किसी भी अभिभावक के लिए एक वर्ष में ही स्कूल फीस में 100% से भी अधिक वृद्धि को चुकता कर पाना कैसे संभव हो सकता है? लेकिन चूंकि, कई बच्चों के माता-पिता ने बढ़ी फीस भर दी है, इसलिए स्कूल प्रशासन के लिए तानाशाही रुख अपनाना आसान हो गया।
सबसे विचित्र बात तो यह है कि यह सब तब हो रहा है जब दिल्ली बीजेपी सरकार पिछले माह ही निजी स्कूलों में मनमानेपूर्ण ढंग से फीस वृद्धि पर रोक लगाने के लिए ड्राफ्ट बिल ला चुकी है। इस ड्राफ्ट विधेयक में स्कूल, जिला एवं राज्य स्तर पर फीस रेगुलेशन कमेटी के गठन का प्रस्ताव है। इसमें छात्रों को कक्षा में बैठने की अनुमति न देने, क्लासरुम से बाहर बिठाने पर स्कूल पर दंडात्मक कार्यवाही करते हुए 50,000 रूपये जुर्माना लगाने का भी प्रावधान किया गया है।
बता दें कि पिछले माह 17 अप्रैल को दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली पब्लिक स्कूल, द्वारका को फीस विवाद के चलते छात्रों के साथ कथित तौर पर “अमानवीय और घटिया” व्यवहार करने के लिए कड़ी फटकार लगाई थी। अभिभावकों के एक समूह द्वारा याचिका दायर की गई थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि बढ़ी फीस का भुगतान न करने के कारण स्कूल प्रशासन द्वारा उनके बच्चों को क्लासरुम में प्रवेश पर रोक लगाई गई है, और उन्हें लाइब्रेरी में बिठाया जा रहा है, और क्लास के अन्य बच्चों के साथ बातचीत करने से रोका जा रहा है।
याचिका पर सुनवाई कर कर रहे न्यायमूर्ति सचिन दत्ता ने स्कूल प्रबंधन की हरकतों पर जमकर लताड़ लगाते हुए इसे छात्रों के साथ “जागीर” समझने जैसा व्यवहार करार दिया, और यहां तक कहा कि इस तरह के आचरण के लिए उक्त संस्थान को बंद तक किया जा सकता है। अदालत ने अपनी टिप्पणी में यह भी कहा था कि स्कूल एक शैक्षणिक संस्थान के बजाय “पैसा कमाने वाली मशीन” के तौर पर कार्य कर रहा है। छात्रों के साथ किए गये बर्ताव पर इसे “यातना” बताते हुए न्यायाधीश ने सुझाव दिया था कि स्कूल प्रिंसिपल पर आपराधिक मुकदमा चलाया जाना चाहिए।
वहीं 29 अप्रैल 2025 को दिल्ली दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने दिल्ली में निजी स्कूलों में फीस वृद्धि को रेगुलेट करने की घोषणा के साथ ऐलान किया कि राज्य कैबिनेट ने एक ड्राफ्ट बिल पारित किया है, जो दिल्ली के सभी 1,677 स्कूलों पर लागू होगा। इसमें सहायता प्राप्त, गैर-सहायता प्राप्त और निजी स्कूल सभी शामिल होंगे। इस बिल के माध्यम से स्कूलों की फीस पर सख्त और स्पष्ट नियम बनाए जाएंगे। यह फैसला अभिभावकों की लगातार शिकायतों के बाद लिया गया है। अभिभावकों का आरोप था कि कुछ स्कूल मनमाने ढंग से फीस बढ़ा रहे हैं और बच्चों व माता-पिता को परेशान कर रहे हैं।
रेखा गुप्ता यहीं नहीं रुकीं। उन्होंने दावा किया कि दिल्ली में पहली बार ऐसा बिल लाया गया है जिसमें अभिभावकों, स्कूल प्रबंधन, निदेशालय और सरकार की भूमिका स्पष्ट रूप से परिभाषित की गई है, ताकि कोई भी पक्ष अपनी सीमाओं से बाहर न जा सके। उनका दावा था कि अब तक किसी भी सरकार ने इस दिशा में इतना ठोस कदम नहीं उठाया था। उनके मुताबिक, इससे पहले सिर्फ दिल्ली स्कूल अधिनियम 1973 में फीस से संबंधित एक सेक्शन था, जिसमें कोई गाइडलाइन नहीं थी जिससे निजी स्कूलों की मनमानी फीस बढ़ोतरी पर रोक लग सके।
शिक्षा मंत्री, आशीष सूद की मानें तो, राज्य कैबिनेट ने दिल्ली स्कूल एजुकेशन ट्रांसपेरेंसी ऑफ फिक्सेशन एंड रेगुलेशन ऑफ फीस 2025 नाम से एक बिल पारित किया है। अगले दो माह में इस बिल के प्रावधानों को पूरी तरह से व्याख्यायित कर अभिभावकों और छात्रों को बड़ी राहत मिलने जा रही है।
लेकिन डबल इंजन सरकार के दावे और जमीनी हकीकत अब एक-एक कर दिल्ली के आम लोगों के सामने आ रही है। अंग्रेजी समाचारपत्र, द हिंदू की खबर में एक अभिभावक, दिव्य मैती जिनका बेटा 11वीं में पढ़ रहा था, का कहना है, “ वेतन में सालाना केवल 3.3।5% की बढ़ोत्तरी हुई है, जबकि हाल के वर्षों में स्कूल फीस में 100% से भी अधिक की वृद्धि कर दी गई है।” उनकी पत्नी, जो निजी क्षेत्र में काम करती हैं, ने कहा, “अधिकांश परिवारों के सामने बच्चों की शिक्षा सबसे प्रमुख घरेलू खर्च है, और हम इसके लिए त्याग करने के लिए भी तैयार हैं। लेकिन प्रशासन के आश्वासन के बावजूद, हमारे बेटे का नाम काट दिया गया है।”
एक अन्य अभिभावक, प्रवीण मेनन, जो एक निजी कंपनी में कार्यरत हैं, का कहना था कि कोविड महामारी ने पहले ही उनकी माली हालत को खराब कर रखा था। इस भारी फीस वृद्धि ने स्थिति को और बदतर कर दिया है।” खबर के मुताबिक, 9 मई को अभिभावकों को एक ई-मेल प्राप्त हुआ था, जिसमें बताया गया था कि उनके बच्चों के नाम “स्कूल फीस का भुगतान न करने” की वजह से काट दिए गए हैं। ई-मेल में उन्हें अपने बच्चों को स्कूल न भेजने और स्थानांतरण प्रमाणपत्र जमा करने का निर्देश दिया गया था।
अभिभावकों का आरोप है कि ई-मेल भेजने के अगले दिन मंगलवार को स्कूल के गेट पर अतिरिक्त सुरक्षा व्यवस्था तैनात कर दी गई थी और डिफॉल्टर सूची में शामिल छात्रों को प्रवेश करने से रोक दिया गया। एक अन्य अभिभावक, मेनन का कहना था, “हमने अपने बेटे को दूसरे स्कूल में डालने पर चर्चा की थी, लेकिन सत्र के बीच में ही स्थानांतरण काफी कठिन होता है। मेरा बेटा पहली बार भीतर से टूट गया है, और उसका कहना है कि वह अब स्कूल नहीं जाना चाहता”।
स्कूल की ओर से मनमाने तरीके से 100% फीस वृद्धि ने कई परिवारों का पूरी व्यवस्था से विश्वास को हिला दिया है। उनका कहना है कि भले ही हम स्कूल बदल दें, लेकिन क्या गारंटी है कि ऐसा दोबारा नहीं होगा?”
दिल्ली की भाजपा सरकार की ओर से इस मुद्दे पर कोई जवाब नहीं आया है। आएगा भी कैसे? उसके पास तो इस समय पाकिस्तान को घर में घुसकर मारने के नैरेटिव को जन-जन तक पहुंचाने का भारी टास्क पहले इंजन ने सौंपा है। इसलिए मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता सहित समूचा दिल्ली भाजपा परिवार इसे अंतिम वोटर तक पहुंचाने के महत्वपूर्ण काम पर लगा हुआ है।
खबर तो यह भी थी कि दिल्ली सरकार विधानसभा का विशेष सत्र बुलाकर दिल्ली स्कूल एजुकेशन (ट्रांसपेरेंसी इन फिक्सेशन एंड रेगुलेशन ऑफ फीस) ड्राफ्ट बिल को 13 और 14 मई को पारित कराने वाली थी। लेकिन अब इस बिल को मानसून सत्र में पारित किये जाने की संभावना बताई जा रही है। दिल्ली की भाजपा सरकार ने ऐसा क्यों किया, किसके दबाव में किया? क्या यही कारण है कि दिल्ली के निजी स्कूल सरकार द्वारा बिल पारित किये जाने से पहले ही फीस को इतना बढ़ा देना चाहते हैं कि आगे उन्हें कुछ वर्षों तक फीस वृद्धि की चिंता ही न हो?
निजी स्कूलों में अपने नौनिहालों को पढ़ाकर उनके बेहतर भविष्य की आस में दिन-रात अपने खून-पसीने की गाढ़ी कमाई इन विद्यालयों पर लुटाने वाले अभिभावकों के लिए अब अंतिम आसरा न्यायालय का ही है। हाल के वर्षों में न्यायपालिका के द्वारा आमतौर पर टिप्पणियां तो बेहद सख्त की जाती रही हैं, लेकिन शायद ही शिक्षा के क्षेत्र में कुंडली मारकर बैठे हुए इन कॉर्पोरेट समूहों पर किसी प्रकार की कठोरतम कार्रवाई का मजबूत इरादा देखने को मिले।
(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)