झांसी। उत्तर प्रदेश के झांसी स्थित लक्ष्मी बाई मेडिकल कालेज के NICU वार्ड में देर रात हुए अग्निकांड में दस नवजात की हृदय विदारक मौत ने एक बार फिर लोगों के दिल दिमाग को थर्रा दिया।
इस कांड ने गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कालेज की याद ताज़ा कर दी जब 2017 में ऑक्सीजन की कमी की वजह से 63 बच्चे काल कवलित हुए। जिसमें बताया गया था कि ऑक्सीजन सप्लायर ने अपने किसी निजी विवाद के कारण यह सप्लाई रोक दी थी।
तब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ही थे। उन्होंने तत्कालीन प्रभारी एक गैर हिन्दू चिकित्सक की हालत खस्ता कर दी थी। आज भी योगी ही मुख्यमंत्री हैं और ये हादसा हुआ है। क्या इसकी निष्पक्ष जांच होगी?
पहले कहा जा रहा था कि ये हादसा शार्ट सर्किट की वजह से हुआ। जबकि झांसी के चीफ़ मेडिकल सुपरिंटेंडेंट सचिन महोर का कहना है कि ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर में सबसे पहले आग लगी। वे यह मानते हैं कि ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर में हुए स्पार्क की वजह से आग लगी और भीषण विस्फोट हुआ।
देखते ही देखते हॉस्पिटल के अन्य वार्ड आग के आगोश में आ गए। किंतु अग्निकांड के एक चश्मदीद भगवान दास के मुताबिक, बच्चों के वार्ड में एक ऑक्सीजन सिलेंडर के पाइप को लगाने के लिए नर्स ने माचिस की तीली जलाई।
जैसे ही उसकी तीली जली पूरे वार्ड में आग लग गई। आग लगते ही भगवान दास ने अपने गले में पड़े कपड़े से 4 बच्चों को लपेटकर बचाया।
आग लगने से अस्पताल में अफरातफरी मच गई। परिजन और मरीज जान बचाने के लिए भागने लगे, जिससे भगदड़ जैसी स्थिति बन गई। कहा जाता है कि दस बारह के लगभग बच्चों को लोगों ने खिड़की तोड़ कर निकाला।
हालांकि फायर ब्रिगेड की टीम ने डेढ़ घंटे के अंदर मौके पर पहुंचकर शेष बच्चों को सुरक्षित बाहर निकाला। हादसे के समय NICU में कुल 54 बच्चे भर्ती थे।
एक और प्रत्यक्षदर्शी कृपाल सिंह ने बताया कि रात करीब 10 बजे डॉक्टर ने बच्चों को फीड कराने के लिए आवाज लगाई थी। इस पर जैसे ही वो NICU की तरफ गए तो देखा एक नर्स जलती हुई कुर्सी हाथ में लेकर चीखती हुई बाहर आई।
उसके कपड़ों में भी आग लगी थी जिसको देख वह बिना सोचे-समझे वार्ड के अंदर दाखिल हो गए और बच्चों को सुरक्षित बाहर निकालने की जुगत में जुट गए। लगता है, यह वही नर्स होगी जिसकी चर्चा भगवान दास ने भी किया है।
विचारणीय है कि इतने महत्वपूर्ण वार्ड में क्या एक ही नर्स थी? बाकी यदि होंगे भी तो बच्चों को छोड़ भाग खड़े हुए होंगे। क्योंकि एक नर्स के सिवा किसी कर्मचारी और डॉक्टर को लेशमात्र भी नुकसान नहीं हुआ। यह जांच के विषय में शामिल होना चाहिए।
जिस ऑक्सीज़न कॉन्सेंट्रेटर में स्पार्किंग की बात मेडिकल सुपरिंटेंडेंट कर रहे हैं उस चिंगारी की जांच निष्पक्ष तरीके से होगी। बताया जाता है कि नर्स ने जहां माचिस की तीली जलाई और वार्ड में भभक पड़ी आग, वहां आग बुझाने वाला सिलेंडर 4 साल से एक्सपायर पड़ा था।
कृपाल सिंह ने घटना का आंखों देखा हाल बताया और कहा कि उनका नाती भी इसी वार्ड में भर्ती था। वह जब NICU वार्ड में अंदर घुसे तो वहां का नजारा देखकर दिल दहल गया। इसके बाद उन्होंने करीब 13 बच्चों को तो NICU गेट से बाहर सुरक्षित निकाला लेकिन, इसके बाद NICU से बाहर निकलने के रास्तों को आग की लपटों ने घेर लिया।
इस पर उन्होंने किसी तरह खिड़की को तोड़ा और 7 बच्चों को वहां से बाहर सुरक्षित हाथों में सौंपा। उधर फायरबिग्रेड 39 बच्चों को बाहर निकालने का दावा कर रहा है। उधर स्टाफ और पैरा मेडिकल चिकित्सकों को बच्चों को बचाने की बधाई प्रशासन दे रहा हैं। सत्य तो जांच में सामने आएगा।
यह हादसा जिन वजहों से हुआ हो वह जांच से बाहर आए तो बेहतर है। उससे सबक ज़रूरी होगा। नन्हे-मुन्ने बच्चों का आना कितना सुखद होता है उनके परिवारों के लिए, यह गहन सदमे का समय होगा। जिन बच्चों की मौत हुई है उनके माता-पिता को पांच लाख और घायल बच्चों के मां-बाप को पचास हजार देकर उनका ग़मगुसार नहीं होगा।
ज़रुरत इस बात की है कि अबोले नवजातों के साथ ऐसा हादसा ना हो इसके प्रति संकल्पबद्ध हुआ जाए। जलते बच्चों की वेदना और नवजात को इस तरह छटपटाते देखने की उनके मां पिता की पीड़ा को आत्मसात कर ही ठोस निर्णय लिए जाएं।
(सुसंस्कृति परिहार स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)
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