प्रतीकात्मक फोटो।

पाटलिपुत्र की जंग:रोहतास जिले की 7 विधानसभा सीटों का समीकरण

‘धान का कटोरा’ कहे जाने वाले रोहतास जिले में विधानसभा की कुल सात सीटें हैं। जिनमें सासाराम, डेहरी, चेनारी, काराकाट, दिनारा, करगहर और नोखा शामिल हैं। चेनारी की सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट है। 

सबसे पहले 3.42 लाख मतदाताओं वाले सासाराम विधानसभा क्षेत्र की बात। पिछले चुनाव में सासाराम से आरजेडी के टिकट पर विधायक चुने गए अशोक कुमार जदयू में शामिल हो गए हैं और जदयू प्रत्याशी के तौर पर वो चुनावी मैदान में हैं जबकि उनके सामने राजद के राजेश कुमार गुप्ता मुख्य प्रतिद्वंदी हैं। वहीं रमेश प्रसाद चौरसिया लोजपा के टिकट पर सामने हैं। इसके अलावा रालोसपा से चंद्रशेखर सिंह भी चुनाव मैदान में हैं। कोइरी, मुस्लिम, राजपूत और यादव और लगभग 16 प्रतिशत दलित मतदाताओं की मुख्य भूमिका रहेगी।

2015 में इस सीट पर राजद प्रत्याशी अशोक कुमार को 82766 वोट मिले थे, जबकि भाजपा के जवाहर प्रसाद को 63154 वोट मिले थे। वहीं, तीसरे नंबर पर निर्दलीय प्रत्याशी कृष्ण कुमार सिंह को 9247 वोट प्राप्त हुए थे।

नोखा में रोजगार है मुख्य मुद्दा

अब बात नोखा विधानसभा सीट की। आंकड़ों की बात करें तो नोखा विधान सभा क्षेत्र के कुल मतदाता 2,86,176  हैं। जिसमें पुरुष मतदाता 1,50,162 और महिला मतदाताओं की संख्या 1,36,002 है। 2015 के चुनाव में आरजेडी की अनीता देवी (72,780 मत) ने बीजेपी के रामेश्वर चौरसिया (49,783 मत) को 22,998 मतों से पराजित किया था। नीतीश कुमार की सरकार में उन्हें पर्यटन मंत्री बनाया गया। हालांकि, बाद में आरजेडी-जेडीयू गठबंधन टूट गया। 

बेरोजगारी और पलायन इस विधानसभा सीट पर मुख्य चुनावी मुद्दा है। दरअसल एक समय नोखा क्षेत्र में बिहार के सबसे अधिक राइस मिल होते थे। लेकिन सरकारी उदासीनता के चलते नोखा के 70 फीसदी से अधिक राइस मिल बंद हो गए। जो कुछ अभी चल रहे हैं उनकी स्थिति काफी खराब हो गई है। इन राइस मिलों से हजारों लोगों को रोजगार मिलता था। लेकिन इनके बंद होने से ज्यादातर मजदूर या तो खेतों में मजदूरी करने लगे या फिर दूसरे राज्यों में पलायन कर गए।

भाजपा के बाग़ी पूर्व उपाध्यक्ष ने बिगाड़ा जदयू का खेल

2,96,572 मतदाताओं वाले दिनारा विधानसभा सीट पर जदयू के दो बार के विधायक और वर्तमान सरकार में सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री जय कुमार सिंह जदयू प्रत्याशी के तौर पर मैदान में हैं जबकि उनके सामने राजद (महागठबंधन) के विजय मंडल खड़े हैं। भाजपा से नाराज राजेंद्र सिंह एलजेपी प्रत्याशी के तौर पर सामने हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में वो भाजपा प्रत्याशी रहे थे। पिछले चुनाव में जयकुमार सिंह को 64,699 वोट मिले थे। वहीं भाजपा के राजेंद्र सिंह को 62,008 वोट मिले थे। यानि जीत हार का अंतर महज 2600 वोटों का था।

लेकिन इस बार ये सीट जदयू के खाते में चली गई है जिससे भाजपा प्रत्याशी राजेंद्र सिंह का पत्ता कट गया। राजेंद्र सिंह आरएसएस के कद्दावर नेता हैं और बिहार भाजपा के उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं। इस बात से नाराज़ भाजपा नेता राजेंद्र सिंह एलजेपी के टिकट पर मैदान में हैं। वहीं दूसरी ओर दिनारा के मुख्य पार्षद और 20 साल से जदयू के समर्पित सिपाही रहे धर्मेंद्र चौधरी ने भी ऐन लड़ाई के वक्त जदयू का साथ छोड़ दिया है। वे पिछले 15 वर्षों से नगर पंचायत अध्यक्ष भी रहे हैं। 

दिनारा विधानसभा क्षेत्र यादव बाहुल्य सीट है। यहां राजपूत मतदाताओं की संख्या है। इसके बाद कुशवाहा 22,000 और ब्राह्मण मतदाता 15,000 हैं। जबकि वैश्य पिछड़ा वर्ग के 4000 मतदाता हैं। जदयू के जय कुमार सिंह और भाजपा के राजेंद्र सिंह दोनो राजपूत समुदाय से आते हैं। ऐसे में राजपूत वोटों का बंटना तय है।     

महिला कॉलेज, एक अंगीभूत कॉलेज की स्थापना की मांग लंबे वक्त से रही है। किसानों के लिए खाद बीज और उत्पादों के उचित दाम मिले। भलुनी क्षेत्र को पर्यटक स्थल घोषित करने की मांग है।

काराकाट पर भाकपा-माले का दावा मजबूत है

3.26 लाख मतदाताओं वाले काराकाट विधानसभा सीट पर लड़ाई में भाकपा माले बढ़त लेती दिख रही है। इस सीट पर ब्राह्मण, राजपूत, यादव, कुर्मी, रविदास मतदाता निर्णायक भूमिका में रहे हैं। अरुण सिंह भाकपा-माले से महागठबंधन के प्रत्याशी हैं। जबकि भाजपा से राजेश्वर राज आमने सामने हैं। इस सीट पर कम्युनिस्ट पार्टी का जनाधार मजबूत है। भाकपा-माले के अरुण सिंह 2005 में तीसरी बार विधायक बने थे।

साल 2015 के चुनाव में आरजेडी के संजय यादव ने भाजपा के राजेश्वर राज को 13 हजार वोटों से हराया था। उन्हें 59700 वोट मिले थे। राजेश्वर राज को 47,600 वोट मिले थे। जबकि तीसरे नंबर के सीपीआई (एमएल) के अरुण सिंह को तीस हजार के करीब वोट मिले थे।

बाढ़ और कोरोना में अपने दुखों का हिसाब मांगता करगहर

3.15 लाख मतदाताओं वाला करगहर विधानसभा 2008 में परिसीमन के बाद अस्तित्व में आया। और तब से अब तक इस सीट पर जदयू का कब्जा रहा है। जदयू के सिटिंग विधायक वशिष्ठ सिंह फिर से जदयू प्रत्याशी के तौर पर मैदान में हैं जबकि उनके सामने महागठबंधन की ओर से कांग्रेस के संतोष मिश्रा और एलजेपी के राकेश कुमार सिंह ताल ठोक रहे हैं। इस सीट पर सबसे अधिक कोइरी, कुर्मी, ब्राह्मण, दलित, वैश्य समाज के मतदाता निर्णायक भूमिका में रहे हैं। कोइरी और कुर्मी जदयू के परंपरागत मतदाता रहे हैं। साल 2015 के चुनाव में जदयू के वशिष्ठ सिंह ने एनडीए प्रत्याशी वीरेंद्र कुशवाहा को 14 हजार वोटों से शिकस्त दी थी।  

बाढ़ और कोरोना इस सीट पर मुख्य मुद्दा है जिसका खामियाजा जदयू (एनडीए) को उठाना पड़ सकता है। 

चेनारी सीट जहां डबल इंजन की सरकार 15 सालों में भी न पहुंचा सकी विकास की रेल 

2.98 लाख मतदाताओं वाली चेनारी सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है। इस सीट को ब्राह्मण और कोइरी बाहुल्य कहा जाता है। जबकि राजपूत, यादव और मुस्लिम मतदाताओं की संख्या भी अच्छी खासी है।

जदयू ने रालोसपा के सिटिंग विधायक ललन पासवान को अपना प्रत्याशी बनाकर चेनारी से मैदान में उतारा है। जबकि उनके सामने मुख्य प्रतिद्वंदी के तौर पर कांग्रेस के मोरारी प्रसाद गौतम, एलजेपी के चंद्र शेखर पासवान हैं। 

सुरक्षित सीट चेनारी पर साल 2015 के चुनाव में रालोसपा के ललन पासवान को 68,148  वोट मिले थे और उन्होंने 58,367 मत पाए कांग्रेस के मंगल राम को 9,781 वोटों से हराया था।

ये विधानसभा सीट बिहार की सबसे पिछड़े क्षेत्रों में गिनी जाती है। 15 साल भाजपा-जदयू की डबल इंजन सरकार विकास की रेलगाड़ी को इस क्षेत्र तक नहीं पहुंचा पाई है जिसके चलते क्षेत्र में सत्ताधारी दल के खिलाफ गुस्सा और नाराज़गी है। जिसका फायदा कांग्रेस प्रत्याशी को मिलना तय है।

डेहरी विधानसभा में कौन साधेगा मुस्लिम-यादव गठजोड़   

2.90 लाख मतदाताओं वाला डेहरी विधानसभा क्षेत्र सोन नदी के किनारे बसा है 1980 से 2015 के बीच डेहरी विधानसभा सीट से मोहम्मद इलियाश हुसैन अलग-अलग पार्टियों से 6 बार विधायक चुने गए हैं। कह सकते हैं कि इस सीट पर किसी पार्टी का नहीं बल्कि इलियास हुसैन का जलवा रहा है। यादव-मुस्लिम गठजोड़ मोहम्मद इलियास हुसैन की एमएसपी बनी हुई थी। लेकिन भ्रष्टाचार के मामले में दोषी ठहराए जाने के बाद उन्हें मजबूरन विधानसभा की सदस्यता से अयोग्य घोषित होना पड़ा। जिसके बाद उनका जलवा टूटता नज़र आया और साल 2019 के उपचुनाव में उनके बेटे मोहम्मद फिरोज हुसैन को भाजपा के सत्यनारायण सिंह के हाथों 35 हजार वोटों से करारी शिकस्त खानी पड़ी। 

आरजेडी ने इस बार फतेह बहादुर कुशवाहा को अपना प्रत्याशी बनाया है। जबकि भाजपा ने फिर से सत्य नारायण सिंह पर ही दांव लगाया है। आरजेडी द्वारा इलियास हुसैन के बेटे मोहम्मद फिरोज का टिकट काटे जाने से इनके समर्थक आरजेडी से नाराज़ हैं। इस सीट पर पासवान, यादव, मुस्लिम, कोइरी निर्णायक मतदाता की भूमिका में हैं।  

(जनचौक के विशेष संवाददाता सुशील मानव की रिपोर्ट।)     

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