महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा (महाराष्ट्र) में लगातार छात्रों को प्रताड़ित करने के मामले आये दिन सामने आते रहते हैं। अभी हाल ही में फर्जी आरोप लगाकर 6 शोध छात्रों को विश्वविद्यालय प्रशासन ने निष्कासित कर दिया है। प्रशासन इन 6 छात्रों को विश्वविद्यालय के लिए खतरा मानता है। विश्वविद्यालय प्रशासन का आरोप है कि उक्त छात्र विश्वविद्यालय में अराजकता फैलाते हैं, छात्रों को प्रशासन के खिलाफ एकजुट करते हैं। हालांकि छात्रों का कहना है कि हम सिर्फ अपने अधिकारों और विश्वविद्यालय प्रशासन की मनमानी को रोकने का प्रयास करते हैं तथा हमारा कोई भी कार्य भारतीय संविधान और कानून का उल्लंघन नहीं करता है और न ही हम भारतीय गणतंत्र के लिए ख़तरा हैं।
यहां मामला महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा 27 जनवरी 2024 को निष्कासित किये गए 6 छात्रों में से तीन शोधार्थी और तीन छात्र हैं। हिंदी विश्वविद्यालय में दो छात्रों राजेश कुमार यादव और डॉ. रजनीश कुमार अम्बेडकर द्वारा गणतंत्र दिवस के अवसर पर विश्वविद्यालय के पूर्व प्रभारी कुलपति डॉ. भीमराय मेत्री के अभिभाषण के दौरान विरोध किया गया था। विरोध करने का कारण छात्रों ने पूर्वप्रभारी कुलपति का कुलपति पद के अवैधानिक होना बताया है।
डॉ. भीमराय मेत्री की अवैधानिकता से संबंधित सूचना समाचार पत्रों में घटना से पूर्व प्रकाशित हुई थी। जबकि विश्वविद्यालय प्रशासन का आरोप है कि इन छात्रों ने गणतंत्र दिवस के दिन कुलपति का विरोध करके देश का विरोध किया है। इस कारण यह लोग एंटी नेशनल है, इन्हें विश्वविद्यालय में नहीं रखा जा सकता। निष्कासित 6 छात्रों में से मात्र 2 छात्र प्रभारी कुलपति डॉ. भीमराय मेत्री के विरोध में सम्मिलित थे।

दोनों छात्रों का कहना है कि “एक अवैधानिक व्यक्ति द्वारा गणतंत्र दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय ध्वज को फहराया जाना भारतीय गणतंत्र, भारतीय संविधान और देश का अपमान है। हमने उस अवैधानिक व्यक्ति का विरोध किया है, वह भी कानून और संविधान के दायरे में रहकर, न ही हमने कानून का उल्लंघन किया और न ही संविधान का। क्या किसी पद पर असंवैधानिक तरीके से कब्ज़ा किये व्यक्ति का विरोध किया जाना, देश का विरोध है? हमने कुलपति को काला कपड़ा दिखाया, जिस पर अंग्रेजी भाषा में “अयोग्य कुलपति वापस जाओ (ILLEAGAL VC GO BACK) लिखा था।” इस समस्त घटना का प्रमाण विश्वविद्यालय के गणतंत्र दिवस के दौरान रिकॉर्ड किए गए कैमरे में हैं। हमने विरोध से सम्बंधित सूचना ज्ञापन के माध्यम से 25 जनवरी 2024 को जिलाधिकारी, वर्धा (महाराष्ट्र) तथा 24 जनवरी 2024 को विश्वविद्यालय प्रशासन को दे दी थी और हमारी मांग थी कि उस अवैधानिक कुलपति के बजाये किसी अन्य व्यक्ति द्वारा ध्वजारोहण किया जायें, चूंकि घटना स्थानीय पुलिस की मौजूदगी में घटित हुई है और पुलिस हमें उठाकर रामनगर थाने लेकर गयी, हम दोनों ने अपने बयान भी दर्ज करवाये है, जिसके उपरांत स्थानीय पुलिस ने हमें वापस विश्वविद्यालय कैंपस के बाहर छोड़ दिया।”
पुलिस द्वारा छोड़ दिए जाने के उपरान्त उन छात्रों को विश्वविद्यालय में प्रवेश से रोक दिया गया, कारण पूछे जाने पर विश्वविद्यालय के सुरक्षाकर्मियों ने कुलसचिव “धरवेश कठेरिया” का हवाला देते हुए कहा कि आप लोगों को अन्दर जाने की मनाही हैं। अगले दिन 27 जनवरी 2024 को बिना कारण बताओ नोटिस दिए, बिना अपराध सिद्ध हुए, बिना छात्रों का पक्ष जाने ही 5 छात्रों / शोधार्थियों को निलंबन / निष्कासन का नोटिस ईमेल पर भेज दिया गया और उसी दिन महज कुछ ही घंटों में छात्रावास भी खाली करने का फरमान जारी करते हुए छात्रावास में रह रहे छात्रों/शोधार्थियों का सामान जब्त कर लिया गया।
निष्कासन के शिकार शोधार्थी निरंजन कुमार, जो घटना के वक्त विश्वविद्यालय परिसर में ही नहीं थे तथा 2 अन्य छात्र विवेक मिश्रा और रामचन्द्र का निष्कासन फेसबुक पोस्ट को आधार बनाते हुए कर दिया गया है। हालांकि विश्वविद्यालय प्रशासन अभी तक उस फेसबुक पोस्ट की शिनाख्त नहीं किया है, जिसे निष्कासन का आधार बनाया गया था। 7 फरवरी 2024 को एक अन्य छात्र जतिन चौधरी का निष्कासन इस आरोप में कर दिया गया कि 27 जनवरी 2024 को विवेक मिश्र के छात्रावास खाली करवाते वक़्त उन्होंने अध्यापक और विश्वविद्यालय के कर्मचारियों से बदसलूकी की थी, जबकि जतिन चौधरी का कहना है कि “संदीप वर्मा नामक अध्यापक ने उन्हें गला दबाकर मारने की कोशिश की है।” सम्बंधित घटना का एक वीडियो भी जतिन के पास प्रमाण के तौर पर मौजूद है।
उच्च न्यायलय में कुलपति नियुक्ति का विवाद
पूर्व कुलपति रजनीश शुक्ल ने 14 अगस्त 2023 को अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। उन पर नौकरी देने के नाम पर महिला शिक्षिका का यौन शोषण करने, शुक्ल और एक अन्य महिला शिक्षिका का कीटनाशक पीकर आत्महत्या का प्रयास करने और शिक्षक नियुक्तियों में धांधली के आरोपों की जांच चल रही है। उनके इस्तीफे के बाद महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय अधिनियम 1996 के तहत वरिष्ठता के आधार पर विश्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर लेला कारुण्यकारा को कुलपति को कुलपति का कार्यभार दिया गया था। लेकिन 20 अक्टूबर 2023 को पत्रांक 006/2010/04/2313 के माध्यम से अवगत करवाया गया कि उच्च शिक्षा विभाग, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार से प्राप्त पत्रांक F NO 26-6/2018-CU IV (Pt.II) दिनांक 19/10/2023 के अनुसार महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा द्वारा जारी अधिसूचना पत्रांक 006/ स्था./2010/4/2299 दिनांक 19 अक्टूबर 2023 के अनुसरण में डॉ. भीमराय मेत्री, निर्देशक, आईआईएम, नागपुर को विश्वविद्यालय के कुलपति का अतिरिक्त प्रभार दिनांक 20 अक्टूबर 2023 को पद ग्रहण कर लिया था।

महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय अधिनियम 1996 के इस अवैधानिक नियुक्ति के विरुद्ध प्रो. लेला कारुण्यकारा ने अधिवक्ता फिर्दोज मिर्जा के माध्यम से दिनांक 25 अक्टूबर 2023 रिट याचिका संख्या 7460 दायर किया। न्यायमूर्ति अनिल एस किलोर, जस्टिस मुकुलिका श्रीकांत जावलकर इस याचिका की सुनवाई करते हुए दिनांक 28 फरवरी 2024 को फैसला देते हुए कुलपति मेत्री के नियुक्ति को अवैध बताया और विश्वविद्यालय अधिनियम के तहत नियुक्ति करने का आदेश दिया।
किन्तु विश्वविद्यालय के कुलसचिव उच्च न्यायलय के आदेश को मनाने को तैयार नहीं है वो पूर्व की भांति अब भी अपने पद पर बने रहते हुए कई असंवैधानिक फैसले ले रहे। इन फैसलों में कार्यपरिषद के सदस्यों के नामित करना, कार्यकारी परिषद की बैठक का करवा आदि शामिल है।
विश्वविद्यालय अधिनियम के तहत जब कुलपति मेत्री को अवैधानिक करार दिया तो उनके द्वारा नियुक्त सभी पदाधिकारी स्वतः पद से हट जाते है, किन्तु कुलसचिव धर्वेश कठेरिया अपने अन्य सहयोगियों के साथ अब भी अवैधानिक रूप से बैठे हुए और विश्वविद्यालय के कामकाज में बाधा उत्पन्न कर रहे है। कठेरिया उच्च न्यायलय के आदेश की अवमानना करने में लगे हुए है।
अवैधानिक फैसले के विरोध में छात्र
हिंदी विश्वविद्यालय में नाट्यकला के छात्र विवेक मिश्र 1 फरवरी 2024 से अपने अवैध निलंबन व उन पर हुए जानलेवा हमले के विरुद्ध सत्याग्रह पर बैठे हुए थे किन्तु आदर्श आचार सहिंता लागू हो जाने के कारण उसने अपना सत्याग्रह स्थगित कर दिया है।
सत्याग्रह के दौरान विश्वविद्यालय प्रशासन पर कोई दबाव न बनता देख उन्होंने सत्याग्रह को 5 फरवरी 2024 से भूख हड़ताल में परिवर्तित कर दिया था, भूख हड़ताल के तीसरे दिन 7 फरवरी 2024 को उनका स्वास्थ्य बिगड़ गया, जिस कारण उनके साथियों द्वारा उन्हें जिला अस्पताल वर्धा में भर्ती कराया गया। वहां उनकी बिगड़ती हालत को देखते हुए चिकित्सकों ने आईसीयू में भर्ती कर दिया।
9 फरवरी 2024 को स्वास्थ्य में कोई सुधार न होने पर उन्हें नागपुर मेडिकल कॉलेज रेफर किया गया। जहां जांच करने पर ज्ञात हुआ कि भूख हड़ताल के कारण उनकी किडनी और लिवर में इन्फेक्शन हो गया है, जिसका इनके स्वास्थ्य पर बेहद बुरा असर पड़ा है। 10 फरवरी 2024 को विवेक ने चिकित्सालय से डिस्चार्ज लिया और फिर से धरना अभी तक जारी रखे हुए था।
7 फरवरी 2024 को ही देर रात छात्र विवेक मिश्रा को विश्वविद्यालय से निष्कासित कर दिया गया, उसी रात्रि को स्नातक के छात्र जतिन चौधरी का भी निष्कासन मिथ्या आरोप लगाकर कर दिया गया तथा उसी दिन विश्वविद्यालय के 139 छात्रों को छमाही परीक्षा से वंचित किये जाने की सूचना भी विश्वविद्यालय द्वारा जारी कर दी गयी थी।
एक साथ 139 छात्रों को छमाही परीक्षा से वंचित किये जाने से घबराए छात्र जब विश्वविद्यालय के प्रशासनिक भवन की तरफ जाने लगे, तो विश्वविद्यालय के मुख्य द्वार पर कुलसचिव धरवेश के मौखिक निर्देश पर सुरक्षा अधिकारी सुधीर खर्कटे की उपस्थिति में गार्डों द्वारा छात्रों को लाठियों से मारा गया, जिसका वीडियों छात्रों द्वारा जारी किया गया है। एक अन्य छात्र दीपक यादव को सिर्फ इसलिए बुरी तरह पीटा गया क्योंकि उसने घटना का वीडियो बनाने का प्रयास किया था। दीपक ने इस मामले की एफआईआर स्थानीय रामनगर पुलिस स्टेशन में दर्ज करवाया है। निष्कासित छात्रों का कहना है कि उनको न तो कारण बताओ नोटिस दिया गया और न ही उनका पक्ष सुना गया।
विश्वविद्यालय कर रहा न्यायपालिका को गुमराह करने का प्रयास
27 जनवरी 2024 को विश्वविद्यालय प्रशासन ने छात्रों का पक्ष सुने बिना 3 शोध छात्रों सहित 5 छात्रों को निलंबित व निष्कासित करते हुए विश्वविद्यालय में प्रवेश पर प्रतिबन्ध लगा दिया। जिसमें सभी को अलग-अलग कारण बताए गए। शोधार्थी राजेश कुमार यादव, डॉ. रजनीश अम्बेडकर और निरंजन कुमार को गणतंत्र दिवस समारोह में खलल डालने और कुलपति को अपमानित करने का कारण बताते हुए निष्कासित किया गया है।
शोधार्थी रामचंद्र एवं बीए के छात्र विवेक मिश्रा को सोशल मीडिया पर विश्वविद्यालय की छवि खराब करने, भ्रामक व अमर्यादित खबर प्रचारित करने का फर्जी आरोप लगाकर निलंबित कर दिया गया। जबकि शोधार्थी रामचंद्र का विभाग जबसे विश्वविद्यालय के प्रयागराज (उत्तर प्रदेश) केंद्र पर स्थानांतरित किया गया है, तभी से वह प्रयागराज केंद्र से ही संबंधित है। राजेश, निरंजन, विवेक मिश्रा व जतिन चौधरी को बिना समय दिए ही कुछ घंटों में हॉस्टल के कमरों एवं उनके सामान को जब्त कर सील कर दिया गया है। असंवैधानिक रूप से निलंबन, सामान जब्त और विश्वविद्यालय के छात्रावास से बाहर किये जाने पर विवेक एवं उनके साथियों द्वारा विरोध करने पर विश्वविद्यालय के शिक्षकों एवं सुरक्षा अधिकारी के द्वारा विवेक पर जानलेवा हमला किया गया था, जिसकी लिखित शिकायत स्थानीय पुलिस स्टेशन में देने के बाद भी अभी तक एफआईआर दर्ज नहीं की गयी है।
विवेक का हॉस्टल सील करने और आंदोलन में उसका साथ देने की वजह से बीए के छात्र जतिन चौधरी को भी विश्वविद्यालय से निष्कासित कर दिया गया है। इस घटना के दो दिन बाद विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा छात्रों को एक नोटिस के माध्यम से धमकी दी गई है कि अगर कोई भी छात्र धरना प्रदर्शन में शामिल पाया गया तो उसके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाएगी और इसे उसके चरित्र प्रमाण पत्र में स्पष्ट रूप से लिखा जाएगा।
साथ ही साथ 7 छात्रों को धरना प्रदर्शन में शामिल होने के कारण, कारण बताओ नोटिस तक जारी कर दिया गया है। निष्कासन के खिलाफ 3 निष्कासित विद्यार्थी निरंजन, विवेक और जतिन नागपुर हाईकोर्ट की शरण में गए हैं। कोर्ट द्वारा जवाब – तलब किये जाने पर कुलसचिव व प्रभारी कुलपति द्वारा दी गयी बयानहल्फी में विश्वविद्यालय ने अपनी गलती को स्वीकार किया है तथा निष्कासन को रद्द कर दिए जाने की जानकारी दी है, परन्तु अभी तक छात्रों को विश्वविद्यालय की तरफ से निष्कासन रद्द करने की कोई सूचना नहीं है। अतः प्रभारी कुलपति और कुलसचिव हाईकोर्ट को भी भ्रामक सूचना देकर बरगला रहे हैं।
प्रभारी कुलपति की नियुक्ति के लिए संसद से पारित हिंदी विश्वविद्यालय के अधिनियम का किया गया है उल्लंघन आईआईएम, नागपुर (महाराष्ट्र) के निदेशक डॉ. भीमराय मेत्री की नियुक्ति भारतीय ससंद द्वारा पारित विश्वविद्यालय अधिनियम-1996 का खुला उलंघन करती थी। हिंदी विश्वविद्यालय के अधिनियम के सेक्शन 27 के बिंदु क्रमांक 7 के तहत– “यदि कुलपति का पद मृत्यु, त्यागपत्र अथवा किसी कारण से रिक्त हो जाता है अन्यथा, या यदि वह खराब स्वास्थ्य या किसी अन्य कारण से अपने कर्तव्यों का पालन करने में असमर्थ है, तो प्रति -कुलपति, कुलपति के कर्तव्यों का पालन करेगा: बशर्ते कि यदि प्रति-कुलपति उपलब्ध न हो तो वरिष्ठतम प्रोफेसर, नए कुलपति के पदभार ग्रहण करने तक कुलपति के कर्तव्यों का पालन करेंगे, या जब तक मौजूदा कुलपति, जैसा भी मामला हो, अपने कार्यालय के कर्तव्यों का पालन नहीं करता है।”
चूंकि प्रभारी कुलपति की नियुक्ति शिक्षा मंत्रालय के आदेशानुसार की गयी थी, न कि विश्वविद्यालय के अधिनियम के अनुसार, जो प्रत्यक्षतः भारतीय संसद से पारित विश्वविद्यालय अधिनियम को ख़ारिज करता है।
प्रभारी कुलपति हिंदी विश्वविद्यालय से रहते थे नदारद
हिंदी विश्वविद्यालय में आईआईएम के निदेशक डॉ. भीमराय मेत्री को जब से कुलपति का प्रभार दिया गया था, उनका हिंदी विश्वविद्यालय में बहुत ही कम आना जाना होता है। कुलपति की गैर-मौजूदगी का फायदा यहां के कुलसचिव धरवेश कठेरिया उठा रहे हैं।
धरवेस कठेरिया पूर्व में अनैतिकता के आरोप में विश्वविद्यालय से किये जा चुके हैं निलंबित
प्रभारी कुलसचिव धरवेश कठेरिया की कुलसचिव पद पर नियुक्ति संदेहास्पद है तथा कुलपति रजनीश शुक्ल के दौर में कठेरिया का विश्वविद्यालय से अनैतिकता के आरोप में निलंबन किया गया था। उनके निलंबन से सम्बंधित आदेश क्रमांक 006 /स्था./वि.31. /2023 / 23/1691 जो दिनांक : 08/08/2023 को जारी किया गया था, उक्त आदेश में कहा गया है की “डॉ. धरवेश कठेरिया, एसोसिएट प्रोफेसर, जनसंचार विभाग द्वारा लगातार की जा रही अनुशासनहीनता, विश्वविद्यालय की छवि धूमिल करने के प्रयास, बिना अनुमति पुलिस में शिकायत, अखबारों में बयानबाजी तथा उससे विश्वविद्यालय के शिक्षक समुदाय में उपज रहे आक्रोश के मद्देनजर महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय अधिनियम की धारा 12(3) सपठित प्रथम परिनियम 26(1) के अंतर्गत डॉ. धरवेश कठेरिया को तत्काल प्रभाव से निलंबित किया गया है। डॉ. धरवेश कठेरिया के विरुद्ध आयी शिकायतों के संदर्भ में जांच गठित की जाती है, जो इनके विरुद्ध आयी शिकायतों एवं इनके द्वारा किये गये कदाचार (Misconduct) एवं अवज्ञा (Disobedience) की सम्यक जांच कर अपनी संस्तुति अग्रिम कार्यवाही के लिये प्रस्तुत करेगी।”

एन.एम. साकरकर, सेवानिवृत्त कुलसचिव, राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, नागपुर एवं सेवानिवृत्त न्यायाधीश को जांच अधिकारी तथा राजेश अरोड़ा, सहायक कुलसचिव, स्थापना एवं प्रशासन विभाग को प्रस्तोता अधिकारी बनाया गया था। डॉ. धरवेश कठेरिया को निर्देशित किया गया था कि निलंबन अवधि के दौरान प्रत्येक कार्यालय दिवस में प्रति-कुलपति प्रो. हनुमानप्रसाद शुक्ल के कार्यालय में रिपोर्ट करें तथा जांच प्रक्रिया में सहयोग करें। जिससे जांच प्रक्रिया निर्वाध रूप से संपन्न हो सके। मुख्यालय छोड़ने के लिए सक्षम अधिकारी की अनुमति आवश्यक होगी।
उक्त मामले की जांच प्रक्रियाधीन है और इस इसी दौरान 14 अगस्त 2023 को रजनीश शुक्ल के इस्तीफा देने के उपरान्त विश्वविद्यालय के अधिनियम के अनुसार प्रो. कारुण्यकारा द्वारा कुलपति का प्रभार ग्रहण करने के उपरान्त कठेरिया के खिलाफ चल रही जांच को रोक दिया गया और कठेरिया को बहाल कर दिया गया, जबकि नियमानुसार प्रभारी कुलपति किसी भी जांच समिति को रद्द नहीं कर सकते, न ही कोई नीतिगत फैसले लेने के लिए वैध हैं। हिन्दी विश्वविद्यालय के अधिनियम को दरकिनार करते हुए प्रभारी कुलपति मेत्री द्वारा कठेरिया को कुलसचिव व कुलानुशासक पर का प्रभार दे दिया गया था।
भीमराय मेत्री के नियुक्ति को उच्च न्यायलय ने 28 मार्च 2024 को अवैध करार दे दिया गया है तो उनके द्वारा नियुक्त सभी अधिकारी स्वतः से रद्द हो जाने है किन्तु आज तक धरवेश कठेरिया कुलसचिव कार्यालय में बैठ कर फैसले ले रहे हैं।
प्रभारी कुलपति नियुक्ति विवाद और छात्रों के निष्कासन की जड़ क्या है ?
पिछले वर्ष 2023 कुलपति रजनीश कुमार शुक्ला के ऊपर नौकरी देने के नाम पर महिला शिक्षिका से यौन शोषण का आरोप लगा था, 2019 से अगस्त 2023 तक 50 से अधिक शिक्षक नियुक्तियों में धांधली का आरोप लगा था। जिसकी वजह से स्टूडेंट्स के बढ़ते रोष एवं आंदोलन के दबाव में उन्हें 14 अगस्त 2023 को इस्तीफा देकर जाना पड़ा था। जिसके बाद विश्वविद्यालय में कार्यवाहक कुलपति का अतिरिक्त कार्यभार विश्वविद्यालय अधिनियम 1996 के तहत विश्वविद्यालय के सबसे सीनियर प्रोफेसर लेला कारुण्यकारा को सौंपा गया था, लेकिन प्रो. कारुण्यकारा के दलित और अम्बेडकरवादी विचारधारा से ताल्लुकात रखने की वजह से वह आरएसएस और विश्वविद्यालय के सामंती शिक्षकों की आंखों की किरकिरी बने हुए थे, जिस कारण 20 अक्टूबर 2023 को शिक्षा मंत्रालय ने दखल देते हुए तथा संसद द्वारा पारित विश्वविद्यालय के संविधान की अवहेलना करके प्रो. कारुण्यकारा की जगह आईआईएम, नागपुर (महाराष्ट्र) के निदेशक डॉ. भीमराय मेत्री को कार्यवाहक कुलपति के अतिरिक्त कार्यभार पर नियुक्ति कर दिया गया।
प्रभारी कुलपति व प्रभारी कुलसचिव द्वारा न्यायपालिका की अवहेलना
छात्रों के निष्कासन के उपरान्त अब तक तीन विद्यार्थी नागपुर उच्च न्यायालय जा चुके हैं, विवेक का मामला कोर्ट में है और उन्हें परीक्षा देने की अनुमति कोर्ट से मिल चुकी थी। विश्वविद्यालय ने उन्हें कुछ पेपर देने की छूट दी, परन्तु निष्कासन रद्द करने को तैयार नहीं हैं। 16 फ़रवरी 2024 को उच्च न्यायालय, नागपुर ने निरंजन कुमार के मामले का संज्ञान लिया और निष्कासन पर रोक ले लिया, परन्तु उन्हें विश्वविद्यालय के कुलसचिव धरवेश कठेरिया ने मौखिक तौर पर प्रवेश देने से यह कहते हुए मना कर दिया गया कि हम हाईकोर्ट को नहीं मानते। तुम सुप्रीम कोर्ट जाओ।

28 फरवरी 2024 को छात्रों के निलंबन/निष्कासन मामले में बॉम्बे हाइकोर्ट की नागपुर बेंच ने विश्ववविद्यालय प्रशासन को फटकार लगाते हुए अपने आदेश में कहा है- हम विश्वविद्यालय के कुलसचिव द्वारा दायर हलफनामे से संतुष्ट नहीं हैं। हमने देखा है कि कुलपति दिन-ब-दिन प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का घोर उल्लंघन करते हुए छात्रों के खिलाफ आदेश पारित कर रहे हैं। इतना सब होने के बाद भी विश्वविद्यालय प्रशासन अपनी जिद पर अड़ा है। कुलसचिव धरवेश कठेरिया छात्रों को धमकी देते हुए कहते हैं कि मैं तुम लोगों का जीवन बर्बाद कर के छोडूंगा।
महात्मा गांधी का अपमान व सावरकर का सम्मान
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा के छात्रों द्वारा 30 जनवरी 2024 को शाम 6 बजे विश्वविद्यालय में बने गांधी हिल्स पर गांधी जी की पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया था, उक्त कार्यक्रम की सूचना छात्रों ने 29 जनवरी 2024 को विश्वविद्यालय के कुलसचिव को दे दी थी, परन्तु विश्वविद्यालय के कुलसचिव द्वारा गांधी जी की श्रद्धांजलि सभा को प्रारंभ होते वक्त उसे मनाने से रोक दिया गया। छात्रों द्वारा सभा रोके जाने का कारण पूछने पर सुरक्षाकर्मी द्वारा यह कहते हुए बाहर कर दिया गया कि सभा की इजाज़त नहीं ली गयी है। चूंकि सभा स्टूडेन्ट कॉर्नर पर की जा रही थी जिसकी छात्रों को बस सूचना देनी होती है जो उन्होंने दी थी। इसके उपरांत भी उन्हें सभा करने से रोका गया। गांधी की कर्मभूमि में गांधी की श्रद्धांजलि सभा करने से रोकना गांधी जी का अपमान है। विश्वविद्यालय के कुलसचिव की इस मानसिकता से समस्त देश अपमानित हुआ है।
वहीं दूसरी तरफ 11 फरवरी 2024 को सावरकर पर कार्यक्रम का आयोजन किया गया, जिसमें बीजेपी के स्थानीय सांसद रामदास तडस को अतिथि के रूप में बुलाया गया अपने भाषण के दौरान उन्होंने हिंदी विश्वविद्यालय को जेएनयू न बनने देने का विवादास्पद बयान दिया और खुले तौर पर आरएसएस से इतर विचारधारा को मानने वालो को देख लेने की धमकी दी। 12 मार्च 2024 को विश्वविध्यालय के प्रांगण में स्थापित वॉलबोर्ड पर विश्वविद्यालय का नाम महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय की जगह हिंदी विश्वविद्यालय कर दिया गया है।
निष्कासन के खिलाफ न्याय प्राप्ति हेतु छात्रों के प्रयास
महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय द्वारा बिना किसी तार्किक कारण निष्कासित किए गए छात्रों ने अपने स्तर से न्याय पाने का प्रयास किया, परन्तु अब तक कोई भी सकारात्मक परिणाम सामने नहीं आया है। मामले को महामहिम राष्ट्रपति महोदया को पत्र भेजा गया, जिसे राष्ट्रपति कार्यालय ने संज्ञान में लिया है, राष्ट्रपति महोदया द्वारा इस मामले को राज्यपाल महाराष्ट्र की देख-रेख में आगे की कार्रवाई करने के लिए निर्देशित किया गया है तथा सारे मामले की स्पष्ट जांच करने के आश्वासन संबंधित सूचना छात्रों को दी गई है। परन्तु उसके आगे न तो छात्रों से किसी जांच समिति ने संपर्क किया, न ही कोई सकारात्मक खबर मिली। दूसरी तरफ राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी विश्वविद्यालय में चल रही उथल-पुथल तथा आए दिन बिना किसी न्यायिक प्रक्रिया के छात्रों का निष्कासन तथा उनके मानवाधिकार के हनन को ध्यान में रखते हुए विश्वविद्यालय को नोटिस भेजा है तथा विश्वविद्यालय प्रशासन को जवाब-तलब किया है। इसके अतिरिक्त विद्यार्थी मुंबई हाईकोर्ट के नागपुर बेंच में छात्रो ने न्याय की गुहार लगायी है।
विश्वविद्यालय में हो रहा भगवाकरण व भ्रष्टाचार
महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा में सन् 2019 में संघ की विचारधारा के पोषक प्रो. रजनीश कुमार शुक्ल की नियुक्ति के उपरांत हिंदी विश्वविद्यालय पर आरएसएस की विशेष नजर पड़ गयी। जिसका परिणाम यह हुआ कि यहां शिक्षक की नियुक्ति हो या किसी अधिकारी, कर्मचारी का पद हो बिना आरएसएस की सिफारिश के कोई भी नियुक्ति असंभव सा हो गया। 2019 से लेकर अब तक जितनी भी नियुक्तियां यहां की गयी सब के पीछे आरएसएस के बैकग्राउंड का होना आवश्यक था। रजनीश कुमार शुक्ल के शासनकाल में 50 से अधिक शिक्षकों की नियुक्ति की गयी है।
आरोप है कि सभी की नियुक्ति में पैसों का भारी खेल और भाई-भतीजावाद किया गया है। यहां तक कि शिक्षा विद्यापीठ के शिक्षक हरीश चन्द्र पाण्डेय की नियुक्ति रजनीश शुक्ला के कार्यकाल में हुआ और वो अभी रजनीश शुक्ल के दमाद बन गए है।
तेजी से किया जा रहा है विश्वविद्यालय का भगवाकरण
बिना किसी नियमावली के स्थलों के नाम तेजी से बदले जा रहे हैं । गोरख पांडे छात्रावास से जनकवि गोरख पांडे की प्रतिमा रातो – रात गायब करवा दी गयी और उस छात्रावास का नाम छत्रपति संभाजी महराज कर दिया गया, नजीर हाट नामक स्थान को सावरकर के नाम पर कर दिया गया, एकलव्य पथ का नाम बदलने की फिराक में एकलव्य पथ के बोर्ड को उखाड़ फेका गया, विनोवा हिल्स को विवेकानंद हिल्स के नाम से परिवर्तित कर दिया गया, श्रमिक पथ का नाम अब्दुल कलाम पथ कर दिया गया, प्रबंधन विद्यापीठ श्यामा प्रसाद मुखर्जी, दूरवर्ती शिक्षा का नाम पंडित दीन दयाल उपाध्याय कर दिया गया है।
(राजेश सारथी, म.गां.अं. हिंदी विश्वविद्यालय में शोध छात्र हैं।)
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