लखनऊ: किसानों-मजदूरों के महापड़ाव के साथ फोरफ्रंट पर आ गया एमएसपी और कर्ज माफी का एजेंडा

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लखनऊ। देशभर के राज्यों की राजधानी में 26 से 28 नवंबर तक चले महापड़ाव के तहत उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के इको गार्डन में भी बड़ी संख्या में मजदूरों, किसानों के साथ मानदेय आधारित वर्करों (आशा, रसोइया, आंगनबाड़ी सेविकाएं आदि) का जुटान हुआ। ‘देश का मजदूर किसान बोल रहा है, मोदी-योगी का शासन डोल रहा है’; ‘जो मजदूर किसान की बात करेगा, वही देश पर राज करेगा’; ‘मजदूर एकता जिंदाबाद, किसान एकता जिंदाबाद’ नारों के साथ तीन दिन तक राजधानी गूंजती रही।

संयुक्त किसान मोर्चा और विभिन्न ट्रेड यूनियनों के संयुक्त मंच के आह्वान पर इस महापड़ाव का आयोजन किया गया था। महापड़ाव को सफल बनाने के लिए लंबे समय से मंच तैयारियों में जुटा था जिसका परिणाम यह रहा कि देशभर में लाखों मजदूर, किसान, स्कीम वर्कर्स तीन दिन तीन रात, ठंड के बावजूद जुटे रहे।

लखनऊ के धरना स्थल इको गार्डन में 25 की शाम से ही आंदोलनकारियों का जुटान होने लगा था। चार बाग रेलवे स्टेशन से आंदोलनकारी मार्च निकालते हुए धरना स्थल तक पहुंचे। पूरी सड़क लाल, हरे, सफेद झंडों से पटी थी। लाल जो मजदूर थामे हुए थे तो हरा किसानों ने संभाला हुआ था और सफेद स्कीम वर्कर्स ने। छोटी जोत के किसानों से लेकर मध्यम और बड़ी जोत वाले किसान, इस महापड़ाव में शामिल थे।

महापड़ाव के दौरान यूनियन की ओर से आजमगढ़ में मंदूरी एयरपोर्ट के विस्तारीकरण को रद्द करने, बलिया में घाघरा नदी के कटान को रोकने और प्रभावित गांवों को मुआवजा देने, लखनऊ के चिनहट में टाटा-टेल्को द्वारा पक्की नौकरी देने और बाकी मुआवजा देने, ग्रेटर अलीगढ़ के नाम पर जबरन जमीन हड़पने के और बिजली विभाग द्वारा जबरन दोबारा बिल वसूली मामले में कार्यवाही जैसी जिलास्तरीय आंदोलनों की मांग को मजबूती से रखा गया।

साथ ही न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी, संपूर्ण कर्ज माफी, किसान पेंशन जैसी सभी लंबित मांगों के लिए आंदोलन करने की बात कही गई। महापड़ाव में योगी सरकार द्वारा किसानों को सिंचाई के लिए मुफ्त बिजली देने के वादे को याद दिलाते हुए, उस वादे को बिना देरी करते हुए अविलंब पूरा करने की भी बात कही गई।

पहले दिन से ही प्रदेशभर से आए किसानों ने अपनी ताकत का अहसास कराया। केंद्र एवं राज्य सरकार के खिलाफ नारेबाजी की। किसानों ने केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय कुमार मिश्र टेनी को मंत्रिमंडल से बर्खास्त करने की मांग भी जोरदार तरीके से उठाई। आंदोलनकारी 25 सूत्री मांगों को लेकर महापड़ाव में आये हुए थे।

महापड़ाव जनसभा को संबोधित करते हुए वक्ताओं ने केंद्र और प्रदेश सरकार को किसान, मजदूर विरोधी बताया और उनकी नीतियों को कॉर्पोरेट परस्त और सांप्रदायिक गठजोड़ युक्त बताया। साथ ही इस बात पर क्रोध और नाराजगी जताई कि जिन वादों के साथ मोदी सरकार ने ऐतिहासिक किसान आंदोलन को खत्म कराया था वो उन वादों से मुकर गई।

महापड़ाव में आये ऑल इंडिया किसान सभा के नेता पी कृष्ण प्रसाद ने कहा कि मोदी सरकार किसान, मजदूर, आम लोगों के लिए किये गए वादों से मुकर गई है। वह सिर्फ कॉर्पोर्रेट हित की चिंता में लगी है और उसी चिंता के तहत वे चार श्रम संहिताओं को थोपकर मजदूर वर्ग के अधिकारों को छीन रही है।

इंटक के उपाध्यक्ष अशोक सिंह ने कहा कि न केवल सार्वजनिक क्षेत्र को निजी हाथों में बेचा जा रहा है बल्कि इस सरकार के कार्यकाल में खुलेआम संविधान और जनतंत्र पर हमला हो रहा है इसलिए अभी कुछ दिन पहले हम सब को संविधान बचाओ, देश बचाओ महारैली का आयोजन करना पड़ा और आगे भी ऐसी महारैलियां होती रहेंगी।

महापड़ाव में किसान मजदूर संगठन के महामंत्री आशीष मित्तल ने कहा कि आज जनता के आंदोलन के अधिकार को छीना जा रहा है। जनता का ध्यान असली मुद्दों से हटाने के लिए सांप्रदायिक नफ़रत फैलाई जा रही है।

अखिल भारतीय किसान महासभा के महासचिव ईश्वरी प्रसाद कुशवाहा ने कहा कि केन्द्र सरकार की किसान विरोधी, जन विरोधी और राष्ट्र विरोधी नीतियों से आज पूरा देश त्रस्त है। इन विनाशकारी नीतियों के कारण एक तरफ किसान बढ़ती लागत और घटती आय के कारण कर्ज और आत्महत्या का शिकार हो रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ मजदूर और युवा बेरोजगारी, महंगाई और शोषण का शिकार हैं।

उन्होंने कहा कि एमएसपी की कानूनी गारंटी और किसानों की आय दुगुनी करने के वादे के साथ सत्ता में आई मोदी सरकार ने किसानों के साथ घोर विश्वासघात किया है। कोविड महामारी के दौरान पूंजीपतियों के साथ एक षड्यंत्र के तहत लाए गए तीन काले कृषि कानूनों की मदद से सरकार ने खेती को पूंजीपतियों को सौंपने की साजिश रची।

ईश्वरी प्रसाद कुशवाहा ने कहा कि मंडी अधिनियम और आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन कर केन्द्र सरकार ने फसल खरीद और खाद्य वितरण पर कॉर्पोरेट का कानूनी नियंत्रण स्थापित करने और मूल्य समर्थन और खाद्य सुरक्षा समाप्त करने की साजिश की। किसानों को उनकी जमीन से बेदखल कर उन्हें बंधुआ मजदूर बनाने की साजिश रची गई।

संयुक्त किसान मोर्चा के नेता डॉ. सुनीलम ने कहा कि किसान, श्रमिक विरोधी सरकार की रीढ़ तोड़ने की जिम्मेदारी यूपी के ही किसान मजदूरों की है। तो सबको एकजुट होकर अपने हक़ के लिए आंदोलन जारी रखना होगा।

पीलीभीत से आये अखिल भारतीय किसान महासभा के राष्ट्रीय सचिव अफरोज़ आलम ने कहा कि तीन काले कृषि कानूनों के खिलाफ देश के किसानों ने 13 महीने लम्बी ऐतिहासिक लड़ाई लड़ी, जिसमें 750 के करीब किसान शहीद हुए। इसके बाद भी, केन्द्र सरकार किसानों को दिए गए लिखित आश्वासनों को पूरा करने से मुकर गई। स्वामीनाथन कमीशन की सिफारिशों को लागू करने और एमएसपी को कानूनी हक का दर्जा देने की जगह किसानों के साथ विश्वासघात किया गया। किसानों की आय दोगुनी करने की जगह कृषि आय में गिरावट आई है। वहीं खाद, डीज़ल, पेट्रोल के दामों में अभूतपूर्व बढ़ोत्तरी हुई है।

ऑल इंडिया सेंट्रल काउंसिल ऑफ ट्रेड यूनियन्स (एक्टू) के प्रदेश अध्यक्ष विजय विद्रोही ने केन्द्र सरकार की कॉर्पोरेट परस्त नीतियों पर हमलावर होते हुए कहा कि मौजूदा सरकार ने श्रमिकों को एक भयानक त्रासदी में धकेल दिया है। बढ़ती बेरोजगारी, घटती आय, और महंगाई ने श्रमजीवियों पर क़हर ढ़ा दिया है। कॉर्पोरेट हित के लिए लाए गए चार श्रम संहिताओं के माध्यम से श्रमिकों के सभी अधिकारों को ख़त्म किया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि स्थायी सरकारी नौकरियों का ठेकाकरण और निजीकरण किया जा रहा है। नियमित रोजगार घट रहे हैं और वास्तविक वेतन स्तर में भी गिरावट आयी है। सालाना दो करोड़ रोजगार के वादे के विपरीत सरकार 60 लाख से अधिक रिक्त स्वीकृत पदों को भरने के लिए भी तैयार नहीं है। सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों का निजीकरण किया जा रहा है।

उन्होंने कहा कि अग्निपथ जैसी योजना को लागू कर सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा और युवाओं के भविष्य को एक बड़े संकट में धकेल दिया है। नई पेंशन योजना के जरिए सेवानिवृत्त कर्मचारियों से भी उनका हक छीना जा रहा है। सामाजिक सुरक्षा को समाप्त किया जा रहा है और वरिष्ठ नागरिकों को मिलने वाली सुविधा को छीना जा रहा है।

उन्होंने कहा कि मनरेगा के बजट आवंटन में भी भारी गिरावट आई है, और इसे अप्रभावी बनाने की कोशिश की जा रही है। सरकार द्वारा स्वीकृत आईएलओ कन्वेंशन का पालन नहीं करने, काम के घंटे को 8 से बढ़ाकर 12 घंटे करने, त्रिपक्षीय वार्ता का पालन नहीं करने, तथा नई पेंशन योजना आदि के विरुद्ध संघर्ष अब देशव्यापी स्वरूप ले चुका है।

उत्तर प्रदेश मिड डे मील वर्कर्स की प्रदेश अध्यक्ष कमला गौतम ने स्कीम वर्करों के आर्थिक हालात पर बोलते हुए कहा कि चाहे बात मिड डे मील रसोइयों की हो या आशाओं की या आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं की या अन्य फ्रंट के स्कीम वर्करों की, महीनों गुजर जाते हैं लेकिन इन्हें इनका मामूली मानदेय सरकार नहीं दे पा रही।

उन्होंने कहा कि अयोध्या में लाखों दीये जलाने का बजट सरकार के पास है लेकिन स्कीम वर्करों के मानदेय का बजट सरकार के पास नहीं है, जबकि अलग अलग क्षेत्र के स्कीम वर्करों के कारण काफी हद तक प्रदेश के हालात संभले हुए हैं लेकिन ये खुद मुफलिसी में जी रहे हैं। उन्होंने कहा कि मात्र दो हजार रुपये में खटने वाली रसोइयां तो भुखमरी के कगार पर आ गई हैं। उन्होंने स्कीम वर्कर्स को चतुर्थ श्रेणी का राज्य कर्मचारी घोषित करने की भी मांग भी उठाई।

महापड़ाव की 22 सूत्री मांगें

1. स्वामीनाथन आयोग की सिफारिश के अनुसार सभी फसलों पर सी2+50 प्रतिशत के फार्मूला के आधार पर एमएसपी की कानूनी गारंटी करो।

2. चार श्रम संहिताओं और निश्चित अवधि के रोजगार कानून को वापस लो। काम पर समानता व सुरक्षा सुनिश्चित करो।

3. नई पेंशन स्कीम (एनपीएस) को रद्द करो, पुरानी पेंशन स्कीम (ओपीएस) को पुनः बहाल करो। पेंशन सहित व्यापक सामाजिक सुरक्षा में पोर्टेबिलिटी की गारंटी करो।

4. सभी किसानों और खेत मजदूरों के लिए 5,000 रुपये प्रति माह की किसान पेंशन योजना को लागू करो।

5. श्रम का आकस्मिककरण व ठेकाकरण बंद करो। असंगठित श्रमिकों की सभी श्रेणियों का पंजीकरण करो। आशा, एमडीएम रसोइया, आंगनवाड़ी, सेविका, सहायिका सहित सभी योजनाकर्मियों को नियमित करो।

6. बंटाईदार किसानों का निबंधन करो। बंटाईदार किसानों को सभी तरह के सरकारी योजनाओं का लाभ प्रदान करो।

7. रिक्त स्वीकृत पदों को भरो और बेरोजगारों को रोजगार दो। अग्निपथ योजना वापस लो।

8. कॉर्पोरेट समर्थक पीएम फसल बीमा योजना को वापस लो और सभी फसलों के लिए सार्वजनिक क्षेत्र की व्यापक फसल बीमा योजना स्थापित करो।

9. मनरेगा का विस्तार करो और प्रति वर्ष 200 दिन काम और 600 रुपये प्रतिदिन मजदूरी सुनिश्चित करो। शहरी रोजगार गारंटी अधिनियम बनाओ।

10. समुचित जल प्रबंधन के जरिए बाढ़, सुखाड़ एवं जल-जमाव की समस्या के स्थायी समाधान के लिए ठोस योजना बनाओ। उत्तर प्रदेश के सभी अधूरे और जर्जर सिंचाई परियोजनाओं का शीघ्रातिशीघ्र जीर्णोद्धार तथा आधुनिकीकरण करो।

11. काम के अधिकार को मौलिक अधिकार बनाओ। राष्ट्रीय न्यूनतम वेतन 26,000 रुपये प्रतिमाह घोषित करो। श्रम कानूनों के प्रावधानों को सख्ती से लागू करो।

12. बिजली संशोधन विधेयक, 2022 को वापस लो। किसानों को खेती के लिए मुफ्त बिजली और ग्रामीण परिवारों को 300 यूनिट मुफ्त बिजली मुहैया करो।

13. औद्योगिक त्रिपक्षीय समिति का पुनर्गठन करो। भारतीय श्रम सम्मेलन का आयोजन करो।

14. किसानों को अनुदानित दर और उचित समय पर पर्याप्त मात्रा में उर्वरक, उन्नत बीज, कीटनाशक एवं अन्य कृषि सामग्री उपलब्ध करो।

15. घरेलू कामगारों और गृह-आधारित कामगारों पर आईएलओ कन्वेंशन की पुष्टि करो और उचित कानून बनाओ। प्रवासी श्रमिकों पर व्यापक नीति बनाओ, मौजूदा अंतरराज्यीय प्रवासी श्रमिक (रोजगार का विनियमन) अधिनियम, 1979 को सुदृढ़ करो, और उनके सामाजिक सुरक्षा में पोर्टेबिलिटी प्रदान करो।

16. उत्तर प्रदेश में गन्ना किसानों के भारी बकाये का ब्याज सहित तत्काल भुगतान करो और गन्ने का रेट 450 रुपये प्रति क्विंटल घोषित करो। उत्तर प्रदेश में बंद पड़े सभी चीनी मिलों को पुनः चालू करो।

17. निर्माण श्रमिकों को कल्याण निधि से योगदान के साथ इएसआई कवरेज दो, ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकृत सभी श्रमिकों को स्वास्थ्य योजना, मातृत्व लाभ, जीवन बीमा और विकलांगता बीमा का कवरेज दो।

18. सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों व सरकारी विभागों का निजीकरण बंद करो और राष्ट्रीय मौद्रिकरण पाइपलाइन (एनएमपी) को समाप्त करो।

19. वन अधिकार कानून 2006 को सख्ती से लागू करो। वन (संरक्षण) संशोधन विधेयक, 2023 को वापस लो। वन पर आदिवासियों के नैसर्गिक अधिकार को सुनिश्चित करो।

20. महंगाई पर रोक लगाओ, भोजन, आवश्यक वस्तुओं पर जीएसटी हटाओ, तेल और गैस की कीमत कम करो।

21. खाद्य सुरक्षा की गारंटी करो और जन वितरण प्रणाली को सर्वव्यापी बनाओ।

22. उत्तर प्रदेश में भाजपा द्वारा समाप्त किए गए पोस्ते (अफ़ीम) की खेती करने के लिए फिर से लाइसेंस जारी करो।

(सरोजिनी बिष्ट की रिपोर्ट।)

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