यूपीडा ने फरमान जारी किया है कि बांदा जिले में इंटरवेज से 10 किलोमीटर की सीमा में वैकल्पिक भूमि पार्सल की पहचान करे जिससे मेसर्स एलईए एसोसिएट्स, मेसर्स अंसर्ट एंड यंग के लिए भूमि की बिसंडा, जमालपुर, बरगहनी, महोखर, दोहा, बिलबई और जारी गांवों में 100 -100 हेक्टेयर जमीन अधिग्रहीत की जा सके।
हालांकि यहां एक्सप्रेस वेज से 10 किमी तक की बात कही गई है ताकि बंजर, कम उपजाऊ जमीन की पहचान हो सके, लेकिन प्रशासन को इस जहमत की फुरसत कहां और वो एक्सप्रेस वे से 10 कदम की खेती की नाप कर रहा है , भले ही वह तीन फसली जिले की सर्वाधिक उपजाऊ जमीन क्यों न हो।
इस रवैए से दुखी और भयभीत बिसंडा के किसान अपनी खेती की जमीन बचाने के लिए जिलाधिकारी, बांदा की चौखट में पहुंचे और जिलाधिकारी से बताया कि यूपीडा द्वारा प्रस्तावित इंडस्ट्रियल कॉरिडोर के लिए चिन्हित की जा रही भूमि के अधिग्रहण से वहां के सैकड़ों किसान भूमिहीन होकर तबाह हो जायेंगे।
किसानों ने जिलाधिकारी से कहा कि प्रस्तावित इण्डिस्ट्रियल कॉरीडार के लिए हमारी कृषि भूमि जो कि बिसण्डा ग्रामीण में बिसण्डा-अतर्रा मार्ग से लगी हुयी पश्चिम एवं बुन्देलखण्ड एक्सप्रेस वे के उत्तर दिशा की ओर स्थित है, को चिन्हित किया जाना प्रकाश में आया है, जिसका रकबा 100 हेक्टेयर बताया जा रहा है। उक्त कृषि भूमि में प्रायः वह किसान अधिक है जिनकी कृषि भूमि का हिस्सा गत वर्षा एक्सप्रेस वे के लिए अधिग्रहीत किया जा चुका है। शेष कृषि भूमि से ही उसका जीविकोपार्जन हो रहा है। किसानों का कहना है कि उक्त कृषि भूमि जनपद की सर्वाधिक उपजाऊ इलाके में से एक है जहाँ आमतौर पर तीन फसलें ली जाती हैं तथा इस क्षेत्र का बाजार मूल्य मूल्यांकित सर्किल दर से कई गुना अधिक है। इस वजह से सर्किल दर पर मुआवजा के निर्धारण में किसानों को भारी नुकसान होगा।
वास्तव में बाँदा जनपद में वर्तमान में लागू सर्किल रेट 2017-18 से नहीं बढ़ाया गया जबकि तब से अभी तक बाजार मूल्य कई गुना बढ़ा है। यूपीडा द्वारा क्रय की जाने वाली भूमि में 2017-18 के सर्किल रेट के आधार पर ही होगा, जो प्रभावित किसानों के पुनर्वास पर कुठाराघात होगा और उनकी सन्ततियाँ तबाह होंगी।
किसानों ने सुझाव दिया कि बुन्देलखण्ड एक्सप्रेसवे के साथ बिसण्डा से पश्चिम की ओर घूरी, उमरेन्हडा आदि कई गाँवों की ऐसी कृषि भूमि भी है जो अपेक्षाकृत कम उपजाऊ, एक फसली, बंजर अनुपजाऊ भी है। उन क्षेत्रों में इस प्रोजेक्ट को चिन्हित किये जाने से खाद्यान्न उत्पादन में कम से कम नुकसान होगा। और वहां का बाजार मूल्य कम होने के कारण उधर के किसानों को उनकी भूमि का सही मुआवजा मिलेगा। उन्होंने कहा कि हमारी भूमि अधिग्रहीत की जाती है तो हम भूमिहीन होकर अपने परम्परागत पेशे से कट कर तबाह ही होंगे।
जिलाधिकारी ने किसानों की बात ध्यानपूर्वक सुनकर एक कमेटी के गठन का आदेश दिया जिसमें उपजिलाधिकारी अतर्रा, तहसीलदार अतर्रा, कानूनगो और लेखपाल होंगे जो भूमि के चिन्हांकन पर अपनी आख्या देंगे।
किसानों के प्रतिनिधिमंडल में राज्य किसान समृद्धि आयोग के सदस्य प्रेम सिंह, डीसीडीएफ अध्यक्ष सुधीर सिंह, प्रगतिशील किसान पुष्पेंद्र भाई, बिसंडा सभासद विमल कुमार, दिलीप सिंह, विनोद कुमार सिंह, प्रदीप सिंह, देवदत्त चौबे, अनूप राज सिंह, विष्णु, राजेंद्र, जितेंद्र सिंह शामिल थे।
(जनचौक ब्यूरो की रिपोर्ट।)
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