बदहवास उत्तर प्रदेश किस-किस बात के लिए रोये?

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कुछ वर्ष पहले की ही बात है। देश के गृहमंत्री अमित शाह ने यूपी में कानून और व्यवस्था को लेकर बड़े जोर-शोर के साथ दावा किया था। उनका कहना था कि यूपी में 16 साल की लड़की भी गहनों से लदी होकर रात दो बजे बिना किसी भय के सड़क पर निकल सकती है। 

दो दिन पहले एक महिला हेड कांस्टेबल को बलात्कार का शिकार होना पड़ा। उक्त पुलिसकर्मी करवाचौथ मनाने के लिए अयोध्या से कानपुर के एक गांव में अपनी ससुराल पहुंचने ही वाली थी, कि सादी वर्दी में होने के कारण उसके साथ यह घटना हो गई। अपने बचाव में उसने अभियुक्त के हाथ की एक ऊंगली भी चबा ली, लेकिन खुद को बचा न सकी। 

ये घटनाएं आम लोगों के साथ कितनी सामान्य हैं, इसका सही-सही अंदाजा क्राइम रिपोर्ट से नहीं लगाया जा सकता, इसके बावजूद जितने अपराध रिकॉर्ड होते हैं, वो ही देश के गृहमंत्री और बुलडोजर बाबा के कानून के शासन की पोल खोलने के लिए काफी हैं।

लेकिन, चूंकि विपक्ष बड़ी ताकत होने के बावजूद किसी भी मुद्दे पर सरकार के साथ आर-पार की लड़ाई के मूड में नहीं रहता, इसलिए पूरे देश में अभी भी सीना ठोक यूपी के कानून और व्यवस्था को भाजपा बड़े गर्व के साथ बखान करती रहती है।

बहराइच का दंगा प्रायोजित निकला 

आज से 10 दिन पहले 13 अक्टूबर के दिन यह विवाद हिमालय के तराई के इलाके बहराइच में तब फैला, जब दुर्गा पूजा के बाद मूर्ति विसर्जन के लिए हजारों की संख्या में भीड़ ने डीजे म्यूजिक के साथ मुस्लिम मोहल्ले में प्रवेश किया।

इस मोहल्ले में ज्यादातर मुस्लिम परिवार रहते हैं, लेकिन कुछ हिंदुओं के भी परिवार हैं। भीड़ डीजे की धुन पर मां-बहन की गालियों वाले गाने के साथ सुर से सुर मिलाकर अपनी मुस्लिम विरोधी भावनाओं को व्यक्त करने लगते हैं। 

देखते ही देखते एक युवा, बगल के घर से उस मकान पर चढ़ जाता है, जिस पर मुस्लिम समुदाय का प्रतीक हरा झंडा लगा था। वह उस झंडे को उखाड़ फेंकता है और नीचे से हिंदुत्वादी भीड़ एक भगवा झंडा फहराने के लिए देती है।

इसके बाद गोली चलती है और उक्त युवक की मौत हो जाती है। इसके बाद पथराव और मूर्ति टूटने के बाद बवाल शुरू हो जाता है। 

ऐसा कहा जा रहा है कि ढाई वर्षों में यह पहली मौत है। रामनवमी, मूर्ति विसर्जन, हनुमान जयंती सहित पिछले दस वर्षों के दौरान देश में ऐसे सैकड़ों उदाहरण गिनाये जा सकते हैं, जिसमें हिंदुत्ववादी भीड़ के निशाने पर कोई मस्जिद या मुस्लिम मोहल्ला रहता है।

कई बार आगजनी और मारपीट की घटनाएं भी देखने को मिलती हैं, लेकिन भीड़ के खिलाफ मोर्चा खोलने की यह पहली वारदात है, जिसमें एक व्यक्ति की मौत भी हो जाती है। 

विपक्ष शुरू से ही इस विवाद को यूपी में 9 विधानसभा सीटों पर होने वाले उप-चुनाव से जोड़कर देख रहा है, लेकिन अब इसके प्रत्यक्ष प्रमाण भी मिल गये हैं कि यह हिंदू-मुस्लिम दंगा न होकर एक सोची-समझी योजना का हिस्सा है, जिसे 1871 से सफलतापूर्वक अंजाम दिया जा रहा था, जो आज भी कारगर सिद्ध हो रहा है।    

स्वंय भाजपा विधायक ने 8 दंगाइयों के नाम दर्ज कराई प्राथमिकी 

बहराइच के महासी के विधायक, सुरेश्वर सिंह ने बीजेपी के शहर इकाई के प्रमुख, अर्पित श्रीवास्तव सहित कुल 8 लोगों के खिलाफ हत्या का प्रयास, पत्थरबाजी और आगजनी का आरोप लगाया है।

कोतवाली पुलिस ने धारा 191(2) दंगा फसाद, 191(3) हथियारों से लैस, 3(5), 109(1) हत्या की कोशिश, 351(3) जान से मार देने की धमकी, धारा 125 और धारा 352 के तहत जानबूझकर शांति भंग करने के आरोपों के तहत मामला दर्ज किया है। 

विधायक सुरेश्वर सिंह ने अपनी शिकायत में दावा किया है कि, “13 अक्टूबर को प्रदर्शनकारी बहराइच मेडिकल कॉलेज के बाहर मृतक राम गोपाल मिश्रा, उम्र 22 का शव रखकर हंगामा कर रहे थे। मैं अपने अंगरक्षक और सहयोगियों के साथ चीफ मेडिकल ऑफिसर के कार्यालय पर पहुंचा, जहां जिलाधिकारी भी मौजूद थे।

मैं उन सबको लेकर मृतक के पास पहुंचा और मृतक के परिवार वालों के साथ बात कर शव को शवदाह गृह की ओर लेकर जाने लगा। इसी बीच अर्पित श्रीवास्तव, अनुज सिंह रैकवार, शुभम मिश्रा, कुश्मेंद्र चौधरी, मनीष चन्द्र शुक्ल, पुंडरिक पांडे, सुधांशु सिंह राना सहित सैकड़ों लोगों ने भद्दी-भद्दी गालियों के साथ नारेबाजी शुरू कर दी।”

वे आगे कहते हैं, “जैसे ही हम शवदाह गृह से बाहर निकले, और कार में बैठकर निकलने लगे, भीड़ ने हमारे ऊपर पत्थरबाजी शुरू कर दी थी। उनका इरादा था कि कार को रोककर सभी सवार लोगों को जान से मार दिया जाये। इसी बीच भीड़ से एक गोली चली, जिसमें मेरा बेटा अखंड प्रताप सिंह बाल-बाल बच गया। यह सारी घटना रात 8 से 10 के बीच हुई।”

सत्तारूढ़ दल के विधायक के द्वारा दर्ज की गई इस प्राथमिकी पर योगी आदित्यनाथ की सरकार क्या कार्रवाई करती है, यह देखना शेष है। हालांकि, राम गोपाल मिश्रा की मौत के अगले ही दिन उनका बयान अवश्य आ गया था कि चुन-चुन कर अपराधियों का हिसाब किया जायेगा।

इस लिहाज से देखें तो यूपी पुलिस ने दो दोषियों की शिनाख्त कर एनकाउंटर दिखा टांग पर गोली भी मार दी थी। लेकिन दंगाई भीड़, जिसने शहर में बलवा और आगजनी की, उनके खिलाफ ऐसा कठोर कदम उठाने की कोई  खबर नहीं है।

अब अपने विधायक की जानमाल की रक्षा के लिए वे नामजद अपराधियों के साथ कैसा एनकाउंटर करते हैं, बहराइच की अमन पसंद जनता देखना चाहती है। बहरहाल, इसी बीच दैनिक भाष्कर की टीम ने एक एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में दो दंगाइयों की तस्वीर के साथ वीडियो साझा की है। 

गद्दारी नहीं करते तो पूरा महाराजगंज जला देते  

उक्त दोनों आरोपी सड़क पर नशीला पदार्थ तैयार करते हुए दैनिक भाष्कर के पत्रकार के साथ बात करते हुए बता रहे हैं कि पुलिस ने हमें सिर्फ दो घंटे की छूट दी थी। यदि उन्होंने गद्दारी नहीं की होती तो पूरा महाराजगंज फूंक देते। पुलिस भी हट गई थी।

जिन्होंने गद्दारी की थी, उन सभी को हटा दिया गया है। यानि जिस ईमानदार पुलिस अधिकारी एसके वर्मा ने भीड़ को हिंसक होने से रोकने में भूमिका अदा की, उन्हें सजा के तौर पर निलंबित कर दिया गया। एसके वर्मा बताते हैं कि पिछले 15 वर्षों से इस इलाके में कोई तनाव की स्थिति नहीं थी। किसी ने हाथ से इशारा किया और उसके बाद वारदात को अंजाम दिया गया। 

उत्तर प्रदेश में पुलिस की स्थिति को बयां करते हुए पूर्व डीजीपी, सुलखान सिंह का बयान काफी चर्चित हो रहा है, जिसमें उनका कहना है, “यूपी पुलिस बेहद दबाव में काम कर रही है। निष्पक्ष कार्रवाई नहीं कर पा रही है। दंगाइयों पर कार्रवाई करने पर उन्हें सस्पेंड कर दिया जाता है।”

समाजवादी पार्टी अध्यक्ष, अखिलेश यादव ने भी अब योगी आदित्यनाथ सरकार की कारगुजारियों पर सीधे निशाना साधना शुरू कर दिया है। आज उन्होंने दैनिक भाष्कर के इस खबर को साझा करते हुए अपने बयान में कहा है, “धिक्कार है ऐसी भाजपाई राजनीति और सत्ता की भाजपाई भूख पर जो सियासत के लिए देश के भाईचारे के बीच दंगा कराने की साज़िश करती है।

बहराइच हिंसा के मामले में हर दिन नये खुलासे हो रहे हैं, जिनसे भाजपा मुंह दिखाने लायक नहीं रही है। भाजपा के विधायक ही भाजपाइयों पर साज़िश करने की एफ़आइआर करा रहे हैं और दंगाई छुपे कैमरे के सामने सच उगल रहे हैं। 

भाजपा के जो थोड़े बहुत समर्थक और वोटर बचे हैं, अब तो भाजपा का ये षड्यंत्रकारी और हिंसक रूप देखकर वो भी शर्मिंदा हैं। भाजपा ने अपने समर्थकों की भावनाओं को गुमराह करके, उनका इस्तेमाल अपनी सत्ता को बचाए-बनाए रखने के लिए किया है।

सच तो ये है कि भाजपा अपने ही लोगों के ख़िलाफ़ षड्यंत्र कर रही है। भाजपा भाजपाइयों से दंगे कराकर उन्हें ही फंसा दे रही है। तभी तो भाजपा का विधायक, भाजपाइयों के ख़िलाफ़ रिपोर्ट लिखवा रहा है।

अब तो भाजपाई भी कहने लगे हैं : भाजपा किसी की सगी नहीं

यूपी कहे आज का, नहीं चाहिए भाजपा!” दैनिक भाष्कर के स्टिंग ऑपरेशन और बीजेपी विधायक की प्राथमिकी के बाद बहराइच दंगे की सच्चाई सबके सामने उजागर हो चुकी है। ‘बटेंगे तो कटेंगे’ को सही अर्थों में अंजाम पर लाकर आज यूपी में हिंदू और मुसलमान को बांटकर, कटने के लिए ही तो मजबूर कर दिया गया है।

हर नारे के दो अर्थ होते हैं, एक शासक के लिए और एक आम मजलूम जनता के लिए। उम्मीद करनी चाहिए कि यूपी की बदहाल और बदकिस्मत आम जनता को इस नारे का सही अर्थ एक राम गोपाल मिश्रा की जान गंवाने के बाद समझ आ गया होगा, वर्ना अभी न जाने कितने राम गोपाल किसी और की सत्ता की हनक के लिए अपने बूढ़े मां-बाप को बेसहारा छोड़ते रहेंगे?  

(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं)

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