प्रयागराज, उत्तर प्रदेश। इलाहाबाद या प्रयागराज एक हेरिटेज शहर है, जिसकी प्रसिद्धि स्वतंत्रता संग्राम के एक महत्वपूर्ण केंद्र, कुम्भ मेला स्थल, गंगा-यमुना-सरस्वती के संगम की पावन धरती और उत्तर प्रदेश के सबसे पुराने विश्वविद्यालय की उपस्थिति के लिए विश्व भर में मानी गई है। यह प्रदेश की गंगा-जमुनी तहज़ीब का प्रतीक भी रहा है जहां श्रद्धालु ऋषि भारद्वाज के आश्रम से लेकर बादशाह जहांगीर के ज्येष्ठ पुत्र खुसरो के मकबरे पर बने खुसरोबाग और अकबर का किला व मौर्यकालीन अशोक स्तम्भ को देखने देश के कोने-कोने से आते हैं।
प्रयागराज की रेलवे विरासत
भारतीय रेलवे द्वारा महाकुम्भ 2025 के लिए की जा रही तैयारी के क्रम में प्रयागराज रेलवे जंक्शन के विस्तारीकरण एवं विकास की योजना बनी है। हम जानते हैं कि जब कोई भी विकास कार्य होता है तो अक्सर पुरानी इमारतों का ध्वस्तीकरण और आधुनिक मॉडल के अनुसार निर्माण कार्य किया जाता है। अत्यंत जर्जर भवनों, जिनका जीर्णोद्धार असंभव है, के लिए तो यह बात समझ में आती है, पर पुरातात्विक महत्व वाले भवनों, जो न केवल हमारी सांस्कृतिक धरोहर के प्रतीक हैं, बल्कि जो पुरातात्विक महत्व के लिहाज़ से ऐतिहासिक हैं, के साथ ऐसा सुलूक कैसे किया जा सकता है? पर ठीक ऐसा ही किया जा रहा है, क्योंकि भाप वाले इंजन बनाने वाले कारखाने के अगले हिस्से को कुछ दिन पूर्व ध्वस्त किया जा चुका है।

प्रयागराज जंक्शन उत्तर मध्य रेलवे का हेडक्वार्टर है। प्रयागराज की रेलवे विरासत भी काफी पुरानी है। 1859 में ईस्ट इंडिया रेलवे कम्पनी ने हावड़ा से दिल्ली तक रेल लाइन बिछाने की ठानी। इलाहाबाद से कानपुर पहली ट्रेन इसी वर्ष चली थी, यानि 164 वर्ष पूर्व। बताया जाता है कि जमालपुर और इलाहाबाद में इंजन की ऐसेम्ब्लिंग होती थी और 1870 से स्पेयर पार्ट्स भी बनने लगे थे। इसलिए इलाहाबाद/प्रयागराज की संस्कृति और विरासत (संगम/कुंभ) के दर्शन के लिए प्रयागराज पहुंचने वाले शोधकर्ताओं व सैलानियों को भारतीय रेलवे की विरासत के माध्यम से शहर की पहली पहचान मिलनी चाहिए।
औद्योगिक विरासत (Industrial Heritage) बिल्डिंग के तहत आने वाला लोको स्टीम इंजन शेड या वर्कशॉप असूचीबद्ध (unlisted heritage) है; पर उसका सबसे बड़ा आकर्षण उसकी ईंट से बनीं 45-50 फुट ऊंची चिमनियां हैं; ये आज भी पूरी तरह सुरक्षित व मजबूत हैं, पर केवल इन्हें सूचीबद्ध किया गया है। इसके आस-पास पुराना अस्पताल परिसर, कोरल क्लब, स्विमिंग पूल और अन्य भवन हैं। प्रयागराज की रेलवे विरासत (सूचीबद्ध/असूचीबद्ध) के संरक्षण के लिए INTACH (Indian National Trust for Art and Cultural Heritage) प्रयागराज चैप्टर लगातार हर स्तर पर प्रयास कर रहा है। वह जुलाई 2022 से रेलवे अधिकारियों से संपर्क करता आ रहा है।

इस संबंध में INTACH हेड ऑफिस द्वारा रेलवे बोर्ड हेरिटेज सेल के कार्यकारी निदेशक विनीता श्रीवास्तव को अगस्त 2022 में एक पत्र भी लिखा जा चुका है। INTACH प्रयागराज चैप्टर के कार्यकर्ता वैभव मैनी कहते हैं, “यह तो मंत्रालय ही जाने कि केवल चिमनी को ‘हेरिटेज स्ट्रक्चर’ मानना और वर्कशॉप को नहीं के पीछे क्या तर्क है।“ जो इलाहाबाद के निवासी रहे हैं, वे भली-भांति जानते हैं कि ‘कोरल क्लब’ में बंगाली समाज के लोग अपनी नाट्य प्रस्तुतियां किया करते थे। आज उस हॉल को व्यावसायिक उद्देश्य से शादियों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।
महत्वपूर्ण रेलवे विरासत का संरक्षण जरूरी
मामला यूं है कि पुराने लोकोमोटिव वर्कशॉप और पुराने अस्पताल परिसर (प्लेटफार्म 6 के सामने) के लिए बहाली और अनुकूली पुन: उपयोग हेतु प्रारंभिक परियोजना रिपोर्ट भी INTACH द्वारा प्रस्तुत की जा चुकी है, जिसमें प्रस्ताव रखा गया कि लोकोमोटिव वर्कशॉप को इंटरएक्टिव रेलवे संग्रहालय/गैलरी में परिवर्तित किया जाए और पुराने अस्पताल परिसर को हेरिटेज गेस्ट हाउस बनाया जाए। साथ ही साथ, बगल के कोरल क्लब स्विमिंग पूल के जीर्णोद्धार के लिए एक प्रारंभिक परियोजना रिपोर्ट भी प्रस्तुत की गई और ये सभी प्रस्तुतियां जीएम, एनसीआर (General Manager, North Central Railways) और सीनियर डीएमई (Senior Divisional Mechanical Engineer) स्तर पर की गईं।
रेलवे महाप्रबंधक, ए-डीआरएम (Additional Divisional Railway Manager) और वरिष्ठ डीएमई (Divisional Mechanical Engineer) के समक्ष प्रस्तुति रखी गई कि कैसे रेलवे विरासत के संरक्षण को प्राथमिकता दी जाए (इसमें सिविल लाइंस की ओर कुछ प्रतिष्ठित आवासीय भवन, रनिंग रूम, लोकोमोटिव फैक्ट्री और चिमनियां, पुराना रेलवे अस्पताल, कोरल क्लब, बंगले और विभिन्न आसन्न संरचनाएं शामिल हैं)। साथ ही विरासत के सौंदर्यीकरण और रेलवे स्टेशन के अग्रभाग को डिजाइन करने के लिए एक अलग प्रस्तुति भी पेश की गई।

रेल मंत्रालय और जीएम को लिखे गए पत्र लेकिन ढहाने का काम शुरू
इसी संबंध में INTACH ने सांसद प्रो. रीता बहुगुणा जोशी से संपर्क किया। उनके द्वारा (छपी-प्रस्तुति के साथ) रेल मंत्री, अध्यक्ष रेलवे बोर्ड एवं महाप्रबंधक एनसीआर को पत्र भेजे गए। जीएम को रीता जोशी और अपर-आयुक्त ने रिमाइंडर भी भेजा। पर दुर्भाग्य है कि वर्कशॉप का अगला हिस्सा बिना सांसद को पूर्व सूचना दिये ढहा दिया गया।
प्रो. रीता ने पुनः रेल मंत्रालय को दिनांक 1-5-23 को अपने पत्र में लिखा, ‘‘समाचार पत्रों के माध्यम से ज्ञात हुआ है कि प्रयागराज जंक्शन परिसर स्थित भांप का इंजन बनाने वाली रेलवे की 141 वर्ष पुरानी वर्कशॉप को तोड़ दिया गया है। वर्कशॉप की चिमनी व निकट की इमारत को तथा वर्तमान में जो शेष धरोहर इमारतें बची हुई हैं उन्हें संरक्षित तथा अनुकूलित कर पुनः उपयोग में लाया जा सकता है। मेरा निवेदन है कि इमारतों को बचाने का प्रयास किया जाए।’’
अभी भी उम्मीद की जा रही है कि लोकोमोटिव वर्कशॉप और चिमनी के शेष हिस्से को संरक्षित और अनुकूली रूप से पुन: उपयोग किया जाएगा (संभवतः रेलवे गैलरी/संग्रहालय के रूप में)।

वैभव मैनी ने बताया कि उधर, पारलाखेमुंडी में ओडिशा के सबसे पुराने रेलवे स्टेशन के लिए भी विरासत का दर्जा मांगा जा रहा है। 1899 में स्थापित रेलवे स्टेशन, पहली समर्पित रेलवे लाइन के साथ-साथ ओडिशा का पहला शाही रेलवे स्टेशन था। INTACH, ओडिशा ने भारतीय रेलवे द्वारा इसे ध्वस्त करने के कदम का विरोध करते हुए पारलाखेमुंडी में इसके लिए विरासत का दर्जा मांगा है। INTACH, ओडिशा चैप्टर के संयोजक, एबी त्रिपाठी ने रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव को लिखे एक पत्र में, उनसे स्टेशन की विरासत और ऐतिहासिक प्रासंगिकता पर विचार करने का आग्रह किया और उनसे एक संग्रहालय और एक फोटो गैलरी स्थापित करने की मांग की।
उन्होंने कहा “यह अभी भी बहुत अच्छी स्थिति में है और इसमें बहुत अधिक काम की आवश्यकता नहीं है। इस पुराने स्टेशन को हेरिटेज टैग दिया जाना चाहिए और इसे यथावत संरक्षित रखा जाना चाहिए। पुल, पुलिया और अन्य सुविधाओं सहित पीएलआर (पारलाखेमुंडी लाइट रेलवे) के रास्ते के कई स्टेशनों को विरासत संरचनाओं के रूप में संरक्षित किया जाना चाहिए। परलाखेमुंडी स्टेशन पर माल शेड एक अद्वितीय विरासत संरचना है जिसे संरक्षण की आवश्यकता है।
सिग्नलिंग उपकरण, बिजली के उपकरण, तराजू, वर्दी, प्रतीक चिन्ह, जर्मन चांदी के कटलरी और शाही अलंकरण सहित कई अन्य कलाकृतियों को संग्रहालय बनाकर परलाखेमुंडी स्टेशन पर रखा जाना चाहिए। नए स्टेशन भवन के सामने महाराजा की मूर्ति लगाई जाए। राज्य का पहला रेलवे स्टेशन होने के नाते यह न केवल ओडिशा के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि देश का एक महत्वपूर्ण रेलवे लैंडमार्क है।“

लेकिन प्रयागराज में पहले राउंड के ध्वस्तीकरण के बाद से INTACH अधिक सक्रिय हो गया है। अधिकारियों व नागरिकों के संगठनों के बीच लॉबिंग जारी है। कुछ स्थानीय अख़बार भी मामले को तवज्जो दे रहे हैं। ‘रेल एनथूसिआस्ट्स सोसाइटी’, ‘इंडियन रेलवेज़ एम्प्लाईज़ फेडरेशन’ और प्रयागराज के तमाम नागरिकों की ओर से ध्वस्तीकरण का विरोध किया जा रहा है।
आईईआरएफ सचिव डा. कमल उसरी ने कहा कि ‘‘हम लगातार रेलवे को हर स्तर पर बचाने के लिए कटिबद्ध हैं और रेलवे की इस पुरातात्विक धरोहर को संरक्षित करने में सहयोग देंगे।’’ पर अभी तक न रेल मंत्रालय और न ही रेल बोर्ड के हेरिटेज सेल की ओर से कोई बातचीत हुई न सकारात्मक प्रतिक्रिया आई है। अब यह देखना बाकी है कि INTACH का प्रयास कितना सफल होता है।
(कुमुदिनी पति, इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्र संघ की उपाध्यक्ष रह चुकी हैं और वर्तमान में सामाजिक कार्यकर्ता हैं)