कर्नाटक सरकार ने किया नई शिक्षा नीति को रद्द, राज्य में भाजपा का विरोध तेज

Estimated read time 1 min read

कर्नाटक सरकार ने केंद्र सरकार की राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) को रद्द कर राज्य की अपनी नई शिक्षा नीति तैयार करने का फैसला किया है। पार्टी मुख्यालय में कांग्रेस प्रदेश कांग्रेस कमेटी की बैठक को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने घोषणा की कि जरुरी तैयारियों को पूरा करने के बाद एनईपी को रद्द करना होगा, जिसे इस वर्ष समय पर नहीं किया जा सका। इस वर्ष मई में चुनाव परिणाम की घोषणा होने और नई सरकार के गठन तक शैक्षणिक सत्र की शुरुआत हो चुकी थी, जिसके चलते इसे वर्तमान सत्र में लागू कर पाना संभव नहीं हो पाया।

इससे पहले 21 अगस्त को मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने इस विषय पर उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार, उच्च शिक्षा मंत्री डॉ. एमसी सुधाकर, प्राथमिक शिक्षा मंत्री मधु बंगारप्पा, जाने-माने लेखक प्रोफेसर बारागुरु रामचंद्रप्पा और वरिष्ठ सरकारी अधिकारियों के साथ एक बैठक की अध्यक्षता करते हुए इस विषय पर चर्चा की, और बैठक में केंद्र सरकार की नई शिक्षा नीति के स्थान पर राज्य की शिक्षा नीति तैयार करने को लेकर औपचारिक सहमति बनी।

इस संबंध में कर्नाटक सरकार के उपमुख्यमंत्री डी के शिवकुमार ने संवादाताओं के साथ अपनी बातचीत में घोषणा की, “जैसा कि हमारे चुनावी घोषणापत्र में वादा किया गया था कि राज्य के विश्वविद्यालयों के वाईस चांसलर्स, शिक्षाविदों, विशेषज्ञों और अधिकारियों के साथ बातचीत की है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि 2021 से नई शिक्षा नीति को राज्य में लागू कर दिया गया था। जबकि विभिन्न भाजपा शासित राज्यों में से किसी ने भी इस शिक्षा नीति को नहीं अपनाया है और न ही लागू किया है। वहीं दूसरी तरफ तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में इसे लागू किये जाने के लिए दौरे किये जा रहे हैं।”

उन्होंने कहा कि “कर्नाटक राज्य हमेशा से शिक्षा का केंद्र रहा है। हमारे पास विशाल मानव संसाधन का जखीरा रहा है। कर्नाटक देश के ज्ञान केंद्र के रूप में जाना जाता है, यहां पर सबसे बड़ी संख्या में अंतर्राष्ट्रीय स्कूल, प्राथमिक स्कूल, इंजीनियरिंग कालेज, मेडिकल कालेज और नर्सिंग कालेज हैं। हमारे पास पूरे देश के मुकाबले अपनी खुद की गुणवत्तापूर्ण शिक्षा पद्धति रही है, इसे देखते हुए हमने फैसला लिया है कि नई शिक्षा नीति को रद्द किया जाये, जिसे पिछली भाजपा सरकार ने राज्य में लागू किया था। अगले वर्ष से हम एक नई शिक्षा नीति के साथ आ रहे हैं, जिसका कर्नाटक सरकार ने फैसला किया है। एक हफ्ते के भीतर ही हम एक कमेटी गठित कर देंगे। कमेटी अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय एजेंडे पर विचार करेगी। हम कर्नाटक के बच्चों के भविष्य को ध्यान रखना चाहते हैं।”

बाद में मुख्यमंत्री कार्यालय की ओर से एक बयान जारी कर एनईपी की निंदा की गई। इस बयान में कहा गया है, “चूंकि शिक्षा राज्य का विषय है, इसलिए केंद्र सरकार शिक्षा नीति नहीं बना सकती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति को राज्य सरकारों को विश्वास में लिए बिना तैयार किया गया है। शिक्षा नीति को केंद्र सरकार द्वारा नहीं राज्यों पर नहीं थोपा जा सकता है।”

उधर एक बयान में उप-मुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार ने केंद्र सरकार द्वारा लागू एनईपी-2020 को नागपुर एजुकेशन पॉलिसी करार देते हुए इसे कर्नाटक राज्य में रद्द किये जाने की घोषणा की है। उन्होंने केंद्र की शिक्षा नीति को शिक्षा का भगवाकरण करार देते हुए, हिंदुत्व की विचारधारा को प्रचारित-प्रसारित करने का आरोप लगाया है। अपने बयान में उन्होंने कहा, “शिक्षा राज्य के दायरे में आती है। हम न्यू कर्नाटक एजुकेशन पालिसी की रुपरेखा को पेश करने जा रहे हैं। इसके लिए जल्द ही एक कमेटी गठित कर रहे हैं। कमेटी का गठन एक सप्ताह के भीतर कर लिया जायेगा।

बता दें कि कर्नाटक राज्य की इस पहल का केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने मुखर विरोध किया था। अपने बयान में उन्होंने इसे कर्नाटक के छात्रों के भविष्य से खिलवाड़ करना बताया है। केंद्र की नई शिक्षा नीति का पक्षपोषण करते हुए उनका कहना था कि कांग्रेस को एनईपी के लाभों के बारे में जानकारी नहीं है। 22 अगस्त को केंद्र सरकार के केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेन्द्र प्रधान ने उप-मुख्यमंत्री के बयान की तीखी आलोचना करते हुए एनईपी को राजनीतिक दस्तावेज की जगह विजन डॉक्यूमेंट करार दिया है। उनका कहना है कि इसे देश के अग्रणी शिक्षाविदों द्वारा तैयार किया गया है। उन्होंने शिवकुमार पर राजनीति करने का आरोप लगाया है।

बता दें कि एनईपी 2020 को सबसे पहले लागू करने वाला प्रदेश कर्नाटक ही था, लेकिन 2023 के अंत के साथ कर्नाटक से इसकी विदाई तय हो गई है। इसके साथ ही एनईपी के तहत 4 वर्ष के स्नातक कार्यक्रम को भी रद्द कर 3 वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम को लागू किये जाने की बात कही जा रही है।

धर्मेन्द्र प्रधान ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए सवाल किये हैं, “क्या वे कर्नाटक के युवाओं को अकादमिक क्रेडिट हासिल नहीं कराना चाहते हैं? के छात्रों के लिए अकादमिक क्रेडिट बैंक नहीं होना चाहिए? क्या राज्य सरकार उच्च शैक्षिणक संस्थानों में विभिन्न प्रवेश एवं बहिर्गमन के विकल्पों को नहीं मुहैया कराना चाहते हैं, जिसका देश के सभी उच्च शिक्षण संस्थानों ने स्वागत किया है? क्या राज्य सरकार 21वीं सदी के लिए जरुरी नई पाठ्यपुस्तकों को राज्य के विद्यार्थियों के लिए आवश्यक नहीं मानते, जिसमें विज्ञान, भाषा, खेल, सामाजिक विज्ञान और कला को समान जोर दिया गया है? आप देश के युवाओं को किस प्रकार का संदेश देना चाहते हैं।”

उधर बेंगलुरु में पीपुल्स फोरम फॉर कर्नाटक एजुकेशन के बैनर तले एक सम्मेलन का आयोजन कर एनईपी को खत्म किये जाने और इसके स्थान पर राज्य शिक्षा नीति (एसईपी) से बदलने के कांग्रेस के फैसले का विरोध भी तेज हो गया है। भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई ने प्रस्तावित शिक्षा नीति को सोनिया गांधी एजुकेशन पॉलिसी करार दिया है। इस सम्मेलन में पूर्व उपकुलपतियों में बी थिम्मे गौड़ा, मल्लेपुरम जी वेंकटेश, के आर वेणुगोपाल सहित मीना चंदावरकर ने भाग लेकर भाजपा के नेताओं के साथ मंच साझा किया।

ऐसा जान पड़ता है कि केंद्र सरकार और भाजपा नई शिक्षा नीति के मुद्दे पर कर्नाटक सरकार से दो-दो हाथ करने के मूड में है। देश भर में नई शिक्षा नीति-2020 के खिलाफ व्यापक विरोध प्रदर्शन देखने को मिला था। लेकिन मोदी सरकार की हठधर्मिता और निरंकुशता के आगे असहाय उच्च शिक्षण संस्थानों में एक-एक कर बदलाव को लागू किया जा रहा है। 3 वर्ष के स्नातक पाठ्यक्रम को 4 वर्ष में पूरा करने के पीछे के तर्क को आज भी पचा पाना कहीं से भी संभव नहीं, लेकिन शिक्षा नीति एक बार लागू हो गई तो विरोध करने पर उससे भी वंचित होने में छात्र समुदाय को कोई भलाई नहीं नजर आई।

अब एक राज्य में बदलाव की शुरुआत हुई है, जिसकी देखादेखी कल यदि दूसरे राज्यों में भी इसे अमल में लाया जाने लगा तो मोदी सरकार के पास केंद्रीय विश्वविद्यालयों के अलावा एनईपी को लागू करने के लिए जगह नहीं बचेगी। नई शिक्षा नीति को एक तरह से नये श्रम कानून, नई व्यवस्थापिका, संविधान, और न्यायिक प्रणाली की तरह ही लागू किये जाने की पहली सीढ़ी समझा जाना चाहिए। शिक्षा यदि राज्य का विषय है तो उसे जबरन राज्यों पर थोपना सही कैसे हो सकता है? इस रस्साकशी में अभी कई दौर बाकी हैं, देखना है कि कर्नाटक राज्य सरकार क्या वास्तव में राज्य के विद्यार्थियों के लिए विश्व स्तरीय पाठ्यक्रम पेश कर एक मिसाल पेश करने जा रही है, जो आधुनिक ज्ञान विज्ञान के साथ-साथ समावेशी, वैज्ञानिक एवं धर्मनिरपेक्ष स्वरुप लिए हो?

(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author