लखनऊ/लखीमपुर-खीरी/बलिया। भीषण गर्मी, लूं की ताप लहरी के बाद उत्तर प्रदेश राज्य के लोगों को अब बाढ़ की विभीषिका झेलने को विवश (बेबस) होना पड़ रहा है। वैसे राज्य में बाढ़ कोई नई बात नहीं है। बाढ़ का कहर प्रतिवर्ष लोगों को झेलना पड़ता है। बाढ़ के कहर के साथ-साथ ‘कागजों’ पर रोकथाम बचाव के प्रयास भी बेशुमार किए जाते हैं, पर इतने सब के बाद भी बाढ़ की विभीषिका हर वर्ष बरकरार बनी रहती है। उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी, शाहजहांपुर, हरदोई से लगे राज्य के अंतिम छोर पर स्थित तथा बिहार राज्य की सीमा से लगे हुए जनपद बलिया में नदियों का कहर उफान पर है।
मानसून के आए हुए अभी ज्यादा दिन नहीं बीते कि नदियों का तांडव उफान पर आ गया है ऐसे में आगे क्या हालात होंगे इसकी कल्पना मात्र से ही लोग कांप उठे हैं। बलिया में घाघरा नदी के जल स्तर बढ़ने के बाद किसानों की उपजाऊ भूमि नदी में विलीन होने लगी है, बाढ़ विभाग ने गांवों को बचाने के लिए ढाई करोड़ रुपए खर्च भी किया था, बावजूद इसके बाढ़ के कहर से पूरी तरह से मुक्ति नहीं मिल पाई है।

उत्तर प्रदेश के कई जिलों में बाढ़ से हाहाकार मचा हुआ है। शाहजहांपुर में दिल्ली-लखनऊ हाईवे जलमग्न हो उठा है, संभावित खतरे को देखते हुए शाहजहांपुर मेडिकल कॉलेज को खाली करा लिया गया है। 250 मरीजों को दूसरे अस्पतालों में शिफ्ट कराया है, शाहजहांपुर शहर की 15 कॉलोनियों में बाढ़ का पानी घुसने से स्थित बेकाबू हो उठी है। पीलीभीत के घुंघचाई में सौ वर्ष पुरानी पुलिया बह गई है, बीसलपुर के पास रमभोजा के पास आवागमन बंद कर दिया गया है, तो बीसलपुर-बरेली मार्ग बाढ़ के पानी में डूब गया है। हाईवे के आसपास के गांवों में बाढ़ का पानी आ जाने से स्थित बिगड़ गई है। इसी प्रकार बरखेड़ा में देवहा नदी का जलस्तर बढ़ने से बाढ़ की विभीषिका देखने को मिल रही है।

पीलीभीत में डीपीआरओ ऑफिस में भी बाढ़ का पानी घुसने से कर्मचारियों का बुरा हाल हो उठा है। ऑफिसर्स कॉलोनी में घरों में बाढ़ का पानी घुसने से तथा लखीमपुर में लगभग 200 गांवों में बाढ़ का पानी आ जाने से पलायन जैसी स्थिति बन आई है। निघासन में रानीगंज बांध टूटने से 30 गांव में पानी आ गया है। संपूर्णानगर, पलिया, निघासन में भी लोगों की मुश्किलें बढ़ी हैं। घरों में घुसा पानी तो लोग घर की छत पर रहने को मजबूर हुए हैं, हरदोई में गर्रा नदी का बढ़ा जलस्तर तो 35 गांव जलमग्न हो गए हैं, शाहाबाद, सवायजपुर के 6 गांवों में पानी से कटान, हरदोई में गुजीदेही-बारी मार्ग पर पानी, यातायात बंद, हरदोई में पाली के कहर केला में घरों में घुसा पानी, गोंडा में अभी तक 20 गांव बाढ़ के पानी से प्रभावित हैं, गोंडा में बाढ़ प्रभावितों ने गांव से पलायन शुरू किया, बलरामपुर के गौरा चौराहा इलाके में बाढ़ का पानी, श्याम विहार कॉलोनी, खमहवा में नाव से यातायात हो रहा है।

दूसरी ओर शुक्रवार को हरदोई जिले के पाली कहर केला में बाढ़ पीड़ितों का गुस्सा फूट पड़ा था। गुस्साए ग्रामीणों ने जाम लगा दिया, ग्रामीणों का आरोप है कि “गांव में जाने के लिए कोई नहीं व्यवस्था है, गांव के अंदर दो मरीज को बाहर निकालने की मांग कर रहे हैं, कई लोगों की तबीयत खराब हो चुकी है, बाढ़ के चलते स्वास्थ्य सेवाएं नहीं के बराबर हो गई है, पुलिस समझाने में जुटी रही तब जाकर ग्रामीण पीछे हटने को तैयार हुए हैं।
गौर करें तो इस बार जून महीने में लू के थपेड़ों का खूब दौर चलता रहा है, तो वहीं बारिश होने के बाद आम जन ने थोड़ी राहत महसूस की है। लेकिन जनपद बलिया की बात करें तो तीन तरफ से नदियों ने घेर रखा है। दक्षिण से गंगा नदी, सिकंदरपुर तहसील क्षेत्र यानी उत्तर तरफ से सरयू और पूरब में दोनों नदियां मिल जाती हैं। सरयू नदी ने अपना उग्र रूप धारण कर लिया है। नदी की धारा में किसानों की उपजाऊ जमीन समाहित होती जा रही है। यहां बाढ़ विभाग द्वारा कटान को रोकने का कार्य कराया जा रहा है, ढाई करोड़ की लागत से जियो टैग से कार्य हुआ था। बाढ़ विभाग द्वारा कटान को रोके जाने के लिए कराए गए कार्य घाघरा नदी में समाहित हो चुके हैं।

नदी के बढ़ते बेग से किसानों की उपजाऊ भूमि कटने लगी है। “जनचौक” को खरीद गांव के ग्रामीण अमरनाथ यादव बताते हैं कि “बलिया जिले के सिकंदरपुर तहसील अन्तर्गत खरीद गांव के पास सरयू नदी ने उग्र रूप धारण करना शुरू कर दिया है। यहां नदी का कटान तो हो ही रहा है, बाढ़ विभाग द्वारा कराए गए कार्य भी पानी में बह चुके हैं। जियो टैग से बोरी लगाकर कटान से बचाव का प्रयास किया गया था, लेकिन बाढ़ विभाग किसानों की भूमि को बचाने में असफल साबित हुआ है। अब बाढ़ विभाग के अधिकारियों ने झाड़-झंखाड़ डालना शुरू कर दिया। सरकार द्वारा नदी के पानी को आगे बढ़ने से रोकने के लिए लगाया गया पैसा पानी की तरह पानी में ही बह गया, सैकड़ों एकड़ भूमि किसानों की नदी में विलीन हो गई है। लोगों को अब इस बात का भय सताए जा रहा है कि कई गांव भी नदी की जद में आ जाएंगे तो स्थिति और भी भयावह हो जाएगी।”

अमरनाथ यादव की चिंताएं कोई मामूली नहीं है, बल्कि उनमें भविष्य की आशंकाएं भी झलकती है। अमरनाथ आगे भी बताते हैं कि “नदियों से होने वाले कटान और बाढ़ की विभीषिका कोई नई बात नहीं है, इसे रोकने के प्रति वर्ष उपाय होते हैं। बरसात प्रारंभ होने से पूर्व बाढ़ से निपटने की तैयारियां शुरू होती हैं, पर नतीजा क्या निकला है वही कटान-बाढ़ का कहर और प्रशासनिक अधिकारी की प्रभावित गांवों व्यक्तियों तक दौड़-धूप? कुल मिलाकर नतीजा तो सिफर ही रहता है?”
खुद के आशियाने को उजाड़ने की विवशता
बलिया जिले के बैरिया तहसील अंतर्गत गोपालनगर टाड़ी गांव के पास सरयू नदी ने ऐसा कहर बरपाना शुरू कर दिया है कि वर्षों से बने बनाए आशियाने को लोग खुद अपने ही हाथों से उजाड़ने में जुटे हुए हैं। भीषण गर्मी लू की ताप लहरी के बाद मानसून आया है। कहीं रिमझिम तो कहीं झमाझम बारिश देखने को मिल रही है। नदियां अपने उफान पर हैं। बलिया के बैरिया तहसील के गोपालनगर टाड़ी गांव में आशियाना उजाड़ते नजर आए ग्रामीण खौफ में हैं। तिनका-तिनका जुटा कर आशियाना को बनाया गया होगा। जिसे खुद अपने उन्हीं हाथों से तोड़ने को लोग विवश हुए हैं जिन हाथों से उसे सजाया था। अब तक छः मकान नदी की धारा में विलीन हो चुके हैं और अभी 23 मकानों पर खतरा मंडरा रहा है। कटान काफी तेजी से हो रहा है। प्रशासन के द्वारा कोई व्यवस्था बाढ़ पीड़ितों को नहीं दी जा रही है। प्रशासन यह कह रहा है कि आप लोग पंचायत भवन और विद्यालयों में जाकर रहिए। ग्रामीणों का दर्द यह है कि “सरयू नदी ने अपना विकराल रूप धारण कर लिया है, अबतक कई मकान नदी की तेज धाराओं में विलीन हो चुके हैं। कटान तेजी पर चल रहा है। शासन और प्रशासन के द्वारा कोई मुकम्मल व्यवस्था नहीं की गई है। प्रशासन के लोग आते तो है, लेकिन यही बोल कर चले जाते है की आप लोग पंचायत भवन और विद्यालय में जाकर रहिए,

ऐसी स्थिति में हमलोग अपने व्यवस्था से दूसरी जगह जा रहे है। अबतक छः मकान पानी में विलीन हो चुका है यहां 12 से 13 मकान है जो आजकल में में वह भी विलीन हो जायेंगे।
बैरिया से समाजवादी पार्टी के विधायक जय प्रकाश अंचल ने कहते हैं “बाढ़ की स्थिति भयावह हो गई है। दो दिनों से कटान जारी है। लोग अपना आशियाना उजाड़ रहे है, हमलोग बार बार पत्र व्यवहार किये हैं कि इन गांवों को बचाया जाय, लेकिन गांवों को बचाने के लिए एक भी परियोजना नहीं लाई गई। सरकारी लापरवाही के कारण ये घर गिराए जा रहे हैं। अगर एक भी परियोजना आई होती तो एक भी घर नहीं गिराया जाता, सरकार कह रही है कि यह पूरा इलाका सुरक्षित है।” वह बताते हैं कि उन्होंने शासन को पत्र लिखा था तो पत्र के जवाब में जलशक्ति मंत्री का कहना है कि “यह इलाका सुरक्षित है कोई इस तरह की बात नहीं है। बाढ़ को एक तरफ प्राकृतिक आपदा बताया तो वहीं अफसोस भी जताया।”
बैरिया विधायक जलशक्ति मंत्री के जवाब पर हैरानी जताते हुए जलशक्ति मंत्री को बलिया के बाढ़ प्रभावित इलाकों का स्थलीय निरीक्षण करने की नसीहत देते हुए कहते हैं कि, “काश मंत्री जी बाढ़ पीड़ितों की समस्याओं को गंभीरता से लेते और करीब से देख लेते तो शायद उन्हें बताने की आवश्यकता ही नहीं होती।”

बैरिया तहसील के आंकड़ों के मुताबिक सरयू नदी की वजह से कटान जारी है। 23 घर सरयू नदी की जद में हैं जिसमें 6 घर तोड़े जा चुके हैं। एहतियात के तौर पर लोगों को हटाने के साथ पंचायत भवन में रहने की व्यवस्था दी जा रही है।
बाढ़ से प्रभावित होती हैं कई व्यवस्थाएं
भारत देश का बिहार राज्य सर्वाधिक बाढ़ ग्रस्त राज्यों में आता है, जहां बिहार राज्य के कुल आबादी के 76 प्रतिशत लोग बाढ़-प्रभावित क्षेत्र में रहते है। तो वहीं कुल भौगोलिक क्षेत्र का 73% यानी लगभग 68800 वर्ग किमी बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में आता है। बिहार राज्य उत्तर प्रदेश और झारखंड राज्य से लगा होने के साथ-साथ पड़ोसी देश नेपाल से भी लगा हुआ है। एक रिपोर्ट के अनुसार बाढ़ से प्रति वर्ष औसतन 75 लाख हेक्टेयर भूमि प्रभावित होती है, 1600 लोगों की जाने जाती हैं तथा बाढ़ के कारण फसलों व मकानों तथा जन-सुविधाओं को होने वाली क्षति 1805 करोड़ रुपए है। वर्ष 1977 में बाढ़ में जाने वाली जानों की संख्या (11,316) अधिकतम थी। जबकि भयंकर बाढ़ों की आवृति 5 वर्षों में एक बार से अधिक है। बाढ़ के कारण लोगों के आलावा संसाधनों पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है मसलन, बिजली-पानी और गैस की आपूर्ति बाधित हो सकती है। रेल-सड़क परिवहन मार्ग और वाणिज्यिक आपूर्ति बाधित हो सकती है। पेयजल प्रणाली प्रदूषित हो सकती है। घरों, इमारतों और सड़कों को नुकसान पहुंच सकता है। भूस्खलन और मिट्टी के धंसने सहित कई गंभीर पर्यावरणीय समस्याएं भी पैदा हो सकती हैं।

यूपी के 12 जिलों में बाढ़ का कहर
उत्तर प्रदेश के कुल 12 ज़िले पीलीभीत, लखीमपुर खीरी, श्रावस्ती, बलरामपुर, कुशीनगर, बस्ती, शाहजहांपुर, बाराबंकी, सीतापुर, गोंडा, सिद्धार्थनगर और बलिया में हालात बेहद गंभीर रूप धारण कर लिए हैं। आंकड़ों के मुताबिक यूपी के 12 जिलों के 633 गांव बाढ़ से प्रभावित होने बताए जा रहे हैं। यही नहीं पिछले 24 घंटों में वज्रपात और बारिश की वजह से हुए हादसों में अब तक 19 लोगों की जानें जा चुकी हैं। उत्तर प्रदेश के राहत आयुक्त जीएस नवीन कुमार ने बताया कि “प्रदेश के 12 ज़िले पीलीभीत, लखीमपुर खीरी, श्रावस्ती, बलरामपुर, कुशीनगर, बस्ती, शाहजहांपुर, बाराबंकी, सीतापुर, गोंडा, सिद्धार्थनगर और बलिया के 633 गांव बाढ़ से प्रभावित हैं। बारिश की वजह से 19 की मौतें हो चुकी हैं।”

राहत आयुक्त के मुताबिक”पिछले 24 घंटे के दौरान प्रदेश में आकाशीय बिजली की चपेट में आने से 16 लोगों की मौत हो गई। इसके अलावा बाढ़ के पानी में डूबने से दो तथा सर्पदंश से एक व्यक्ति की मौत की सूचना मिली है। प्रदेश की कई नदियों का जलस्तर बढ़ गया है। शारदा, राप्ती, घाघरा, बूढ़ी राप्ती एवं क्वानो नदियां खतरे के निशान से ऊपर बह रही हैं। राज्य में अब तक 718 बाढ़ शरणालय, 923-बाढ़ चौकियां और 501 मेडिकल टीम गठित और स्थापित की गई हैं। बाढ़ प्रभावित जनपदों में राहत एवं बचाव के लिए एसडीआरएफ (राज्य आपदा मोचन बल) और पीएसी (प्रादेशिक आर्म्ड कांस्टेबुलरी) की तीन-तीन और एनडीआरएफ (राष्ट्रीय आपदा मोचन बल) की एक-एक टीम को भी तैनात किया गया है, ताकि किसी भी स्थिति से निपटने के लिए वह तैयार रहें।

दूसरी ओर विभिन्न नदियों के बढ़ते जलस्तर को देखते हुए प्रशासन भी पूरी तरह से अलर्ट हो गया हैं। बाढ़ प्रभावित इलाकों में बाढ़ चौकियां बनाई गई हैं। इसके साथ ही जिन इलाकों में पानी भर गया है वहां नावों का इंतज़ाम किया गया है और गोताखोर तैनात किए गए हैं। बाढ़ पीड़ितों को राशन और दवाइयां बांटी जा रही हैं। प्रशासन का कहना है कि हालात पर नजर रखी जा रही है। प्रशासन की टीम पूरी तरह से तैयार है।
भारतीय सेना की मांगी गई मदद
बाढ़ की विभीषिका विकराल होती जा रही है। उत्तर प्रदेश के कई जिलों में बाढ़ का कहर जारी है। बाढ़ से प्रभावित लोगों को बचाने के लिए भारतीय सेना से मदद मांगी गई है। सेना की सूर्या कमान ने तत्काल शाहजहांपुर जिले में दो कॉलम आर्मी भेजी है। गर्रा-खन्नौत नदियों में बढ़े जलस्तर के बाद शाहजहांपुर पहुंची 2 कॉलम आर्मी ने कमान संभाल लिया है। सेना के जवानों ने अब तक बाढ़ से 264 लोगों को बचाया है। इनमें सेना ने 112 महिलाओं और 73 बच्चों समेत 264 को बचाया।

नागरिक प्रशासन द्वारा मांगी गई सहायता के अंतर्गत तत्काल सेना की सूर्या कमान ने गर्रा और खन्नौत नदियों में बढ़ते जल स्तर के बाद बाढ़ राहत कार्यों में सहायता के लिए शाहजहांपुर में दो बाढ़ राहत कॉलम भेजा है।
यह तैयारी कार्रवाई पहले क्यूं नहीं
“सांप जाने के बाद लकीर पीटने” वाली कहावत तो आपने सुनी ही होगी? यह कहावत वर्तमान में यूपी के बाढ़ विभीषिका को लेकर चल रही तैयारियों और सरकार की कार्रवाई भी सटीक बैठती हैं। वह इस लिए कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बाढ़ कार्यों में लापरवाही पर 5 एडीएम एफआर और 5 आपदा विशेषज्ञ से जवाब-तलब किया है। उन्होंने लापरवाह अधिकारियों को दो दिन में स्पष्टीकरण देने के निर्देश भी दिए।

संतोषजनक जवाब न मिलने पर लापरवाह अधिकारियों के खिलाफ हो सकती है बड़ी कार्रवाई ऐसा माना जा रहा है। साथ ही साथ लखनऊ, प्रतापगढ़, सीतापुर, अंबेडकनगर और बलिया के अधिकारियों से स्पष्टीकरण भी मांगा गया है। बताने की आवश्यकता नहीं है कि मुख्यमंत्री द्वारा मांगे गए स्पष्टीकरण के रूप में क्या जवाब मिलता है और कितनी कार्रवाई होगी।
समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता गिरीश चंद्र पांडेय “जनचौक” को बताते हैं कि “ऐसा नहीं है कि बाढ़ कोई नई बात हो बरसात शुरू होते ही बाढ़ की स्थिति का अंदाजा होने लगता है, बावजूद इसके अधिकारी गंभीर नहीं होते हैं जिसका खामियाजा लोगों को उठाना पड़ता है। वह तंज कसते हुए कहते हैं कि “बीजेपी सरकार के ‘खाने और दिखाने के दांत’ अलग-अलग हैं, यानि यह सरकार कहती कुछ और करती कुछ और है। यही इस सरकार के नौकरशाह भी करते आए हैं।”
बाढ़ बना रोड़ा, उपचार के अभाव में बुखार पीड़ित मासूम ने तोड़ा दम
बाढ़ की विभीषिका का असर मानव जीवन से लेकर सम्पूर्ण जन जीवन और आवश्यक सेवाओं पर किस कदर अपना बुरा असर छोड़ता है राकेश से बेहतर भला कौन जान और समझ सकता है। जिनकी दो वर्ष की मासूम बच्ची को बाढ़ के कहर ने पलभर में छिन लिया जिसे उपचार भी नसीब नहीं हो पाया। पीड़ित पिता बेटी को एक टक देखें जा रहा है तो मां बेटी को सीने से चिपकाए तो कभी गोंद में लेकर बुत बने हुए आंसू बहाए जा रही होती है। दरअसल, लखीमपुर खीरी जिले के तहसील निघासन अंतर्गत मझगई थाना क्षेत्र के सेमरहिया गांव निवासी राकेश की दो वर्षीय बच्ची को पिछले दिनों बुखार से पीड़ित हो गई थी। बाढ़ की वजह से नदी नालों का पानी गांव के करीब पहुंच जाने से गांव में एम्बुलेंस आ पाना मुश्किल हो गया था। परिजन बच्ची को इलाज के लिए कहीं पर ले जा नहीं पा रहे थे। कुछ सूझ नहीं रहा था कि आखिरकार बच्ची को उपचार के लिए कहां और कैसे लें जाएं? कि इसी बीच कुछ लोगों के बताएं जाने पर परिजनों ने इलाके के स्थानीय लेखपाल श्याम किशोर को सूचना देकर उनसे मदद की गुहार लगाई।
आरोप है कि लेखपाल ने परिजनों से कहा कि अपनी बीमार बच्ची को लेकर सलीमाबाद चौराहे पर पहुंच जाओ वहीं पर एंबुलेंस खड़ी है। परिजन बीमार बच्ची को गोंद में लेकर जैसे-तैसे बाढ़ के पानी को पार करते हुऐ सलीमाबाद चौराहे पर गुरूवार को सुबह 8 बजे ही पहुंच गये थे, लेकिन एंबुलेंस दिन के तकरीबन 11 बजे तक नहीं पहुंची। तब तक बुखार से पीड़ित बच्ची ने भी बुखार की असहनीय तपीस में तपते हुए दम तोड़ दिए थे। मासूम बच्ची की मौत के बाद परिवार में कोहराम मचा हुआ है। बच्ची की मां का रो-रोकर बुरा हाल है।

बच्ची को गोद में लेकर मां का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है। वीडियो वायरल होने के बाद प्रशासन हरकत में आया तो नाक और साख बचाने के लिए आनन-फानन में उप जिलाधिकारी निघासन ने तत्काल प्रभाव से लेखपाल श्याम किशोर तिवारी को लापरवाही बरतने के आरोप में निलंबित कर दिया है। बड़ा सवाल यह है कि इस कार्रवाई से भला लेखपाल का क्या बिगड़ने वाला? क्या वह मासूम बालिका फिर से लौट सकती है, उस मां की ममता का मोल मिल सकता है?, नहीं कदापि नहीं…..!
ग्रामीण कहते हैं कि “लेखपाल के निलंबन से उन्हें क्या?”
जबकि पूर्व विधायक परमेश्वर दयाल सरकार की मंशा पर ही सवाल खड़े करते हुए कहते हैं कि “इस (बीजेपी) सरकार में जनप्रतिनिधियों की सुनी नहीं जा रही है तो भला आम जनता की कहा से कौन सुनने वाला है?
वह कहते हैं “बीजेपी सरकार में नौकरशाही हाबी हो गई है, जनता लाचार बेबस दिखाई दे रही है। मूलभूत सुविधाओं के लिए जनता को दौड़ा-दौड़ा कर पस्त कर दिया जा रहा है।” आरोप लगाते हैं कि “पूर्व की सपा सरकार में चलाई गई योजनाओं को भी यह सरकार सही ढ़ंग से क्रियान्वित नहीं कर पा रही है।” जनता को सुलभ आपातकालीन स्थिति में चिकित्सा सुविधा प्रदान करने के लिए जिस एम्बुलेंस सेवा का शुभारंभ सपा सरकार ने किया था, बीजेपी सरकार में उसका बेड़ा ग़र्क हो गया है।”
नहीं मिली सरकारी सहायता तो मृत बहन को भाई के कंधे का मिला सहारा
लखीमपुर खीरी जिले के तहसील के मझगई थाना क्षेत्र के सेमरहिया गांव निवासी राकेश की दो वर्षीय बच्ची की मौत का मामला ठंडा भी नहीं हुआ था कि एक और बालिका की मौत संसाधनों के अभाव में हो जाती है। बाढ़ की विभीषिका के चलते आवश्यक सेवाओं के बाधित होने के अभाव में साधन न मिलने के मैलानी थाना के गांव एलनगंज महाराज नगर से इलाज के लिये भाई अपनी बहन को अपने कंधे पर लादकर पांच किलो मीटर तक का सफर रेलवे पटरी के किनारे से होते हुए तय करता है, बावजूद इसके बहन की जान बचाई नहीं जा सकती है। बेटी की मौत से परिजनों में कोहराम मचा हुआ है। सरकार के लाख कोशिशों के बावजूद भी आवश्यक सेवायें बद से बदतर हालत में है।
बीमार लड़की के भाई ने बताया कि “बाढ़ के चलते आवागमन पूर्ण रूप से बाधित हो गया था। बीमार बहन को बेहतर उपचार की जरूरत थी, लेकिन कोई साधन नहीं था कि उसे जल्द से जल्द अस्पताल लेकर भागा जाता। जैसे तैसे बीमार बहन को इलाज के लिए अपने गांव से कंधे पर भी लादकर दोनों भाई बढ़ चलते हैं। तकरीबन पांच किलोमीटर तक रेलवे पटरी के सहारे दोनों भाई बारी बारी से बहन को कंधे का सहारा देते हुए आगे बढ़ते हुए जाते हैं इस उम्मीद के साथ की शाय़द थोड़ा आगे जाने पर कोई साधन मिल जाए, तब तक काफी देर हो चुकी थी और बहन की मौत हो चुकी होती है।

बताते हैं कि गांव की 15 वर्षीय शिवानी की तबीयत खराब होने पर परिजनों ने उसे पलिया के अस्पताल में भर्ती कराया था। शिवानी को तेज बुखार था। परिजनों ने बताया कि बरसात के चलते पलिया शहर टापू में तब्दील हो गया। आवागमन भी बंद होने के कारण वे बेहतर इलाज के लिए बहन को बाहर नहीं ले जा सके, जिससे मौत हो गई। बताया कि मौत के बाद शव गांव ले जाने की कोई व्यवस्था न होने पर उन्होंने नाव से नदी पार की और फिर पांच किलोमीटर शव कंधे पर लादकर गांव आए। बहन का शव कंधे पर लादकर ले जाने का वीडियो वायरल होते ही सरकार और सरकारी सेवाओं की किरकिरी होने लगी है। जिस पर सरकारी मुलाजिम कुछ भी बोलने कहने से साफ़-साफ़ कतराते हैं। मानवता को शर्मशार कर झकझोर देने वाली यह घटना महज संयोग नहीं कही जा सकती हैं बल्कि आज के आधुनिक युग और उसकी आधुनिक व्यवस्थाओं के मुख पर तमाचा भी है।

राजधानी से सटे जिलों में भी बिगड़े हालात
उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल से लेकर उत्तरांचल के जनपदों में बाढ़ का कहर जारी है। कहीं गांवों में तो कहीं सड़कों पर बाढ़ का पानी पहुंचकर लोगों के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है। राजधानी लखनऊ से लगें हुए जिले हरदोई के कहारकोला गांव के लोग बाढ़ से परेशान होकर शुक्रवार को आक्रोशित हो हरदोई जनपद के पाली शाहाबाद मार्ग पर कहारकोला मोड़ के पास हाइवे जाम कर दिए। हाइवे जाम होते ही जिले से लेकर राजधानी तक हड़कंप मच गया। दरअसल यहां के ग्रामीण पिछले कई बाढ़ झेल हुए आ रहे हैं। समाधान के नाम पर वही पुराना जुमला उछलता हुआ आया है सो इस बार ग्रामीणों क सब्र का पैमाना फूट पड़ा था और वह सड़क पर उतर आए। सड़क जाम होते ही लंबा भीषण जाम, राहगीर परेशान होने लगे तो ग्रामीणों के मान मनौव्वल का खेल होने लगा।
उधर शाहजहांपुर जिले में बाढ़ के चलते हालात बद से बदतर हो उठे हैं। जिले के बरेली मोड़ पर बढ़ते जल स्तर और तेज बहाव में फंसे लोग, लम्बे-लम्बे वाहनों की कतारें, पानी के बीच स्ट्रेचर पर लादकर जिला अस्पताल ले जाते मरीज को देख व्यवस्था की हकीकत का आंकलन किया जा सकता है कि बाढ़ से निपटने की तैयारियां क्या है, कैसी हैं?

बाढ़ पीड़ित महिलाओं ने बीजेपी विधायिका को घेर किया विरोध
हर वर्ष बाढ़ की विभीषिका झेलने वाले तटवर्ती इलाकों के ग्रामीण आक्रोश में हैं। हर वर्ष उन्हें भारी क्षति का सामना करना पड़ जाता है, लेकिन कोई ऐसी ठोस व्यवस्था आज़ तक नहीं बनी जिससे लोगों को बचाया जा सके ऐसी सूरत में इलाके के जनप्रतिनिधियों को लेकर भी लोगों में गहरा आक्रोश देखा जा रहा है।
बलिया के बांसडीह तहसील क्षेत्र के टिकुलिया के भोजपुरवा पहुंची बीजेपी विधायक केतकी सिंह को इसी विरोध का न केवल सामना करना पड़ा है बल्कि विधायक वापस जाओं की ग्रामीण हट पर अडिग हो गए। भोजपुरवा की जनता ने बांसडीह विधान सभा से बीजेपी विधायक केतकी सिंह के साथ एडीएम बलिया और बांसडीह एसडीएम का भी गांव में विरोध किया। बीजेपी विधायिका के काफी समझाने के बाद गांव वालों ने विधायिका की बात सुनी।

विधायक केतकी सिंह ने ग्रामीण महिलाओं के बीच बैठकर हाथ जोड़कर भोजपुरा के कटान पीड़ितों को विस्थापित करने के लिए गोसाईपुर गांव में जहां सरकारी जमीन पर गांव के कुछ लोग कब्जा किए हुए है, वहां की जमीन को खाली कराकर कुछ लोगों को वहां पर विस्थापित करने की योजना बनाकर कुछ लोगों को पट्टा दिए जाने की बात कही, हालांकि ग्रामीण इतने पर भी शांत बैठने को राजी नहीं थे। ग्रामीण इस बात को लेकर ख़ासे नाराज थे कि विधायिका जी ‘कटान को नहीं देखी और ना ही उस ओर झांकना भी गंवारा समझा, बस सीधे अपने लाव लश्कर के साथ ग्रामीणों से ही बात करके चलती बनी।
कटान पीड़ितों का कहना है कि “हम लोग काहे ना विरोध करें?, पहले भी कटान के समय विधायिका केतकी सिंह आई थी और उस समय भी कुछ नहीं हुआ और अभी आई है। बाढ़ और कटान का दंश झेलते हुए आए लोगों ने चुनाव के दौरान मतदान का बहिष्कार किया था फिर भी कुछ नहीं हुआ। सिर्फ कोरे सपने दिखाकर उन्हें ठगा गया।”
बाढ़ पीड़ित महिला उषा देवी ने बताया कि “वह लोग इस लिए विरोध कर रही हैं कि नदी खतरे के निशान पर जा रही है कोई सुख सुविधा नहीं मिल रहा है। कहीं जगह नहीं है। विधायिका आई थी कह कर चली गई हैं। करेंगी की नही करेंगी कौन जानता है? कह कर गई है हम (ग्रामीणों) लोगों को कही सामान रखने की जगह नहीं है, पट्टा मिलेगा, जगह मिलेगा अब तो विधायिका जी जानती है।”

बाढ़ पीड़ित महिलाएं लगनी देवी, कमलावती देवी कहती हैं “विधायिका जी किसी का घर नहीं देखी और ना ही नदी का कटान देखने गई। कोई काम नहीं हुआ अब तो घर और जमीन दोनों जा रहा है। हम लोगों का सब कुछ चला गया अब हम लोग कहां रहें?”
बलिया के बांसडीह तहसील क्षेत्र के भोजपुरवा गांव में घाघरा नदी अपने रौद्र रूप में आ गई हैं। घाघरा नदी का बहाव काफी तेज हो गया है। घाघरा नदी का जल स्तर बढ़ने के बाद कटान पीड़ितों ने अपना आशियाना उजाड़ना शुरू कर दिया है। आशियाना उजाड़ने के लिए अपने नात रिश्तेदारों का भी सहारा लेना पड़ रहा है।
आशियाना उजाड़ने की जल्दी ऐसी की लोग जेसीबी मशीन से अपने आशियाने को ढहाने में जुटे हैं, ताकि बाढ़ के पानी में उनका आशियां समां न जाए।
खुद छोटे-छोटे बच्चें भी अपना आशियाना उजाड़ने में लगे हुए है। “अपनी मेहनत के दम पर पसीना बहा कर मकान को लोगों ने खड़ा किया था कि अपना घर रहेगा तो सकून की जिंदगी जिया जा सकें, लेकिन क्या पता था कि ऐसी आपदा आएगी की खुद का ही आशियाना उजाड़ना पड़ जायेगा।” यह बताते हुए देवनाथ यादव बिलख पड़ते हैं।
कुछ ऐसा ही दर्द साझा करते हुए सुनीता देवी कहती हैं कि “अब तो लगता है”कहीं दूर जाकर ही जीवन बसर करना पड़ेगा।” एक लंबी सांस लेते हुए वह नदी की और उंगली से इशारा करते हुए कहती हैं “आप जरा गौर से देखिए आशियाना उजाड़कर गाड़ियों पर अपना-अपना सामान रखकर दूसरे गांव के लिए लोग पलायन करते दिखाई दे रहे है।”

बाढ़ पीड़िता सुनीता ने बताया कि “यहां (जहां वह रहती हैं) पानी आ गया है। हम लोग यहां से अब दूसरे जगह जा रहे हैं। पानी आने से कहां सामान रखा जाएगा, खाना बनाने का टेंशन है, रहने के लिए टेंशन है, बच्चों के लिए टेंशन है बहुत दिक्कत हो रही है। ना हम लोगों को खाने के लिए कोई व्यवस्था है और ना ही पीने के लिए , कहां रहेंगे? रात दिन ढाही हो रही है। चट्टी पर तिरपाल तान कर रहेंगे।” बाढ़ पीड़ितों ने बताया की नदी का कटान जोरों पर है पूरे परिवार के साथ वह लोग यहां से भाग रहे हैं, पलायन कर रहे हैं। जिला प्रशासन से कोई व्यवस्था नहीं मिल रही है। यहां से जा रहे है और बंधे पर पलानी लगाकर रहेंगे। तिरपाल डालकर रहेंगे, यहां पर कोई अधिकारी और विधायक तक नहीं आई है।”
घाघरा नदी के कटान से अपना आशियाना उजाड़ने को मजबूर हुए ग्रामीणों का दर्द सुनकर आंखों से आंसू छलक पड़ते हैं। घाघरा नदी के कटान के कारण अपने ही आशियाने पर खुद लोग बुल्डोजर चलवा रहे हैं। कटान से गांवों को बचाने में बाढ़ विभाग नाकाम रहा है। इनकी नाकामी पर ग्रामीण ख़ासे नाराज हैं। मजे की बात तो यह है कि बाढ़ विभाग द्वारा कटान को रोकने के लिए नदी में झाड़-झंखाड़ और झाड़ियों को डालने के लिए ले जा रहे हैं। इसके लिए मजदूरों को लगाया गया है जिन्हें देखते ही ग्रामीणों का आक्रोश बढ़ गया।

ग्रामीण कहते हैं “सिर पर चढ़कर जब बाढ़ ने कहर ढ़ाना शुरू किया है तों झाड़ झंखाड़ और झाड़ियों से कटान को रोकने का जतन किया जा रहा है, यह कवायद पहले ही क्यों नहीं शुरू किया गया। अब इसके क्या मायने होंगे, क्या यह तेज बहाव और कटान को रोक पाने में कामयाब हो सकता है?”
ऐसे तमाम सवालों की छड़ी लगाते हुए ग्रामीण भविष्य की चिंताओं में डूब जाते हैं। बांसडीह तहसील क्षेत्र के टिकुलिया गांव के ग्रामीण आरोप लगाते हैं कि “गांवों को बचाने के लिए बाढ़ विभाग ने नहीं किया है कोई उपाय सिर्फ खानापूर्ति करते हुए कागजी घोड़े दौड़ाए गए हैं।”
(उत्तर प्रदेश से संतोष देव गिरी की ग्राउंड रिपोर्ट)
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