ग्राउंड रिपोर्टः कई महीनों से क्यों सहमा है बहराइच, पहले भेड़ियों का था खौफ तो अब खाकी वर्दी का डर

बहराइच। उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले के महसी और महाराजगंज जैसे इलाकों में पिछले कुछ महीनों से डर और दहशत ने घर कर लिया है। यहां के लोग कभी जंगल से आने वाले भेड़ियों के खौफ में जी रहे हैं, तो अब सांप्रदायिक हिंसा के बाद उपजे हालात से।

खाकी वर्दी वाले जब-तब लोगों के घरों पर धमक रहे हैं। आरोप है कि पुलिस लोगों जुल्म-ज्यादती कर रही है। कुछ लोगों को बुल्डोजर का भय सता रहा है। भेड़ियों के हमले, जिनमें कई मासूमों की जान जा चुकी है और ग्रामीण इलाकों में लोगों की रातों की नींद उड़ा दी है।

भेड़ियों का दहशत बड़े-बूढ़ों, बच्चों और महिलाओं के मन से खत्म नहीं हुआ है। महराजगंज में हाल ही में हुई सांप्रदायिक हिंसा ने इस डर को और गहरा बना दिया है।

भेड़ियों के आतंक और सांप्रदायिक हिंसा की दोहरी मार ने लोगों की जिंदगी को बुरी तरह प्रभावित कर दिया है। जिन इलाकों में लोग पहले भेड़ियों के आतंक से परेशान थे, जो बच्चों और कमजोर लोगों को शिकार बना रहे थे, वहां सांप्रदायिक हिंसा ने अब एक नई चुनौती को जन्म दिया है।

महराजगंज और आसपास के करीब दर्जन भर गांवों में सांप्रदायिक हिंसा ने एक नई चुनौती को जन्म दिया है, जिससे इलाके का माहौल तनावपूर्ण और असुरक्षित हो गया है।

यूपी सरकार और प्रशासन की सक्रियता के चलते बहराइच के महसी तहसील क्षेत्र में कुछ दिनों से भेड़ियों का आतंक थमा है, लेकिन इस इलाके में नए तरह का खौफ पैदा हो गया है। पुलिस का कहना है कि वे इलाके में शांति बनाए रखने के लिए कदम उठा रहे हैं, लेकिन स्थानीय लोग मानते हैं कि पुलिस की मौजूदगी ने डर को कम करने के बजाय बढ़ा दिया है।

महराजगंज के व्यापारी नेता दीनानाथ गुप्त बेबाकी से स्वीकार करते हैं कि पुलिस की लापरवाही से हिंसा हुई। दोनों समुदायों के बीच अविश्वास की जो खाईं पैदा हुई है, उसे पाटने की जरूरत थी, लेकिन दहशत और खौफ बना हुआ है। इलाके को लोगों के मन में एक तरफ खाकी वर्दी का खौफ है तो दूसरी ओर, भेड़ियों का।

दीनानाथ गुप्त व्यापारी नेता

महसी तहसील में रेहुआ मंसूर के अलावा महराजगंज, तजवापुर, सिपहिया प्यूली, रायपुर थैलिया, मकरंदपुर, बेहड़ा नौतला, रामगाँव, परसोहना, सिकन्दरपुर, नथुवापुर, हरदी-गौरा, गदामार , वैकुण्ठा, बम्भौरी, भगवानपुर, मुरौवा-मुन्सारी, बभनौटी, कायमपुर,गोलागंज, गोपचंदपुर, नौशहरा, लाखा,कलां, मथौरा, रमपुरवा, ऐरियाबौण्डी, सधुवापुर, चांदपारा, मासाडीह, बहोरिकपुर, बकैना, गरेठी, बनगांव, कपूरपुर, खम्हरिया शुकुल, बालासराय, खर्चहा, खसहाकुट्टी, सुरजना, खैरा बाज़ार, चक, रामगढ़ आदि बड़ी आबादी वाले गांव हैं। ये गांव इस साल नरभक्षी भेड़ियों के खौफ से थर्रा गए थे। कई गांवों में आजकल भी ग्रामीण रतजगा करते हैं और पहरेदारी करते हैं।

भेड़िया

महसी के दक्षिण-पश्चिम में घाघरा नदी बहती है, जिसके ऊपर बांध है जो जरवल कस्बे से शुरू होकर नानपारा के पास तक जाता है। इस नदी से नहरें व रजवाहे निकाले गए हैं। कृषि भूमि बहुत उपजाऊ है, जिससे अन्न, फल, साग, सब्जी, के अलावा गन्ने की अच्छी पैदावार होती है। आबादी की दृष्टि से यहां हिन्दू और मुसलमानों की संख्या में थोड़ा ही आनुपातिक अंतर है। जंगल, नदी, बांध और नहरें ही भेड़ियों के छिपने के स्थान हैं। पिछले कुछ महीनों में भेड़ियों ने कई बच्चों और बड़ों पर हमला किया, जिससे अब तक कई जानें जा चुकी हैं। नतीजा, कई गांव इन दिनों भेड़ियों के हमले से सहमे हुए हैं।

भड़िया

महसी इलाके के जिन गांवों में बच्चों की खिलखिलाहट गूंजती थी, वहां अब मातम पसरा है। भेड़ियों के हमले से बिछड़े मासूमों की यादें हर परिवार के लिए गहरे जख्म छोड़ गई हैं। इन हमलों में मासूम बच्चों की मौत ने गांववालों के दिलों को झकझोर कर रख दिया है। सरकार ने इन परिवारों को पांच लाख रुपये की आर्थिक सहायता दी है, लेकिन इस राशि से उनकी खोई हुई दुनिया वापस नहीं आ सकती।

सबसे पहले, 17 जुलाई 2024 की उस शाम का जिक्र करना जरूरी है जब सिकंदरपुर के मक्कापुरवा गांव में एक साल का मासूम अख्तर रजा भेड़िए का शिकार बन गया। पिता अली अहमद के आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे। अख्तर उस दिन अपनी छोटी-सी मुस्कान के साथ घर के बाहर खेल रहा था, और पिता ने कभी सोचा भी नहीं था कि उनकी दुनिया इस तरह से उजड़ जाएगी।

इसके कुछ ही दिनों बाद, 27 जुलाई 2024 को नकवा गांव की तीन साल की बच्ची प्रतिभा, पुत्री राकेश कुमार, भी भेड़िए का शिकार बन गई। प्रतिभा की मां हर सुबह उस घर को देखकर रो पड़ती है जहां उसकी बेटी खेलती थी। मासूम प्रतिभा की हंसी अब उनकी यादों में ही बसकर रह गई है।

2 अगस्त को सिसैयाचूडामणि के कोलेला गांव में दो वर्षीय किशन, पुत्र सिद्दू, भी इसी हमले में दुनिया से विदा हो गया। अपने नन्हें कदमों से चलने वाले किशन का प्यारा चेहरा अब केवल मां-बाप की यादों में रह गया है। फिर 17 अगस्त 2024 को सिहियानसीरपुर गांव में प्रमोद कुमार की तीन साल की बेटी संध्या, भेड़िए का शिकार बन गई। पिता का कहना है कि हर बार जब भी उन्हें संध्या की छोटी-छोटी चीजें नजर आती हैं, दिल दर्द से भर जाता है।

21 अगस्त की उस सुबह को कौन भूल सकता है जब पूरे बस्तीगडरिया के भटोली गांव में राजेश कुमार की बेटी खुशबू (पांच साल), पर भेड़िए ने हमला कर दिया। खुशबू का हंसता हुआ चेहरा गांववालों के लिए भी एक तकलीफ भरी याद बन गया है।

फिर 25 अगस्त को महसी के कुम्हारनपुरवा गांव में 45 वर्षीय रीता देवी, पत्नी रामनरेश, भेड़िए के हमले में जान गंवा बैठीं। एक मां, एक पत्नी, और परिवार का सहारा खत्म हो गया। रीता देवी के बिना उनका घर बिखर-सा गया है।

26 अगस्त को रायपुर के नव्वनगरेठी गांव में पांच साल के मासूम आयाश की मौत से परिवार टूट गया। उसकी छोटी बहन अभी भी अपने भाई का नाम लेकर उसे पुकारती है।

फिर 2 सितंबर की सुबह दीवानपुरवा गांव में 2 साल की अंजलि, पुत्री कमल, की भी दर्दनाक मौत हो गई। मां का दिल अब भी इस विश्वास से थर्रा जाता है कि उसके बेटे को वो हंसी कभी नहीं सुनाई देगी जो उसे सबसे प्यारी थी।

ग्रामीणों की रातों की नींद उड़ी

इन बच्चों की मासूमियत, उनकी खिलखिलाहटें, उनकी तोतली बातें – सब कुछ भेड़ियों की दरिंदगी ने छीन लिया। सरकार ने हर मृतक के परिवार को पांच-पांच लाख रुपये की सहायता दी है, लेकिन कोई मदद इन परिवारों का खोया हुआ प्यार, उनकी खोई हुई जिंदगी और उनके बिखरे हुए सपने वापस नहीं ला सकती।

भेड़ियों के खौफ से माथे पर चिंता की लकीरें

जुलाई और अगस्त महीने में बहराइच जिले के अलग-अलग गांवों में भेड़ियों के हमलों में मासूम बच्चों सहित कई लोगों की जान चली गई। इन हमलों ने ग्रामीणों के बीच भय और असुरक्षा का माहौल पैदा कर दिया है। गांव के लोग अब अपने बच्चों को बाहर खेलने नहीं भेजते, और अधिकांश लोग रात के समय घर के अंदर ही रहना पसंद करते हैं।

50 वर्षीय रामस्वरूप, जो हरदी गांव के रहने वाले हैं, कहते हैं, “हमने कभी नहीं सोचा था कि हमें भेड़ियों से अपने बच्चों को बचाने के लिए दिन-रात पहरा देना पड़ेगा। हम रात-रात जागकर अपने बच्चों की सुरक्षा में लगे रहते हैं। कई परिवारों ने तो अपने बच्चों को रिश्तेदारों के घर भेज दिया है ताकि उनकी जान बच सके।”

बारी-बारी से पहरेदारी करते हैं ग्रामीण

रेहुवा मंसूर गांव के प्रगतिशील किसान तीरथ राम शुक्ल चाहते हैं कि भेड़ियों के इस कहर को रोका जाए, ताकि किसी और मां की गोद सूनी न हो, किसी और घर का चिराग न बुझे। वह कहते हैं, “हरदी थाना क्षेत्र की ग्राम पंचायत औराही में जब पहला हमला हुआ, तो लोगों ने इसे एक हादसा समझा।

लेकिन यह सिलसिला थमा नहीं, बल्कि दिनों-दिन बढ़ता गया। इन खूंखार भेड़ियों ने अब तक लगभग दस लोगों को मार डाला है और कई बच्चों को गंभीर रूप से घायल कर दिया है। जिले के 50 से ज्यादा गांवों में भेड़ियों के इस आतंक ने लोगों को दिन-रात बेचैन कर दिया है।”

किसान तीरथ राम कहते हैं, “भेड़ियों के आतंक से निपटने के लिए वन विभाग ने विशेष टीमें लगाई, जिनमें ड्रोन और सीसीटीवी फुटेज का सहारा लिया गया। सीसीटीवी फुटेज में छह भेड़ियों के झुंड को देखा गया, जो एक खास पैटर्न से बच्चों को अपना निशाना बना रहे थे।

मंत्री, नेता और अफसर सब आए। पकड़े गए पांच भेड़ियों को गोरखपुर और लखनऊ के चिड़ियाघर में छोड़ा गया। लेकिन अभी भी एक लंगड़ा भेड़िया पकड़ में नहीं आया है, जो अब भी लोगों में खौफ का कारण बना हुआ है।”

“बहराइच जिले को लोगों ने दशहरे के ठीक बाद एक और बड़े दर्द का सामना किया। मूर्ति विसर्जन के दौरान रामगोपाल मिश्रा नाम के एक युवक की गोली मारकर हत्या कर दी गई। रामगोपाल की हत्या के बाद हालात इतने बेकाबू हो गए कि लोग सड़कों पर उतर आए और हिंसक प्रदर्शन शुरू हो गया। पुलिस प्रशासन की पूरी कोशिशों के बावजूद शहर में आगजनी, तोड़फोड़ और अराजकता का माहौल फैल गया।”

बहराइच में आगजनी तोड़फोड़ और हिंसा की तस्वीर

इनके पास खड़े मृतक रामगोपाल के चाचा मोगरे मिश्र ने आंसुओं के बीच बताया, “हमने अपना बेटा खो दिया। उसकी जिंदगी एक जश्न के बीच खत्म हो गई। मूर्ति विसर्जन के समय ऐसी घटना हो गई, जिसकी हमने कल्पना भी नहीं की थी। अगले दिन हिंसा भड़क गई कि हम सब बिखर गए। हमने अपनी जिंदगी में ऐसा मंजर कभी नहीं देखा था।”

रेहुआ मंसूर गांव के प्रमोद कुमार मिश्र कहते हैं, महराजगंज हिंसा में पुलिस ने अब तक 87 लोगों को गिरफ्तार किया है। इस बीच पुलिस ने कुछ ऐसे युवकों को पकड़कर बुरी तरह पीटा है जिसका दर्द आज भी चैन से सोने नहीं देता है। इसी गांव के ललित, कुलभूषण, भलेंद्र, आनंद आदि को पुलिस ने आधी रात के बाद छापा मारकर पकड़ा।

सड़कों पर अब आमलोगों से ज्यादा पुलिस

इतनी पिटाई की, जिसकी किसी ने कल्पना नहीं की थी। हमें डर है कि कहीं यह हिंसा फिर से न भड़क जाए। हमारे बच्चों ने इस सबको देखा है, उनके मन में डर बैठ गया है। हम शांति चाहते हैं, ताकि हमारे बच्चे सुरक्षित रह सकें।”

बहराइच के लोग आज सिर्फ एक ही चीज़ चाहते हैं-शांति। यहां के लोग अब सिर्फ सुरक्षा और सामान्य जीवन की आस लगाए बैठे हैं। इस बीच प्रभावित लोगों का कहना है कि सरकार और प्रशासन को और तेजी से काम करना चाहिए।

बच्चों के लिए डर के माहौल से निकलना आसान नहीं है। तीन महीने से भेड़ियों का खौफ, सांप्रदायिक हिंसा और उपद्रव के साये में जी रहे लोगों के दिलों में अब एक ही ख्वाहिश है, एक ऐसा बहराइच, जहां वे बिना किसी डर के अपने परिवार के साथ सुकून से रह सकें।

35 से ज्यादा गांवों में दहशत

बहराइच जिले के लगभग 35 गांव इन भेड़ियों के आतंक से परेशान हैं। ग्रामीण अपने बच्चों को शाम ढलते ही घर के अंदर कर देते हैं और खुद पहरा देने लगते हैं। यहां तक कि कई गांवों में लोग अपने दरवाजों पर ताले लगाकर सोते हैं, ताकि आदमखोर भेड़िए उनके घरों में न घुस सकें।

बारी-बारी से पहरेदारी करते हैं ग्रामीण

भय की इस परछाई ने ग्रामीणों का चैन छीन लिया है। हरबक्शपुरवा गांव के बुजुर्ग, रामदीन, कहते हैं, “हमारे लिए रात का मतलब अब डर और पहरेदारी बन गया है। हम अपने बच्चों को बाहर खेलने नहीं देते, और खुद भी रात में एक आंख बंद नहीं कर पाते। यह कैसा जीवन है?”

भेड़ियों के हमलों से बचने के लिए ग्रामीण पहरेदारी कर रहे हैं। हालांकि, यह उनके लिए आसान नहीं है। रात में बिजली नहीं होने और अंधेरा होने की वजह से चुनौती और भी बढ़ जाती है। मैकूपुरवा गांव के रामलाल का कहना है, “बिजली की समस्या की वजह से भेड़िए अंधेरे का फ़ायदा उठाते हैं। हम लोग ज़िलाधिकारी तक बात पहुंचा चुके हैं लेकिन रात में बिजली नहीं आती है। अगर रात में बिजली रहे तो कुछ आसान हो जाए।”

भेड़ियों के हमलों की पिछली घटना का ज़िक्र करते हुए रामलाल कहते हैं, “रात में भी गांव में जानवर आया था। चौकसी के कारण कोई घटना नहीं हो पाई है, लेकिन 17 अगस्त की रात में हिंदूपुरवा गांव से चार साल की संध्या को भेड़िया उठा ले गया।” घटना के बारे में संध्या की मां सुनीता ने बताया, “जैसे ही लाइट गई है, वैसे ही दो मिनट के भीतर भेड़िए ने हमला किया और जब तक हम लोग कुछ समझ पाते, वो उसे लेकर भाग चुका था।”

भेड़ियों के हमलों के आंकड़े

21अगस्त को भटोली गांव के पास भेड़िए ने एक बच्ची का शिकार किया। हिंदूपुरवा गांव के पास नसीरपुर गांव में चार साल की सबा पर भी हमला हुआ था, लेकिन उसके पिता ने बच्ची को पकड़े रखा तो वह बच गई। लेकिन उसके सिर पर काफ़ी चोट आई है और पट्टी बंधी हुई है। सबा के पिता शकील कहते हैं, “मैं जानवर के पीछे दौड़ा, लेकिन सिर्फ़ पीछे से देख पाया। जब घर लौटे तो उनकी बेटी के सिर से बहुत ख़ून बह रहा था क्योंकि जानवर ने सिर की तरफ़ से पकड़ रखा था।”

कमला देवी, जिनका बेटा भेड़ियों के हमले में घायल हो गया था, कहती हैं, “हम अपने बच्चों के साथ सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे हैं। हम चाहते हैं कि प्रशासन इस संकट का पुख्ता हल निकाले। हम अब और डर में नहीं जी सकते।” 13 साल का अरमान अली, जो अपनी ही छत पर सोया था।

आधी रात को, जब पूरा गांव गहरी नींद में था, तभी अचानक एक आदमखोर भेड़िया अरमान के घर की छत पर चढ़ गया और उस पर हमला कर दिया। अरमान के चीखने की आवाज सुनकर उसके माता-पिता की नींद खुली और उन्होंने किसी तरह उसे भेड़िए के चंगुल से छुड़ाया।”

“अरमान की मां, जिसकी आंखों में बेटे की तकलीफ का दर्द साफ झलकता है, कहती हैं, “हर रात हमें डर रहता है कि पता नहीं कब कौन सा भेड़िया हमारे दरवाजे पर दस्तक दे दे। हम अपने बच्चों को अकेला छोड़ने से भी डरते हैं, हर वक्त उनकी चिंता सताती रहती है।”

वन विभाग को भेड़ियों की तलाश

वन विभाग क टीम भेड़ियों को पकड़ने में दिन-रात जुटी हुई है। इन टीमों ने जाल, पिंजरे और ड्रोन कैमरों का सहारा लिया है, ताकि भेड़ियों के ठिकानों को ट्रैक किया जा सके। कुछ महीने पहले  खुंखार भेड़ियों को पकड़ने के लिए प्रशासन ने 200 पुलिसकर्मी और 18 शूटर तैनात किए थे।

फिलहाल रात में पेट्रोलिंग की जा रही है और गांव वालों को सलाह दी गई है कि वे अपने बच्चों को सुरक्षित रखें और रात में दरवाजे बंद करके सोएं। बावजूद इसके, लोग अब भी खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे हैं।

सिसैया के शिवलाल कहते हैं, “सरकार और प्रशासन ने कई इंतजाम किए हैं, लेकिन डर हमारे दिलों से जाने का नाम नहीं ले रहा। एक बच्चे को खो देना, माता-पिता के लिए कितना दर्दनाक होता है, इसे वही समझ सकते हैं, जिन पर यह बीत चुका है।”

यह खौफ का सिलसिला तब शुरू हुआ, जब मार्च की एक रात हरदी गांव में सात साल का मासूम फिरोज अपनी मां के पास सोया था। उसी रात, लगभग 12 बजे, एक भेड़िया घर के बरामदे में घुस आया और फिरोज की गर्दन को दबोचकर उसे घसीट ले गया।

फिरोज की मां के चिल्लाने पर ग्रामीण इकट्ठा हुए, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। फिरोज का मासूम शरीर खून से लथपथ पड़ा मिला। फिरोज की मां, अपने आंसुओं को रोकते हुए, कहती हैं, “वो रात आज भी मेरी आंखों के सामने घूमती है। मेरा बच्चा चुपचाप सोया था और एक भेड़िए ने उसे हमसे छीन लिया। वो दर्द मैं कभी नहीं भूल सकती।”

बहराइच के लोगों के लिए यह कोई नई बात नहीं, बल्कि एक ऐसा खौफ है, जो उन्हें हर रोज़ झकझोर देता है। वे अपने गांव के बच्चों को खोते देख रहे हैं, अपने दिलों में अपनों के जाने का दर्द और आंखों में एक अनदेखी दहशत। जिन घरों के दरवाजे बच्चों की हंसी-खुशी से गूंजते थे, वहां अब मातम और डर का सन्नाटा पसरा है।

भेड़ियों से खौफजदा लोग

पांच बच्चों के पिता रामलाल बताते हैं, “हमारा गांव अब डर की बस्ती बन चुका है। बच्चों के मासूम चेहरे अब बाहर नहीं दिखते, उनकी हंसी अब सिर्फ घर की दीवारों के अंदर बंद हो गई है। हर रात हम यही सोचते हैं कि अगली सुबह सब सलामत रहें।”

महराजगंज की त्रासदी के बीच, बहराइच के कई गांवों में भेड़ियों के खौफ के चलते रात का समय मानो एक युद्ध क्षेत्र का दृश्य बन जाता है। लोग अपने बच्चों को बचाने के लिए लाठी और टॉर्च लेकर रात भर पहरा देते हैं। मिसरन पुरवा जैसे गांवों में हर घर से एक सदस्य रात में पहरा देता है।

गांव की औरतें बच्चों को घर के भीतर सुलाकर बाहर बैठ जाती हैं, उनके दिल में हर समय एक डर बना रहता है। एक मां, खलीकुन कहती हैं, “अब तो ऐसा लगता है कि हम अपने ही गांव में कैद होकर रह गए हैं। रात को नींद नहीं आती, बस बच्चों के आसपास बैठे रहना ही हमारा एकमात्र काम रह गया है।”

अहिरन पुरवा में लाउडस्पीकर के जरिए बार-बार चेतावनी दी जाती है कि “सावधान रहें, जंगली जानवर बच्चों पर हमला कर रहे हैं।” यह चेतावनी दिन के उजाले में भी गांव वालों को सतर्क रखती है, और शाम ढलते ही हर कोई अपने बच्चों को घर के भीतर करने की कोशिश में जुट जाता है। 

लोगों में यह डर इस कदर गहरा गया है कि गांव के पुरुष रात भर पहरा देते हैं, जबकि महिलाएं अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए अपने घरों में जागती रहती हैं। मिसरन पुरवा के रास्ते में दोनों ओर ऊंचे गन्ने के खेत भेड़ियों के लिए छिपने का आसान ठिकाना बन गए हैं, जिससे ग्रामीणों में डर और बढ़ गया है।

ऊंचे सरपतों के बीच भेड़ियों का डर

“रात को मैं अपने बेटे अयांश के साथ आंगन में सो रही थी। मुझे पता ही नहीं चला कि भेड़िया कब उसे उठा ले गया। जब आंख खुली, तो बेटा गायब था।” ये दर्द भरी बातें हैं रोली की, जिनका सात साल का बेटा अयांश भेड़िये का शिकार बन गया। बहराइच के खैरीघाट में सोमवार की रात, इस परिवार की जिंदगी हमेशा के लिए बदल गई। पूरा गांव रातभर अयांश को ढूंढता रहा, और सुबह जब उसका शव मिला, तो मां का कलेजा चीर देने वाला मंजर सामने था, बेटे का सिर भेड़िया खा चुका था।

एक शांत जीवन की उम्मीद

बहराइच जिले के महसी तहसील के दर्जनों गांवों में महीनों से लोग भेड़ियों के आतंक में जी रहे हैं। पहले यह खौफ सिर्फ 25 गांवों तक सीमित था, लेकिन अब यह 35 गांवों तक फैल चुका है। गांव वालों में इतना खौफ है कि वे लाठी-डंडे लेकर रातभर पहरेदारी कर रहे हैं। गांव वाले अब अपनी सुरक्षा के लिए खुद ही चौकस हो गए हैं।

हर गांव में पहरेदारी के लिए लाठी-डंडों से लैस टीमें बनाई गई हैं, जो शिफ्ट में पहरा देती हैं। छोटे बच्चों को रात में घरों से बाहर न निकलने देने और दरवाजे बंद रखने की सख्त हिदायतें दी जा रही हैं।

ग्रामीणों का कहना है कि 8 से 10 भेड़ियों का झुंड इस इलाके में घूमता है और मौका मिलते ही घात लगाकर हमला करता है। खासकर रात के अंधेरे में जब बिजली चली जाती है, तब सन्नाटे का माहौल और भी डरावना हो जाता है। गांववाले कहते हैं, “हमारा बेटा-बेटी सुरक्षित नहीं है, भेड़िया हमारी गोद से बच्चों को खींचकर ले जाता है।”

हर रात गांव के लोग अपनी नींद त्यागकर पहरेदारी में लगे हैं, इस उम्मीद में कि शायद अगली सुबह किसी का बच्चा सुरक्षित मिल जाए। कुलैला, मक्का पुरवा, भटौली, नकवा, और कुम्हारन पुरवा जैसे गांवों में बच्चे अकेले बाहर नहीं छोड़े जा रहे हैं। गांववाले अब टोली बनाकर पहरा देने लगे हैं।

मिसिरपुरवा गांव में हमारी मुलाकात वारिस से हुई। वो कहते हैं, “हम रातभर बच्चों को सुरक्षित रखने के लिए गांव का चक्कर लगाते हैं। लगभग ढाई महीने से हम रातभर जाग रहे हैं। हमारे ही गांव में पिछले दिनों सफीउल्ला की नातिन को भेड़िया उठा ले गया था। बाद में उसकी लाश गन्ने के खेत में मिली।

अब हालात ये हैं कि हम केवल घंटे-आधे घंटे ही सो पाते हैं।” वारिस बताते हैं कि कुछ दिनों पहले भेड़िया यहीं पेड़ के पास दिखाई दिया था, तभी से वे रातभर पहरा देते हैं। खलीकुन, जो लाठी लेकर पहरे पर हैं, कहती हैं, “हम यहीं लाठी-डंडा लेकर बैठे रहते हैं। पहले खेतों में दूर तक जाते थे, लेकिन अब बाहर जाने से भी डर लगता है।”

भेड़ियों से बच्चों को है ज्यादा खतरा

हरदी इलाके में सिकंदरपुर गांव का एक हिस्सा है मक्का पुरवा, जहां अभी भी औरतें अपने बच्चों को चुप करने के लिए कहती हैं, “सो जाओ नहीं तो भेड़िए आ जाएंगे।” यह वही गांव है जहां एक साल का मासूम अख्तर घर में लेटा हुआ था, और अचानक भेड़िया उसे उठा ले गया।

कुछ ही घंटों बाद, उसका शव गांव से दूर मिला, लेकिन कुछ हिस्से गायब थे। यह कोई पहला मामला नहीं है, बल्कि पिछले कुछ महीनों से भेड़ियों का आतंक गांव में पसरा हुआ है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़, लखीमपुर खीरी ज़िले के धौरहरा में भड़िए के हमले में 21 लोग ज़ख़्मी हो गए थे।

भेड़िये क्यों कर रहे हमले?

बहराइच के डिविजनल फ़ॉरेस्ट ऑफ़िसर यानी डीएफ़ओ अजीत प्रताप सिंह का कहना है, “हम गांव वालों से कह रहे हैं कि बच्चों को बाहर न सुलाएं। इस इलाक़े में ज़्यादातर घरों में दरवाज़े ना होने से भेड़िए घर में घुस जाते हैं। आमतौर पर ये भेड़िये इंसान पर हमला नहीं करते”।

डीएफओ अजीत प्रताप सिंह

“लेकिन ऐसा लग रहा है कि किन्हीं हालात में उन्होंने ग़लतफ़हमी में इंसानों पर हमला किया और उसके बाद उन्हें इसकी आदत पड़ गई है। हम नहीं चाहते हैं कि किसी वन्यजीव या इंसान की जान जाए, हमने अब तक पांच भेड़ियों को पकड़ा भी है।”

“बहराइच ज़िले की महसी तहसील के क़रीब 100 वर्ग किलोमीटर के 25 से 30 गाँव भेड़ियों के ख़ौफ़ से प्रभावित हैं। यह क्षेत्र भारत-नेपाल सीमा से सटा हुआ है। पहली बार भेड़िए इंसानों के बच्चों को ग़लती से निशाना बनाते हैं”।

“मौसम की वजह से भेड़ियों की मांद में पानी भर जाता है तो वे आबादी की तरफ़ बढ़ते हैं और ग़लती से इंसान को निशाना बनाते हैं, फिर उन्हें इसकी आदत पड़ जाती है।”

डीएफ़ओ ने बताया, “तकरीबन 20 साल पहले भेड़ियों ने इंसानों पर हमला किया था। गोंडा, बहराइच और बलरामपुर, इन तीन ज़िलों में भेड़ियों के हमलों से तकरीबन 32 बच्चों की जान चली गई थी। इसके बाद से इस तरह भेड़िए के हमले नहीं हुए हैं। महसी में पांच या छह भेड़ियों का एक समूह है, जो इंसानों पर हमला कर रहा है।”

“इन हालात में कभी-कभी जब भेड़िये उनकी पकड़ में आ जाते हैं, तब कई बार होता है कि स्थानीय निवासी जानवर को विभाग से छीनकर मारने की कोशिश करते हैं। ऐसे लोगों के ख़िलाफ़ पुलिस में वन्य जीवन अधिनियम के तहत मामला भी दर्ज किया जाता है। बहराइच में वन विभाग की टीम पर हमला करने के आरोप में तीन लोगों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज किया गया है।”

डीएफ़ओ के मुताबिक़, भेड़ियों के हमलों में मारे गए लोगों के आश्रितों को सरकार पांच लाख रुपए की आर्थिक सहायता दे रही है, जिनमें चार लाख रुपए प्रशासन की तरफ़ से और एक लाख रुपए वन विभाग की तरफ़ से दिया जा रहा है। उन्होंने कहा, “ये कोई नई बात नहीं है”।

“पहले तो भेड़िए झुंड में रहते हैं और इनका सोशल स्ट्रक्चर बहुत मज़बूत होता है, जिसमें दो से दस जानवर तक रह सकते हैं। ये ब्रीडिंग सीज़न यानी अक्तूबर से पहले सुरक्षित जगह की तलाश करते हैं, फिर अपने बच्चों को वयस्क होने तक पालते हैं और उनको शिकार करना भी सिखाते हैं।”

डीएफओ अजीत प्रताप सिंह का कहना है कि जलवायु परिवर्तन और मानसून के कारण जब जंगलों में अधिक पानी भर जाता है, तो ये भेड़िए भोजन की तलाश में बड़ी आबादी वाले गांवों की ओर रुख करते हैं। घाघरा नदी के किनारे बसे इन गांवों में गन्ने की ऊंची फसल, जलभराव और ऊंची नमी के कारण भेड़ियों के लिए छिपना और हमला करना आसान हो गया है।

कुछ महीने पहले तक वन विभाग की टीमें ड्रोन और थर्मल कैमरे की मदद से भेड़ियों का पता लगाने की कोशिश कर रही थीं। कुछ भेड़िए पकड़े गए हैं, लेकिन इसका असर ग्रामीणों के डर को कम करने में नाकाफी साबित हुआ है। बच्चों और महिलाओं के साथ-साथ अब वयस्क लोग आज भी भेड़ियों के संभावित हमले के खौफ में जी रहे हैं।

एक ही तस्वीर के दो पहलू

कौड़हा गांव के प्रगतिशील किसान माधवराव वर्मा कहते हैं, “महराजगंज में सांप्रदायिक हिंसा ने जहां इंसानियत और भाईचारे पर प्रश्नचिह्न लगाया है, वहीं भेड़ियों के आतंक ने बहराइच के गांवों को एक ऐसे भय में डाल दिया है जिसमें हर रात उनकी सुरक्षा पर सवाल उठता है। गांव के लोग चाहते हैं कि प्रशासन इस समस्या का हल निकाले, लेकिन सुरक्षा के इंतजाम केवल कागजों तक सीमित दिखाई दे रहे हैं।”

प्रगतिशील किसान माधव राम वर्मा ने जताई चिंता

“महराजगंज की हिंसा और बहराइच के गांवों में भेड़ियों का आतंक, दोनों ही घटनाएं भले अलग हों, पर उनके पीछे का खौफ और दर्द एक जैसा है। महराजगंज में पुलिस की लापरवाही से पैदा हुआ असुरक्षा का भाव, और गांवों में भेड़ियों से सुरक्षा का संघर्ष, दोनों ने ही लोगों को अपने घरों में कैद होने पर मजबूर कर दिया है। प्रशासन की विफलता ने लोगों में अविश्वास और नाराजगी को बढ़ा दिया है।”

महराजगंज और बहराइच के गांवों की यह दर्दभरी दास्तां एक ही संदेश देती है, जब सुरक्षा का अभाव हो और प्रशासनिक जिम्मेदारी सोई हो, तो हर घर खौफ का गढ़ बन जाता है। इस दोहरी त्रासदी ने न केवल विश्वास को कमजोर किया है, बल्कि लोगों के दिलों में एक ऐसा घाव छोड़ा है, जिसे भरने में लंबा वक्त लगेगा।

भयानक खौफ के साए में जी रहे महसी इलाके के लोग अब बस यही चाहते हैं कि यह आतंक जल्द खत्म हो। भेड़ियों के इस आतंक ने उनकी जिंदगी को उलट-पुलट कर रख दिया है। बहराइच के ग्रामीण अब उस दिन का इंतजार कर रहे हैं, जब वे बिना किसी डर के अपनी रातें गुजार सकें, जब उनके बच्चे वापस गांव की गलियों में खेल सकें और जब उनके घरों की हंसी-खुशी लौट आए।

भेड़ियों का यह आतंक और सांप्रदायिक तनाव ने मिलकर इस इलाके की सामाजिक ताने-बाने को बुरी तरह से हिला कर रख दिया है। लोगों का कहना है कि सरकार और प्रशासन को भले ही भेड़ियों के मुसीबत को खत्म करने के लिए कई प्रयास करने पड़े, लेकिन उन्हें हर हाल में अपने बच्चों की सुरक्षा चाहिए। साथ ही पुलिस के आतंक से भी मुक्ति चाहिए।

महराजगंज इलाके के गांवों की कहानियां एक ही दर्द बयां कर रही हैं, अविश्वास, असुरक्षा और अनदेखी का घना अंधेरा, जिसमें न जाने कितने परिवार अपनी खुशियों और सपनों को खो रहे हैं। प्रशासनिक लापरवाही का ये मंजर दिलों में एक ऐसा घाव छोड़ रहा है, जो शायद कभी न भर पाए।

कभी भेड़िये और कभी पुलिस के खौफ से लोगों के चेहरे पर डर और चिंता की लकीरें अब तक साफ दिखाई देती हैं। यहां के लोग अब इस खौफ से उबरना चाहते हैं, एक शांत माहौल में जीना चाहते हैं। एक शांत जीवन की ओर देखती बहराइच के गांवों में रहने वाले बच्चों की बेबस आंखों में अब बस एक ही ख्वाहिश है-एक ऐसा बहराइच, जो डर के साए से मुक्त हो, जहां रात का मतलब सिर्फ सुकून भरी नींद हो और सुबह का मतलब एक नई उम्मीद।

(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं। बहराइच से उनकी ग्राउंड जीरो रिपोर्ट)

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