बिहार के करीब 13 जिलों लाखों लोगों की जिंदगी मुसीबत में है। जहां नेपाल के रास्ते आ रही नदियों कोसी, गंडक और बागमती के पानी ने तबाही मचा रखी है। कई जल विशेषज्ञ का मानना है कि अगर प्रकृति ने साथ नहीं दिया तो 1968 और 2008 की स्थिति बन सकती है।
रिपोर्ट के मुताबिक, बिहार में गंडक, बागमती, दरधा, गंगा, बूढ़ी, कोसी, अधवार, कमला बलान, महानंदा, परमान और फुल्हर नदी में पानी खतरे के निशान से ऊपर बह रहा है। राज्य भयानक आपदाओं का सामना कर रहा है।
लोगों की भारी तबाही हुई है। सारा सामान नदी में समा गया है। लोगों के माल-मवेशी जल की भेंट चढ़ चुके हैं। जान बचाकर कुछ लोग तटबंध पर आए हैं, तो कुछ गांवों में बने ऊंचे टीले पर शरण लिए हुए हैं। कुछ लोग गांव में ऊंची चौकी पर चौकी रखकर रह रहे हैं।
आंखों में आंसू व माथे पर चिंता की लकीरें
सोमवार को सुपौल शहर से 2 किलोमीटर दूर मुख्य सड़क पर वैसे भी लगभग 365 दिन बाढ़ पीड़ित घर बना कर रहते हैं। हालांकि आजकल पूरा सड़क बाढ़ पीड़ित का आशियाना बना हुआ है। कई लोग सरकार के बने राहत शिविर में भी रुके हुए हैं।

राहत शिविर में रूके सुरेंद्र यादव बताते हैं कि, “वैसे तो प्रत्येक साल हम लोगों को बाढ़ का सामना करना पड़ता है। लेकिन 56 साल बाद 28 सितंबर को तबाही की रात रही। जितना सोचा नहीं उससे बहुत ज्यादा पानी आया। बाकी साल सिर्फ औरत और बच्चे घर से निकलते थे। इस बार पूरा गांव खाली हो गया है।”
75 वर्षीय बुजुर्ग सतराम महतो बताते हैं कि पूरी जिंदगी में पहली बार देवी-देवता को छोड़ गांव से बाहर आना पड़ा है। रात तक सब बढ़िया था, लेकिन सुबह उठे तो घर में घुटनों तक पानी भरा था। खाने और रहने का ठिकाना पानीमय हो चुका था।
2 साल पहले ही शादी करके आई सगमा बताती हैं, “रात को सब सो गए थे। तभी अचानक घर के अंदर पानी आ गया। उसी हालत में जैसे-तैसे बाल-बच्चा को उठाकर बाहर निकले। घर पूरा डूब चुका था। कुछ भी नहीं बचा है, प्रशासन के भरोसे हैं।” वहां बैठी सभी महिला सगमा की हां में हां मिलाने लगीं।
भूखे प्यासे लोगों का करुण चीत्कार सुनकर हृदय कांप जा रहा है
बिहार की नदियों के जलस्तर में वृद्धि के कारण कई छोटे बांध टूट जाने के बाद पटना, छपरा, समस्तीपुर, बेगूसराय और नालंदा के ग्रामीण इलाके जलमग्न हो गए। लोगों को खाने-पीने और राशन की परेशानी हो रही है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक बिहार में कोसी, गंडक और बागमती में 7 जगह तटबंध टूटने की खबर है।
कोसी नवनिर्माण मंच के संस्थापक महेंद्र यादव के मुताबिक कोसी का पश्चिमी तटबंध दरभंगा जिले किरतपुर प्रखंड के भूबोल के पास तटबंध टूटा है, यहां से पानी आगे कमला नदी के पूर्वी तटबंध के बीच होकर निकलेगा तो आगे गंडौल से बिरौल रोड के अवरोध से इधर पानी का दबाव रहेगा और कमला के पूर्वी तटबंध पर भी दबाव रहेगा।
आगे पानी निकला भी तो पुनः घोंघेपुर में बने स्लूइस गेट से पानी नहीं निकलने की स्थिति में वहां भी दबाव और खतरा रहेगा। गंडक नदी बेतिया के बगहा प्रखंड में चम्पारण तटबंध टूट गया है। बागमती नदी के तटबंध 5 जगह टूटे हैं।
सीतामढ़ी के बेलसंड के धमौल, सौला रूपौली, रुन्नीसैदपुर के खरौआ, तिलक राजपुर और शिवहर के तरियानी प्रखंड के छपरा गांव में तटबंध टूटे है। बागमती के तटबंध नेपाल में 4 जगह टूटने की खबर है।

वो आगे बताते हैं कि कोसी तटबंध के भीतर सुपौल, मधुबनी, सहरसा इत्यादि जिले में भयावह तबाही है। भूखे प्यासे लोगों का करुण चीत्कार सुनकर हृदय कांप जा रहा है। डूबने से कितने जान की क्षति हुई है यह जानकारी धीरे-धीरे आएगी। कितने जानवर नदी में समा गए इनकी गिनती नहीं है।
जो बचे जानवर हैं उनको भूख और पानी से बचाने की जद्दोजहद जारी है। जो लोग तटबंध या बाहर निकले हैं, वहां भी बड़ी चुनौती है।
29 सितंबर 2024 को तीसरी बार कोसी नदी ने दूसरे अधिकतम जलस्राव का रिकॉर्ड बनाया। कोसी नदी का जलस्तर 06 लाख 61 हजार 295 क्यूसेक स्थिर अवस्था में मापा गया था।
इससे 56 साल पहले यानी 1968 में कोसी का अधिकतम जलस्तर 9.13 लाख क्यूसेक व 7.88 लाख क्यूसेक रहा था, जो रिकॉर्ड अब तक बरकरार है। हालांकि 2008 के मुकाबले करीब 3 गुना था।
सुपौल में प्रत्येक साल की तुलना इस साल प्रशासन काफी एक्टिव रहा है। कई जगह प्रशासन ने प्रभावित क्षेत्रों में राहत शिविर तो बनाए हैं। शिविरों में बढ़ती भीड़ की वजह से नाकाम साबित हो रहे हैं। खाने-पीने के सामान की कमी महसूस हो रही है। एनडीआरएफ और एसडीआरएफ की टीमें लगातार काम कर रही हैं।
आम जनता यह मान चुकी है कि यही हमारा बिहार है
बिहार के नामचीन ब्लॉगर रंजन ऋतुराज लिखते हैं कि “बिहार एक गरीब राज्य है, यह पता था लेकिन हम इतने गरीब हैं, यह उस रोज पता चला जब 2008 में किसी सहकर्मी ने बिहार की गरीबी को लेकर मुस्कुराया। उस वक्त हमारे ऑफिस में बिहार बाढ़ को लेकर स्वेच्छा से दान करने की मुहिम चल रही थी।
पटना के पूर्व डीआईजी एसपी शालिन ने अपने लेख में लिखा था कि बिहार के लोगों के अंदर बिहारियत क्यों नहीं है? वो स्वयं पंजाबी हैं और बिहार को लेकर हैरान थे कि क्षेत्र और राज्य को लेकर संवेदनशीलता क्यों नहीं है? इस नेक्सस ने आम जनता को इतना कमजोर कर दिया है की आम जनता यह मान चुकी है कि यही हमारा बिहार/बिहार है।”

सुपौल के रहने वाले कौस्तुभ आनंद पुणे में एक आईटी सेक्टर में नौकरी करते हैं। वह बताते हैं कि, “बिहार में बाढ़ की चर्चा नहीं होती है। सारे व्यक्तियों को लगता है कि यही बिहार की नियति है। उनके लिए यह बाढ़ एक मजाक है।”
वहीं बेंगलुरु में नौकरी कर रहे सत्यम बताते हैं कि “बिहार के जो व्यक्ति बाहर रह रहे हैं, वो भी बाढ़ और सुखाड़ की चर्चा नहीं करते हैं। एक माइंडसेट बन चुका है कि बिहार के लिए यह आम है।”
“बिहार में फिर से बाढ़ आ गया। भाई कैसे रहते हो तुम लोग वहां? बिहार के बाढ़ की चर्चा अब सिर्फ अखबार में होती है।” जब मैंने बिहार की बाढ़ की चर्चा ऑफिस में की तो लगभग सभी ने हंसते हुए मुझसे यहीं सवाल पूछा। बिहार के रोहतास जिला के रहने वाले अजय कुमार बताते हैं।
इस पूरी आपदा ने एक बार फिर सरकार के सामने सवाल खड़ा कर दिया है कि सरकार इस भीषण तबाही को रोकने के लिए ठोस कदम उठा पाएंगी? वैसे कोसी की जनता तो खुलकर कहती हैं कि बिहार में बाढ़ एक घोटाला है। आज़ादी के 77 साल बाद भी अगर हम बाढ़ से ही जूझ रहे हैं तो बिहार के आधारभूत ढांचा के विकास की स्थिति को समझ सकते हैं।
(बिहार से राहुल की रिपोर्ट)