हरियाणा में नयी बनी सिख गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी के 40 सदस्यीय कार्यकारिणी समिति के चुनाव प्रदेश में संपन्न हुए हैं। हरियाणा में सिखों के 52 पवित्र गुरुद्वारा स्थलों का प्रबंधन 2014 से पहले सिखों की सर्वोच्च संस्था शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अंतर्गत मनोनीत सदस्यों के द्वारा किया जाता था। हरियाणा में गुरुद्वारा प्रबंधन के लिए अलग स्वतंत्र कमेटी की मुहिम 2000 में दीदार सिंह नलवी के द्वारा चलाई गई थी। 2003 में एक नयी समिति बनाई गई थी जिसमे हरियाणा के सिख समुदाय के प्रमुख नेताओं को शामिल किया गया था। जगदीश सिंह झिंडा को प्रधान, नवाब सिंह विर्क, जोगा सिंह, जरनैल सिंह अजराना और अवतार सिंह चक्कू को उप प्रधान एवं सुरजीत सिंह डबवाली व दीदार सिंह नलवी को सचिव बनाया गया।
कैप्टन अमरिंदर सिंह ने उस वक्त इसके समर्थन में कहा था कि एसजीपीसी एक राजनीतिक मुद्दा है जिससे सिख धार्मिक मामलों से कोई बाधा नहीं बनती। कैप्टन ने कहा था कि अन्य कई स्थानों पर जैसे पटना साहिब, हज़ूर साहिब नांदेड़ में अलग स्वतंत्र गुरुद्वारा प्रबंधन समितियां हैं तो हरियाणा के सिखों को अपनी अलग समिति बनाने के अधिकर से क्यों वंचित करना चहिए। लम्बे विवादों के बाद 2014 में विधान सभा में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के कार्यकाल में हरियाणा सिख गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी बिल पास किया गया था। भाजपा की सरकार हरियाणा में आने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने एक एडहॉक कमेटी का गठन किया था जिसमें अधिकतर सरकार के समर्थकों को ही तरजीह दी गई थी। 2022 में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद ही हरियाणा सिख गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी को कानूनी अस्तित्व प्राप्त हुआ है।
हरियाणा सिख गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी के पहली बार हुए चुनाव में बड़ी संख्या में निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की है। कुल 40 वार्ड (सीटों ) में से 22 पर निर्दलीय चुनाव जीत गए हैं। एक निर्दलीय निर्विरोध चुनाव जीत गए। कुल 2 लाख 45 हजार मतदाताओं ने अपने मत का उपयोग किया। 69.85 % मतदान हुआ। इन चुनावों में सिख समुदाय के वो ही मतदाता अपने मत का प्रयोग कर सकते हैं जिन्होंने अपना पंजीकरण समयावधि में करवाया होता है। हरियाणा में जनगणना 2011 के बाद अभी तक हुयी नहीं। लेकिन माना जाता कि सिख समुदाय की जनसंख्या कुल आबादी का 6% के लगभग है। उत्तरी हरियाणा के जिले पंचकूला, यमुनानगर, अम्बाला, कुरुक्षेत्र, करनाल के अलावा पश्चिमी हरियाणा के सिरसा, फतेहाबाद, हिसार में मुख्य तौर पर सिख आबादी बसी हुई है।
मुख्य रूप से इन चुनावों में सिखों के चार बड़े गुटों की प्रतिष्ठा दांव पर लगी थी। हरियाणा सिख प्रबन्धक दल (एचएसपीडी) के प्रधान बलदेव सिंह कैमपुरी हैं। इनको पंजाब के शिरोमणि अकाली दल का समर्थक गुट माना जाता है। सिख समाज संस्था (एस एसएस) दीदार सिंह नलवी का गुट है। जत्थेदार बलजीत सिंह दादूवाल का अपना अलग शिरोमणि अकाली दल (आजाद) गुट है जिसे सरकार समर्थक माना जाता है। जगदीश सिंह झिंडा पंथक दल झिंडा ग्रुप ( पीडीजेजी ) के मुखिया है।
इन चुनावों में किसी भी गुट को भी स्पष्ट बहुमत नहीं मिला है। झिंडा गुट ने 21 उम्मीदवार चुनाव में उतरे थे लेकिन उनके 9 उम्मीदवारों को ही जीत मिली। जत्थेदार बलजीत सिंह दादूवाल के गुट से केवल 3 को ही जीत मिल सकी जबकि दादूवाल स्वयं चुनाव हार गए। बलदेव सिंह कैमपुरी गुट ने दावा किया है कि उनके गुट से सीधे 4 उम्मीदवार जीते और उनके समर्थन प्राप्त अन्य 14 निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत हासिल की। दीदार सिंह नलवी गुट के 3 उम्मीदवार को जीत मिली है जबकि उनके अनुसार अन्य कई निर्दलियों को उनका समर्थन रहा था। जगदीश सिंह झिंडा का प्रभाव वाला क्षेत्र करनाल, कुरुक्षेत्र है। बलदेव सिंह कैमपुरी यमुनानगर, पंचकूला जबकि दीदार सिंह नलवी का अम्बाला, शाहबाद में प्रभाव है। बलजीत सिंह दादूवाल सिरसा जिले से हैं।
लम्बे समय से हरियाणा के सिखों में हरियाणा के गुरुद्वारा प्रबंधन को लेकर एक असंतोष रहा है। शिरोमणि अकाली दल के बाहुल्य वाला शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का हस्तक्षेप और उपेक्षापूर्ण रवैया हरियाणा के प्रति रहा है। बलदेव सिंह कैमपुरी ने कहा है कि सिख संगत ने यह फैसला गुरु घरों की बेहतर व्यवस्था और संचालन के साथ धर्म लहर के पक्ष में दिया है। यह धार्मिक संस्था का चुनाव है इसमें किसी को राजनीति नहीं करनी चाहिये। नयी कार्यकारिणी के गठन को लेकर उन्होंने कहा कि अब जल्द ही सभी गुटों से मिल कर बैठक करेंगे और आपसी सहमति से पदाधिकारियों के प्रक्रिया पूरी की जाएगी। मुख्यमंत्री ने चुनाव लड़ने वाले सभी उम्मीदवारों को शुभकानाएं दी और कहा कि नयी कमेटी समाज में एकता और सद्भाव को मजबूत करेगी। धार्मिक और सामजिक कार्यों को मजबूती से आगे बढ़ाएगी।
(जगदीप सिंह सिंधु वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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