हरियाणा का नतीजा मोदी सरकार की नीतियों और कारनामों पर जनादेश होगा

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हरियाणा का जनादेश सर्वोपरि मोदी सरकार की नीतियों और कारनामों पर जनादेश होगा। वैसे तो एक्जिट पोल की विश्वसनीयता खत्म हो गई है। फिर भी सभी एक्जिट पोल अगर हरियाणा में कांग्रेस की सरकार बनती दिखा रहे हैं, तो वे शायद जमीनी सच्चाई पर ही मुहर लगाकर अपनी साख बचाने में लगे हैं।

हरियाणा में राजनीतिक रूप से 5 अलग-अलग क्षेत्र हैं, जाट लैंड, जाट सिख लैंड, अहिरवाल, अंबाला कैंट, NCR मेवात।

जाटलैंड में कुल 29 सीटें हैं। यह जाट बहुल क्षेत्र हैं। जाटों की कुल आबादी 25%के आस-पास है। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 22 विधानसभा सीटों पर बढ़त थी, कांग्रेस को 7 सीटों पर।

लेकिन 2019 के असेंबली चुनाव में भाजपा घटकर 12 सीट पर आ गई और कांग्रेस दो गुना बढ़कर 15 पर पहुंच गई। असल में जाटलैंड में गिरावट ही वह प्रमुख कारक था जिससे भाजपा बहुमत से दूर रह गई।

भाजपा को कुल 40 सीटें ही मिल पाईं और उसे जेजीपी से समझौता करके सरकार बनानी पड़ी।

अभी लोकसभा चुनाव में भाजपा को 15 तो कांग्रेस को 14 सीटों पर बढ़त मिली। अबकी बार इस इलाके के जाट किसान भाजपा के खिलाफ खड़े हैं।

हरियाणा का जाट सिख लैंड पंजाब से सटा हुआ है, जहां जाट और सिख समुदाय की मिलीजुली आबादी है। यहां कुल 20 सीटें हैं। यह इलाका किसान आंदोलन का केंद्र रहा है और MSP यहां सबसे बड़ा मुद्दा है।

2019के लोकसभा चुनाव में इस क्षेत्र की 19 सीटों पर भाजपा की बढ़त थी और कांग्रेस की 0 बढ़त थी हालांकि असेंबली चुनाव में भाजपा की सीटें घटकर 6 रह गई थीं और कांग्रेस की बढ़कर 4 हो गई थीं।

इस बार लोकसभा चुनाव में भाजपा की बढ़त घटकर 5 सीट पर रह गई और कांग्रेस की बढ़त 15 सीटों पर पहुंच गई। जाहिर है इस चुनाव में यहां भाजपा का सूपड़ा साफ होने की उम्मीद है।

अहिरवाल इलाके में 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की सभी 10 सीटों पर बढ़त थी, जो विधानसभा चुनाव में घटकर 6 सीटों पर रह गई, 4 सीटों पर कांग्रेस आगे हो गई। उम्मीद है इस बार भाजपा और नीचे जाएगी।

अंबाला क्षेत्र में 2019 में भाजपा सभी 18 सीटों पर आगे थी, लेकिन असेंबली चुनाव में वह आधे पर आ गई। इस बार के लोकसभा चुनाव में भी उसे 9 सीटों पर ही बढ़त मिली।

एनसीआर मेवात क्षेत्र में 2019 के लोकसभा चुनाव में सभी 10 सीटों पर बढ़त मिली थी, लेकिन विधानसभा चुनाव में उसकी बढ़त 7 सीटों पर ही रह गई, मेवात की 3 सीटें कांग्रेस के खाते में चली गईं।

हरियाणा में दो मुद्दे बहुत प्रमुखता से उभरे हैं परिवार परिचय पत्र के अलावा नशा और पलायन। दोनों का सीधा संबंध बेरोजगारी से है। इतने बड़े पैमाने पर नौजवान कैसे नशे में डूब गए।

दरअसल हरियाणा कृषि प्रधान राज्य है। कहा जाता है की एग्रीकल्चर ही वहां की कल्चर है। एनसीआर से बाहर के शेष हरियाणा में कोई औद्योगीकरण हुआ नहीं।

एनसीआर क्षेत्र में जो आधुनिक रोजगार हैं, उसमें हरियाणा के कितने नौजवान हैं, यह देखने की बात है। यह तय है कि शिक्षा की बदहाली के कारण वहां इन उद्योगों/ कारपोरेट कंपनियों में वांछित उच्च कौशल सम्पन्न छात्र कम ही मिल पाते होंगे।

ऐसी हालत में हरियाणा में युवा पीढ़ी को बचाने का एक ही रास्ता हो सकता था कि वहां कृषि को लाभकारी बनाया जाता, कृषि आधारित उद्यमों का जाल बिछाया जाता, लेकिन वह नहीं हुआ।

भाजपा हुड्डा और दलित मूल की नेत्री कुमारी शैलजा के बीच के नेतृत्व के संघर्ष को भुनाने की कोशिश में लगी रही। यहां तक कि मोदी जी के भाषण भी इसी पर केंद्रित रहे। वे इसे कांग्रेस राज में हुई दलित विरोधी हिंसा से जोड़ करके इस पूरे मामले को कांग्रेस के दलित विरोधी चरित्र के सबूत के बतौर पेश कर रहे थे।

लेकिन राहुल गांधी ने हुड्डा और शैलजा को हाथ मिलाकर मंच पर तो पहले ही खड़ा कर दिया था, कैसी विडंबना रही कि प्रचार के आखिरी दिन भाजपा के दलित स्टार प्रचारक अशोक तंवर दोपहर तक भाजपा का प्रचार करके शाम को खुद ही राहुल के मंच पर घर वापस आ गए। इस मास्टर स्ट्रोक से भाजपा नेतृत्व हक्का बक्का रह गया।

ठीक इसी तरह जीटी रोड इलाके में जो शहरी इलाका होने के कारण भाजपा का गढ़ माना जाता था, वहां आखिरी दिनों में धुंआधार रोड शो और मीटिंग करके राहुल प्रियंका ने पूरी फिजा बदल दी।

भाजपा हरियाणा का चुनाव कनविंसिंग ढंग से हार रही है, इसका इससे बड़ा सुबूत क्या हो सकता है कि मोदी जी जो आखिरी बाल तक बैटिंग के लिए जाने जाते हैं, वे अंतिम दिनों में वहां गए ही नहीं। इसका सीधा अर्थ था कि उनके प्रचार से वहां कोई फर्क नहीं पड़ रहा था या शायद नुकसान हो रहा था।

इसी तरह मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के क्षेत्र में अंतिम चरण के पोस्टर से खट्टर की फोटो गायब हो गई, जब यह लगा कि खट्टर के खिलाफ जनता के गुस्से का खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।

दरअसल हरियाणा चुनाव के नतीजे पहले दिन से ही जैसे दीवाल पर लिखे हुए थे। सांप्रदायिक विभाजन करवाने, गौरक्षकों की मदद से पूरे एनसीआर मेवात क्षेत्र में माहौल खराब करवाने की कोई जुगत काम न आई।

किसान आंदोलन, महिला पहलवानों का अपमान, अग्निवीर योजना को लेकर युवाओं का आक्रोश इनकी नफरत की राजनीति पर बहुत भारी पड़ा। 

जाहिर है भाजपा नेतृत्व ने इसे बहुत पहले भांप लिया था, इसीलिए बदनाम हो चुके खट्टर को छह महीने पहले हटाया गया और उनकी जगह नए मुख्यमंत्री लाए गए। पिछड़ों की गोलबंदी की कोशिश की गई।

लेकिन भाजपा की राजनीतिक पूंजी में कोई वृद्धि नहीं हुई। इसके लिए केवल पुराने मुख्यमंत्री के अहंकार और जनविरोधी शासन या नए मुख्यमंत्री के कमजोर नेतृत्व को दोष देना ठीक नहीं।

दरअसल भाजपा की जिन नीतियों के कारण लोग नाराज हुए थे, वे तो सर्वोपरि मोदी की नीतियां थीं। उनका कोई समाधान नहीं हुआ, चाहे वह किसानों की नाराजगी हो या फिर जवानों की, न ही महिला पहलवानों के अपमान से पैदा स्थिति का कोई समाधान हुआ।

उल्टे विनेश फोगाट प्रकरण ने भाजपा के खिलाफ लोगों का गुस्सा और बढ़ा दिया। कांग्रेस ने विनेश को प्रत्याशी बनाकर उस पूरे सेंटीमेंट को अपने पक्ष में मोड़ लिया।

हरियाणा का जनादेश सर्वोपरि मोदी सरकार की नीतियों और कारनामों पर जनादेश होगा।

(लाल बहादुर सिंह इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ के पूर्व अध्यक्ष हैं।)

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