जोशीमठ में जुड़ते दिल टूटती धर्म की दीवारें

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जोशीमठ में कथित विकास जनित आपदा से लोगों के घरों की दीवारें भले ही टूट रही हैं लेकिन आपदा में दर्द बांटने और दुख की घड़ी में आपदाग्रस्त लोगों के दिलों में मरहम लगाने में जाति धर्म की दीवारें भी टूट रही हैं। यह कोशिशें कश्मीर में चली विभाजनकारी नीति और एनआरसी के ख़िलाफ़ आरंभ हुई थीं जो बनभूलपुरा से होती हुई जोशीमठ तक पहुंच गई हैं।

सत्ता के लिए साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करने के इस दौर में यह बात ध्यान देने की है कि इस दौर में देश के संवैधानिक ढांचे को बचाने और हाशिए में रहने को मजबूर समाज की मदद करने वालों की कोशिशों से धर्म जाति और इलाके की सीमाएं टूट रही हैं। यह मुल्क के भविष्य के लिए एक अच्छा संकेत है।

हालिया सालों में होने वाली घटनाओं-हादसों को देखा जाए तो पता चलेगा कि लोगों ने धर्म और जाति  को हटाकर आगे  बढ़कर लोगों की मदद की है।कश्मीर की संवैधानिक स्थिति बदलने के बाद पूरे मुल्क में सत्ता के स्वार्थ में कश्मीरियों के साथ-साथ आम मुसलमानों के ख़िलाफ़ नफ़रत का माहौल बनाने की कोशिश की गई थी, उस दौर में ऐसा बताया जाने लगा था कि कश्मीर की समस्या के लिए पूरे देश का अकेला अल्पसंख्यक वर्ग जिम्मेदार है। ऐसा करने वाले वही लोग थे जो देश विभाजन के लिए उन्हें जिम्मेदार मानते थे। जबकि आज यह सिद्ध हो गया है कि देश विभाजन के लिए दोनों वर्गों की जो ख़ास तरह की मानसिकता ज़िम्मेदार थी वही मानसिकता कश्मीर समस्या के लिए भी जिम्मेदार है।

कश्मीर की घटना के दौर में आजाद सोच रखने वाले मुल्क के अमन पसंद लोगों और संस्थाओं ने अलग अलग जगह पर बेहतरीन काम किया था। कश्मीर की धारा 370 हटाने के बाद जिस तरह माहौल को गर्माया गया और समाज में विभाजन का जो प्रयास किया, उसको रोकने में देश के उदारवादी लोगों और जनसंठनों ने बेहतरीन काम किया था। एनआरसी से लेकर दिल्ली दंगे तक में इसी तरह के लोगों ने धर्म और साम्प्रदायिकता से उठकर लोगों के दिलों पर मरहम लगाया।

सबसे महत्वपूर्ण मानवीय मूल्यों को बढ़ाने का काम कोरोना काल में भी देखने को मिला, चाहे वो अपने घरों को पैदल जा रहे भूखे मज़दूरों को खाना खिलाने के सामूहिक प्रयास हों या फिर अस्पतालों में आक्सीजन पहुंचाने और प्लाज़्मा देने के हों।

अभी हाल में हल्द्वानी के बनभूलपुरा की आबादी को न्यायपालिका के फैसले की आड़ लेकर उजाड़ने के ख़िलाफ़ जो कानूनी लड़ाई लड़ी गई उसमें समाज के हर वर्ग ने बगैर मज़हबो-मिल्लत से कंधे से कंधा मिलाकर लड़ी है।

सुप्रीम कोर्ट में जहां अनेक टीमें गरीबों के हक़ में मज़बूत दलीलें दे रही थीं, वहीं फील्ड में पूरे उत्तराखंड के सामाजिक संगठन लोगों की हिम्मत बढ़ाने और संघर्ष में हर तरह का साथ देने के लिए सड़कों पर निकल आए थे।

उत्तराखंड में जनसंघर्षों की लम्बी परम्परा है। बनभूलपुरा की बस्ती उजाड़ने की मानसिकता के ख़िलाफ़ जनसंगठनों ने पिथौरागढ़ से लेकर उत्तरकाशी तक लोगों को जागरूक करने और सरकार पर जनपक्षीय फैसले लेने के लिए प्रदर्शन और जुलूस के बाद ज्ञापन दिए।

यह जान लेना ज़रूरी है कि बनभूलपुरा की बस्ती उजाड़ने के हाईकोर्ट के एक पक्षीय फैसले के बाद मीडिया ने आजादी से पहले बसी बस्ती के बाशिंदों को बाहरी बताने का घृणित अभियान चलाया था।

नेशनल मीडिया के अलावा सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर नफरती अभियान चलाए गए, बनभूलपुरा में हालांकि तीन मंदिर और एक धर्मशाला सहित हिदुओं की आबादी आपसी मेलजोल से दशकों से रहती आ रही है, लेकिन मीडिया और सोशल मीडिया ने इस तथ्य को छिपाकर बनभूलपुरा से बाहर रहने वालों के बीच में भी नफ़रत फैलाने का काम किया। जिससे यहां के जागरूक लोग बहुत चिंतित हो गए थे।

उत्तराखंड के जनसंगठनों ने यह स्थिति देखकर लोगों को सकारात्मक रूप से जागरूक करने का काम किया। हेलंग एकजुटता मंच के अन्तर्गत जुड़े अनेक जनसंगठनों ने मीडिया और सोशल मीडिया में बनभूलपुरा की वास्तविक स्थिति बताने का काम किया। ‘वन पंचायत संघर्ष मोर्चा’ और ‘बस्ती बचाओ संघर्ष समिति’ ने भी लोगों से सीधा संवाद करके वास्तविक स्थिति स्पष्ट करने और एकजुट करने का प्रयास किया। इसका क्षेत्र में बहुत असर हुआ, एक पक्षीय दुष्प्रचार से मायूस लोगों में हिम्मत आई और उन्होंने इसका खुले दिल से ख़ैरमक़दम किया। इससे उत्तराखंड के जनसंगठनों के लिए उत्साहजनक उर्जा मिली है।

दो दिन पहले जोशीमठ में दिल्ली से जमीयते-इस्लामी की टीम ने जोशीमठ का दौरा करके हालात का जायज़ा लिया और लोगों को ढांढस बंधाया। जमीयत ने आपदाग्रस्त लोगों की मदद के लिए एक लाख रुपए की मदद करने का एलान भी किया। यह एक बेहद सुकून देने वाली ख़बर है। यह बतातें चलें कि जोशीमठ में पच्चीस हजार की आबादी में उंगलियों पर गिनने लायक मुसलमान हैं।

जमायत-ए-इस्लामी आजादी के वक्त  से ही मुल्क में लोकतांत्रिक तरीके से सभी तरह के मुद्दों पर अपनी बात कहती रहती है। इसकी हर राज्य में‌ शाखाएं हैं, जबकि इसका हेडक्वार्टर दिल्ली में है। यह भी बहुत महत्वपूर्ण बात हुई कि पहले बनभूलपरा के निवासियों ने अपने संघर्ष के बीच जोशीमठ की आपदा के प्रति भी चिंता दिखाई, यहां के निवासियों ने जोशीमठ के लोगों के साथ एकजुटता के लिए कैंडिल मार्च निकाला और कई बार मस्जिदों में जोशीमठ के बाशिंदों की सलामती की दुआएं की ।

उत्तराखंड के जनसंगठनों पिछले वर्षों में अनेक ऐसे मुद्दों पर लोगों को जागरूक किया जहां सत्ता की राजनीति के कारण विभेद किया जा रहा था। पिछले वर्ष उत्तराखंड में सामाजिक समरसता के लिए उत्तराखंड सर्वोदय मण्डल के नेतृत्व में सामाजिक संगठनों ने 50 दिनों की राष्ट्रीय सद्भावना यात्रा का भी आयोजन किया था। जिसका समाज के अमन पसंद हर वर्ग ने स्वागत किया था।

(इस्लाम हुसैन पत्रकार हैं और नैनीताल में रहते हैं।)

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