दिल्ली बजट पर चर्चा: दस लाख के बजट में 500 सहेली समन्वय केंद्र कैसे चलेंगे?

Estimated read time 1 min read


नई दिल्ली। गर्भवती महिलाओं, धात्री महिलाओं और बच्चों को विशेष पोषण की जरूरत होती है। हमारे समाज में मौजूद लैंगिक, सामाजिक और आर्थिक भेद-भाव के चलते कई परिवारों में महिलाओं और बच्चों को पोषणयुक्त भोजन की कौन कहे, सामान्य भोजन भी नसीब नहीं हो पाता। खासकर गर्भवती महिलाओं और बच्चों को पौष्टिक भोजन उपलब्ध हो, इसके लिए कई संस्थाएं काम कर रही हैं। ऐसी संस्थाएं केंद्र सरकार और राज्य सरकारों से गर्भवती, धात्री महिलाओं और बच्चों के लिए विशेष बजट का प्रावधान करने की मांग करते हैं। और बजट घोषित होने पर उसका मूल्यांकन भी करते हैं।

इसी कड़ी में मंगलवार को दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में नींव, दिल्ली फोर्सेज (फोरम फॉर क्रेच एंड चाइल्ड केयर सर्विसेस) ने दिल्ली सरकार के बजट 2023-24 में प्रारम्भिक बाल देखरेख एवं विकास पर एक परिचर्चा का आयोजन किया। जिसमें बच्चों और उनसे संबंधित मुद्दों पर कार्यरत विशेषज्ञ भारती अली (हक संस्था) राज शेखर (दिल्ली रोजी रोटी अभियान) थानेश्वर दयाल आदिगौड़ (निर्माण मजदूर अधिकार अभियान) ऋचा (जन स्वास्थ्य अभियान) सुभद्रा (नींव, दिल्ली फोर्सस) और दिल्ली की अलग-अलग बस्तियों से समुदाय प्रतिनिधि सहित 45 साथी संस्थाओं की भागीदारी थी।

हक संस्था के प्रतिनिधि कुमार शलभ ने दिल्ली सरकार बजट 2023-24 के विश्लेषण के मुख्य बिन्दुओं को साझा करते हुए कहा कि सरकार ने गर्भवती एवं धात्री महिलाओं और 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों के लिए बजट में कुछ बेहतरीन कदम उठाए है। जैसे कि आंगनवाड़ी सेवाओं हेतु सरकार ने 26.33 प्रतिशत बजट बढ़ाया है, पोषण मिशन के बजट मे 233.33 प्रतिशत की बहुत बड़ी बढ़ोतरी की है। आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के वेतन हेतु 0.56 प्रतिशत बजट बढ़ाया है, प्रधानमंत्री मातृत्व वंदना योजना हेतु फ्लेक्सी फंड को 41.25 प्रतिशत बढ़ाया है।  

परंतु कुल बजट का मात्र 1.08 प्रतिशत हिस्सा ही बच्चों के प्रारंभिक बाल देखरेख एवं संरक्षण के लिए रखा गया है। बजट के इस छोटे से हिस्से मे समेकित बाल विकास योजना (आईसीडीएस) कार्यक्रम के अलावा राष्ट्रीय क्रेच स्कीम (पालना), टीकाकरण कार्यक्रम, प्रधानमंत्री मातृत्व वंदना योजना, गर्भवती एवं धात्री महिलाओं के लिए योजनाएं शामिल है। सरकार का यह बजट स्पष्ट दिखाता है कि सरकार के लिए प्रारम्भिक बाल देखरेख एवं संरक्षण उनकी प्राथमिकता पर नहीं है जबकि इस उम्र में ही बच्चों का 80 से 85 प्रतिशत मानसिक विकास होता है।

दिल्ली सरकार ने बजट 2021- 22 में महिलाओं के सामाजिक एवं आर्थिक सशक्तिकरण और बच्चों के विकास के लिए सहेली समन्वय केंद्र (एसएसके) के नाम से एक नई योजना की घोषणा की थी जिसके लिए वर्ष 2022 -23 मे मात्र 01 करोड़ का बजट रखा था जिसे वर्ष 2023-24 में घटा कर मात्र 10 लाख कर दिया गया।

1.इसी प्रकार दिल्ली सरकार ने, केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित योजना पालना स्कीम, जिसे नेशनल क्रेच स्कीम के नाम से जाना जाता है, के लिए भी लगातार बजट घटाया है। इस योजना के तहत कामकाजी माताओं के 6 वर्ष से छोटे बच्चों हेतु ‘डे केयर’ सुविधाएं प्रदान की जाती है।

2.दिल्ली सरकार ने वित्त वर्ष 2023-24 मे इस योजना हेतु मात्र 1.02 करोड़ आवंटित किए है जबकि 2022-23 मे यह आवंटन 1.05 करोड़ था और 2021-22 मे 1.88 करोड़ है।

3.आंगनवाड़ी के प्रोत्साहन हेतु वर्ष 2022-23 मे 15 करोड़ रुपये थे वहीं वर्ष 2023-24 के बजट मे इसे 10 करोड़ रुपये कर दिया गया है।

4.इसी प्रकार दिल्ली सरकार ने आंगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण के लिए 2.57 करोड़ रूपये की कुल राशि निर्धारित की है जो कि पिछले वर्ष के आवंटन के बराबर ही है इसमें कोई बदलाव नहीं किया है।

बजट को इस प्रकार कम करना सरकार की मंशा को स्पष्ट दिखाता है कि प्रारम्भिक बाल देखरेख एवं संरक्षण को प्राथमिकता नहीं दे रही है। विश्लेषण से यह स्पष्ट है कि सरकार का ध्यान छोटे बच्चों, गर्भवती एवं धात्री महिलाओं से संबन्धित योजनाओं के बेहतरीन क्रियान्वयन से अधिक उनकी घोषणाओं पर है तभी बजट का आबंटन कम होता जा रहा है।

दिल्ली की अलग-अलग बस्तियों से समुदाय प्रतिनिधियों ने बाल देखरेख से संबंधित चुनौतियों को साझा किया। सावदा घेवरा के पुनर्वास बस्ती की निवासी रीना यादव ने कहा कि ‘‘मैं फैक्ट्री में मजदूरी करती हूं, मेरे 2 छोटे बच्चे हैं। जब मैं काम पर जाती हूं तो बच्चों को पड़ोसियों के भरोसे छोड़ कर जाती हूं पर मुझे हमेशा उनकी चिंता लगी रहती है और मैं काम में भी पूरी तरह से ध्यान नहीं लगा पाती हूं। बच्चों के कारण कई बार मुझे छुट्टी भी करनी पड़ती है। इसकी वजह से मेरा पैसा भी कट जाता है इसलिए मैं चाहती हूं कि मेरे बच्चों की पूरे दिन देखरेख के लिए बस्ती में व्यवस्था हो ताकि मेरे बच्चे भी सुरक्षित रहें और मैं भी निश्चिंत हो कर काम कर सकूं।”

मदनपुर खादर पुनर्वास बस्ती की ममता ने कहा कि ‘‘जब मैं पहली बार गर्भवती हुई तो आंगनवाड़ी कार्यकर्ता के द्वारा प्रधानमंत्री मातृत्व वंदना योजना का फार्म सभी दस्तावेजों के साथ भरा गया था। 6 माह तक जब मेरे खाते में पैसा नहीं आया। जब मैं आंगनवाड़ी कार्यकर्ता के पास गई तो पता चला कि मेरा फार्म ही खो गया है और फिर से आंगनवाड़ी कार्यकर्ता द्वारा पुनः आवेदन किया गया फिर भी आज तक मुझे पैसा नहीं मिला है। जबकि मेरा बच्चा लगभग 2 वर्ष का होने वाला है मुझे मेरा हक मिलना चाहिए।”

राजीव रत्न आवास बापरोला की रहने वाली रूनी देवी कहती हैं कि ‘‘मेरे परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है और मैं काम करना चाहती हूं पर मेरे छोटे बच्चे के कारण काम पर नहीं जा पा रही हूं। यदि मेरे बच्चे की देखरेख की व्यवस्था होती तो मैं आराम से काम कर पाती।”

परिचर्चा में नींव दिल्ली फोर्सेस ने सरकार से सहेली समन्वय केंद्र एवं पालना स्कीम हेतु तय किए गए बजट को बढ़ाने की मांग की है। सरकार प्रारम्भिक बाल देखरेख एवं संरक्षण हेतु बजट राशि बढ़ाएगी तो दिल्ली जैसे बड़े शहर में कामकाजी महिलाओं के बच्चों का समेकित एवं सम्पूर्ण विकास हो पायेगा।  

(प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित।)

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author