सम्मान के संजाल में ट्रम्प और मोदी 

आज के दौर में जब सम्मान पैसे देकर खरीदे जा रहे हों तब इने-गिने सम्मान ही बचे हैं जिनको अभी इस श्रेणी से बाहर माना जा रहा है। इनमें से साहित्य, कला, संस्कृति के साथ राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय सम्मान भी बड़े पैमाने पर अब बिकाऊ हो चुके हैं। किंतु सम्मान की भूख से मिला तमगा और सम्मान पत्र आज भी जनमानस में महत्वपूर्ण स्थान रखता है। पीछे की कहानी बहुत कम लोग ही जान पाते हैं खासकर वे जो इस सम्मान प्राप्ति की दौड़ में शामिल रहते हैं।

इस जाल में आजकल डोनाल्ड ट्रम्प बुरी तरह फंसे हुए हैं उनकी तमन्ना अन्तर्राष्ट्रीय नोबेल शांति पुरस्कार पाने की है। जबकि सारी दुनिया यह भली-भांति जानती है कि दुनिया में जहां कहीं भी युद्ध होता है उसके पीछे संयुक्त राज्य अमेरिका का हाथ होता है युद्ध की वजह भी सभी जानते हैं कि वे दुनिया के तमाम खनिज भंडारों पर येन-केन प्रकारेण अपना अधिकार चाहते हैं। यह एकाधिकार उनकी पूंजीवादी साम्राज्यवादी प्रवृत्ति को दर्शाता है। पहले वे ऐसे खनिज संपदा से सम्पन्न देश पर हमला करवाते हैं फिर उसके कमज़ोर होते ही उसके पुनर्निर्माण के बहाने उस देश में प्रविष्ट होकर शांति के पुरोधा बन जाते हैं। हाल ही में उन्होंने भारत-पाक युद्ध और इज़राइल-ईरान के बीच ऐसी ही भूमिकाएं अदा की।

लेकिन पासा उल्टा पड़ गया ईरान की मजबूती और ट्रम्प की हार देखते हुए भारत के विदेश मंत्री जयशंकर प्रसाद तक ने अपने सुर बदल लिए हैं। वे साफ कहते हैं कि सीज़ फायर में उनका कतई हाथ नहीं था। ईरान तो अमेरिका के हमलों से सख्त नाराज है। वह सीज़ फायर अपनी मर्जी से करता है और जब मन होता है फिर ललकार उठता है। अब भला ऐसी हालत में कौन होगा जो उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार दिलाने की बात कर सकता है।यह तभी संभव है जब व्यापार टैरिफ की तरह धमकाकर उन्हें समिति से यह मिल जाए।

दूसरी तरफ़ भारत के प्रधानमंत्री हैं जो ट्रम्प के जाल में ऐसे फंसे हैं कि उन्हें देश में अपनी लुटिया डूबती नज़र आ रही है इसलिए भारत के प्रथम प्रधानमंत्री नेहरू जी के समय बने छोटे-छोटे राष्ट्रों के सम्बन्ध का फायदा उठाते हुए उनके राष्ट्र के सम्मान पाकर देश में अपनी गरिमा वापसी की पहल में जुटे हैं।

पिछली साइप्रस यात्रा में उस छोटे देश में उन्हें वहां दूसरे नंबर का सम्मान प्रदान किया। लाल कॉरपेट पर चलाया। बस मोदी मीडिया लग गया उनके प्रशस्तिगान में। वाह! भारत जैसे बड़े देश के प्रधानमंत्री का यह सम्मान बड़ी उपलब्धि के तौर पर गिना गया। उसे दूसरा नहीं सर्वोच्च सम्मान कहा गया। अखबार और चैनल सम्मान से लदे फदे मोदी जी के चित्र ऐसे परोसते रहे मानों उन्होंने कोई बड़ी निजी फतह हासिल कर ली हो। यह तो अप्रत्यक्ष  तौर पर हम भारतीयों का सम्मान था। जो बड़े देश कनाडा में नदारद था। अमेरिका की बात तो रहने दीजिए। साहिब की उपेक्षा की कई कहानियां हैं।

इसीलिए अब वे उन छोटे-छोटे देशों का रुख कर रहे हैं जहां पुराने रिश्तों के आधार पर सम्मान मिलने की उम्मीद है। पांच छोटे देशों की यह यात्रा इसी उद्देश्य को लेकर हो रही है। वे जिन पांच देशों की महत्वपूर्ण यात्रा पर जाएंगे, जिसमें घाना, त्रिनिदाद और टोबैगो, अर्जेंटीना, ब्राजील और नामीबिया शामिल हैं। उनकी यह यात्रा, इनमें से कुछ देशों के लिए कई दशकों में अपनी तरह की पहली यात्रा है। कहा जा रहा है कि यह यात्रा ग्लोबल साउथ के साथ संबंधों को गहरा करने, आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देने, जलवायु परिवर्तन और तकनीकी नवाचार में साझा चुनौतियों का समाधान करने के लिए भारत की प्रतिबद्धता को दर्शाती है। इस यात्रा के दौरान पीएम मोदी कई द्विपक्षीय बैठकें करेंगे और ब्राजील में 17वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में भी भाग लेंगे। 

यात्रा के प्रथम पड़ाव में वे घाना पहुंचे जहां घाना के राष्ट्रपति ने देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘द ऑफिसर ऑफ द ऑर्डर ऑफ द स्टार ऑफ घाना’ से सम्मानित किया। जिसकी खबर भारत में  जोर-शोर से छाई हुई है।

इस बार तो यह भी प्रचारित किया जा रहा है कि हमारे पीएम को मिलने वाला ये 24 वां वैश्विक सम्मान था। इससे पहले पीएम मोदी को उनके कार्यकाल के दौरान अलग-अलग देशों से 23 अन्य वैश्विक सम्मानों से नवाजा जा चुका है।

उनकी इस उपलब्धि पर भारतवासी गर्व महसूस कर रहे हैं। किंतु अंदरूनी तौर पर आई कुछ अपुष्ट खबरें बताती हैं कि आजकल इस तरह के राष्ट्रीय सम्मानों का भी अच्छा खासा व्यापार शुरू हो गया है। बड़े पुरस्कारों के लिए बड़ी क़ीमत चुकानी भी पड़ती है। अगर यह सच है ऐसा ही हो रहा है तो भारत और अमेरिका को बड़े सम्मानों की प्राप्ति से कोई रोक नहीं सकता है। सम्मान के व्यापार का ये सिलसिला अन्य क्षेत्रों में तो धड़ल्ले से चल रहा है फिर नेता कैसे पीछे रह सकते हैं। वाकई दुनिया में तरक्की और तारीफ के अनेक रास्ते हैं बस ईमानदार कोशिश ज़रूरी है। कोई भी डोनाल्ड और नरेन्दर बन सकता है।

(सुसंस्कृति परिहार लेखिका और एक्टिविस्ट हैं।)

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