कल शाम केंद्र सरकार की ओर से सर्वदलीय बैठक में गृह मंत्री अमित शाह ने बताया कि पुलिस की अनुमति के बिना पर्यटकों के लिए बैसरण बुग्याल खोला गया। होटलों को इस बारे में सूचना देनी चाहिए थी। सुरक्षा बलों को वहाँ तक पहुँचने में 45 मिनट लगे। उन्होंने यह भी बताया कि आतंकवादियों ने हमले से कम से कम 5 दिन पहले 50 किलोमीटर के दायरे में किसी भी संचार सिग्नल का उपयोग नहीं किया।
‘द हिंदू’ अखबार के हवाले से, गृह मंत्री ने कहा कि उस दिन पहलगाम में 500 सुरक्षाकर्मी मौजूद थे, लेकिन बैसरण घाटी में एक भी सुरक्षाकर्मी नहीं था। सीआरपीएफ और सेना का शिविर उक्त स्थान से 5-7 किलोमीटर दूर था। सबसे पहले सीआरपीएफ हरकत में आई, जिसे टट्टू संचालकों ने हमले की सूचना दी थी।
सेना का कहना है कि उनके पास कोई विशेष खुफिया जानकारी नहीं थी, क्योंकि सरकार की नीति के अनुसार, उन्हें पर्यटक स्थलों से दूर रहने को कहा गया था। केंद्रीय संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने सर्वदलीय बैठक के बाद मीडिया ब्रीफिंग में कहा कि पहलगाम में आतंकवादी हमले के मद्देनजर गुरुवार को हुई सर्वदलीय बैठक में सर्वसम्मति से आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में केंद्र को समर्थन देने का वादा किया गया। अधिकारियों ने बैठक में बताया कि बैसरण घाटी में पर्यटकों के जाने की पुलिस अनुमति नहीं थी, जहाँ मंगलवार को 26 पर्यटकों को आतंकियों ने गोली मार दी। दो घंटे से अधिक चली इस बैठक की अध्यक्षता रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने की।
केंद्रीय मंत्री रिजिजू ने बताया कि आईबी और गृह मंत्रालय के अधिकारियों ने सर्वदलीय बैठक में कहा, “यह घटना कैसे हुई और कहाँ चूक हुई। बैसरण घाटी मुख्य सड़क से दूर स्थित है, और वहाँ केवल पैदल या टट्टू से ही पहुँचा जा सकता है। वहाँ तक पहुँचने में दो से ढाई घंटे लगते हैं।”
वहीं, लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने कथित तौर पर टिप्पणी की कि यह एक “बड़ी सुरक्षा विफलता” है और यह बेहद आश्चर्यजनक है कि हजारों लोग पुलिस की जानकारी के बिना एक इलाके में घूम रहे थे।
चूँकि कथित नोएडा गोदी मीडिया और बीजेपी आईटी सेल वर्तमान में अपने नैरेटिव को “जाति नहीं पूछा, धर्म पूछा” से भारत सरकार के पाकिस्तान को पानी की आपूर्ति स्थगित करने के फैसले को निर्णायक कदम के रूप में प्रचारित करने में जुटे हैं, और सोशल मीडिया पर यह दावा किया जा रहा है कि पाकिस्तान भूख-प्यास से त्रस्त होकर जल्द घुटनों पर आ जाएगा, इसलिए इस मुद्दे पर मुख्यधारा के मीडिया में शोर कम हो गया है।
लेकिन कश्मीर घाटी, देश भर से आए सैलानियों और उनके सगे-संबंधियों सहित जागरूक नागरिकों के सवालों का सिलसिला थम नहीं रहा। गुजरात से घूमने आई महिलाओं को ढाढस बंधाती स्थानीय कश्मीरी महिला हो, या गुजरात की ही एक महिला का चीख-चीखकर यह सवाल उठाना कि हजारों पर्यटकों के लिए एक भी सुरक्षाकर्मी नहीं था, जबकि एक वीआईपी की सुरक्षा में सुरक्षाबलों की दर्जनों गाड़ियों का काफिला होता है, इसका जवाब सरकार के पास नहीं है।
सबसे अहम सवाल लोग सोशल मीडिया पर यह पूछ रहे हैं कि बैसरण घाटी में हजारों पर्यटकों की आवाजाही हफ्तों, बल्कि महीनों से चल रही थी, फिर भी सुरक्षा एजेंसियों को इसकी जानकारी कैसे नहीं थी। यह भी महत्वपूर्ण है कि जिस स्थान को भारत का मिनी स्विट्जरलैंड कहा जाता है, उसके खुले होने की खबर गुजरात से लेकर तमिलनाडु के टूर ऑपरेटरों को थी, लेकिन प्रशासन को नहीं थी।
कोई भी पर्यटक जब किसी टूरिस्ट पैकेज को बुक करता है, तो उसमें उसे क्या-क्या घुमाया जाएगा और क्या-क्या अतिरिक्त खर्च होंगे, इसका पूरा ब्यौरा और बजट तैयार कर टूर फाइनल होता है। एक सोशल मीडिया यूजर ने तो यहाँ तक कहा कि चाट, खोमचे वालों और खच्चर वालों को तो पता था कि बैसरण वैली में जमकर धंधा चल रहा है, लेकिन यदि किसी को नहीं पता था तो वह कश्मीर प्रशासन और सुरक्षा एजेंसियाँ थीं।
सरकार शायद यह समझ नहीं पा रही कि इस बार आतंकियों ने किसी प्रवासी श्रमिकों, सुरक्षा बलों या कश्मीरियों की हत्या नहीं की, बल्कि उन शिक्षित मध्यमवर्गीय परिवारों के पुरुषों की हत्या की है, जो मीडिया नैरेटिव को पढ़ना जानते हैं और सोशल मीडिया पर सबसे अधिक सक्रिय रहते हैं।
इसी बीच बीजेपी सरकार के लिए एक और बुरी खबर यह सामने आ रही है कि उनके नए चहेते सांसद निशिकांत दुबे स्वयं पहलगाम में आतंकी हमले से 10 दिन पहले अपनी शादी की 25वीं सालगिरह के मौके पर वहाँ मौजूद थे।
सुशांत सिंह ने ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की खबर साझा करते हुए अपने सोशल मीडिया हैंडल पर कहा, “कश्मीर में सुरक्षा बलों का उपयोग बीजेपी सांसदों के निजी समारोहों के लिए सुरक्षा प्रदान करने में किया जा रहा है, जबकि लोकप्रिय पर्यटन स्थलों पर कोई सुरक्षा व्यवस्था नहीं है।”
अखबार के अनुसार, निशिकांत दुबे के निजी समारोह की जानकारी बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व को पहले ही हो गई थी, और पार्टी के भीतर इस बारे में गहन मंथन चल रहा है। बता दें कि संसद में अडानी का बचाव करने, विपक्षी सांसदों पर अनाप-शनाप आरोप लगाने और हाल के दिनों में मुसलमानों के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पर देश में गृहयुद्ध कराने का आरोप लगाने वाले सांसद निशिकांत दूबे अपने पहलगाम दौरे के बाद इस घटना पर भी जहरीले बयानों से नहीं चूके।
सांसद निशिकांत दुबे ने कल X पर इस आतंकी घटना पर अपनी प्रतिक्रिया इस प्रकार दी: “अशहदु अल्लाह इल्लाह इल्लल्लाहु वह दहु ला शरीक लहू व अशदुहु अन्न मुहम्मदन अब्दुहु व रसूलुहु। आजकल कलमा सीख रहा हूँ, पता नहीं कब जरूरत पड़े।”
उनकी इस टिप्पणी पर लोग सवाल उठा रहे हैं कि 56 वर्षीय निशिकांत दुबे का अधिकांश जीवन कांग्रेस शासन में बीता, लेकिन उन्हें कभी कलमा याद करने की जरूरत नहीं पड़ी। लेकिन आज मोदी शासन में यदि उन्हें कलमा याद करने की जरूरत पड़ रही है, तो यह मोदी सरकार की स्थिति को दर्शाता है।
कांग्रेस पार्टी ने अपने वक्तव्य में कहा है कि पहलगाम एक अत्यंत सुरक्षित इलाका है, जिसे त्रिस्तरीय सुरक्षा व्यवस्था प्रदान की जाती रही है। ऐसे में यह आवश्यक है कि खुफिया विफलताओं और सुरक्षा खामियों का व्यापक स्तर पर विश्लेषण किया जाए, जिसके कारण केंद्र शासित प्रदेश में इस तरह का हमला संभव हो सका-एक ऐसा क्षेत्र जो सीधे केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधिकार क्षेत्र में आता है। इन सवालों को व्यापक जनहित में उठाया जाना चाहिए। उन परिवारों को न्याय दिलाने के लिए, जिनका जीवन इतनी क्रूरता से तबाह हो चुका है, यही सबसे कारगर उपाय है।
बिहार में राजद नेता तेजस्वी यादव ने भी दक्षिण कश्मीर के पहलगाम में 2,000 पर्यटकों की उपस्थिति वाले स्थान पर सुरक्षा उपायों की कमी पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा: “आतंकवादी हमले में मारे गए नौसेना अधिकारी लेफ्टिनेंट विनय नरवाल की बहन सृष्टि ने कहा है कि गोली लगने के डेढ़ घंटे बाद तक विनय जीवित थे, लेकिन कोई भी उनकी मदद के लिए नहीं आया। मैं पूछना चाहता हूँ कि अगर 2,000 पर्यटक एक जगह एकत्र थे, तो वहाँ सुरक्षा व्यवस्था क्यों नहीं थी? यह जानते हुए कि पहलगाम उच्च सुरक्षा वाले क्षेत्र में आता है, वहाँ एक भी सुरक्षाकर्मी मौजूद नहीं था।”
तेजस्वी यादव ने अपने बयान में आगे कहा, “2014 से जम्मू-कश्मीर में 3,982 आतंकवादी गतिविधियाँ हुई हैं, जिनमें 413 नागरिक और 630 सुरक्षाकर्मी शहीद हुए हैं। इन गंभीर चूकों के लिए कौन जिम्मेदार है और कौन इसकी जिम्मेदारी लेगा? राजनीतिक प्रतिशोध के चलते केंद्र सरकार विपक्षी नेताओं के पीछे अधिकांश केंद्रीय एजेंसियों को तैनात करती रहती है, लेकिन आतंकवादियों के पीछे एजेंसियों को तैनात करने में सरकार हमेशा विफल रहती है।”
उधर, भारत के ऐलान के बाद पाकिस्तान ने भी जवाबी कार्रवाई करते हुए सभी भारतीय एयरलाइनों के लिए अपने हवाई क्षेत्र को बंद करने की घोषणा कर दी है। इसका अर्थ है कि भारतीय एयरलाइन ऑपरेटरों के लिए पाकिस्तान का हवाई क्षेत्र निषिद्ध रहेगा, और उन्हें खाड़ी क्षेत्र, यूरोप, यूके और उत्तरी अमेरिका के गंतव्यों के लिए लंबा मार्ग अपनाना होगा, जिससे हवाई किराए में वृद्धि होगी। जाहिर है, विदेशी एयरलाइंस भारतीय कंपनियों की तुलना में समय और लागत दोनों में अधिक किफायती साबित होंगी।
लेकिन देश में पिछले 48 घंटों से हिंदुत्ववादी समूह क्या कर रहे हैं? गोदी मीडिया द्वारा परोसी गई नफरत भरी भाषा को आगे बढ़ाते हुए मेरठ में धर्म पूछकर दो मुस्लिम युवाओं की गोली मारकर हत्या कर दी गई है। महाराष्ट्र, बंगाल और पंजाब से कश्मीरी छात्रों को बहिष्कृत करने का अभियान चलाया जा रहा है।
जम्मू-कश्मीर के उपमुख्यमंत्री सुरिंदर चौधरी को प्रवासी कश्मीरियों की सुरक्षा के लिए महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे से मुलाकात कर आश्वासन लेने की जरूरत पड़ रही है। यहाँ तक कि पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने भी केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से बात कर कश्मीरी छात्रों को मिल रही धमकियों और उत्पीड़न के मामलों में हस्तक्षेप करने का अनुरोध किया है।
जम्मू-कश्मीर छात्र संघ के राष्ट्रीय संयोजक नासिर खुहमी के अनुसार, छात्र संघ की हेल्पलाइन नंबर पर पंजाब, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के छात्रों से आपातकालीन कॉल आए हैं। पंजाब के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) गौरव यादव ने कश्मीरी छात्राओं पर हमले का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल होने के बाद स्थानीय पुलिस को लालरू में एक शैक्षणिक संस्थान में कश्मीरी छात्रों पर हमले की रिपोर्ट की जाँच करने का निर्देश दिया है।
पाकिस्तान की ओर से भी कोई दुख जताने के बजाय सिंधु जल समझौते पर भारत के कदम का कड़ा प्रतिवाद करते हुए तुर्की-बतुर्की ऐलान किया गया है कि सिंधु नदी के पानी को देश में आने से रोकने या मोड़ने का कोई भी प्रयास “युद्ध की कार्रवाई” माना जाएगा। बता दें कि पाकिस्तान के आर्थिक और राजनीतिक हालात खस्ताहाल हैं, और पाकिस्तानी सेना प्रमुख असीम मुनीर के जरिए एक बार फिर सेना का दबदबा बढ़ता जा रहा है।
पाकिस्तान में कुछ हलकों में चर्चा है कि कथित रूप से पहलगाम आतंकी हमले में असीम मुनीर का हाथ है। एक सप्ताह पहले ही पाकिस्तानी सेना प्रमुख जनरल असीम मुनीर ने प्रवासी पाकिस्तानी नागरिकों के एक सम्मेलन को संबोधित करते हुए द्विराष्ट्र सिद्धांत और इस्लामिक गणराज्य का हवाला देते हुए हिंदू-मुस्लिम बच्चों के बीच भेद की जानकारी देने की सलाह दी थी।
पाकिस्तान जो काम 75 वर्षों से नहीं कर सका और एक इस्लामिक देश की जरूरत को आज तक साबित नहीं कर सका, अब उसे भारत में धारा 370, वक्फ बिल संशोधन, सीएए सहित अल्पसंख्यकों पर लगातार बढ़ते हमलों में कायदे-आजम मुहम्मद अली जिन्ना की मांग को वाजिब ठहराने का तर्क नजर आने लगा है। इस एक तीर से पाकिस्तानी शासक वर्ग पाकिस्तान में इमरान खान की पार्टी और लोकतंत्र दोनों को जमींदोज कर सकता है, और देश को सैन्य-मजहबी तानाशाही के पैरों तले आगे भी जारी रख सकता है। उनकी ही जुबान बोलकर, लेकिन हिंदुत्व की पताका फहराकर दक्षिणपंथी ताकतें देश की लोकतांत्रिक आकांक्षाओं को कुचल रही हैं। अच्छी बात यह है कि आम भारतीय अब पहले से कहीं अधिक सजग हो चुका है, जिसका प्रमाण सोशल मीडिया से लेकर सड़कों पर दिखने लगा है।
(रविंद्र पटवाल जनचौक संपादकीय टीम के सदस्य हैं)
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