उत्तराखंड। उत्तराखंड राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के अंदाज निराले हैं। उनके भीतर खुद को बचाए रखने के गुण कूट-कूटकर भरे पड़े हैं। राजनीतिक अनभुव में वे भले ही अपने पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेताओं से बेहद छोटे हों, लेकिन विकेट पर टिके रहने का उनका अनुभव बताता है कि वे लंबी पारी आसानी से खेल सकते हैं।
पार्टी हाई कमान के इशारे को भांप उसके अनुसार अपने एक्शन में बदलाव ही उनकी सबसे बड़ी यूएसपी रही है, जिसके चलते ही पिछले विधानसभा चुनाव में अपने क्षेत्र से हार जाने के बाद भी जब उन्हें मुख्यमंत्री पद पर बने रहने का संदेश आया था, तभी से भाजपा में मौजूद बुर्जुग नेताओं ने मान लिया था कि अब और ज्यादा बेकार में मेहनत करने की जरुरत नहीं है।
जनता का विश्वास जीतें या न जीतें, जिसने हाई कमान के दिल में जगह बना ली हो, उसका कोई भी बाल बांका नहीं कर सकता।
लेकिन ऐसा नहीं है कि हाई कमान का अभयदान मिले तो आपको स्वंय कोई हाथ-पांव नहीं मारना चाहिए। पुष्कर सिंह धामी इस मामले में अन्य उत्तराखंडी नेताओं से काफी तेज-तर्रार राजनेता हैं। राज्य की सामाजिक, आर्थिक एवं सर्व-समावेशी मुद्दों के प्रति नहीं, बल्कि भावनात्मक और विभाजनकारी मुद्दों को स्मार्ट तरीके से प्ले करने के मामले में।
उनके व्यक्तित्व में योगी आदित्यनाथ की तरह की आक्रामकता या रूखापन नहीं है। उत्तराखंड के आम लोग तो उन्हें संभवतः एनडी तिवारी के बाद सबसे स्मार्ट मुख्यमंत्री के तौर पर देखने लगे हैं। वैसे वे इस सबका ध्यान भी काफी रखते हैं।
उनके कार्यकाल में अभी तक दो बड़े अवरोध उत्पन्न हुए थे, जिसमें एक था राज्य में पेपर लीक और नौकरियों की बंदरबांट का मामला और दूसरा था पहाड़ की बेटी अंकिता भंडारी की भाजपा के वरिष्ठ नेता के रिसोर्ट में रहस्मय परिस्थितियों में मौत और बलात्कार का मामला। दोंनों ही मामले बेहद गंभीर थे, लेकिन स्मार्ट सीएम और केंद्र का वरदहस्त, सबकुछ निपट गया।
मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस भले ही देश के अन्य क्षेत्रों में झंडे गाड़ रही हो, लेकिन उत्तराखंड जैसे सवर्ण बहुल प्रदेश, जिसे भाजपा ने देवभूमि के नारे से लगभग सावन का अंधा बना डाला है, से भाजपा को अपदस्थ कर पाना उतना ही कठिन है, जितना कि गुजरात से।
इसलिए, कहा जा सकता है कि धामी जी किस्मत ऊपर से लिखवा कर लाये हैं, और लंबी पारी खेलेंगे।
लेकिन मुश्किल यह है कि राजकाज में जाने-अनजाने छोटी-मोटी बाधाएं तो आ ही जाती हैं। कुछ बड़ी चुनौतियों को आसानी से निपटा दिया जाता है, लेकिन कई बार छोटी सी तुच्छ बाधा भी जी का जंजाल बन जाती हैं।
अब देखिये, आज ही इंडियन एक्सप्रेस के एक खोजी पत्रकार को क्या सूझी कि उसने वन विभाग में एक निलंबित वन अधिकारी की नियुक्ति पर रिपोर्ट कर दी, और मजे की बात है कि इंडियन एक्सप्रेस ने भी इस खबर को राष्ट्रीय हेडलाइंस बना दी। सब जानते हैं कि इस अखबार के फ्रंट पेज के कारण ही अधिकांश पाठक, पत्रकार और यूट्यूबर तक इसे पढ़ते हैं। देश में इससे भी बड़े-बड़े कारनामे कल हुए हैं, लेकिन एक्सप्रेस है कि पता नहीं उसे क्या खुंदक निकालनी थी।
बहरहाल मामला यह है कि इंडियन एक्सप्रेस के खोजी पत्रकार ने पता लगाया है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इंडियन फारेस्ट सर्विस (आईऍफ़एस) अधिकारी और मुख्य वन संरक्षक (सीसीएफ) राहुल को अपने अधिकार का इस्तेमाल करते हुए राजाजी टाइगर रिजर्व का निदेशक नियुक्त कर दिया है।
मुख्यमंत्री धामी ने अपने निर्णय की जानकारी 8 अगस्त को एक हस्तलिखित फाइल नोटिंग के माध्यम से दी थी। अख़बार की हेडलाइंस कुछ इस प्रकार से है, “Uttarakhand CM Dhami overrules Minister, Chief Secy to post ousted Corbett chief as head of Rajaji reserve” जिसका अर्थ हुआ संबंधित मंत्रालय के मंत्री और मुख्य सचिव की अवहेलना करते हुए कॉर्बेट रिजर्व से निकाले गये चीफ को मुख्यमंत्री ने राजाजी रिजर्व का मुखिया बना डाला है।
अब आग कहीं लगी होगी, तभी तो धुआं उठा है। सोशल मीडिया में यह मुद्दा गर्माया हुआ है। सबसे चिंता की बात यह है कि जिम कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में पेड़ों की अवैध कटाई का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट में अभी भी विचाराधीन है। इस विवादास्पद मुद्दे पर कई बड़े अधिकारी नप चुके हैं, और राहुल नामक इस वन अधिकारी को निलंबन से बचाते हुए ऐसी पोस्टिंग दी गई थी, जिससे मामला कूल रहे और बाद में फिर जब निपट जाये तो तब की तब देखी जायेगी।
लेकिन अचानक से बीच में ही राजाजी रिजर्व के निदेशक पद पर नियुक्ति की खबर आज नहीं तो कल सार्वजनिक होनी ही थी। फिर सीएम धामी ने नियमों की अनदेखी कर यह फैसला क्यों किया, यह उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य में अगले कुछ दिनों तक छाया रहने वाला है।
अब देखिये, मुख्यमंत्री के बचाव के लिए आज दोपहर ही वन मंत्री सुबोध उनियाल को आगे आना पड़ा। अपनी बात को कहने के लिए सरकार को अब सरकारी एजेंसियों या प्रेस विज्ञप्ति को जारी करने की जरूरत नहीं पड़ती। यह सेवा सबसे बढ़िया तरीके से एएनआई एजेंसी करती है।
इसकी खबर के अनुसार, मंत्री सुबोध उनियाल जी ने स्पष्ट कर दिया है कि मुख्यमंत्री धामी ने किसी भी प्रकार की कोई मनमानी नहीं की है, बल्कि इस नियुक्ति के लिए उनकी और मुख्यमंत्री जी की पूर्व सहमति ली गई थी। एएनआई की हेडलाइंस कहती है, “बिल्कुल झूठ…”: उत्तराखंड के वन मंत्री ने सीएम धामी द्वारा राजाजी टाइगर रिजर्व के प्रमुख की नियुक्ति के लिए सभी को दरकिनार करने की खबरों पर कहा।
लेकिन इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट तो इसका ठीक उलट तस्वीर पेश करती है। रिपोर्ट में साफ़-साफ़ बताया गया है कि रिकॉर्ड से पता चलता है कि, अप्रैल 2022 में उत्तराखंड उच्च न्यायालय के आदेश के बाद कॉर्बेट टाइगर रिजर्व के निदेशक राहुल पर कार्यवाही करने के बजाय उन्हें वन विभाग के निगरानी, मूल्यांकन, आईटी और आधुनिकीकरण प्रभाग में गैर-क्षेत्रीय पद का प्रभार सौंप दिया गया था।
लेकिन इनके लिए संभावनाओं का द्वार तब खुला जब 18 जुलाई को वन मंत्री ने मुख्यमंत्री के अनुमोदन के साथ 12 वन अधिकारियों की नियुक्ति का प्रस्ताव तैयार किया, जिसमें से एक नाम राहुल का भी था। लेकिन एक सप्ताह के भीतर ही मुख्य सचिव और वन मंत्री की नोटिंग के साथ फाइल वापिस आ गई कि राहुल जी के ऊपर अभी भी मामला चल रहा है और सीबीआई जांच जारी है।
इसका फिर तोड़ निकाला गया। इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, “24 जुलाई को वन मंत्री ने संशोधित प्रस्ताव मुख्यमंत्री को भेजा था, जिसमें वन संरक्षक (भागीरथी सर्किल) को राजाजी का अतिरिक्त प्रभार दिया गया था।
यही वह समय था जब धामी ने अपना पक्ष रखा और इस हस्तलिखित नोट के साथ राहुल की नियुक्ति की पुष्टि की: “राजाजी निदेशक पद पर सीसीएफ राहुल की नियुक्ति… प्रस्तावित थी और इसे मंजूरी दे दी गई है। तदनुसार आदेश जारी करें।” एक दिन के भीतर, सरकार ने “सार्वजनिक हित में” नियुक्ति आदेश जारी कर दिया।”
कायदे से देखें तो इंडियन एक्सप्रेस के पत्रकार ने उस काम को अंजाम दे दिया, जिस काम को सीबीआई, सीवीसी या सर्वोच्च न्यायालय की निगरानी में होना चाहिए। वन मंत्री और मुख्य सचिव की फाइल में नोटिंग और आपत्तियों को एक ऐसे अधिकारी को पुरस्कृत करने के लिए नजरअंदाज किया जा रहा है, जिसे एक दूसरे टाइगर रिजर्व में उन्हीं वनों की कटाई और अवैध निर्माण का दोषी पाया गया था, जिसके संरक्षण की उसकी जिम्मेदारी थी।
बता दें कि राज्य में दो ही टाइगर रिजर्व हैं, एक है रामनगर (नैनीताल) में कॉर्बेट टाइगर रिजर्व और दूसरा है राजाजी टाइगर रिजर्व। एक से उक्त अधिकारी को किसी तरह बचाकर गैर-क्षेत्रीय प्रभार सौंपा गया था। संभवतः कोई बड़ा लिंक हो, जिसके लिए नियमों और कोर्ट की अवहेलना शायद मामूली चीज हो, और राहुल नामक शख्स का रसूख गैर-मामूली हो।
(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)
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