वाराणसी। उत्तर प्रदेश के बनारस में स्थित ऐतिहासिक कबीर मठ में हाल ही में महंत विवेक दास ने अपने उत्तराधिकारी महंत प्रमोद दास की पावर ऑफ अटॉर्नी को निरस्त कर दिया है। यह कदम ‘जनचौक’ में छपी एक खोजी रिपोर्ट के बाद उठाया गया।
जिसमें कबीर मठ की बेशकीमती जमीन को सस्ते में एक प्रॉपर्टी डीलर के हाथों बेचे जाने का मामला उजागर हुआ। यह सौदा उस वक्त हुआ जब महंत विवेक दास जेल में थे और बीएचयू के अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था।
महंत विवेक दास ने 4 अक्टूबर 2024 को बनारस के कबीरचौरा मठ में एक प्रेसवार्ता आयोजित की, जिसमें उन्होंने प्रमोद दास की पावर ऑफ अटॉर्नी को तत्काल प्रभाव से निरस्त करने की घोषणा की। उन्होंने दावा किया, “मैंने कबीर मठ की एक इंच जमीन नहीं बेची है। मठ की जमीनों पर भूमाफिया की नजरें हैं, जो इस संत की धरोहर को हड़पना चाहते हैं।
यही वजह है कि मुझे झूठे मुकदमों में फंसाकर जेल भिजवाया गया। कोरोना महामारी के दौरान मेरी तबियत गंभीर रूप से खराब हो गई थी। उस समय मठ की व्यवस्था बनाए रखने के लिए मैंने प्रमोद दास को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया था।”
महंत विवेक दास ने कहा, “मेरे जेल जाने के बाद प्रमोद दास ने कई गलत निर्णय लिए, जिसका पूरा दोष मेरे ऊपर मढ़ा गया। मैं मठ का मुखिया हूं, इसलिए गलतियां मेरे नाम पर भी थोप दी गईं। यही वजह है कि मैंने प्रमोद दास की पावर ऑफ अटॉर्नी समाप्त करने का फैसला किया।
हमने दिल्ली में कबीर भवन और त्रिनिडाड में पांच एकड़ में कबीरचौरा मठ का निर्माण कराया है। अब मठ की व्यवस्थाओं को संभालने के लिए एक योग्य उत्तराधिकारी की तलाश की जा रही है। कबीर मठ की समृद्ध विरासत को संभालने के लिए मैं जल्द ही एक योग्य साधु को महंत के रूप में नियुक्त करूंगा।”
कबीर की जमीन नहीं बिकेगी
महंत विवेक दास ने यह भी कहा है, “मैंने कोई जमीन न बेचवाई है और न ही किसी को बेचने दूंगा। सारनाथ में 12 एकड़ और शिवपुर में आठ एकड़ जमीन पर कब्जा करने के लिए भूमाफियाओं ने मुझे जेल भिजवाने की साजिश रची।
मैंने वर्षों से तय कर रखा है कि शिवपुर की जमीन पर संत कबीर के वचनों के अनुसार दीन दुखियों की चिकित्सा के लिए एशिया का सबसे बड़ा अस्पताल ही खुलेगा। यही नहीं सारनाथ की भूमि पर भी शिक्षा का मंदिर संत कबीर विद्यापीठ की स्थापना होगी। इन दोनों जमीनों पर भूमाफियाओं की कुदृष्टि है। मेरे जीते जी वो अपने मकसद में कामयाब नहीं हो सकेंगे।”

विवेक दास ने दावा किया, “मठ के विरोधीतत्व मेरे खिलाफ करोड़ों-अरबों रुपये की जमीन बेचने की अफवाह फैला रहे हैं। पूर्व महंत ने जब साल 1999 में मुझे यह गद्दी सौंपी थी तब से आज तक मैंने एक इंच जमीन नहीं बेची है। यह बात अलग है कि वर्षों पहले दो-तीन मकान ऐसे थे, जिस पर कुछ लोगों का कब्जा था और उससे एक पैसे किराया भी नहीं आता था।
तब पूर्व महंत के दबाव में उक्त भवनों को किराएदारों को बेचना पड़ा था। उससे जो धन आया उससे मठ का विकास किया। इसमें मूलगादी मठ में पत्थर बिछाना, स्टैच्यू बनाना, मठ का मरम्मत व विकास किया गया।”
विवेक दास ने बताया कि, “जब मुझे पता चला कि यहां के उत्तराधिकारी महंत प्रमोद दास ने मुझे जेल से छुड़ाने के लिए पैसे का इंतजाम करने के लिए शिवपुर की जमीन को लीज पर देने के लिए अनुबंध किया तो मैंने जेल से छूटते ही पहले उसे रुकवाया। मैंने प्रमोद दास को जमीन को बेचने के लिए कोई पावर आफ एटार्नी नहीं दी थी।
प्रमोद ने जिस जमीन का सट्टा किया है वह वैधानिक तौर पर सही नहीं है। कबीर की जिस जमीन का सट्टा किया गया है उसे बेचने के लिए कोर्ट में जो अर्जी दी गई है उसे वापस लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है और वो पट्टा स्वतः निरस्त हो जाएगा। मैं कबीरपंथी हूं और मैंने हमेशा मठ की संपत्ति और परंपराओं को सुरक्षित रखने का प्रयास किया है।”
उल्लेखनीय है कि चंदौली के सांसद वीरेंद्र सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को पत्र भेजकर शिकायत की है कि महंत विवेक दास और उनके उत्तराधिकारी प्रमोद दास मठ की जमीन को कौड़ियों के भाव बेच रहे हैं।
“जनचौक” में खोजी रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद से बनारस के कई प्रापर्टी डीलरों और भूमाफिया की नींद उड़ी हुई है। दरअसल, सक्षम न्यायालय की अनुमति के बगैर किसी सोसाइटी की जमीनों की बिक्री नहीं की जा सकती है।
आरोप है कि कोर्ट में सिर्फ अर्जी देकर ये जमीनें औने-पौने दाम पर बेच दी गई हैं अथवा उनका रजिस्टर्ड सट्टा कर दिया गया है। आरोप है कि महंत विवेक दास के उत्तराधिकारी कबीर मठ की जमीनों को कौड़ियों के दाम पर बेच डाला।
कबीर मठ, जो संत कबीर दास की शिक्षाओं का प्रचार करता है, धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। बनारस, कबीर की कर्मस्थली रही है तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र भी।
चंदौली के सपा सांसद वीरेंद्र सिंह ने एक बार फिर दोहराया है कि बनारस में कबीर, तुलसी, प्रेमचंद और जयशंकर प्रसाद की विरासत पर डाका डाला जा रहा है। मठ-मदिरों की जमीनों की अवैध तरीके से हो रही खरीद-फरोख्त की उच्चस्तरीय जांच जरूरी है, क्योंकि इससे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इमेज पर भी बट्टा लग रहा है।
मोदी इस शहर के सांसद हैं और महापुरुषों की जमीनों पर भूमाफिया के डाका डाले जाने से प्रधानमंत्री की दुनिया भर में बदनामी होगी। ऐसे प्रापर्टी डीलरों की भूमिका की सीबीआई जांच होनी चाहिए जो कबीर की विरासत हड़पने की कोशिश कर रहे हैं।
बनारस शहर भर में बिखरी हुई कबीरचौरा स्थित मूलगाधी कबीर मठ की संपत्तियों को बेचने का सिलसिला कोई नया नहीं है। कुछ महीने पहले कबीर मठ के महंत विवेक दास जब एक महिला के साथ छोड़छाड़ के मामले में जेल में बंद थे, उसी समय उनके उत्तराधिकारी प्रमोद दास ने शिवपुर के मौजा कादीपुर स्थित बेशकीमती जमीन को कौड़ियों के भाव एक प्रापर्टी डीलर के नाम रजिस्टर्ड सट्टा कर दिया।
यह रजिस्टर्ड सट्टा पाटलीपुत्र रियल स्टेट प्राइवेट लिमिटेड के निदेशक विवेक कुमार कुशवाहा के नाम किया गया है।

जमीन के सट्टे की पटकथा
वाराणसी के शिवपुर परगना के कादीपुर मौजा में स्थित श्री सद्गुरु कबीर मंदिर की करोड़ों रुपये की संपत्ति एक विवादास्पद अनुबंध का केंद्र बिंदु बन गई है। इस संपत्ति के विक्रय के लिए जो बिक्री अनुबंध विलेख तैयार किया गया है, वह संपत्ति के हस्तांतरण की प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण कानूनी दस्तावेज़ है।
लेकिन इसमें कुछ कानूनी औपचारिकताएं और शर्तें अभी पूरी नहीं हुई हैं, जिसके कारण संपत्ति का वास्तविक कब्जा तुरंत खरीदार को हस्तांतरित नहीं किया गया है।
यह अनुबंध वाराणसी के उप-निबंधक कार्यालय में निष्पादित किया गया, जिसमें विक्रेता के रूप में प्रमुख धार्मिक संस्था श्री सद्गुरु कबीर मंदिर को नामित किया गया है। इस मंदिर का प्रतिनिधित्व आचार्य महंत विवेक दास और उनके उत्तराधिकारी प्रमोद दास द्वारा किया गया था।
अनुबंध में विक्रेता के पते के रूप में दिल्ली और वाराणसी दोनों स्थानों का उल्लेख किया गया है, जो इस धार्मिक संस्था की गतिविधियों के कई स्थानों पर फैले होने को दर्शाता है।
महंत विवेक दास का स्थायी पता मकान नंबर 25 एल.एस.सी., कबीर भवन, मदन गिरी, दक्षिण दिल्ली के रूप में दर्ज है, जबकि वाराणसी का वर्तमान पता सी. 23/5सी, कबीरचौरा, वाराणसी बताया गया है। इसके अलावा, उनके पैन कार्ड नंबर AAFTS3722G और संपर्क के लिए मोबाइल नंबर 9711813589 का उल्लेख किया गया है, जिससे उनकी पहचान सुनिश्चित की जा सके।
धार्मिक संस्था और कानूनी पेंचीदगियां
श्री सद्गुरु कबीर मंदिर एक धार्मिक संस्था है, जो कबीरपंथ से जुड़ी हुई है। इसके महंत मंदिर की संपत्तियों की देखरेख और प्रशासनिक कार्यों के लिए जिम्मेदार होते हैं। हालांकि, अनुबंध में यह साफ उल्लेख किया गया है कि महंत विवेक दास और उनके उत्तराधिकारी प्रमोद दास मंदिर की संपत्तियों को सीधे तौर पर बेचने के लिए सक्षम नहीं हैं।
और इसके लिए कोर्ट की अनुमति जरूरी होती है। इस अनुबंध में विक्रेता द्वारा संपत्ति का भौतिक कब्जा तुरंत खरीदार को नहीं सौंपा जाएगा, क्योंकि कानूनी औपचारिकताएं अभी पूरी नहीं हुई हैं। यह स्थिति तब उत्पन्न होती है जब विक्रेता और खरीदार के बीच संपत्ति के विक्रय संबंधी कुछ शर्तें लंबित होती हैं।
इस अनुबंध में खरीदार के रूप में Patliputra Real Estate Pvt. Ltd. नामक एक रियल एस्टेट कंपनी को नामित किया गया है। अनुबंध के अनुसार, इस कंपनी ने कानूनी शर्तों के तहत मंदिर की संपत्ति खरीदने का प्रस्ताव रखा है। यह बिक्री अनुबंध खास तौर पर बिना कब्जे के है, जिसका मतलब है कि संपत्ति का भौतिक हस्तांतरण तब तक नहीं होगा, जब तक कि सभी कानूनी औपचारिकताएं पूरी न हो जाएं।

यह अनुबंध संपत्ति के हस्तांतरण की प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है और इसका पालन तभी किया जाएगा जब संबंधित शर्तें और औपचारिकताएं पूरी हो जाएंगी।
दस्तावेज़ों के मुताबिक, श्री सद्गुरु कबीर मंदिर, कबीरचौरा, वाराणसी की संपत्ति से संबंधित है, जिसे प्रथम पक्ष के रूप में महंत विवेक दास द्वारा प्रबंधित किया जाता है। दस्तावेज में संपत्ति की सीमाएं भी अंकित की गई हैं और कहा गया है कि यह संपत्ति महंत विवेक दास को उत्तराधिकार में प्राप्त हुई है, और वे मंदिर के अध्यक्ष और न्यासी के रूप में इस संपत्ति के व्यवस्थापन, अनुबंध, और अंतरण का पूरा अधिकार रखते हैं।
न्यास की जरूरतों को पूरा करने के लिए संपत्ति को बेचने का निर्णय 24 फरवरी 2024 को संस्था के प्रस्ताव के आधार पर लिया गया है। अनुबंध के अनुसार, संपत्ति की बिक्री का प्रतिफल 1,80,00,000 रुपये है, जिसमें 3,60,000 रुपये स्टाम्प शुल्क और 70,000 रुपये पंजीकरण शुल्क शामिल है।
यह दस्तावेज़ 24 जून 2024 को दोपहर 04:02:51 बजे वाराणसी के उप निबंधक कार्यालय में निबंधित किया गया। इस पर निबंधक अधिकारी इरफान अहमद के हस्ताक्षर हैं।
जेल में महंत, चेले ने बेची जमीन
श्री सद्गुरु कबीर मंदिर से जुड़े एक और विवाद ने तूल पकड़ लिया है। जब महंत विवेक दास जेल में थे, उनके उत्तराधिकारी प्रमोद दास ने शिवपुर की 20 बिस्वा जमीन बेचने के लिए अनुबंध कर दिया। आरोप है कि प्रमोद दास ने मंदिर की 157 बिस्वा जमीन को मात्र 10,000 रुपये प्रति माह के किराए पर महेंद्र कुमार मिश्र नामक व्यक्ति को दे दिया।
जो बरहीकला नेवादा के निवासी हैं। इस लेन-देन में महेंद्र मिश्र गवाह के रूप में भी शामिल हैं। यह वही जमीन है जिस पर दुबई के एक उद्यमी ने आम जनता के लिए अस्पताल बनवाने के लिए आधारशिला रखी थी।
दूसरी ओर, लहरतारा कबीर प्राकट्य स्थल के महंत गोविंद दास आरोपों की झड़ी लगाते हुए कहते हैं, “कबीर मठ के महंत विवेक दास और उनके कथित उत्तराधिकारी प्रमोद दास ने मिलकर संस्था की अरबों रुपये की जमीनें बेची हैं और वह पैसा कहां गया, किसी को नहीं मालूम।
24 जून 2024 को शिवपुर में जिस जमीन को बेचने के लिए रजिस्टर्ड सट्टा कराया गया है, उसकी बाजार की कीमत करीब 20 करोड़ रुपये है, जबकि उसे सिर्फ 1.80 करोड़ में बेचने के लिए पंजीकृत सट्टा किया गया है।”
“शिवपुर जैसे इलाके में करीब 157 बिस्वा जमीन सिर्फ दस हजार रुपये महीने पर किराये पर देने की कहानी बहुत कुछ कहती है। गुरु-चेले मिलकर बनारस में संत कबीर के इतिहास को मिटाने की कोशिश कर रहे हैं। दोनों की भूमिका की उच्चस्तरीय जांच होनी चाहिए।
विवेक दास की हठधर्मिता के कारण कबीर मठ मूलगादी में मूलभूत सुविधाओं का अभाव है, जिससे दूर-दूर से आने वाले भक्तों को परेशानियों का सामना करना पड़ता है। इसके बावजूद, विवेक दास मठ के विस्तार की बातें करते हैं।”
महंत गोविंद दास का यह भी आरोप है कि, “साल 2005 और 2020 में, उन्होंने मठ की संपत्ति बेची और सट्टा किया। पहले उन्होंने तीन भवन बेचे, फिर चार साल पहले दो जमीनों का सट्टा किया।
कबीर मठ के उत्तराधिकारी प्रमोद दास हैं और विवेक दास सिर्फ सदस्य हैं। विवेक दास ने अहंकार के कारण कबीर की विरासत का विस्तार नहीं होने दिया, जबकि सरकार लहरतारा के लिए 10 करोड़ रुपये जारी कर चुकी है।”
मठ पर कब्जे की लड़ाई
कबीर मठ मूलगादी के उत्तराधिकार को लेकर दो पक्षों में लंबे समय से विवाद चल रहा है। इस मामले को लेकर इसी साल विवाद हुआ, जिसमें एक तरफ महंत विचार दास और दूसरी तरफ विवेक दास के उत्तराधिकारी महंत प्रमोद दास थे। विचार दास ने खुद को कबीर मठ का उत्तराधिकारी बताते हुए अदालत का आदेश दिखाया,
जबकि प्रमोद दास ने खुद को महंत विवेक दास का उत्तराधिकारी बताया और विचार दास पर मठ की संपत्ति बेचने का आरोप लगाया। इस मामले में पुलिस की हस्तक्षेप से विवाद को शांत कराया गया। मठ की संपत्ति, गद्दी, और विरासत का यह विवाद साल 2010 से चल रहा है।
कबीर मठ की देश भर में 365 शाखाएं हैं, उनमें से दो सौ मठों के पास संपत्तियां है। इनका संचालन मूलगादी पीठ ही करती है।इसकी शाखाएं पाकिस्तान में भी हैं। साल 1989 में मूलगादी के महंत अमृत साहब का देहांत होने के बाद गंगाशरण शास्त्री महंत बने और विचारदास को उत्तराधिकारी बनाया।
साल 1999 में महंत गंगा शरण शास्त्री ने विवेक दास को महंत बनाया तो साल 2023 में महंत विवेक दास ने प्रमोद दास को उत्तराधिकारी घोषित कर दिया।
खास बात यह है कि सोसाइटी के बनारस के रजिस्ट्रार ने प्रमोद दास को महंत के रूप में मान्यता देने से इनकार कर दिया है और विवेक दास को ही महंत माना है। ऐसे में संपत्तियों को बेचना का अधिकार प्रमोद दास को कैसे मिल गया गया, इस सवाल का जवाब अभी तक अनुत्तरित है?
शिवपुर स्थित जमीन का सट्टा कराने वाले प्रापर्टी डीलर की मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही हैं। इसकी बड़ी वजह यह है कि जिस समय कीमती जमीन का कौड़ियों के दाम पर पंजीकृत सट्टा किया गया, उस समय संस्था का नवीनीकरण भी नहीं हुआ था। महंत विवेक दास के जेल से रिहा होने के बाद कबीर मठ मूलगाधी संस्था का रिन्युवल हुआ। ऐसे में प्रमोद दास द्वारा किसी प्रापर्टी को बेचे जाने पर पंजीकरण स्वतः अवैध माना जाएगा।
नए उत्तराधिकारी की तलाश
कबीर मठ मूलगादी संस्था से करीब 20 लोग जुड़े हैं, जो बनारस के प्राख्यात लेखक, पत्रकार, एक्टिविस्ट आदि हैं। महंत विवेक दास पर मठ की जमीनों को कौड़ियों के दाम पर प्रापर्टी डीलरों को बेचे जाने पर सवाल उठने के बाद उन्होंने नए उत्तराधिकारी की तलाश शुरू कर दी है।
सूत्र बताते हैं कि नए उत्तराधिकारी के रूप में विदेशों में रहकर कबीर के विचारों का प्रचार करने वाले आशीष कबीर को नया उत्तराधिकारी बनाया जा सकता है।
आशीष कई भाषाओं के जानकार हैं और संस्था को बेहतर तरीके से चलाने का उन्हें अनुभव है। इन दिनों वह संभवतः इंग्लैंड में रह रहे हैं। बनारस के कबीर मठ से उनका पुराना नाता है। इसी मठ में रहकर आशीष पले-बढ़े हैं।
कबीर मठ से लंबे समय से जुड़े एक्टिविस्ट डॉ. लेनिन कहते है, “कबीरचौरा मठ केवल एक आध्यात्मिक स्थल नहीं है, बल्कि यह स्थान उन लोगों के लिए एक प्रेरणा स्रोत है, जो कबीर के विचारों को अपने जीवन में आत्मसात करना चाहते हैं। यहाँ आने वाले लोग कबीर की शिक्षाओं से सीखते हैं कि समाज को भाईचारे, एकता और सहानुभूति के आधार पर बनाना चाहिए।”
“कबीर भारतीय रहस्यवादी कवि और संत थे, जिन्होंने निर्गुट विचारधारा का समर्थन किया और समाज की कुरीतियों पर चोट की। उनकी रचनाओं ने भारतीय समाज पर गहरा प्रभाव डाला और मानवता, समानता, तथा प्रेम का संदेश फैलाया।
कबीर के शिष्यों ने उनकी शिक्षाओं और विचारधारा को आगे बढ़ाते हुए कबीर पंथ की स्थापना की, जो समय के साथ विस्तृत होता गया। इसी पंथ के अनुयायियों ने कबीरचौरा मठ का निर्माण किया, जो अब एक प्रमुख धार्मिक और आध्यात्मिक केंद्र बन चुका है।”
डा.लेनिन कहते हैं, “आज यह पंथ इतना बड़ा हो चुका है कि करीब एक करोड़ लोग इससे जुड़े हुए माने जाते हैं। कबीरचौरा मठ केवल भौतिक रूप से नहीं, बल्कि विचारों और आदर्शों के माध्यम से भी लगातार फैल रहा है, और समाज को कबीर की शिक्षाओं से जोड़ने का काम कर रहा है।
महंत विवेक दास ऐसे संत हैं जिन्होंने कबीर की शिक्षाओं को दुनिया भर में फैलाने के लिए बड़ा काम किया है। कई किताबें लिखी और पूरे संसार में कबीर के विचारों को फैलाया। महंत विवेक दास गलत होते तो अपने सबसे करीबी व्यक्ति से पावर आफ अटार्नी वापस नहीं लेते। हमें लगता है कि भविष्य में वह जो भी निर्णय लेंगे वह संस्था के हित में होगा, गलत बिल्कुल नहीं होगा।”
(विजय विनीत बनारस के वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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