कहीं ऐसा तो नहीं कि आपके सामने नकली आपदाएँ खड़ी करके, वास्तविक प्राकृतिक आपदाओं के प्रबंधन से पल्ला झाड़ने का अवसर तलाश रही है सरकार? कभी औरंगज़ेब, कभी राणा साँगा, तो कभी स्टैंड-अप कॉमेडी जैसी नकली आपदाएँ हर रोज़ आपके सामने परोसी जा रही हैं। ऐसा लगता है जैसे पिछले दस सालों से नकली आपदाओं की बाढ़-सी आ गई हो-कभी धर्म पर, कभी गाय पर, कभी आस्था पर, कभी इतिहास पर, तो कभी गौरव पर-हर तीसरे दिन एक नई आपदा आती रहती है। लगता है नकली आपदाओं की फ़ैक्ट्रियाँ खुल गई हैं, जहाँ हर प्रकार की आपदा तुरंत तैयार कर दी जाती है।
लेकिन ऐसा नहीं है कि इस दौरान वास्तविक आपदाओं ने दस्तक नहीं दी। सच तो यह है कि इसी दौरान विश्व की सबसे बड़ी आपदा का जनता ने सामना किया है। इसके अलावा भी हिंदुस्तान लगातार प्राकृतिक आपदाओं से जूझता रहा है। लेकिन “नकली आपदा-फ्रेंडली” सरकार वास्तविक प्राकृतिक आपदाओं के प्रबंधन के मामले में सुस्त नज़र आती है। साइक्लोन प्रबंधन व न्यूनीकरण और आपदा प्रबंधन को लेकर बजट में जितनी तरजीह दी गई है, उससे तो ऐसा ही लगता है।
भारत और प्राकृतिक आपदाएँ
यूनिसेफ के अनुसार, भारत दुनिया के सबसे ज़्यादा आपदा-प्रवण देशों में से एक है, यानी पूरी दुनिया में प्राकृतिक आपदाओं का सबसे अधिक खतरा हिंदुस्तान में है। भारत के 29 में से 27 राज्य और सात केंद्रशासित प्रदेश बार-बार चक्रवात, भूकंप, भूस्खलन, बाढ़ और सूखे जैसे प्राकृतिक खतरों का सामना करते हैं। इसके अलावा, हर साल शीत लहर और लू से होने वाली मौतों की ख़बरें हम लगातार सुनते रहते हैं।
डाउन टू अर्थ की एक रिपोर्ट के अनुसार, मार्च 2024 से जून 2024 के बीच लू से 17 राज्यों में 733 मौतें हुई हैं। यानी गर्मी के इन चार महीनों में लू से हर रोज़ औसतन दो मौतें हुई हैं। 37 शहरों का तापमान 45 डिग्री सेल्सियस से ऊपर गया है। लू के अलावा शीत लहर, बाढ़, भारी बारिश, बिजली गिरने, बादल फटने आदि कारणों से भी हर साल हज़ारों लोगों की मौत होती है। एक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2024 में खतरनाक मौसमी कारणों से 3,200 से ज़्यादा लोगों की मौत हुई है। ग़ौरतलब है कि जलवायु परिवर्तन इन परिस्थितियों को और भी विकट बना रहा है।
इन मौतों के आँकड़ों के पीछे की कहानी और भी भयानक है। हर मृत व्यक्ति के एक आँकड़े के पीछे तड़पता हुआ एक पूरा परिवार है। जितने लोगों की मौत होती है, उससे कई गुना ज़्यादा लोग इन मौसमी आपदाओं से बीमार पड़ते हैं। इसके अलावा आर्थिक बर्बादी अलग से है। उदाहरण के तौर पर, सूखे की वजह से हर साल किसान प्रभावित होते हैं। साइक्लोन से मछुआरे प्रभावित होते हैं। बाढ़ की वजह से लोगों को विस्थापित होना पड़ता है और जान-माल का नुकसान होता है। बड़ी संख्या में पशुधन की हानि होती है।
प्राकृतिक आपदाओं को लेकर सरकार का रवैया
अब एक बार देखते हैं कि आपदा प्रबंधन को लेकर सरकार कितनी गंभीर है। देश में आपदा प्रबंधन, राहत और बचाव आदि के लिए एक विशिष्ट बल है, जिसे नेशनल डिज़ास्टर रिस्पॉन्स फोर्स (एनडीआरएफ) कहते हैं। नेशनल डिज़ास्टर रिस्पॉन्स फोर्स (एनडीआरएफ) में 23% पद खाली पड़े हैं। पुलिस अनुसंधान एवं विकास ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार, एनडीआरएफ में कुल 18,557 स्वीकृत पद हैं, जिनमें से मात्र 14,197 पद ही भरे गए हैं। ये आँकड़े 1 जनवरी 2023 तक के हैं, और फ़िलहाल यही ताज़ा आँकड़े सार्वजनिक रूप से उपलब्ध हैं।

आपदा प्रबंधन के लिए बजट आवंटन में कटौती की गई है। वित्त वर्ष 2025-26 के बजट के अनुसार, गृह मंत्रालय के तहत आपदा प्रबंधन के लिए वर्ष 2024-25 का बजट अनुमान (बीई) 288 करोड़ रुपये था, जबकि वर्ष 2025-26 के लिए बजट अनुमान मात्र 100 करोड़ रुपये है। यानी पिछले वर्ष की तुलना में बजट अनुमान (बीई) में 65% की कमी आई है। वित्त वर्ष 2024-25 के आपदा प्रबंधन के संशोधित अनुमान और वित्त वर्ष 2025-26 के बजट अनुमान में 2.3% की कमी आई है। सवाल उठता है कि जब जलवायु परिवर्तन की वजह से प्राकृतिक आपदाओं का खतरा बढ़ गया है, तो आपदा प्रबंधन का बजट क्यों घटाया जा रहा है?

साइक्लोन जोखिम न्यूनीकरण परियोजना बंद
आप जानते हैं कि पिछले सालों में भारत के तटीय प्रदेशों ने भयंकर चक्रवातों का सामना किया है, जिसमें बड़े पैमाने पर जान-माल का नुकसान हुआ है। ग़ौरतलब है कि भारत के आठ तटीय प्रदेश लगातार चक्रवात के जोखिम से जूझते हैं और आपदा की संभावना बनी रहती है। इन आठ प्रदेशों के लिए साइक्लोन जोखिम न्यूनीकरण परियोजना शुरू की गई थी, जिसका उद्देश्य पहले से चेतावनी जारी करने का सिस्टम विकसित करना, साइक्लोन के जोखिम को कम करने के लिए बुनियादी ढाँचा विकसित करना और आपदा प्रबंधन के लिए तकनीकी सहायता व क्षमता विकसित करना था।
लोकसभा में एक सवाल के लिखित जवाब में गृह मंत्रालय के राज्यमंत्री श्री नित्यानंद राय ने बताया कि इस परियोजना को मार्च 2023 में बंद कर दिया गया है। इस परियोजना के संदर्भ में ऐसा भी देखने को मिला, जिससे लगता है कि सरकार आपदा प्रबंधन में भी कहीं न कहीं राजनीतिक प्रतिशोध से प्रभावित है। संसदीय स्थायी समिति ने अपनी रिपोर्ट में रेखांकित किया है कि मार्च 2023 में इस परियोजना के तहत पश्चिम बंगाल को जारी की गई राशि को आवंटन के बाद घटा दिया गया और पश्चिम बंगाल सरकार से 12 करोड़ रुपये का भुगतान वापस लेने के लिए कार्यवाही की गई।

ये तमाम हालात बता रहे हैं कि प्राकृतिक आपदाओं का खतरा ज़्यादा है और सरकार की तैयारी कमज़ोर है। सरकार को इस तरफ़ ज़्यादा ध्यान देना चाहिए और प्राकृतिक आपदाओं को लेकर एक राष्ट्रीय नीति बनानी चाहिए। न सिर्फ़ आपदा के बाद बचाव व पुनर्वास पर ध्यान देना चाहिए, बल्कि इस बात पर फ़ोकस करना चाहिए कि आपदाओं को कम कैसे किया जाए और इनके प्रभाव को न्यूनतम कैसे लाया जाए। लेकिन सरकार इस तरफ़ गंभीर दिखाई नहीं दे रही है। तो बेहतर होगा कि हर रोज़ नकली आपदाएँ खड़ी करके जनता को उनमें झोंकने की बजाय वास्तविक आपदाओं के प्रबंधन पर ध्यान दिया जाए।
(राज कुमार, स्वतंत्र पत्रकार एवं फ़ैक्ट चेकर)
+ There are no comments
Add yours