मोदी और बाइडेन। फाइल फोटो।

मोदी से बातचीत में बाइडेन का लोकतंत्र पर था जोर, लेकिन भारत सरकार के आधिकारिक वक्तव्य में जिक्र तक नहीं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ अपनी टेलीफोनिक बातचीत में अमेरिकी राष्ट्रपति इलेक्ट जो बाइडेन ने देश और बाहर दोनों जगहों पर लोकतंत्र को मजबूत करने की बात कही है। भारत और दुनिया की मौजूदा स्थितियों को देखते हुए बाइडेन के ये शब्द बेहद महत्वपूर्ण हो जाते हैं। दिलचस्प बात यह है कि भारत सरकार की ओर से आए आधिकारिक बयान में इसका कोई जिक्र नहीं है।

बाइडेन और हैरिस की संक्रमणकालीन टीम ने कहा है कि टेलीफोनिक बातचीत में बाइडेन ने घर और बाहर दोनों जगहों पर लोकतंत्र को मजबूत करने की बात उठायी है। उधर, भारत सरकार के बयान में कहा गया है कि “मोदी ने पूरी गर्मजोशी के साथ बाइडेन के चुने जाने पर उन्हें बधाई दी और इसे अमेरिका में लोकतांत्रिक परंपराओं के प्रति प्रतिबद्धता और मजबूती का दस्तावेज बताया।”

अमेरिका की लोकतांत्रिक परंपराओं का जिक्र अमेरिका में लोकतांत्रिक प्रक्रिया के लिए एक परोक्ष टिप्पणी है जिसमें अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपनी हार मानने से इंकार कर दिया था।

चुने गए राष्ट्रपति न केवल अमेरिका में बल्कि दूसरे देशों में भी लोकतंत्र का जिक्र करते हैं जबकि भारतीय विदेश मंत्रालय ने बातचीत के उस हिस्से को बयान से बिल्कुल गायब कर दिया। जोर पर यह अंतर “साक्षा लोकतांत्रिक मूल्यों: साफ और स्वतंत्र चुनाव, कानून के सामने समानता, बोलने और धर्म की आजादी” को चिन्हित करते हुए चलाए गए बाइडेन के चुनाव अभियान के संदर्भ में बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है।

बाइडेन के चुनाव अभियान का दस्तावेज कहता है कि “ये बुनियादी सिद्धांत हममें से प्रत्येक देश के इतिहास का हिस्सा रहे हैं और भविष्य में भी हमारी ताकत और उसकी मजबूती का स्रोत बने रहेंगे।”

ओबामा-बाइडेन प्रशासन के एक पुराने कर्मी जो बाइडेन के चुनाव अभियान का सदस्य होने के साथ ही संक्रमकालीन टीम का भी हिस्सा है, ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि बाइडेन के अभियान का फोकस बिल्कुल साफ है: वह यह कि दुनिया की दो सबसे पुराने और बड़े लोकतंत्रों को उदाहरण के जरिये चलना है।

चुनाव प्रचार अभियान के दौरान बाइडेन ने असम में एनआरसी और सीएए कानून लागू किए जाने पर चिंता जाहिर की थी। इसके साथ ही उपराष्ट्रपति पद की प्रत्याशी कमला हैरिस ने कहा था कि “ ‘हम देख रहे हैं’ और एक राष्ट्र के तौर पर जिसके मूल्यों के हम हिस्से हैं जब उचित मौका आएगा तो मानवाधिकारों के उल्लंघन पर बोलेंगे”।

हालांकि साउथ ब्लॉक महसूस करता है कि पिछले दो दशकों में दुनिया बिल्कुल बदल गयी है। और ट्रम्प के तहत अमेरिकी प्रशासन भी विकसित हो चुका है- और वह यह कि वाशिंटगन इस बात को समझता है कि नई दिल्ली अब भाषण सुनना पसंद नहीं करती। या फिर उसे उसके जरिये दबाया जा सकता है।

बाइडेन का दुनिया में लोकतंत्र पर फोकस के दायरे में चीन भी आएगा।

उस संदर्भ में नई दिल्ली कम से कम इस बात को लेकर आश्वस्त है कि चीन उससे अलग नहीं है। इस लिहाज से पीएम मोदी और चुने गए राष्ट्रपति बाइडेन के बीच इंडो-पैसिफिक सहयोग को लेकर भी बात हुई। इसके अलावा कोविड-19 और उसकी वैक्सीन तथा वैश्विक आर्थिक रिकवरी का एजेंडा भी बातचीत में शामिल था।

बातचीत में मोदी ने बाइडेन के साथ हुई अपनी पहले की दो बैठकों का भी जिक्र किया। जो 2014 और 2016 में हुई थीं। राजनयिकों का कहना है कि ये बैठकें बेहद उत्साहजनक थीं।

विदेश मंत्रालय ने कहा कि “प्रधानमंत्री ने पूरी गर्मजोशी के साथ जोसेफ जो बाइडेन के साथ हुई पहले की बैठकों को याद किया जो 2014 और 2016 के उनके आधिकारिक दौरे के दौरान हुई थीं। बाइडेन ने 2016 में आयोजित कांग्रेस के उस संयुक्त सत्र की अध्यक्षता की थी जिसको प्रधानमंत्री ने संबोधित किया था।”

(ज्यादातर इनपुट इंडियन एक्सप्रेस से लिए गए हैं।)

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