तमिलनाडु में दलित ईसाइयों को आरक्षण की पहल, स्टालिन की अगुवाई में विधानसभा से प्रस्ताव पास 

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तमिलनाडु विधानसभा ने संविधान में संशोधन के दलित ईसाइयों को आरक्षण के दायरे में लाने का प्रस्ताव पास किया है। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन (Tamil Nadu CM MK Stalin) ने बुधवार (19 अप्रैल 2023) को विधानसभा में आरक्षण से संबंधित एक प्रस्ताव पेश किया। इस प्रस्ताव में स्टालिन ने केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार (Narendra Government) से ईसाई धर्म अपनाने वाले आदि द्रविड़ों को आरक्षण देने के लिए संविधान में संशोधन करने का आग्रह किया।

प्रस्ताव में कहा गया है, “यह सम्मानित सदन भारत सरकार से आग्रह करता है कि भारतीय संविधान के तहत अनुसूचित जातियों के लोगों को प्रदान किए गए आरक्षण सहित सभी वैधानिक संरक्षण, अधिकारों और रियायतों को अनुसूचित जातियों के लिए भी करने के लिए संविधान में आवश्यक संशोधन करे, जो ईसाई धर्म में परिवर्तित हो गए हैं। ताकि वे सभी सामाजिक न्याय के प्रावधानों का फायदा उठा सकें।”

यह प्रस्ताव केंद्र सरकार के पास भेजा जाएगा। विधानसभा में यह प्रस्ताव मुख्यमंत्री एम. के.स्टालिन ने प्रस्तुत किया। उन्होंने प्रस्ताव पेश करते हुए कहा कि सरकार ने प्रस्ताव पेश करने से पहले इस विषय पर बहस-मुबाहिसा की और कानूनी विशेषज्ञों से भी सलाह ली गई। उन्होंने जोर देकर कहा कि “ वे इस बात को स्वीकार करते हैं कि आदि द्रविड़ लगातार जातीय अत्याचार का सामना कर रहे हैं, यहां तक कि वे लोग भी जिन्होंने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया है।”

स्टालिन ने यह भी कहा कि चूंकि आज भी ऐतिहासिक कारणों से अनुसूचित जाति की स्थिति में हैं, उन्हें शिक्षा और नौकरियां प्राप्त करने का एकमात्र रास्ता आरक्षण है। एम. के. स्टालिन ने कहा कि उन्हें आरक्षण के लाभ से वंचित करना अनुचित है, सिर्फ इसलिए क्योंकि उन्होंने ईसाई धर्म स्वीकार कर लिया था। उन्होंने कहा कि “यदि उन्हें शिक्षा और रोजगार में आरक्षण का लाभ दिया जाता है तो उनका सामाजिक उत्थान होगा। उन्हें सभी लाभों से वंचित करना सिर्फ इसलिए कि वे दूसरे धर्म में परिवर्तित हो गए हैं, यह उचित नहीं है।” उन्होंने कहा कि धर्मांतरित लोग ऐतिहासिक रूप से अनुसूचित जाति के थे और उन्हें अनुसूचित जाति का दर्जा देना उचित रहेगा।

स्टालिन ने जोर देकर कहा कि कोई व्यक्ति किसी भी धर्म का पालन कर सकता है। यह उसकी स्वतंत्रता है। लेकिन जाति के आधार पर भेदभाव एक सामाजिक बुराई है, जो ऐतिहासिक विरासत का परिणाम है। जो धर्म बदलने से खत्म नहीं होती। उन्होंने सुप्रीन कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश के. जी. बालाकृष्णन के नेतृत्व में अक्टूबर 2022 में स्थापित तीन सदस्यीय आयोग का उल्लेख किया। यह आयोग हिंदू, बौद्ध और सिख धर्म को अन्य धर्मावलंबियों को अनूसूचित जाति का दर्जा देने के संबंध में विचार करने के लिए बनाया गया है। स्टालिन ने कहा कि इस आयोग की रिपोर्ट के आधार पर केंद्र सरकार को संविधान में संसोधन करके एससी के आरक्षण को अन्य धर्मावलंबियों को देना चाहिए।

विधानसभा में यह प्रस्ताव करीब सर्वसम्मति से पारित हुआ। के. पलानीस्वामी और ओ पन्नीरसेल्वम के नेतृत्व में विपक्षी अन्नाद्रमुक के दोनों गुटों ने प्रस्ताव का समर्थन किया। सिर्फ भाजपा ने इसका विरोध किया। भाजपा के सदस्य विधानसभा से वाकऑउट कर गए।

दलित ईसाइयों को अनुसूचित जाति के दायरे में शामिल करने के लिए संविधान में संशोधन जरूरी है, क्योंकि अब तक के संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार हिंदुओं के अलावा सिर्फ सिख और बौद्ध धर्म के अनुयायियों को ही अनुसूचित जाति के आरक्षण का लाभ मिल सकता है। 1956 में संविधान में संसोधन करके सिख धर्म के अनुयायी सिखों को अनुसूचित जाति की श्रेणी में शामिल किया गया था। 1990 में बौद्ध धर्म के अनुयायियों को इसमें शामिल किया गया। दोनों बार संविधान में संशोधन किया गया। स्टालिन के कहा कि संविधान में संशोधन करके उन आदि द्रविड़ों को अनुसूचित जाति में शामिल किया जाना चाहिए, जो ईसाई धर्म स्वीकार लिए हैं।

केंद्र सरकार दलित ईसाई और इस्लाम में परिवर्तित दलितों को अनुसूचित जाति के तहत आरक्षण देने से सुप्रीम कोर्ट में इंकार कर चुकी है। इन धार्मिक समुदायों को अनुसूचित जाति के दायरे में शामिल करने और आरक्षण का लाभ देने की सिफारिश रंगनाथ मिश्रा आयोग ने की थी। आयोग ने 21 मई, 2007 को अपनी रिपोर्ट सौंपी थी। इसका गठन 2004 में हुआ था।

आरक्षण के तमिलनाडु मॉडल को एक आदर्श मॉडल के रूप में देखा जाता है। जहां 69 प्रतिशत आरक्षण है, जो करीब चार हिस्सों में विभाजित है। 46.5 प्रतिशत ओबीसी के लिए है,जो दो हिस्सों में विभाजित हैं। 26.5 प्रतिशत पिछड़ा वर्ग ( B.Cs) और 20 प्रतिशत अत्यधिक पिछड़ा (MB.Cs)। दलितों (एससी) के लिए 18 प्रतिशत आरक्षण है। इसमें से 3 प्रतिशत एससी में अत्यधिक पिछड़े अरुनधाधियार समुदाय के लिए है। मुसलमानों के लिए भी 3.5 प्रतिशत आरक्षण है। एसटी के लिए 1 प्रतिशत आरक्षण है, क्योंकि तमिलनाडु की आबादी में उनका अनुपात सिर्फ 1.10 प्रतिशत है। तमिलनाडु में ईसाई समुदाय एक ऐसा समुदाय है, जिसके वंचित तबके आरक्षण के दायरे में नहीं हैं। यदि वे इस दायरे में आ जाते हैं, तो तमिलनाडु का आरक्षण मॉडल मुकम्मल हो जाएगा।

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