हालांकि बीजेपी नेता गिरिराज सिंह की बिहार में हिन्दू स्वाभिमान यात्रा समाप्त हो गई है, लेकिन इस यात्रा की समाप्ति के बाद राजद प्रमुख लालू यादव ने जो बयान दिया है, उसके कई मायने निकाले जा रहे हैं।
गिरिराज सिंह बीजेपी के नेता हैं और केंद्रीय मंत्री भी हैं। वे जाति से भूमिहार हैं और हिंदुत्व के कट्टर समर्थक माने जाते हैं। बुजुर्ग हो चले हैं, लेकिन समाज को बांटने वाले उनके बयान बिहार के साथ ही देश के लोगों को भी उद्वेलित करते रहते हैं।
22 अक्टूबर को जब बिहार के सीमांचल के किशनगंज में गिरिराज सिंह की हिन्दू स्वाभिमान यात्रा समाप्त हो रही थी, तो सभा में बड़ी संख्या में लोग उपस्थित थे। ‘जय श्रीराम’ के नारे लग रहे थे और ‘हिन्दू-हिन्दू भाई-भाई’ के नारे की गूंज पहली बार किशनगंज की धरती पर सुनाई दी। इससे पहले इस तरह के नारे कभी नहीं लगे थे।
देश के इतिहास में यह पहली बार बिहार में देखने को मिला, जब ‘हिन्दू-मुस्लिम भाई-भाई’ की जगह ‘हिन्दू-हिन्दू भाई-भाई’ के नारे लगे। किशनगंज के लोग अब कह रहे हैं कि यह यात्रा सिर्फ गिरिराज सिंह की यात्रा नहीं थी, बल्कि यह बीजेपी की यात्रा थी।
इसके जरिए बीजेपी ने स्पष्ट कर दिया है कि अब बीजेपी की राजनीति सिर्फ हिन्दुओं के लिए होगी। बीजेपी की राजनीति में मुसलमान कहीं नहीं हैं। अगले विधानसभा चुनाव में बीजेपी सिर्फ हिन्दुओं को केंद्र में रखकर ही राजनीति करेगी, और यह समाज को धार्मिक आधार पर बांटने का सबसे बड़ा खेल है।
किशनगंज के लोग यह भी कह रहे हैं कि अगर बिहार के मुसलमान एकजुट होकर चलने का आह्वान कर दें, तो बिहार और देश का क्या होगा, यह कोई नहीं जानता! बीजेपी को सिर्फ सत्ता चाहिए, चाहे किसी भी तरह मिले।
गिरिराज सिंह की हिन्दू स्वाभिमान यात्रा 18 अक्टूबर को भागलपुर से शुरू हुई थी। इस दौरान गिरिराज सिंह ने सीमांचल के मुस्लिम बहुल चार जिलों का दौरा किया और अपनी सभाओं में केवल हिन्दुओं की बात की और मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला।
उनके सभी बयानों को यदि देखा जाए, तो यह साफ होता है कि सीमांचल के मुस्लिम बहुल इलाकों के हिन्दुओं को एकजुट होकर खड़ा रहने की अपील की गई, ताकि आगामी बिहार विधानसभा चुनाव में बीजेपी को अधिक से अधिक वोट मिल सकें और सीमांचल में बीजेपी की पकड़ मजबूत हो सके।
इसके पीछे एक कहानी यह भी है कि यदि बीजेपी को गिरिराज सिंह के इस अभियान से फायदा होता है और बीजेपी अपने दम पर सरकार बना लेती है, तो गिरिराज सिंह को बिहार की कमान भी सौंपी जा सकती है।
बीजेपी के लोग मानते हैं कि यदि आगामी विधानसभा चुनाव में बीजेपी सरकार बनाने लायक सीटें जीतती है, तो गिरिराज सिंह को बिहार का मुख्यमंत्री भी बनाया जा सकता है। यही कारण है कि गिरिराज सिंह हिन्दुओं को एकजुट करने में जुटे हैं।
अपने प्रयास को सफल बनाने के लिए वे किसी भी हद तक जा सकते हैं, यहां तक कि चुनाव से पहले यदि दंगे की संभावना भी बनती है, तो उसे भी जायज ठहराया जा सकता है।
यह नहीं कहा जा सकता कि गिरिराज सिंह के इस अभियान की भनक जदयू को नहीं है। जदयू को यह भी मालूम है कि इस खेल के पीछे बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व का हाथ है और संघ भी इसमें मददगार है। लेकिन फिलहाल जदयू किसी भी तरह चुनाव से पहले कोई विवाद खड़ा नहीं करना चाहता।
जदयू की कोशिश यह है कि बीजेपी जो धार्मिक ध्रुवीकरण कर रही है, वह अपने चरम पर पहुंच जाए, ताकि चुनाव से पहले वह कोई बड़ा फैसला ले सके।
यह बात साफ है कि नीतीश कुमार चाहे किसी भी कारण से बीजेपी के साथ सरकार चलाते रहे हों, लेकिन वे किसी भी हालत में बिहार के सामाजिक सौहार्द्र को खराब होते नहीं देखना चाहते। वे नहीं चाहते कि बिहार में हिन्दू और मुसलमानों के बीच कोई भेदभाव हो।
यही वजह है कि जब गिरिराज सिंह अपनी यात्रा आगे बढ़ा रहे थे, तब जदयू की तरफ से कई तरह के बयान आए थे। जदयू ने यहां तक कहा था कि गिरिराज सिंह को आखिर सुनता कौन है? लेकिन सच तो यह है कि गिरिराज सिंह जो संदेश देना चाहते थे, वह सफल हो गया।
अब देखना होगा कि सीमांचल के बहाने बिहार के हिन्दू बीजेपी के समर्थन में कितने खड़े होते हैं। अगर ऐसा होता है, तो बिहार में बीजेपी को कौन हरा सकता है? और अगर बीजेपी हिन्दुओं के बल पर सरकार बना लेती है, तो फिर जदयू और एनडीए के अन्य दलों का क्या होगा?
मजे की बात यह है कि गिरिराज सिंह के बहाने बीजेपी ने यह संदेश बिहार में दे दिया है कि उसे मुसलमानों के वोटों की जरूरत नहीं है। जाहिर है, अब बीजेपी को बिहार में किसी मुस्लिम नेता की भी जरूरत नहीं है। आखिर बीजेपी के मुस्लिम नेता किसके पास जाएंगे और किस से वोट मांगेंगे?
बिहार की राजनीति में अब तक बीजेपी को कुछ मुस्लिम वोट मिलते रहे हैं। इसके अलावा मुस्लिम वोटों का बड़ा हिस्सा राजद और जदयू को जाता रहा है। अब जो हालात बने हैं, उनमें अगर मुसलमान जदयू को वोट डालते हैं, तो क्या बीजेपी और जदयू का साथ रहना उचित होगा? यह देखना बाकी है।
लेकिन यह सब चुनाव से पहले की बात है। चुनाव के दौरान बीजेपी अगर कोई और चाल चलती है, तो उस पर भी नजर रखनी होगी।
बहरहाल, गिरिराज सिंह की हिन्दू स्वाभिमान यात्रा समाप्त हो चुकी है, लेकिन बिहार की राजनीति में कोलाहल मचा हुआ है। गिरिराज सिंह ने अपनी यात्रा के दौरान जो कटु भाषण दिए और मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला, उससे बिहार के हिन्दू और मुसलमानों के बीच दूरियां बढ़ने की संभावना है।
संभव है कि चुनाव से पहले बिहार के मुस्लिम बहुल इलाकों से लेकर गैर-मुस्लिम बहुल इलाकों में दंगे भड़के और इसके परिणामस्वरूप पूरा बिहार प्रभावित हो। यही कारण है कि राजद प्रमुख लालू यादव ने बीजेपी और गिरिराज सिंह को चेतावनी देते हुए कहा है कि जब तक वे जीवित हैं, बिहार में कोई दंगा नहीं करा सकता।
उनका यह बयान मामूली नहीं है, और अब राजनीतिक हलकों में चर्चा हो रही है कि क्या बिहार में सचमुच दंगे की साजिश रची जा रही है?
गिरिराज सिंह की यात्रा 18 अक्टूबर को भागलपुर से शुरू हुई थी। इस दौरान उन्होंने सीमांचल के चार जिलों पूर्णिया, अररिया, किशनगंज, और कटिहार का दौरा किया।
वे हिन्दुओं को एकजुट करने के पक्ष में बोले और ‘बंटोगे तो कटोगे’ जैसे विवादास्पद बयान दिए। बीजेपी सांसद प्रदीप सिंह ने यहां तक कह दिया कि अररिया में रहना है तो हिंदू बनना होगा। इससे साफ है कि इस यात्रा के क्या मायने हैं।
अब बड़ा सवाल यह है कि गिरिराज सिंह को सीमांचल में ही क्यों घुमाया गया? इसके पीछे की कहानी रोचक है। 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों के अनुसार, सीमांचल के चार जिलों में कुल 24 विधानसभा क्षेत्र हैं। उसमें 11 सीटों पर मुस्लिम उम्मीदवार जीते थे। बीजेपी ने 8 सीटें जीती थीं।
(अखिलेश अखिल वरिष्ठ पत्रकार हैं।)
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