यह हकीकत है कि दुनियाभर में आज युवा पीढ़ी अधिकाधिक टेक सेवी होती जा रही है, और जमीनी वास्तविकता से उसका साबका कभी-कभार भूल से ही ही हो पाता है। भारत-पाक युद्ध भी एक बड़े तबके के लिए किसी थ्रिलिंग गेम से अधिक नहीं था, जैसा आज की पीढ़ी कम्प्यूटर गेम्स के माध्यम से जज्ब कर चुकी है।
भूल जाईये कि पूरी दुनिया में इस समय भारत-पाक सीमा पर तनाव के खतरनाक मोड़ लेने और युद्धक्षेत्र में शत्रु देश की सेना की कौन सी विंग मुकाबले में हमसे कमतर या बीस ठहरी, अपनी सेना के जीत के नैरेटिव को आगे बढ़ाने के लिए अब वास्तविक मुकाबले में जीत से कहीं ज्यादा प्रोपेगेंडा वार में जीत सबसे पहली शर्त है।
वैसे भूलना तो यह भी नहीं चाहिए कि भारत-पाक युद्ध या उससे भी बढ़कर दुनिया में परमाणु युद्ध का खतरे के आहट की मूल वजह तो कश्मीर के पहलगाम की वो खूबसरत बैसरण घाटी रही, जिसे देखने विशेषकर लाखों नवविवाहित जोड़ों के लिए अपनी यादों में संजोने का सपना रहता है। उस कश्मीर में, जहां लाखों की तादाद में सशस्त्र बलों की तैनाती हो, पिछले कई वर्षों से कश्मीर को केंद्र शासित राज्य बनाकर, प्रशासन और सुरक्षा की जिम्मेदारी एलजी के माध्यम से सीधे केंद्रीय गृह मंत्रालय की निगरानी में हो, वह हजारों सैलानियों के बैसरण घाटी में होने के बावजूद एक भी सुरक्षाकर्मी को तैनात करना जरूरी नहीं समझा?
26 नागरिकों की मौत से आहत देश उन आतंकियों को आकाश-पाताल से ढूंढ निकालने की मांग के साथ-साथ गृह मंत्रालय, राष्ट्रीय सुरक्षा एजेंसी की कार्यप्रणाली और कश्मीर में धारा 370 निरस्त किये जाने के बाद से ‘आतंकवाद की कमर तोड़ दी’ है जैसे दावों की हकीकत जानना चाहता था।
लेकिन सरकार ने क्या किया? वे चारों आतंकी तो आज भी लापता हैं, ऊपर से एनआईए के पास अभी तक कोई सुराग नहीं और मदद के लिए वह स्केच जारी कर आम लोगों से पता लगाने का निवेदन कर रही है। 26/11 मुंबई हमले में तो पूरी तरह से पाकिस्तान के हाथ होने के जिंदा सुबूत मिले थे, लेकिन पहलगाम हमले में तो आतंकी हमारी ही धरती पर हमले को अंजाम देकर फरार हो गये, और हमारी लाखों सुरक्षाबलों, इंटेलिजेंस एजेंसी के पास अभी तक कोई सुराग नहीं है?
यही कारण है कि अंतर्राष्ट्रीय मंच पर 2016 में ऊरी और 2019 में ऑपरेशन बालाकोट की तरह ऑपरेशन सिंदूर को लेकर वैसा समर्थन देखने को नहीं मिला। ऊपर से दुश्मन देश भी 2019 की तुलना में पहले से काफी चाक-चौबंद बैठा था। अक्सर हम यह भूल जाते हैं कि किसी दूसरे देश के खिलाफ सैन्य कार्रवाई वैसी नहीं हो सकती, जैसा कि कोई देश अपने देश के भीतर आंतरिक गृह युद्ध से निपटने के लिए कर सकता है। इसके लिए भूराजनैतिक संतुलन को सबसे पहले अपने पक्ष में करना होता है, साथ ही सामने वाले की क्षमताओं का SWOT analysis भी बेहद अहम होता है।
यह सही है कि भारतीय सेना ने लगभग पूरी सटीकता के साथ पहल करते हुए पाकिस्तान की सीमा के भीतर 9 विभिन्न आतंकी ठिकानों, प्रशिक्षण केन्द्रों को ध्वस्त किया। इसके बाद शत्रु सेना के हमारे सैन्य ठिकानों पर ताबड़तोड़ ड्रोन हमले का मुंहतोड़ जवाब पाकिस्तान में कई सैन्य ठिकानों, यहां तक कि उसके परमाणु हथियारों से युक्त शस्त्रागार पर प्रतीकात्मक हमले के जरिये बता दिया कि भारतीय सेना चाहे तो क्या कुछ कर सकती है।
कई हलकों में ऐसा माना जा रहा है कि इसी कार्रवाई के चलते पाकिस्तानी हुक्मरान पैनिक मोड में न्यूक्लियर हथियारों का इस्तेमाल करने तक की ओर मुड़ गये थे, जिसकी खबर अमेरिकी विदेश मंत्री के माध्यम से डोनाल्ड ट्रंप तक पहुंची, और उसके बाद ट्रंप ने दोनों देशों को सीजफायर के लिए बाध्य किया।
आज ट्रंप के बयानों को पूरी दुनिया अपने-अपने हिसाब से अर्थ निकाल रही है, लेकिन भारत सरकार की ओर से कोई आधिकारिक खंडन नहीं आया। शीर्षस्थ मंत्रियों की ओर से “चुन-चुन के मारेंगे, पाकिस्तान को इस बार मिट्टी में मिला देंगे” जैसे जुमलों के बावजूद समूचा देश और विपक्ष भी समर्थन में खड़ा रहा। देश को अभी तक पीएम नरेंद्र मोदी के बयानों पर भरोसा था, जो वे मुंबई आतंकी हमले से अभी तक दिए जा रहे थे। लेकिन चार दिन में ही कम से कम पश्चिमी सीमाक्षेत्र से सटे गांवों, कस्बों और शहर के आम नागरिकों को अहसास होने लगा था कि यह युद्ध अब तक इतिहास का सबसे विनाशकारी युद्ध हो सकता है, जिसे उन्होंने पिछले 50 वर्षों में नहीं देखा था।
इन 4 दिनों में कथित राष्ट्रीय मीडिया की असलियत पूरी तरह से देश के सामने आ गई, जब उसने सेना की वास्तविक कार्रवाई को इतना आगे बढ़ा-चढ़ाकर दिखाना शुरू कर दिया कि कराची और लाहौर से आम पाकिस्तानियों ने रील्स बनाकर पूरी दुनिया में वास्तविक स्थिति और गोदी मीडिया के दावों की असलियत बतानी शुरू कर दी। स्वंय भारतीय सेना को आगे आकर हस्तक्षेप करना पड़ा, क्योंकि अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति के लिहाज से भारत का स्टैंड अभी भी यही है कि उसने पाकिस्तान में सिर्फ आतंकी ठिकानों को अपने निशाने पर रखा है, और वह नागरिक आबादी और सैन्य ठिकानों को निशाना नहीं बनाएगा।
बहरहाल, ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में हमारे वायुसेना के कितने जहाज दुश्मन के द्वारा तबाह किये गये, को लेकर वैश्विक मीडिया में तरह-तरह की खबरें अभी भी जारी हैं। कैसे भारत-पाक के बीच इस सीमित संघर्ष को वैश्विक मिलिट्री-इंडस्ट्रियल कॉम्प्लेक्स चीन के युद्धक विमानों और मिसाइल के साथ AI के नवीनतम deadly combination पर बारीक निगाहें बनाये हुआ था। इन जंगखोरों, जिनका मुख्य लक्ष्य ही पूरी दुनिया में हमेशा किसी न किसी कोने में युद्ध जारी रहे, ताकि उनकी बिक्री हो सके, के सामने चीन एक नया प्रतिद्वंदी बनकर उभरा है, जिसके हथियार अपेक्षाकृत काफी सस्ते होने के साथ-साथ आधुनिकतम तकनीक से सुसज्जित होने के कारण बाकियों की दुकान के रंग को निकट भविष्य में फीका कर सकता है।
भारत में भी यह जानकारी अधिक नहीं लेकिन छन-छनकर आ रही थी। सीजफायर की घोषणा के अगले दिन से ही यूट्यूब सोशल मीडिया पर अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के हवाले से चर्चा होने लगी थी, जिसमें सेना से जुड़े पूर्व अधिकारियों के वक्तव्य और चिंताएं मौजूदा सरकार की प्रतिष्ठा के लिए बेहद नुकसानदेह साबित हो सकते थे। धुर-दक्षिणपंथी धड़ा, जो वैसे भी पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व का अंध समर्थन करता आया है, के लिए सीजफायर सबसे बड़ा सदमा साबित हुआ। उसके लिए तो AIMIM के नेता ओवेशी की यह मांग कि, ‘पाकिस्तान को घर में घुस के मारने के बजाय उसके घर में घुसकर बैठ जाना है,’ ज्यादा स्वीकार्य हो चले थे।
विपक्ष ने भी सीजफायर के फैसले पर संसद सत्र बुलाने की मांग तेज कर दी, जहां वह सरकार से अचानक से सीजफायर के लिए सहमति की वजह और ‘ऑपरेशन सिंदूर’ से देश का क्या राजनीतिक उद्येश्य पूरा हुआ, पर ठोस जवाब मांग सकता था। अब इसका जवाब तो 145 करोड़ भारतीय भी चाहते हैं, जिनके लिए जमनत से चुनी एनडीए गठबंधन की सरकार जवाबदेह है।
हर तरफ से सवालों से घिरी सरकार को संकट से निकालने के लिए ही शायद। मोदी जी ने 23 अप्रैल के अपने बिहार रैली के बाद से एक शब्द तक नहीं कहा था। कल रात 8 बजे उन्होंने पहली बार राष्ट्र के नाम संबोधन के साथ अपना मुंह खोला, और वो सब बातें कहीं जिसे सुनकर उनका समर्थक वर्ग राहत की सांस ले सकता है। उनके बयान से तो एकबारगी यही समझ आया कि वे इस सीजफायर से बिल्कुल भी सहमत नहीं हैं, वो तो डीजीएमओ स्तर की बैठक में सहमति बन गई। जबकि राष्ट्र के नाम उनके संबोधन से ठीक कुछ मिनट पहले अमेरिकी राष्ट्रपति, डोनाल्ड ट्रंप दावा कर चुके थे
राष्ट्रपति ट्रंप ने कल सोमवार को व्हाइट हाउस में संवावदाताओं को ब्रीफ दिया, “मैंने भारतीय और पाकिस्तानी नेतृत्व से कहा, अब इसे बंद करते हैं। यदि आप दोनों इसे रोकते हैं, तो हम ट्रेड कर सकते हैं। यदि आप दोनों देश इसे नहीं रोकते हैं, तो हम कोई व्यापार नहीं करेंगे।” इसके साथ ही उन्होंने दावा किया है कि व्यापार ही वह सबसे बड़ी वजह रही जिसके कारण दोनों पक्ष एक दूसरे के खिलाफ सैन्य कार्रवाई रोकने के लिए राजी हुए। इसके साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका वर्तमान में भारत के साथ ट्रेड डील कर रहा है और साथ ही पहली बार यह भी खुलासा किया कि अमेरिका ने पाकिस्तान के साथ भी ट्रेड डील पर बातचीत शुरू करने की योजना बनाई है।
अब इतनी तरह की बातों, दावों का एक आम भारतीय क्या करे? क्या भारत की संप्रभुता, खुशहाली और भारत के पड़ोसी मुल्कों में शांति से ज्यादा बेहतर बात किसी के लिए हो सकती है। क्या मोदी सरकार की मर्दाना राजनीति को पहली बार इस ऑपरेशन में सबसे बड़ा झटका लगा है? क्या पाकिस्तान और चीन के बीच संबंध पूर्व की तुलना में बेहद सशक्त हो चुके हैं? क्या अमेरिका से दोस्ती की चाह में भारत ने अपने सबसे भरोसेमंद दोस्त रूस का मजबूत साथ खो दिया है, जो अब अपने भविष्य को चीन के साथ पूरी तरह से जोड़ने जा रहा है? क्या अमेरिका पर पूर्ण निर्भरता प्रदर्शित करने के बावजूद उसकी ओर से पिछले कई वर्ष बीत जाने के बाद भी उन रक्षा तकनीकों और इंजन की आपूर्ति नहीं की गई है, जिनका इस्तेमाल कर भारत युद्ध में हर क्षेत्र में अव्वल रहता?
सवालों की लिस्ट अभी और भी बेहद लंबी है, लेकिन जवाब किसी का भी नहीं आएगा। जिन भी सवालों पर देश ज्यादा चिंतित नजर आये, उसकी दिशा को पूरी तरह से मोड़कर मौजूदा सरकार और भाजपा हर बार एक नया नैरेटिव खड़ा कर देती आई है। आज भी देश की संसद के माध्यम से देश को देश की वास्तविक स्थिति बताने, कमजोरियों को दूर करने ताकि भविष्य में किसी भी स्थिति से निपटने के लिए देश सक्षम हो, की जरूरत है।
लेकिन मोदी सरकार ने अपने राजनीतिक संगठन, भारतीय जनता पार्टी को 13 मई से दस दिवसीय तिरंगा यात्रा इवेंट मैनेजमेंट का बड़ा टास्क दे दिया है। पूरे देश में अब घूम-घूमकर बीजेपी नेता और मोदी कैबिनेट बताएगी कि कैसे पाकिस्तान और उसकी सेना को धूल में मिला दिया, डीजीएमओ की बैठक में सिर्फ आतंकवाद और पाक अधिकृत पाकिस्तान पर बात होगी न कि कश्मीर पर। सच्चाई क्या है, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। फर्क पड़ता है 140 करोड़ आम भारतीयों को क्या सच दिखाया जाता है, जो उसके दिमाग को सुकून ही नहीं यह यकीन भी दिला दे कि यह सब मोदी के ही सबल-कुशल नेतृत्व का कमाल है।
सोचना अब उन चंद लाख लोगों को है, जो खुद को सचेत, अमनपसंद और वास्तव में खुशहाल भारत देखना चाहते हैं, क्योंकि देश के वास्तविक हितधारकों ने संकट के समय लाल बहादुर शास्त्री जैसे सच्चे नेता के आह्वान पर आधा पेट खाना खाया और देश की रक्षा के लिए पैसे भी दिए। सवाल है कि उसे वास्तविक हालात पता हों, क्योंकि अंतिम निष्कर्षों में यह आम भारतीय है, जिसका देश पर पहला हक है।
(रविंद्र पटवाल जनचौक की संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)