दुनिया के इतिहास में यह पहला मौका है जब दो देशों के बीच सैन्य टकराव थमने के बाद दोनों देशों की सरकारें अपने को जीता हुआ मान कर संतुष्ट और खुश हैं। दोनों देशों की ओर से एक दूसरे की सामरिक क्षमता को नुकसान पहुंचाने के दावे किए जा रहे हैं। दोनों देशों में सरकार के नजरिये से सहमत लोग भी अपने-अपने यहां जीत का जश्न मना रहे हैं। भारत और पाकिस्तान के अलावा एक तीसरा देश अमेरिका भी यह मानते और कहते हुए खुश हो रहा है कि उसके कहने पर दोनों देशों के बीच संघर्ष विराम हुआ है। कुल मिला कर अभूतपूर्व स्थिति है।
इन दावों-प्रतिदावों के बीच भारत की घरेलू राजनीति में पिछले 11 सालों में पहली बार ऐसा हुआ है जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार व पार्टी के हाथों से राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे का कथानक फिसल गया लगता है। हालांकि सत्तापक्ष की इस बात को कुबूल नहीं रहा है और वह कुबूलेगा भी नहीं लेकिन उसे इसका अहसास अच्छी तरह है। उसके इस अहसास की अहम वजह यह है कि ऑपरेशन सिंदूर के चौथे दिन भारत और पाकिस्तान के बीच अचानक हुए संघर्ष विराम पर ऐसे हलकों से भी सरकार से सवाल पूछे जा रहे हैं, जो आमतौर पर राष्ट्रीय सुरक्षा के मामले में सत्ता प्रतिष्ठान के नजरिये से सहमति रखते हैं और नरेंद्र मोदी को भारत का ही नहीं बल्कि समूचे विश्व का सर्वाधिक लोकप्रिय और शक्तिशाली नेता मानते हैं।
हालांकि भाजपा के इकोसिस्टम से जुड़ा एक खास तबका ऑपरेशन सिंदूर में मसूद अजहर के परिवार के लोगों और रऊफ अजहर के मारे जाने को बड़ी उपलब्धि बता कर प्रचारित करता रहा, लेकिन ज्यादातर भाजपा समर्थक संघर्ष विराम के फैसले से खुश नहीं दिखे। पूरा सोशल मीडिया उनकी भड़ास से भरा दिखा। उनका सवाल रहा कि पहलगाम हमले को अंजाम देने वाले पांचों लोगों को सजा देने का क्या हुआ? गौरतलब है कि हमले के तीसरे दिन बिहार के मधुबनी में प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि पहलगाम में हिंदुओं की हत्या करने वालों को ऐसी सजा मिलेगी, जिसकी उन्होंने कल्पना भी नहीं की होगी। उन्होंने यह भी कहा था कि आतंकवादियों की बची-खुची जमीन को भी मिट्टी में मिला देने का समय आ गया है।
लेकिन न तो पहलगाम के हमलावरों को सजा मिली और न आतंकवादियों की जमीन खत्म हुई। गौरतलब है कि पहलगाम के पांचों हमलावरों का अभी तक पता नहीं चल पाया है। अमेरिका और इजराइल का हवाला देकर भाजपा समर्थकों ने यह भी बताया कि अमेरिका में 9/11 के हमले को अंजाम देने वाले एक-एक आतंकवादी को खोज कर अमेरिका ने मारा। उस हमले का बदला लेने के लिए उसने अफगानिस्तान को मिट्टी में मिला दिया। भारत ने ऐसा बदला नहीं लिया है।
भारत ने आतंकवादियों के ठिकानों को निशाना बनाया मगर उससे कोई फर्क नहीं पड़ता है क्योंकि उनके ठिकाने नए सिरे से बन जाएंगे। इजराइल ने जिस तरह नसरूल्ला और इस्माइल हानिया को मारा था वैसे ही हाफिज सईद और मसूद अजहर को मारने की बात कही जा रही थी। लेकिन वह भी नहीं हुआ है। इसी वजह से ‘ऑपरेशन सिंदूर’ शुरू होने पर उत्साह के साथ बड़ी-बड़ी उम्मीदें लगाने वाले तमाम भाजपा समर्थक अचानक संघर्ष विराम से निराश और नाराज हैं।
अपने समर्थक वर्ग की इसी निराशा और नाराजगी के अहसास के चलते 12 मई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राष्ट्र के नाम संदेश का कार्यक्रम अचानक बना और उसके साथ ही खबर आई कि ऑपरेशन सिंदूर की सफलता के बारे में आम लोगों को जानकारी देने के लिए 13 से 23 मई तक भारतीय जनता पार्टी देश भर में तिरंगा यात्रा निकालेगी। इस यात्रा में भाजपा कार्यकर्ताओं ने जो प्रचार किया, उसका संकेत प्रधानमंत्री ने राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में दे दिया था, जिसका सार यही था कि ऑपरेशन सिंदूर के जरिये ‘पाकिस्तान के सीने पर प्रहार’ कर वहां मौजूद आतंकवाद के ढांचे को नष्ट कर दिया गया है।
इससे घबरा कर पाकिस्तान ने अपने डीजीएमओ यानी सैन्य अभियान के महानिदेशक के जरिये जब भारत से संपर्क किया और वादा किया कि पाकिस्तान आगे से अपने यहां आतंकवादियों को संरक्षण नहीं देगा। उनके इस आश्वासन पर ही भारत ने संघर्ष विराम के जरिये पाकिस्तान को ‘एक मौका दिया है’।
मगर प्रधानमंत्री के ये मासूम दावे और दलीलें गले उतरने वाली नहीं हैं, क्योंकि 10 मई को अचानक हुए संघर्ष विराम के बाद से उठे कई अहम सवालों के जवाब प्रधानमंत्री के भाषण से नहीं मिले। मसलन, संघर्ष विराम कराने में अमेरिका की क्या भूमिका रही, क्या भारत किसी तटस्थ जगह पर पाकिस्तान से बातचीत के लिए राजी हुआ है, क्या साढ़े तीन दिन की सैन्य कार्रवाई के दौरान भारत के लड़ाकू विमान नष्ट या क्षतिग्रस्त हुए, इस पूरे प्रकरण में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) बोर्ड जैसे वैश्विक मंचों ने भारत की आवाज क्यों नहीं सुनी, और भारत दुनिया में अकेला खड़ा नजर क्यों आया?
प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘टैरर और टॉक साथ-साथ नहीं चल सकते’, लेकिन लगे हाथ यह संकेत भी दिया कि भारत पाकिस्तान से आतंकवाद और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) के सवाल पर बातचीत के लिए तैयार है। तो कुल मिलाकर प्रश्न सारे अनुत्तरित रहे, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी इन सारे सवालों का जवाब देने के बजाय सेना की आड़ में छुपते दिख रहे हैं।
सत्ताधारी पार्टी और उससे जुड़े अन्य संगठन देश भर में सैन्य वर्दी में प्रधानमंत्री की तस्वीरों वाले पोस्टर और होर्डिंग्स के जरिये पाकिस्तान को सबक सिखाने का प्रचार कर रहे हैं। यही नहीं, सेना के जरिये भी झूठे वीडियो जारी कराए जा रहे हैं। खुद प्रधानमंत्री देश भर में रैलियों के माध्यम से ‘घर में घुस कर मारूंगा’, ‘ठोक दूंगा’, ‘मिट्टी में मिला दूंगा’, ‘रोटी खाओ और चैन से रहो, नहीं तो मेरी गोली खाओ’ जैसे सस्ते फिल्मी डॉयलॉगों के जरिये लोगों को बहलाने का प्रयास कर रहे हैं। हर जगह एक जैसी भाषा और एक जैसा चिंघाड़ता हुआ अंदाज।
चूंकि प्रधानमंत्री के पास सवालों के जवाब नहीं हैं, इसलिए उनकी सरकार के किसी मंत्री या उनकी पार्टी के प्रवक्ताओं के पास भी जवाब होने का सवाल ही नहीं उठता। इसलिए उनकी पार्टी के प्रवक्ता टीवी चैनलों की डिबेट में विपक्षी पार्टी के प्रवक्ताओं को उनके सवालों का जवाब देने के बजाय उन्हें मां-बहन की गालियां दे रहे हैं और चैनल के एंकर-एंकरनियां उन्हें गालियां देते देख मुदित होते हुए देख रही हैं।
भारत संघर्ष विराम के लिए क्यों राजी हुआ, इस सवाल ने सिर्फ भाजपा समर्थकों को ही नहीं बल्कि देश के ज्यादातर सामरिक मामलों के जानकारों और पूर्व सैन्य अधिकारियों को भी हैरान किया है। वे इस बात से हैरान और निराश हैं कि भारत ने बगैर कोई लक्ष्य पूरा हुए ही संघर्ष विराम का फैसला क्यों किया? कुछ पूर्व सैन्य अधिकारियों ने तो यहां तक कहा है कि अब पता नहीं भारत को फिर मौका कब मिलेगा।
भारतीय सेना के प्रमुख रहे जनरल वेदप्रकाश मलिक ने भी सोशल मीडिया पोस्ट के जरिये सवालिया लहजे में कहा है कि भारत ने पहलगाम हमले के बाद सैन्य व असैन्य कार्रवाइयां की लेकिन उनका क्या राजनीतिक और रणनीतिक लाभ हुआ यह पता नहीं है। उन्होंने कहा है कि इसका फैसला इतिहास पर छोड़ देना चाहिए। जाहिर है कि जनरल मलिक को पता है कि भारत को इस ऑपरेशन से रणनीतिक रूप से कुछ भी हासिल नहीं हुआ है।
देश के सबसे प्रतिष्ठित सामरिक विशेषज्ञों में से एक ब्रह्म चेलानी ने तो सोशल मीडिया में लंबी पोस्ट में लिखा है कि भारत ने ऑपरेशन सिंदूर शुरू किया लेकिन कोई लक्ष्य हासिल किए बगैर उसे रोक दिया। उन्होंने मोदी सरकार को इस बात के लिए भी कठघरे में खड़ा किया कि 2020 में चीनी सैनिकों के साथ हिंसक झड़प के बाद भारतीय सैनिकों ने रणनीतिक रूप से बेहद अहम कैलाश पर्वत की चोटी पर अपना नियंत्रण बना लिया था।
लेकिन भारत सरकार ने चीन के साथ समझौता करने के चक्कर में न सिर्फ कैलाश हाइट्स पर से अपनी सेना हटा ली, बल्कि चीन की ओर से तय किए गए बफर जोन को भी मान लिया। असल में ब्रह्म चेलानी ऑपरेशन सिंदूर शुरू होने के बाद से लिख रहे थे कि भारत को इस अभियान को तार्किक परिणति तक पहुंचाना चाहिए। लेकिन उससे पहले ही भारत ने संघर्ष विराम का फैसला कर लिया।
कुछ अन्य सामरिक विशेषज्ञों ने यहां तक कहा है कि इस सैन्य अभियान का हासिल यह हुआ है कि भारत और पाकिस्तान को एक तराजू पर तौला जाने लगा है। उनका कहना है कि भारत ने मिसाइल और ड्रोन से हमला किया, जिसे मार गिराने का दावा पाकिस्तान कर रहा है और उधर पाकिस्तान ने ड्रोन और मिसाइल से हमला किया, जिसे मार गिराने का दावा भारत कर रहा है। इससे तो यह लग रहा है कि पाकिस्तान के पास एयर डिफेंस सिस्टम वैसा ही है, जैसा भारत के पास है। दुनिया भर के पाकिस्तानी सोशल मीडिया में आकर पाकिस्तान की वायु सेना की तारीफों के पुल बांध रहे हैं।
युद्ध छोटा हो या बड़ा, दोनों पक्षों को कुछ न कुछ नुकसान उठाना ही पड़ता है और दोनों पक्ष एक दूसरे को भारी नुकसान पहुंचाने का दावा भी करते हैं। इसलिए पाकिस्तान का यह दावा करना स्वाभाविक है कि उसने भारत के कई लड़ाकू विमानों को नुकसान पहुंचाया है। लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है जब भारत के साथ सैन्य संघर्ष के बाद पाकिस्तान में लोगों ने जश्न मनाया है और 1962 के भारत-चीन युद्ध के बाद यह भी पहली बार हुआ है कि पाकिस्तानी सैन्य प्रतिक्रिया का भारतीय सेना द्वारा बहादुरी से जवाब देने के बावजूद भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शर्मिंदगी का सामना करना पड़ रहा है।
(अनिल जैन वरिष्ठ पत्रकार हैं।)