मध्य-पूर्व एशिया में पिछले एक वर्ष से जारी मानवीय त्रासदी को दुनिया अपने-अपने नज़रिए से देख-समझ रही है। दुनियाभर की मीडिया पर पश्चिमी देशों का प्रभुत्व इस हद तक तारी है कि सही चीज को हम गलत और गलत को सही समझने की भूल करते आएं, तो कोई हैरत की बात नहीं।
इसके लिए भारतीय मीडिया भी कम जिम्मेदार नहीं है, जो लेबनान पर इजराइल के हालिया हमले की तस्वीरों को बड़े ही वीरतापूर्ण अंदाज में दिखा रही है। इस हिंदी समाचारपत्र ने तो लेबनान पर भयानक हवाई बमबारी में हिजबुल्ला के कमांडर, हसन नसरल्ला की मौत को ‘ढेर कर दिया’ बताया है।
जबकि कश्मीर के बडगाम जिले समेत आसपास के क्षेत्रों में आज हसन नसरल्ला की मौत के खिलाफ बंद का आह्वान किया गया था। कल बडगाम और श्रीनगर सहित कई स्थानों पर विरोध प्रदर्शन निकले, जिसमें महिलाओं की भागीदारी भी बड़ी संख्या में देखी गई।
न्यूज़ एजेंसी, ANI के द्वारा इस विरोध प्रदर्शन का वीडियो जारी किया गया था, जिसमें एक कश्मीरी लड़की के बयान को सोशल मीडिया पर दक्षिणपंथी हिंदुत्ववादी तत्व हवा दे रहे हैं, और इसके माध्यम से मुस्लिम विरोधी भावनाओं को हवा देने की कोशिश में जुट चुके हैं।
लंबे अर्से बाद किसी अंतर्राष्ट्रीय घटना पर कश्मीर में प्रदर्शन और बंद की तस्वीरें आई हैं। हिजबुल्ला एक शिया समुदाय का मिलिटेंट संगठन है, जिसके जन्म के पीछे भी दरअसल इजरायल का क्रूर इतिहास छिपा है।
आमतौर पर हिजबुल्लाह नाम सुनते ही यह छवि उभरकर आती है कि इस्लामी देशों में आइसिस, तालिबान इत्यादि की तरह यह भी इसी तरह का संगठन होगा, जिसे ईरान ने अपने भूराजनैतिक हितों के लिए खड़ा कर रखा है।
गाजापट्टी में इजराइल-हमास के बीच जारी जंग में बीच-बीच में हिजबुल्लाह की ओर से इजरायली सीमा की ओर राकेट दागे जाने की खबरें आती थीं। ऐसा भी कहा जा रहा था कि हिजबुल्लाह के 1 लाख लड़ाके और मिसाइल की संख्या लाखों में है, जिसका लोहा इजरायली सेना भी मानती है।
लेकिन पिछले कुछ दिनों से लेबनान के भीतर पेजर धमाकों और उसके बाद एक के बाद एक हमलों के जरिये इजराइल ने लेबनान की राजधानी बेरुत में जिस प्रकार का हमला बोला है, उसकी तुलना हाल के किसी भी हमलों से नहीं की जा सकती।
इजरायल के लिए यह सब अपने बलबूते पर कर पाना संभव नहीं है। अमेरिकी आधुनिकतम हथियारों से लैस इजरायल मध्य-पूर्व में एक ऐसा देश बना हुआ है, जिसका अस्तित्व ही पश्चिमी देशों, विशेषकर अमेरिकी साम्राज्यवादी नीतियों को आगे रखने का बना हुआ है।
हिजबुल्लाह के सेक्रेटरी जनरल, नसरल्ला की मौत का जश्न इजरायल सहित तमाम पश्चिमी मुल्कों में मनाया जा रहा है। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने इसे चार दशकों से जारी आतंक पर एक विराम लगना करार दिया है।
डेमोक्रेटिक पार्टी की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार, कमला हैरिस तक ने नसरल्ला को एक आतंकी बताया है जिसके हाथ अमेरिकियों के खून से सने हुए थे। दूसरे उम्मीदवार ट्रम्प तो इजरायल को धरती पर सबसे महान देश बताते नहीं थक रहे।
लेकिन सभी की इस बारे में एकराय हो, ऐसा नहीं है। ईसाइयों के सबसे बड़े धर्मगुरु, पोप फ्रांसिस ने गाजा और लेबनान में इजरायल के एक्शन की निंदा की है। स्वंय इजरायली अख़बार हारेट्ज़ लगातार इजरायली प्रधानमंत्री, बेंजामिन नेतन्याहू और ज़िओनिस्ट मुहिम के खिलाफ लगातार लिख रहा है।
लेबनान पर इजरायली हमले और हिजबुल्लाह चीफ नसरल्ला की मौत के बाद यह अखबार अपने संपादकीय में लिखता है कि इजरायल को अब शांति बहाली के प्रयासों पर जोर देना चाहिए, और जमीनी हमलों की तैयारी से बचना चाहिए। रेटिंग एजेंसी मूडीज के द्वारा इजरायल की क्रेडिट रेटिंग को दो अंक कम किये जाने की खबर को उसने प्रमुखता से उठाया है।
इजरायल के भीतर पीएम नेतन्याहू के खिलाफ विरोध कम नहीं हो रहा है। अधिकांश इजरायली मानते हैं कि अपनी नाकामियों और अपने खिलाफ लगे आरोपों से बचने के लिए नेतन्याहू लगातार ऐसे कदम उठा रहे हैं, जो दिनोंदिन इजरायल को विश्व जनमत से अलग-थलग खड़ा कर रहा है।
करीब एक करोड़ की आबादी वाले देश में दसियों लाख लोगों का नेतन्याहू के खिलाफ बार-बार सड़कों पर उतरना भी इस बात की पुष्टि करता है कि इजराइल के भीतर ज़िओनिस्त लॉबी और अमेरिकी मिलिट्री इंडस्ट्रियल कॉम्पेक्स अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए इजरायल का इस्तेमाल कर रहे हैं।
यह पहली बार है कि अक्टूबर 2024 को हमास के हमले को एक वर्ष पूरे होने वाले हैं, लेकिन गाजा को पूरी तरह से नेस्तनाबूद करने के बाद भी इजरायली सेना आईडीऍफ़ अभी तक शेष जिंदा बचे 100 इजरायली बंधकों को छुड़ा पाने में कामयाब नहीं रही है।
कई लोग तो यह शंका भी व्यक्त कर रहे हैं कि जिस गाजा को इजरायली सेना और इंटेलिजेंस उपकरणों के माध्यम से इजरायल दिन-रात निगरानी कर रहा है, वहां वह अभी तक कामयाब नहीं हो पा रहा, जबकि उससे कई गुना बड़े पड़ोसी देश लेबनान पर किये गये हमले को उसने इतनी सटीकता से कैसे अंजाम देने में कामयाब रहा?
उधर हिजबुल्लाह, जिसे 32 वर्षों से नेतृत्व प्रदान कर रहे हसन नसरल्ला ही नहीं कई शीर्ष नेतृत्व को खो देने का तगड़ा झटका लगा है, ने अपने नए नेता के तौर पर हाशेम सफ़िएद्दिन को नियुक्त कर दिया है। उधर ईरान ने अपने सशस्त्र बलों के सभी जवानों की छुट्टियां कैंसिल कर दी हैं।
और उन्हें पूरी तरह से तैयार रहने का निर्देश दिया है। यह भी खबर आ रही है कि ईरान के विदेश मामलों के महासचिव ने कहा है कि वह लेबनान और सीरिया में अपने सैनिकों को तैनात करने के लिए तैयार है, और 1981 की तरह इजरायल से लड़ने के लिए अपनी सेना को लेबनान में भेज सकता है।
उधर, अमेरिका का भी मानना है कि इजरायल के इस हमले के बाद ईरान चुप बैठने वाला नहीं है। ताजे इजरायली हमले के बाद अमेरिका ने इस अशांत क्षेत्र में पहले से बड़ी संख्या में अमेरिकी सैन्य बलों और हथियारों का जमावड़ा खड़ा कर दिया है।
उधर नेतन्याहू लगातार युद्धोन्माद को बढ़ाते हुए यह बयानबाजी कर रहे हैं कि ईरान सहित समूचे मध्य पूर्व में ऐसी कोई जगह नहीं है, जहां हमारे हथियार नहीं पहुंच सकते।
1982 में भी इजरायल ने लेबनान के भीतर इसी प्रकार के हमले को अंजाम दिया था, जब इसकी सेना और लेबनान में इजरायल समर्थक फलांगे ने दो दिन के भीतर करीब 2,000 से 3,500 फिलिस्तीनी शरणार्थियों का कत्लेआम किया था।
इस घटना को 42 वर्ष बीच चुके हैं, और ये फिलिस्तीनी शरणार्थी 1948 में हुए कत्लेआम से बचने के लिए अपने ही वतन से बेदखल होकर लेबनान में जा बसे थे। वास्तविकता तो यह है कि इजराइल का जन्म ही फिलिस्तीनी धरती पर ब्रिटिश साम्राज्यवाद की देन है, जिसे बाद के दौर में अमेरिकी साम्राज्यवाद ने अपने हाथ में ले लिया है।
1982 से सन 2000 तक लेबनान की धरती पर इजरायली हमले और घुसपैठ का प्रतिरोध करने के लिए शिया लड़ाकों की ओर से हिजबुल्लाह संगठन का जन्म हुआ था, जिसने अंततः 18 वर्ष बाद जाकर इजरायल को अपने कदम खींचने के लिए विवश कर दिया था। 2006 में दोबारा हुए हमले का तब हिजबुल्लाह ने मुंहतोड़ जवाब दिया था।
इस बार के हुए हमले ने तात्कालिक तौर पर भले ही हिजबुल्लाह के शीर्ष नेतृत्व को नेस्तनाबूद कर दिया हो, लेकिन बड़ा सवाल तो यह पैदा होता है कि आखिर कौन सा कौम अपने देश और स्वंय का खुलेआम नरसंहार करने की इजाजत दे सकती है? जब कुछ भी नहीं था, तब हिजबुल्लाह का जन्म हुआ, आज तो उसके पास हजारों की संख्या में प्रशिक्षित लड़ाके और गोला-बारूद हैं।
नेतन्याहू की किसी भी जमीनी हस्तक्षेप का मतलब होगा गाजा में हमास से भी कहीं ज्यादा खुद को उलझाना और अंत में खुद को भारी नुकसान पहुंचाना। देखना होगा कि इजरायल की बहुसंख्यक आबादी कितने समय तक और नेतन्याहू, ज़ियोनिस्ट और अमेरिकी युद्धोन्माद को बर्दाश्त कर सकती है?
(रविंद्र पटवाल जनचौक के संपादकीय टीम के सदस्य हैं।)
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