जामिया यूनिवर्सिटी : छात्रों की मांगों को लेकर धरने पर बैठे कई स्टूडेंट्स हिरासत में लिए गए, जामिया प्रशासन का मनमाना रवैया

Estimated read time 2 min read

नई दिल्ली। जामिया मिल्लिया इस्लामिया के 14 छात्रों को दिल्ली पुलिस ने हिरासत में लिया है। इसके अलावा यूनिवर्सिटी प्रशासन ने कई छात्र-छात्राओं को सस्पेंड करते हुए उनके कैंपस प्रवेश को बैन कर दिया है। 

ये छात्र दो पीएचडी स्कॉलर के ख़िलाफ़ यूनिवर्सिटी की अनुशासनात्मक कार्रवाई का विरोध कर रहे थे। इसके साथ ही अपनी अन्य मांगों को लेकर 10 फ़रवरी से कैंपस में अनिश्चितकालीन धरने पर बैठे थे। 

छात्रों का कहना है कि यूनिवर्सिटी प्रशासन ने उनसे कोई बात करने की ज़रूरत नहीं समझी और सीधे पुलिस और ससपेंशन की कार्रवाई कर दी।

दिल्ली पुलिस ने छात्रों को हिरासत में लेने की कार्रवाई आज गुरुवार, 13 फ़रवरी को तड़के 4–5 बजे के आसपास की। बताया जा रहा है कि यूनिवर्सिटी प्रशासन ने ही इन छात्रों को दिल्ली पुलिस को सौंपा। अभी तक यह नहीं पता चला है कि पुलिस ने हिरासत में लिए गए छात्रों को कहां रखा है। इनमें कई महिला छात्र भी हैं। 

छात्र संगठनों ने यूनिवर्सिटी प्रशासन और दिल्ली पुलिस की इस कार्रवाई की निंदा करते हुए इसे छात्र अधिकारों का दमन और गैरक़ानूनी बताया है। 

क्या है पूरा मामला?

जामिया के छात्र अपनी छह मांगों को लेकर 10 फ़रवरी से कैंपस में ही दिन-रात के धरने पर थे। 

मांग कुछ इस तरह थीं–

  1. पीएचडी छात्र सौरभ और ज्योति के ख़िलाफ़ अनुशासनात्मक समिति की बैठक के निर्णय को रद्द किया जाए।
  1. छात्रों की आवाज़ उठाने पर जारी किए गए सभी कारण बताओ नोटिस वापस लिए जाएं।
  1. 29 अगस्त 2022 और 29 नवंबर 2024 को जारी किए गए कार्यालय ज्ञापनों को रद्द किया जाए।
  1. छात्रों की आवाज़ उठाने के लिए उनके ख़िलाफ़ की जा रही सभी तरह की दमनात्मक कार्रवाइयों को रोका जाए।
  1. जामिया की दीवारों पर पोस्टर लगाने और ग्रैफिटी बनाने को दंडित करने वाले नोटिस को रद्द किया जाए।
  1. छात्रों को उनके मौलिक अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, शांतिपूर्ण सभा और संगठन बनाने के अधिकार के तहत इकट्ठा होने और विरोध प्रदर्शन करने पर कोई और शो-कॉज़ नोटिस न भेजा जाए।

छात्रों का कहना है कि यूनिवर्सिटी प्रशासन से लगातार डायलॉग की कोशिश की गई, लेकिन यूनिवर्सिटी प्रशासन ने इसमें कोई रुचि नहीं दिखाई। मजबूर होकर उन्हें कैंपस में धरना शुरू करना पड़ा। यह धरना पूरी तरह शांतिपूर्ण था। 

धरने का नेतृत्व ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (आइसा), दयार-ए-शौक़ स्टूडेंड काडर (डिस्क) कर रहे हैं।

स्टूडेंड फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई), ऑल इंडिया रिवोल्यूशनरी स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन (एआईआरएसओ) सहित कई लेफ्ट व अन्य छात्र संगठन कर रहे थे।

उधर यूनिवर्सिटी प्रशासन का दावा है कि इन छात्रों ने कॉलेज का अनुशासन भंग किया। माहौल ख़राब किया। छात्रों को क्लास जाने से रोका। और यूनिवर्सिटी की संपत्ति में तोड़फोड़ की। 

पीएचडी छात्रों पर आरोप है कि उन्होंने पिछले साल 2024 में एक प्रदर्शन का आयोजन किया था, जो 2019 के सीएए विरोधी प्रदर्शनों की याद में प्रतिरोध दिवस के रूप में था। उस साल, दिल्ली पुलिस पर यूनिवर्सिटी कैंपस में घुसकर लाइब्रेरी के अंदर छात्रों पर बर्बर लाठीचार्ज करने का आरोप था। इस घटना का सीसीटीवी फुटेज वायरल होने पर देशभर में इस घटना को लेकर लोगों में गुस्सा पनप गया था और विरोध प्रदर्शन हुए थे।

आंदोलनकारी छात्र पीएचडी छात्रों पर कार्रवाई की वापसी की मांग कर रहे थे। छात्रों का कहना है कि अनुशासन समिति की बैठक 25 फरवरी को निर्धारित की गई है, लेकिन यूनिवर्सिटी प्रशासन ने छात्रों की मांगों पर अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दी है।

इसके अलावा मंगलवार 11 फ़रवरी को आइसा (AISA) की राष्ट्रीय अध्यक्ष नेहा को भी जामिया एडमिन ने कैंपस से जबरन बाहर करा दिया था। नेहा छात्रों की मांगों के समर्थन में जामिया आईंं थीं।

एसएफआई जामिया मिलिया इस्लामिया ने यूनिवर्सिटी प्रशासन की कार्रवाई की निंदा की है। 

प्रेस को जारी एक बयान के अनुसार एसएफआई जामिया के छात्र-छात्राओं के मनमाने निलंबन की निंदा करता है।

बयान के अनुसार 12 फरवरी 2025 की आधी रात को एसएफआई दिल्ली राज्य समिति के सदस्य और एसएफआई जामिया यूनिट की अध्यक्ष सखी और अन्य छात्र कार्यकर्ताओं को एक पत्र प्राप्त हुआ।

ये छात्र 10 फरवरी 2025, सोमवार से जामिया प्रशासन द्वारा जारी किए गए शो-कॉज़ नोटिस और एक अलोकतांत्रिक कार्यालय ज्ञापन (F. No. 4/RO/(Estt.-T)/2022) के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन कर रहे थे, जिसके तहत छात्रों पर ‘जुर्माना, कैंपस प्रतिबंध, निष्कासन और rustication’ लगाने की बात कही गई है।

छात्रों को भेजा गया यह मनमाना और अस्पष्ट रूप से लिखा गया “निलंबन पत्र” जामिया मिलिया इस्लामिया के वर्तमान प्रशासन द्वारा छात्रों पर लगाए जा रहे निराधार आरोपों और दमनात्मक कार्रवाइयों का स्पष्ट प्रमाण है।

एसएफआई का कहना है कि 29 अगस्त 2022 को जामिया प्रशासन ने एक कार्यालय ज्ञापन (F. No. 4/RO/(Estt.-T)/2022) जारी किया, जिसमें कहा गया कि परिसर में पांच से अधिक छात्रों के इकट्ठा होने के लिए पूर्व अनुमति आवश्यक होगी।

इस आदेश के प्रभावी होने के बाद, यह लगातार धारा 144 के समान प्रतिबंध के रूप में काम करने लगा, जिससे प्रशासन को किसी भी पांच से अधिक छात्रों के समूह पर सवाल उठाने और उन्हें नियंत्रित करने की शक्ति मिल गई।

तब से लेकर अब तक, छात्रों द्वारा स्वच्छ भोजन, साफ़ पानी, बेहतर शौचालय सुविधाएं और छात्रावास सुविधाओं जैसी बुनियादी मांगों को उठाने पर प्रशासन ने कड़ी कार्रवाई की है। इस आदेश का इस्तेमाल छात्रों को डराने-धमकाने और विरोध की किसी भी आवाज़ को दबाने के लिए किया गया है।

यहां तक कि किताबों की चर्चा, संगोष्ठियों, प्रश्नोत्तरी, वाद-विवाद प्रतियोगिताओं और कविता पाठ जैसी शैक्षणिक और सांस्कृतिक गतिविधियों को भी प्रशासन ने अपने निशाने पर लिया है।

एसएफआई के अनुसार विडंबना यह है कि जब आरएसएस और एबीवीपी से जुड़े लोगों ने कैंपस में घुसपैठ कर शिक्षकों की अवमानना की थी और छात्रों को धमकाया था, तब प्रशासन ने किसी नियम का पालन नहीं कराया।

जामिया प्रशासन के ख़िलाफ़ सवाल

एसएफआई के अनुसार एक केंद्रीय विश्वविद्यालय इस हद तक गिर चुका है कि वह केवल छात्रों की असहमति की आवाज़ को दबाने के लिए ऐसे निलंबन पत्र जारी कर रहा है। 

आज हम (एसएफआई) इस बयान के माध्यम से जामिया प्रशासन को शो-कॉज़ नोटिस देते हैं कि वे यह स्पष्ट करें कि उन्होंने छात्र सखी को निलंबित करने का फ़ैसला क्यों किया? क्या महिलाओं के लिए स्वच्छ शौचालय की मांग करना अपराध है? क्या कैंटीन में साफ़ भोजन और पीने का पानी मांगना ग़लत है? क्या स्वतंत्रता सेनानियों को याद करने के लिए अध्ययन समूह आयोजित करना अनुचित है? या फिर सिर्फ़ जामिया मिलिया इस्लामिया में एक छात्र होना ही अपराध बन चुका है?

छात्र संघ के बिना छात्रों का दमन

एसएफआई का कहना है कि पिछले दो दशकों से, जामिया प्रशासन ने छात्र संघ को भंग कर दिया है और अब तक छात्र परिषद के चुनाव नहीं होने दिए हैं। बिना छात्र संघ के, छात्रों को विश्वविद्यालय अधिकारियों तक अपनी बुनियादी मांगें पहुंचाने के लिए विरोध प्रदर्शन करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। छात्र संघ के अभाव में, छात्र पूरी तरह से एक ऐसे प्रशासन के सामने असहाय हैं जो उनके समग्र विकास की ज़रूरतों के प्रति पूरी तरह उदासीन है।

आज, जामिया मिलिया इस्लामिया, जो कभी एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय था, अब एक जेल बन चुका है, जहां छात्रों को कोई अधिकार प्राप्त नहीं हैं और प्रशासन की मनमानी सर्वोपरि है।

हम इस शिक्षा स्थल के जेल में बदलने की निंदा करते हैं! और छात्रों के निलंबन को वापस लेने की मांग करते हैं।

(प्रेस विज्ञप्ति)

+ There are no comments

Add yours

You May Also Like

More From Author