27 वां मुलताई सम्मेलन : आराधना भार्गव किसान संघर्ष समिति मध्य प्रदेश की पहली महिला अध्यक्ष बनीं

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मध्य प्रदेश के किसानों ने देश भर के किसानों को दिशा दी है। 27 वर्ष पूर्व किसान संघर्ष समिति के नेतृत्व में हुए किसान आंदोलन पर गोली चालन और 24 किसानों की शासन द्वारा हत्या किए जाने से उपजे आक्रोश ने देश भर के किसानों को संगठित करने और आंदोलन की राह पर आगे बढ़ाने का काम किया है।

मुलताई गोली सालन के बाद मंदसौर में हुए गोली चालन जिसमें 6 किसानों की मौत हुई उसी के परिणाम स्वरूप देश के किसानों ने एकजुटता के साथ सरकार के खिलाफ संघर्ष करने का निर्णय लिया और किसान संघर्ष समन्वय समिति का जन्म हुआ, जो आगे चलकर देश के अन्य किसान संगठनों को जोड़कर करीब 500 किसान संगठनों का संयुक्त किसान मोर्चा के रूप में सामने आया।

जिसने 13 महीने का बड़ा किसान आंदोलन चलाकर देश ही नहीं दुनिया के सामने आंदोलन की मजबूती का एक उदाहरण पेश किया और तीनों कॉर्पोरेट हित वाले किसान बिल को सरकार को रद्द करने पर मजबूर किया।

किसान संघर्ष समिति हर बार कुछ नया कर देश की जन आंदोलन को दिशा देने का काम करती है। इस बार भी 27 वें शहीद किसान स्मृति सम्मेलन में एक बार फिर देश के किसान संगठनों को नई दिशा देने का काम किया है। खेती के कामकाज में महिलाएं पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर काम करती है और खेती की सभी बारीकियां को समझती भी हैं।

लेकिन देश के किसी किसान संगठन ने अपने संगठन का नेतृत्व महिला नेता को देने का अब तक निर्णय नहीं किया है किसान संघर्ष समिति ने इस मामले में आगे बढ़कर किसान संगठनों को एक दिशा दी है।

मुलताई सम्मेलन में किसान संघर्ष समिति की जो नई कार्यकारिणी गठित की गई है उसमें किसान संघर्ष समिति मध्य प्रदेश के अध्यक्ष के रूप में छिंदवाड़ा की महिला नेत्री आराधना भार्गव को अध्यक्ष चुना गया है।

शायद यह देश में पहला मामला है जब किसी किसान संगठन का नेतृत्व महिला करेगी। उम्मीद है कि जिस तरह से मुलताई ने देश के किसान संगठनों को संघर्ष का रास्ता दिखाया था, इस बार भी किसान संगठनों को महिलाओं को आगे करना और उन्हें नेतृत्व के रास्ते पर आगे बढ़ने का मार्ग दिखाएगी।

मुलताई किसान आंदोलन पर गोलीचालन के बाद पिछले 27 वर्षों से किसान संघर्ष समिति द्वारा शहीद किसानों की स्मृति में सम्मेलन एवं किसान पंचायत का आयोजन किया जाता रहा है।

12 जनवरी 1998 को मुलताई के किसानों ने जब प्राकृतिक आपदा से नष्ट हुई फसल का मुआवजा, फसल बीमा, कर्ज मुक्ति और बिजली बिल माफी की मांग की तब सरकार ने किसान संघर्ष समिति बातचीत करने के बजाय गोलीचालन कर 24 किसानों की दिन दहाड़े हत्या कर गई तथा 150 किसानों को गोलियों से घायल कर दिया और 250 किसानों पर 67 मुकदमे लाद दिये। 12 साल पहले डाक्टर सुनीलम सहित तीन किसानों 52 को वर्ष की सजा सुना दी गई।

मंदसौर में जब 2017 में किसान आंदोलन चला तब भी सरकार ने किसानों से बातचीत करने की बजाय 6 जुलाई 2017 को गोली चालन किया जिसमें 6 किसान शहीद हुए। 100 से अधिक एफआईआर दर्ज कराई गई लेकिन किसानों ने अपनी ताकत से सभी एफआईआर ठंडे बस्ते में डलवा दी।

इन 27 वर्षों में किसानों की स्थिति में क्या परिवर्तन हुआ? किसानों के प्रति सरकारों का रवैया कितना बदला? किसान आंदोलन के खिलाफ सरकारों की दमनात्मक कार्यवाहियों में क्या अंतर आया? इसका मूल्यांकन और विष्लेषण करने पर हम पाते हैं कि गत 27 वर्षों में किसानों की संख्या में लगातार कमी हुई है।

2016-17 में औसत खेती के लिए भूमि जोत1.08 हेक्टेयर थी, 2021-22 में घटकर 0.74 हेक्टेयर ही रह गई है। इसमें 31% यानी एक तिहाई की कमी आई है। तमाम सारे किसान गत 27 वर्षों में खेतिहर मजदूर बन चुके हैं या शहरों में पलायन कर चुके हैं।

27 वर्ष पूर्व जब किसानों की फसलें ओलावृष्टि और अतिवृष्टि से खराब हुई थी, तब अनावरी मापने की इकाई तहसील थी, जो अब बदलकर पटवारी हल्का हो चुकी है।

तब सरकार 400 रूपये प्रति एकड़ राजस्व मुआवजा दिया करती थी और वह दर लगभग 10,000 रूपये प्रति एकड़ हुई है। उस समय फसल बीमा का लाभ किसानों को नहीं मिलता था। आज आधा-अधूरा ही सही कुछ ना कुछ मिलने लगा है लेकिन किसानों की फसलों की एमएसपी पर खरीदी न तब की जाती थी न अब की जा रही है।

इतना परिवर्तन जरूर आया है कि स्वामीनाथन कमीशन की रिपोर्ट आने के बाद अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति और संयुक्त किसान मोर्चा के संघर्षों के बाद एमएसपी की कानूनी गारंटी का मुद्दा देश के राजनीतिक पटल पर आ गया है।

किसानों की आत्महत्या निरंतर जारी है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार प्रतिवर्ष औसतन 15,168 किसान आत्महत्या को मजबूर हो रहे हैं।

इनमें लगभग 72 प्रतिशत ऐसे छोटे किसान हैं जिनके पास 2 हेक्टेयर से भी कम जमीन है। कृषि बजट 3 प्रतिशत तक सिकुड़ गया है। कृषि की लागत में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है लेकिन महंगाई की तुलना में समर्थन मूल्य नहीं बढ़े हैं। किसान नेता जगजीतसिंह डल्लेवाल के अनशन के 50 दिन से ज्यादा हो चुके हैं लेकिन सरकार बातचीत करने को तैयार नही है।

उपरोक्त तथ्यों से यह नतीजा निकाला जा सकता है कि 27 वर्षों में केंद्र सरकार और राज्य सरकारें पंजाब सरकार के अपवाद को छोड़कर किसान संगठनों से संवाद करने को तैयार नहीं है तथा सरकारों का रवैया हिंसात्मक तरीकों से किसान आंदोलन का दमन करने का बना हुआ है।

27 वर्ष पहले की तुलना में आज किसान संगठनों की ताकत काफी बढ़ गई है। किसान संगठन ताकतवर होने के साथ-साथ ज्यादा एकजुट हुए हैं।

27 साल पहले जब मुलताई किसान आंदोलन पर गोली चालन हुआ था तब देश में किसान संगठनों का कोई बड़ा राष्ट्रीय मंच नहीं था लेकिन मंदसौर किसान आंदोलन के बाद 250 किसान संगठनों ने अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति का गठन किया।

मुलताई किसान आंदोलन के 27 वर्ष बाद देश में संयुक्त किसान मोर्चा 550 किसान संगठनों के सशक्त मोर्चे के तौर पर मौजूद है।

हर साल सम्मेलन में उपस्थित किसान, संघर्ष का संकल्प लेकर मुलतापी घोषणा पत्र जारी करते हैं। इस बार भी 27वें शहीद किसान स्मृति सम्मेलन और 325वीं किसान पंचायत में मुलताई घोषणा-पत्र जारी किया गया।

जिसमें 12 जनवरी 1998 को पुलिस गोली चालन में शहीद 24 किसानों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए मुलताई तहसील में शहीद किसान स्मारक बनाने की मांग की गई।

साथ ही केंद्र सरकार से सभी फसलों का समर्थन मूल्य (सी2+50%) पर खरीद की गारंटी का कानून पारित करने, सभी किसानों के सम्पूर्ण कर्जा मुक्ति करने, रोजगार के अधिकार को संविधान के मौलिक अधिकारों में शामिल करने, वित्त मंत्री से उक्त सभी मांगों को पूरा करने के लिए आगामी आम बजट 2025 में राशि का आवंटन करने, प्रत्येक किसान परिवार को 1,000 रूपये प्रतिमाह किसान पेंशन देने, ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा योजना 200 दिन के लिए 600 रूपये प्रतिदिन की मजदूरी पर सभी बेरोजगारों को उपलब्ध कराने तथा शहरों में भी रोजगार गारंटी योजना लागू करने।

  • सम्मेलन 70 लाख स्वीकृत रिक्त पदों को भरने सार्वजनिक उपक्रमों का निजीकरण करने, उन्हें कार्पोरेट को बेचने का नीतिगत विरोध, चार श्रम संहिताओं को रद्द करने, कार्पोरेट पर 10 प्रतिशत अधिक कर (टैक्स) लगाने
    देश के हर एक किसान परिवार के एक सदस्य को शासकीय नौकरी उपलब्ध कराने, नौकरी न दिये जाने तक 10,000 रू प्रति माह बेरोजगारी भत्ता देने, केंद्र सरकार द्वारा लाये गये राष्ट्रीय कृषि बाजार नीति के ड्राफ्ट को अस्वीकार करते हुए इसे तीन किसान विरोधी कानूनों को चोर दरवाजे से किसानों पर थोपने का षड्यंत्र मानता है ताकि किसानों की जमीनों को संविदा खेती के माध्यम से अडानी अंबानी को सौंपा जा सके तथा कृषि बाजार पर कॉर्पोरेट को कब्जा दिलाया जा सके।
  • सम्मेलन राष्ट्रीय कृषि बाजार नीति को रद्द कराने के लिए संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा चलाए जा रहे आंदोलन को तेज करने ,जगजीत सिंह डल्लेवाल द्वारा 48 दिन से की जा रही भूख हड़ताल के बावजूद केंद्र सरकार द्वारा किसान संगठनों से बातचीत नहीं किये जाने के तानाशाहीपूर्ण एवं अलोकतांत्रिक मानता है।
    कृषि योग्य भूमि के अधिग्रहण पर रोक लगाने, अधिग्रहण हेतु ग्राम सभा की सहमति एवं सामाजिक, आर्थिक, पर्यावरणीय प्रभाव के परीक्षण कराने, वन अधिकार कानून (पेसा कानून) लागू करने की मांग करता है तथा वन संरक्षण कानून में किये गये संशोधनों को रद्द करने, नदियों के संरक्षण के लिए समग्र कानून बनाए जाने की मांग करता है।
  • सम्मेलन नर्मदा बचाओ आंदोलन द्वारा सुश्री मेधा पाटकर के नेतृत्व में गत 40 वर्षों से चलाए जा रहे आंदोलन से प्रेरणा लेते हुए सरदार सरोवर परियोजना के डूब प्रभावित सभी विस्थापितों के सम्पूर्ण पुनर्वास करने,हर किसान परिवार को प्रधानमंत्री सम्मान निधि देने, मध्यप्रदेश में सभी महिलाओं को लाड़ली बहना योजना का लाभ देने, उद्योगों एवं शहरों की तरह किसानों को 24 घंटे बिजली उपलब्ध कराने तथा बिजली कटौती बंद करने, प्रदेश और देश में शराबबंदी लागू करने, देश की सभी राज्य सरकारों से केरल की तरह 13 सब्जियों की एमएसपी पर खरीद की व्यवस्था करने की व्यवस्था।
  • केसीसी लोन की तरह सभी राष्ट्रीकृत बैंकों से 0% ब्याज दर पर सभी किसानों को होम लोन की सुविधा उपलब्ध कराने, सम्मेलन खाद और बीज आधे दाम पर उपलब्ध कराने, भाजपा सरकार से अपने घोषणा पत्र के अनुसार गेहूं की 3100 रु. प्रति क्विंटल पर खरीद करने, दूध के भाव 10 रु. प्रति फैट करने, कृषि के उपयोग में आने वाली सभी वस्तुओं और यंत्रों पर जी.एस.टी. शुल्क खत्म करने, सम्मेलन मध्यप्रदेश और देश में जाति जनगणना कराने, छिंदवाड़ा के पेंच व्यपवर्तन परियोजना से विस्थापित किसानों को आदर्श पुनर्वास नीति 2002 में उल्लेखित सभी विस्थापित किसानों को दिये गये प्लॉटों का मालिकाना हक देने, वसूला गया रजिस्ट्री शुल्क एवं स्टांप शुल्क वापस कराने की मांग।
  • सभी पुनर्वास केंद्रों को राजस्व ग्राम घोषित कर पंचायत की योजनाएं लागू करने, हर विस्थापित परिवार के एक सदस्य को शासकीय नौकरी उपलब्ध कराने,अडानी पॉवर प्रोजेक्ट के लिए अधिग्रहित जमीनों को वर्तमान भूमि अधिग्रहण कानून के तहत किसानों को वापस करने ,अन्य राज्यों की तरह मध्यप्रदेश में भी निराश्रित, वृद्ध, कल्याणी, परित्यक्ता, दिव्यांग और गरीबों को 3000 रूपये प्रति माह सामाजिक सुरक्षा पेंशन देने की मांग करता है।
  • किसान संघर्ष समिति सम्मेलन जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय, राष्ट्रीय किसानी मंच, संयुक्त किसान मोर्चा के सदस्य संगठन होने के नाते किसानों से तीनों मंचों के द्वारा आयोजित किये जाने वाले कार्यक्रमों में बढ़-चढ़कर भागीदारी करने का संकल्प लेता है।

(लेखक राम स्वरूप वरिष्ठ पत्रकार एवं किसान संघर्ष समिति मालवा निमाड़ के संयोजक है)

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