नागरिक तथा मानव अधिकारों पर काम करने वाली संस्था Association For Protection of Civil Right (APCR) की गुजरात यूनिट द्वारा आयोजित सेमीनार में देश भर में मुस्लिम विरोधी वातावरण और मुस्लिम विरोधी सरकारी नीतियों पर चिंता व्यक्त की गई। सेमिनार में स्ट्रीट वायलेंस, मॉब जस्टिस, बुलडोज़र, मीडिया ट्रायल जैसे गंभीर मुद्दों पर चर्चा हुई।
इस सेमिनार में दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर अपूर्वानंद, हैदराबाद के मुख्य न्यायधीश रहे अभय थिप्से, नरोडा पाटिया केस में जजमेंट देने वाली पूर्व सेशन जज ज्योत्सना यागनिक, सांझी विरासत की भावनाबेन रामख्यानी और वरिष्ठ पत्रकार प्रशांत दयाल वक्ता थे।
APCR के गुजरात यूनिट के अध्यक्ष शमशाद पठान ने बड़ौदा और सूरत में हुए गैंग रेप की घटना का ज़िक्र करते हुए कहा कि
“सरकार और आरएसएस दोनों गैंग रेप जैसी घटनाओं में भी भेदभावपूर्ण रवैया रखते हैं। आरएसएस और आरएसएस से जुड़े संगठन प्रशासन पर दबाव बनाते हैं कि आरोपी हिन्दू नहीं है तो इंस्टेंट जस्टिस किया जाये।
बड़ौदा की घटना में विधर्मी और परप्रांतीय कहकर सिस्टम पर दबाव बनाया गया एक कलेक्टिव पनिशमेंट का प्रयास हुआ। दूसरी तरफ जब सूरत में गैंग रेप की घटना होती है तो बुलडोज़र और कलेक्टिव पनिशमेंट की बात नहीं होती है क्योंकि आरोपी हिन्दू थे।
इसी प्रकार से कठलाल के एक सरकारी स्कूल के प्रिन्सिपल पर पॉक्सो का आरोप लगता है तो पूरे परिवार को दण्डित करने के लिए डेमोलिशन का नोटिस थमा दिया जाता है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट इस नोटिस को स्टे कर देता है। पिछले कुछ वर्षों से मुसलमानों के खिलाफ सामूहिक दंड, तुरंत दंड और भीड़ दंड का प्रयोग हो रहा है”।
“सरकार और सरकार से जुड़े लोग इस प्रकार के कृत्य में शामिल हैं। नागरिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए APCR काम कर रहा है। इसे रोकने की ज़िम्मेदारी हर नागरिक पर है।”
इस सेमिनार का विषय “A public meeting on ensuring access to justice upholding legal right” था। इस विषय पर बोलने के लिए सबसे पहले वरिष्ठ पत्रकार प्रशांत दयाल को आमंत्रित किया गया। दयाल ने कहा कि “नागरिक अधिकार मुद्दे पर हो रहे सेमिनार में 90 प्रतिशत लोग मुस्लिम हैं।
अन्य धर्म के लोग क्यूं नहीं हैं। यह अफ़सोस की बात है। जैसे यहां दाढ़ी-टोपी वाले दिख रहे हैं, उसी तरह तिलक वाले को भी दिखना चाहिए था। मानव अधिकार कार्यकर्त्ता मुसलमानों के लिए सड़क पर उतरते हैं, लेकिन जब हिन्दुओं का कोई मुद्दा होता है तो यह लोग सड़क पर नहीं उतरते हैं। मुसलमानों के अधिकार के लिए मुकुल सिन्हा लड़ते हैं तो हिन्दुओं के शमशाद पठान को आना चाहिए।”
दयाल ने मुस्लिम मोहल्लों के गुंडों पर बोलते हुए कहा कि मुस्लिमों की एक बड़ी समस्या हर मोहल्ले में एक गुंडा भी है। सरकार बाद में मारेगी पहले यह गुंडे ही आम मुस्लिमों पर अत्याचार करते हैं। दयाल ने मुसलमानों को कांग्रेस से आगाह करते हुए कहा कि मुस्लिम ग़लतफ़हमी न पालें कि कांग्रेस पार्टी सत्ता में आ जाएगी तो उनके घरों की दीवार सोने की हो जाएगी।
कांग्रेस इस देश में सबसे बड़ी प्रो हिन्दू पार्टी है। कांग्रेस मुस्लिमों को रात के अंधेरे में मारती है जबकि बीजेपी दिन के उजाले में मारती है।
रिटायर्ड जज ज्योत्सना यागनिक ने सेमिनार को ज़ूम मीटिंग द्वारा संबोधित करते हुए सबसे पहले जेंडर जस्टिस का मुद्दा उठाया। यागनिक ने कहा कि “विदेशों में 30 प्रतिशत तक महिला जज होती हैं लेकिन हमारे देश में 13 प्रतिशत तक ही महिला जज हैं। सुप्रीम कोर्ट में महिला जजों के संख्या 3 प्रतिशत है।”
यागनिक ने ख़राब मानव अधिकार अमल का मुद्दा उठाते हुए कहा कि अधिकतर देशों में वंचित वर्ग के लिए इन्साफ और फेयर ट्रायल दूर की खीर है।
यागनिक ने गाय के नाम पर हत्या तथा मारपीट और मॉब जस्टिस को देश के लिए बड़ा खतरा बताया। पक्षपाती मीडिया ट्रायल और उसके लेखकों द्वारा एक रंग डालकर समुदाय विशेष को निशाने पे लिया जा रहा है।
जस्टिस गवई का हवाला देते हुए यागनिक ने कहा कि आज एक आम नागरिक Rule of Law में भरोसा खो रहा है। इस देश में जिस प्रकार से मॉब जस्टिस को प्रोत्साहित किया जा रहा है जिस कारण Rule of Law नष्ट हो रहा है।
सरखेज रोज़े से जुड़ी हुई और सांझी विरासत के बैनर तले कौमी सौहार्द पर काम करने वाली भावना बेन राम ख्यानी ने हाउसिंग एंड शेल्टर का मुद्दा उठाते हुए कहती हैं कि “अशांत धारा कानून को डाइवर्सिटी मेन्टेन करने के लिए बनाया गया था।
लेकिन इस कानून का उपयोग विशेष समुदाय के विरुद्ध नागरिक अधिकारों के हनन के लिए हो रहा है। बड़ौदा की हरनी सोसाइटी जो मुख्यमंत्री आवास योजना के तहत अलॉट की गई थी।
वहां से भी नफरत की वजह से मुस्लिम परिवार को हटाया जाता है। द्वारका ज़िले में गैर कानूनी बांध काम के नाम पर 102 और नवाद्रा बंदर में 70 जगह डेमोलिशन होता है। दोनों जगह मस्जिद का भी डेमोलिशन होता है।”
रामख्यानी ने महिला उत्पीड़न के आंकड़ों के साथ गुजरात में महिला सुरक्षा पर चिंता व्यक्त की और उना फ्लोगिंग और खेड़ा में मुस्लिमों की पिटाई का मुद्दा उठाते हुए सरकारी तन्त्र के भेदभावपूर्ण रवैए को कटघरे में खड़ा किया।
APCR के राष्ट्रीय अध्यक्ष नदीम खान ने प्रशांत दयाल की कुछ बातों पर प्रतिक्रिया देते हुए कहते हैं। प्रशांत दयाल की टिप्पणी कि यहां 90 प्रतिशत मुसलमान हैं। जिसके अधिकार छीने जायेंगे। जिनपर ज़ुल्म होगा वही लोग तो यहां दिखेंगे।
क्या हम पीटने के बाद रो भी नहीं सकते। जिन 1595 लोगों को किसी अन्य अपराध के आरोप में बुलडोज़र चलाए गए हैं उनमें 1200 घर मुस्लिमों के थे।
नदीम खान ने आगे अदालतों में मुस्लिमों के साथ भेदभाव का मुद्दा उठाते हुए कहा कि “लोकतंत्र में लड़ाई केवल दो ही तरीके से लड़ी जा सकती है। राजनैतिक या अदालती…. हम कुछ भी कहें लेकिन राजनैतिक लड़ाई पांच सालों के लिए हम हार चुके हैं। अदालती लड़ाई लड़ी जा रही है।”
खान ने लिंचिंग के मुद्दे पर कहा कि 2014 से पहले भी इस देश में लिंचिंग होती थी। 1997 में ग्राहम स्टेन और उसके परिवार को लिंच कर जिंदा जला दिया गया था।
इस क्रूर अपराध के तीन मुख्य आरोपी थे। एक बजरंग दल का दारा सिंह, दूसरा पिछली केंद्र सरकार में मंत्री और तीसरा ओडिशा का मुख्यमंत्री बन गया। तो हम सोच सकते हैं कि इस मॉब लिंचिंग की मानसिकता की जड़ कहां है।
खान ने अदालत द्वारा मोहसिन शेख के कत्ल के मुख्य आरोपी धनंजय देसाई को बेल देते हुए टिपण्णी को दुर्भाग्यपूर्ण बताया। जिसमें अदालत ने मोहसिन शेख की दाढ़ी, टोपी को आरोपी की उत्तेजना का कारण बताया और बेल भी दे दी। जब अदालत ऐसी टिप्पणी करेंगी तो नागरिक अधिकार को कैसे सुरक्षित बनाया जायेगा।
खान ने उडुपी में हिजाब मुद्दे के बाद जब मामला कोर्ट में पेंडिंग था। उस समय 26000 मुस्लिम लड़कियों को स्कार्फ में परीक्षा देने का अंतरिम आदेश मांगा गया था तो सुप्रीम कोर्ट ने कहा हम कुछ नहीं कर सकते हैं। इन लड़कियों का एक साल ख़राब हो गया। जबकि कहा जाता है कि सुप्रीम कोर्ट एजुकेशन के पक्ष में निर्णय लेती है।
खान ने गुड्डा टाउन और रक्बर लिंचिंग का ज़िक्र करते हुए बताते हैं कि कैसे पुलिस ने इन्हें बचाने के बजाय मरने का इंतज़ार किया और समय पर अस्पताल नहीं पहुंचाया। खान ने अपने संबोधन के अंत में APCR की उपलब्धियों और संघर्ष को बताया।
प्रोफेसर अपूर्वानंद ने प्रशांत दयाल की बातों का खंडन करते हुए कहते हैं कि ज़ुल्म जिस पर होता है वही लड़ता है और उस पर ज़ुल्म के खिलाफ लड़ना फर्ज़ हो जाता है। इस मुल्क में नाइंसाफी का कोई शिकार सबसे अधिक है तो वह मुस्लमान हैं।
हिंदुस्तान में एलानिया तौर पर सरकार मुस्लिम मुखालिफ पॉलिसी बनाती है। ऐसा कानून बनाया जाता है जिससे मुसलमानों की अहमियत कमतर हो।”
अपूर्वानन्द ने सी.ए.ए./एन.आर.सी., ट्रिपल तलाक, एंटी लव जिहाद कानून और गुजरात सरकार का अशांत धारा कानून का उदाहरण भी दिया। उन्होंने आगे कहा कि अगर मैं मुसलमान होता तो हमेशा हर हिन्दू से डरता कि कब भीड़ मुझ पर हमला न कर दे।
सुबह से शाम तक मीडिया मुस्लिमों पर हमला करती है। कभी लैंड जिहाद तो कभी यूपीएससी जिहाद… हद तब हो गई जब असम का सी.एम. फ्लड जिहाद कहता है।
अपूर्वानन्द ने आगे कहा “98 प्रतिशत यहां मुस्लिम क्यों हैं यह सवाल करना ठीक नहीं है और मुस्लिमों को गुंडा कहना भी ठीक नहीं है। क्या आप मुसलमानों को अच्छा नागरिक तभी मानेंगे जब 99 प्रतिशत मुस्लिम संत होने का सर्टिफिकेट लेकर आयेंगे।
अदालत के बाहर एक बेहतर समाज बनाने की ज़रूरत है। अभी हम इजराइल नहीं हुए हैं। इजराइल जिस प्रकार बच्चों का नरसंहार कर रहा है। मुझे इजराइल के इंसान होने पर शक है। हम बराबरी का समाज बना सकते हैं।”
अंत में महारष्ट्र चैप्टर के APCR अध्यक्ष जस्टिस अभय थिप्से ने अपने संबोधन में कहा कि “कुछ लोगों ने हिन्दुओं के सिविल राइट वायलेशन पर दूसरी कम्युनिटी क्यूं नहीं जुड़ती है। जब मैं APCR से जुड़ा तो मुझे भी कहा गया यह तो मुस्लिमों की संस्था है।
अपर क्लास हिन्दुओं के सिविल राइट का वायलेशन होता है। तो उन्हें भ्रम है कि इश्टेब्लिशमेंट उन्हें प्रोटेक्शन देता है। थोड़े से नागरिक अधिकार छीन लेगी तो क्या हुआ। हमारे हित में है।”
जस्टिस अभय थिप्से ने देश को हिन्दू राष्ट्र बनाए जाने को हिन्दुओं के खिलाफ बताया क्योंकि दलित भी हिन्दू हैं। हिन्दू समाज गैर बराबरी वाला समाज है। हिन्दू राष्ट्र में नागरिक अधिकार सुरक्षित नहीं रहेंगे।
थिप्से ने अंत में हेट स्पीच पर काम करने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया। थिप्से ने कहा कम से कम दो सुप्रीम कोर्ट के फैसले हैं जिसमें कहा गया है कि हेट स्पीच पर सुओ मोटो कार्यवाही हो। लेकिन इसे रोकने का प्रयास नहीं हो रहा है।
APCR मानव अधिकारों तथा नागरिक अधिकारों पर काम करने वाली संस्था है। गुजरात सहित महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्य प्रदेश, यूपी, जम्मू कश्मीर इत्यादि शहरों में सक्रिय है। ऐसे लोग जो संसाधनों की कमी के कारण कानूनी लड़ाई लड़ने में असमर्थ है। उन लोगों को APCR मदद करता है।
अब तक APCR 1200 को बेल, 400 रिहाई और 2000 मुक़दमे देख रहा है।
(गुजरात से कलीम सिद्दीकी की रिपोर्ट)
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