यूपी फतेहपुर के ललौली गांव में एक महीने में बुखार और सांस लेने में तकलीफ़ से 100 से ज़्यादा मौतें

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उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के यमुना तटवर्ती गांव ललौली में पिछले एक महीने में 100 से ज्यादा लोगों की मौत हुयी है। ललौली गांव फतेहपुर जिला मुख्यालय से 35 किमी दूर बांदा हाइवे के किनारे स्थित है। वहीं ललौली गांव के लोगों का कहना है कि सभी मौतें कोरोना से हुई हैं क्योंकि मरने से पहले सभी में तेज बुखार खांसी, दस्त, सिरदर्द और सांस लेने में तकलीफ़ जैसे लक्षण दिखे थे।

ललौली गांव के ग्राम प्रधान शमीम अहमद के मुताबिक़ 10 अप्रैल को गांव में पहले मरीज की मौत हुई थी तब गांव वालों ने इसे सामान्य जुकाम बिगड़ना समझकर नज़रअंदाज़ कर दिया, यही लापरवाही आगे चलकर महँगी पड़ी और फिर तो दिन ब दिन 1-2 लोगों की इन्हीं लक्षणों के साथ मौतें होने लगी। 23 अप्रैल को सबसे ज़्यादा 7 लोगों की मौत ललौली गांव में हुयी तब लोगों को अपनी गलती का एहसास हुआ लेकिन तब तक मामला हाथ से निकल चुका था। ग्राम प्रधान शमीम मीडिया को बताते हैं कि गांव के 10 कब्रिस्तानों लोगों को दफ़नाया गया है। गांव में बुखार और सांस लेने में तकलीफ से हुई आखिरी मौत 13 मई को हुई थी। जब बुखार और सांस फूलने से गुलाम हुसैन की पत्नी बिस्मिल्लाह ने दम तोड़ा था। शकील का कहना है कि लोगों में जागरूकता की अत्यधिक कमी है। कई लोगों ने कोरोना के ख़तरे को हवा में उड़ा देने से ऐसे हालात हुए।

गौरतलब है कि फतेहपुर जिले में 26 अप्रैल को ग्राम पंचायत चुनाव हुआ। और इससे पहले जमकर प्रचार और डोर टू डोर कैंपनिंग के एक दौर चला। जिसका नतीजा ये हुआ संक्रमण घर-घर पहुंचा और मौत का आंकड़ा गांव में बढ़ते-बढ़ते 100 पार कर गया। 

गौरतलब है कि फतेहपुर जिला भी प्रदेश के सबसे पिछड़े जिलों में से एक है। अतः यहां के जिला अस्पताल समेत जिले की स्वास्थ्य व्यवस्था बहुत खस्ताहाल में है। जब ललौली गांव के लोग बीमार परिजनों को लेकर सबसे पहले फतेहपुर जिला अस्पताल पहुंचते थे, लेकिन पर्याप्त संसाधन न होने के चलते उन्हें भर्ती नहीं किया जाता था। साथ ही कोरोना के अंधाधुंध बढ़ते मामलों के बीच पड़ोसी जिलों कानपुर और बांदा के अस्पतालों में भी ललौली गाँव के लोगों को इलाज नहीं मिला। नवभारत टाइम्स के लिये चंद्रभान सिंह की रिपोर्ट के मुताबिक कुछ पैरा-मेडिकल स्टाफ की मदद से ऑक्सीजन सिलिंडर जैसी चीजों का इंतजाम किया गया, लेकिन यह नाकाफी था। गांव के लोगों के इलाज का जिम्मा नजदीकी अतिरिक्त पीएचसी पर है। जहां सिर्फ मोबाइल के जरिए इलाज की सुविधा कभी-कभार उपलब्ध है। केंद्र सुबह 8 से शाम 4 बजे तक खुलता है।

ग्राम प्रधान शमीम के मुताबिक 23 अप्रैल का दिन गांव के लिए डरावना था। जब 7 लोगों के जनाजे एक दिन में उठे तो 50 हजार की आबादी वाला कस्बेनुमा गांव ललौली दहल गया। मुस्लिम बाहुल्य आबादी वाले ललौली गांव में करीब 10 कब्रिस्तान हैं। यहां मृतकों की कब्रों की चमकती मिट्टी मामला ज्यादा पुराना नहीं होने की गवाही दे रही है। एक कब्रिस्तान में महीने भर में 30 शव दफनाए गए हैं।

वहीं खुद बीमारी की चपेट में आने वाले सूफियान नामक एक ग्रामवासी बताते हैं कि महज 10 दिनों में उनके परिवार के 4 लोगों ने तड़प-तड़प कर दम तोड़ दिया। सबको बुखार और सांस लेने में दिकक्त थी पर किसी को कोई इलाज नहीं मिल सका। सूफियान पत्रकार चंद्रभान सिंह से बताते हैं कि वह खुद भी बीमार हुए। लेकिन काढ़ा पी पीकर लंबे संघर्ष के बाद अब जाकर वो कुछ ठीक हुये हैं। वहीं एक और ग्रामवासी फैजान कहते हैं कि उनके चाचा को गले में दर्द और सांस लेने में तकलीफ के बाद मौत हो गई थी। लेकिन टेस्ट न होने से बीमारी के बारे में पता नहीं।

फतेहपुर की डीएम अपूर्वा दुबे ने ललौली गांव में हुयी 100 मौतों पर प्रतिक्रिया देते हुये मीडिया को बताया कि “ललौली में कुछ दिनों में बीमारी से कई मौतों की सूचना मिली है। एसडीएम को जांच के लिए भेजा है। रिपोर्ट के बाद मौत की वजह पता चलेगी।

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