Thursday, March 23, 2023

मुझे हाउस अरेस्ट में रखा गया है: सोनम वांग्चुक

रविंद्र पटवाल
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“एलजी साहब, आपके इस केंद्र शासित प्रदेश से तो जम्मू-कश्मीर वाली पुरानी स्थिति ही बहुत बेहतर थी।” ये कहना है प्रसिद्द पर्यावरणविद और पेशे से इंजीनियर और शिक्षा के क्षेत्र में बुनियादी सुधारक लेह-लद्दाख के सोनम वांग्चुक का। जबकि लेह-लद्दाख क्षेत्र के एलजी हैं राधा कृष्ण माथुर जो 1977 बैच के प्रशासनिक अधिकारी रहे हैं। जिन्हें जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटाये जाने के बाद पुनर्गठन के तहत पहला लेफ्टिनेंट गवर्नर बनाया गया था। 

“मुझे घर में नजरबंद करके रखा गया है”। ये दावा है सोनम वांग्चुक का। जैसा कि हम जानते हैं कि मशहूर पर्यावरणविद और लद्दाख सहित देश-दुनिया में फिल्म 3 इडियट्स के प्रमुख किरदार फुन्सुख वांगडू (जिसे आमिर खान ने निभाया था) के नाम से इनके जीवन पर बनी हिंदी की ब्लॉकबस्टर मूवी के प्रेरणास्रोत भी सोनम वांग्चुक ही रहे हैं। 

अपने ट्विटर अकाउंट से हाल के दिनों में हुए घटनाक्रम के बारे में एक वीडियो साझा करने के जरिये सोनम वांग्चुक उन तमाम घटनाओं को तफसील से बताते हैं, जो इस बीच उनके साथ घटी हैं। जैसा कि सभी जानते हैं कि पिछले कई दिनों से उनके द्वारा लेह-लद्दाख क्षेत्र को संविधान के छठे शेड्यूल में डाले जाने की मांग की जा रही थी, जिससे कि इस क्षेत्र की पारिस्थितिकी तंत्र और पर्यावरणीय क्षति को और खराब होने से बचाया जा सके। इसके लिए उनकी ओर से 26 जनवरी से इस क्षेत्र की सबसे ऊँची चोटी ‘खर्दुन्गला पास’ में 5 दिन का उपवास रखने की घोषणा की गई थी। हाड़ गला देने वाली इस बर्फबारी के बीच में खर्दुन्गला में तापमान -40 डिग्री हो जाता है, जिसमें सोनम वांग्चुक को जान का खतरा बना हुआ था।        

अपनी वीडियो में उन्होंने कहा है कि “मैं अभी हाउस अरेस्ट में हूँ, इसके बारे में थोड़ी देर में बताऊंगा।” कल 26 जनवरी को जिन्होंने लद्दाख और यहां की जलवायु, और संस्कृति के संरक्षण के समर्थन में कई स्थानों पर अनशन किया, जिसमें गांवों के दूर-दराज के इलाकों और पहाड़ में खुले आसमान के नीचे रात बिताकर मेरे समर्थन में आये। विभिन्न धर्मों के लोगों ने मंदिर, मस्जिद चर्च सब जगह लद्दाख के संरक्षण के समर्थन में अनशन किया और पूजा की, ताकि हमारी यह आवाज भारत के पीएम तक पहुंच सके और वे इस बारे में समुचित कार्यवाई करें। लद्दाख ही नहीं पूरे भारत में लोगों ने कहीं अनशन तो कहीं पूजा की और खुले आसमान के नीचे सोये, उन सभी को अपना समर्थन देने के लिए मैं बहुत-बहुत धन्यवाद करना चाहता हूँ।”

सोनम वांग्चुक ने कहा है कि, “तो मैं बताना चाहता हूँ कि मैं हाउस अरेस्ट कैसे हूं, और उससे बदतर स्थिति में कैसे पहुँच गया हूँ। यहां हालत यह है कि कहने को मेरी हिफाजत के लिए मुझे मेरे हयाल इंस्टीट्यूट में सीमित कर दिया गया है, लेकिन वास्तविकता यह है कि मेरा बाहर आना-जाना सब कुछ बाधित कर दिया गया है, और पुलिस का भारी बन्दोबस्त किया गया है।”

जब मैंने कहा था कि मैं खर्दुन्गला पर जाकर अनशन करूंगा तो मैंने औपचारिकतावश इस बारे में प्रशासन को सूचित कर दिया था, जिसका जवाब आखिरी दिन आया कि खर्दुन्गला पर बड़ा जोखिम है, ठंड है, जानवर हैं, और आपको अपने विद्यालय हयाल में अनशन करना चाहिए। मुझे उनकी हिफाजत को लेकर हो रही चिंता ने सहमत कर दिया। लेकिन मैंने एसपी साहब को कहा था कि आपको खर्दुन्गला टॉप पर यदि खतरा लगता है तो मैं बेस पर अनशन कर लेता हूँ, जहां पर सारी मेडिकल सुविधाएं हैं। लेकिन उन्होंने लेह शहर से काफी दूर हयाल में ही इसे करने के लिए कहा।

वे आगे कहते हैं, “मैंने देखा कि 26 जनवरी की सुबह चार-पांच बजे ही पुलिस की आवाजाही शुरू हो गई थी, दल-बल के साथ पुलिसकर्मी हयाल में चहलकदमी करने लगे थे। मुझे आश्चर्य लगा कि यह सब इंतजाम क्यों हो रहा है? बाद में मैंने पुलिस के एक अफसर से इस बाबत पूछा कि क्या मुझे रेस्ट्रिक्ट किया जा रहा है, या यह सब मेरी हिफाजत के लिए हैं। तो उन्होंने तपाक से कहा कि यह सब आपकी हिफाजत के लिए है, आप इतनी बड़ी शक्सियत हैं। मैंने एक और एसचओ से पूछा तो उन्होंने कहा कि आपका मूवमेंट रेस्ट्रिक्ट करने के लिए नहीं बल्कि आपकी सुरक्षा के लिए है।

“मैं आश्वस्त हो गया और कुछ देर बाद लेह में चोखांग विहार जोकि बौद्ध धर्म का यहां पर सबसे बड़ा और पवित्र मंदिर है, वहां पर मौजूद लद्दाख के सभी लोग 6वें शेड्यूल की मांग के समर्थन में अनशन कर रहे थे, वहां से मेरे लिए संदेश आया था कि लोग मेरी मौजूदगी की मांग कर रहे हैं। मैं उस मंदिर में गया और पूजा में बैठा दो घंटे। पूजा की समाप्ति के बाद जब 10 बजे लोग चले गये तो पुलिस के आधा दर्जन कर्मचारी आकर मुझसे कहने लगे कि आप यहां पर कैसे आ गये। कैंपस में तैनात सुरक्षाकर्मियों की नौकरी चली जायेगी। हम पर ऊपर से बहुत दबाव है। फिर वे जबरदस्ती करने लगे, धक्का देने लगे, यहां तक कि परिसर में ताला लगे होने पर दीवार के ऊपर मुझे जबरन धकेल कर ले गये।

“26 जनवरी के दिन, जिस दिन हमने संविधान को अपनाया, उसी दिन इन सारे कानूनों का हनन हो रहा था, उसके चीथड़े हो रहे थे। पुलिस के जवाब बेहद विवश और मजबूर नजर आ रहे थे। ऊपर के दबाव के कारण सही गलत सब कुछ करना पड़ रहा था। मेरी उनसे सहानुभूति है, लेकिन सिस्टम के द्वारा इनका दुरुपयोग किया जा रहा है। मेरी सुरक्षा ऐसी कैसी जिसमें मेरी ही जान जा सकती थी। ऊपर से सख्त आर्डर थे कि इन्हें किसी भी कीमत पर यहीं पर लाना है। यह मेरी सुरक्षा नहीं बल्कि यूटी प्रशासन, अपनी सुरक्षा के लिए कर रहा था। मेरी आवाज संस्थान तक ही सीमित रहे, लेह तक न पहुंचे और प्रशासन की नाकामयाबी दुनिया में उजागर न हो जाए।” 

इसके बाद उन्होंने जो बताया वह बेहद हैरान करने वाला है, “मैं आपको मजबूर होकर बताना चाहूँगा, जिसे अभी तक नहीं बताया कि यूटी क्षेत्र की आज स्थिति क्या है? 3 साल से यहां शासन-प्रशासन पूरी तरह से नाकाम रही है, सभी इससे दुखी हैं। युवा नौकरियों के अभाव में हताशा में हैं। 12,000 नौकरी का वादा किया गया था, 800 ही निकले हैं। वो भी पुलिस में ताकि लोगों के जुलूस और प्रदर्शन का दमन किया जा सके। लोग प्रदर्शन कर रहे हैं, लोगों को भय है कि उनकी जमीनें उनके हाथों से निकल सकतीं हैं।

यह सही है कि यूटी बनने के बाद से फंड में बड़ी वृद्धि हुई है। 6000 करोड़ का फंड इस समय यूटी के पास है। लेकिन प्रशासन इतना ढीला है कि अधिकांश हिस्सा लैप्स हो जाता है। जबकि कहा जाता है कि लद्दाख के लिए नो-लैप्स का प्रावधान किया गया है। यह सब पैसा एलजी के अधिकार क्षेत्र में है। लोगों की इसमें कोई भागीदारी नहीं है। लेह और लद्दाख में स्थानीय प्रशासन एवं जनप्रतिनिधियों के हाथ में कुल बजट का मात्र 8 प्रतिशत ही आता है। बाकी 92 प्रतिशत एलजी की मनमानी पर निर्भर करता है। निधि का उपयोग न करने के चलते फंड वापस जा रहा है, लोग बेहद परेशान हैं।

लेह-लद्दाख क्षेत्र में प्रशासन को लेकर आम लोगों की राय के बारे में वे खुलासा करते हुए कहते हैं, “यूटी के 3 साल होने पर एक सर्वे में पूछा गया था कि आप यूटी के 3 साल के कामकाज को 5 में से कितने अंक देंगे? 95% लोगों ने 1 या 0 प्रतिशत दिया। इसे छुपाने के लिए वे भरसक प्रयत्न कर रहे हैं कि मेरी आवाज को किसी भी कीमत पर रोक दिया जाए और छठे शेड्यूल, जिसका कोई पार्टी विरोध नहीं कर रही है, बीजेपी का तो यह चुनावी मुद्दा रहा है, वहीं कांग्रेस, आप, नेशनल कांफ्रेंस सभी इसके समर्थन में आवाज उठा रहे हैं, तो यह राजनीतिक नहीं है। लेकिन यदि कोई इसके समर्थन में आवाज उठाये तो उसके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर दी जाती है।”

“कुछ समय पहले कुछ पत्रकारों ने सोशल मीडिया में इसके समर्थन में बातें लिखीं तो उनके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर दी गई थी। इसी प्रकार कुछ प्रोफेसरों ने अपने प्रोफाइल में जिक्र किया तो उनका कहीं का कहीं ट्रान्सफर कर दिया गया। एक उद्यमी ने सिर्फ यह लिखा कि अभी तेल और चावल महंगे हो गये हैं, इस पर उसके खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर दी गई। हैरानी की बात यह है कि प्राथमिकी को नकार देने पर, प्राथमिकी हवा में ही खत्म हो गई और इस साल उन्हें राजकीय सम्मान से नवाजा गया। पूरी तरह से अंधेर नगरी, बनाना रिपब्लिक बन गया है। यदि कोई डर गया तो उसके खिलाफ प्राथमिकी वरना पुरस्कार से उसे शांत कर दिया जा रहा है।”

वे आगे बताते हैं, “आज ही लेह स्टेडियम में आइस हॉकी के एक मैच के दौरान जब कुछ युवाओं ने 6th Schedule के नारे लगाये तो उन्हें थाने में पकड़कर ले गये, और प्राथमिकी दर्ज कर दी गई। यह कौन सा जुर्म है। जिस मांग को हर पार्टी ने अपने घोषणापत्र में सबसे ऊपरी स्थान पर रखा था, उसकी मांग उठाने पर प्राथमिकी दर्ज की जा रही है? कैसे मनमर्जी वाला अंधा कानून है कि 6 शेड्यूल की मांग उठाएं तो थाने में ले जाये जायेंगे? यही होता रहा तो लद्दाख जैसा क्षेत्र जो बेहद संवेदनशील है, जहां लोग इतने राष्ट्रभक्त हैं, वे अलगाववादी हो सकते हैं। मुझे भय सताता है कि क्या पता उग्रवाद का रास्ता न अपना ले। अमित शाह से अनुरोध है कि कृपया हस्तक्षेप कीजिये, शायद आप तक बातें नहीं पहुंचती होंगी, जमीन पर लोग बेहद दुखी हैं, जिसके अभाव में लेह लद्दाख में अंधेर नगरी बन गई है।” 

जमीनी स्थिति के बारे में बताते हुए वे आगे कहते हैं, “जो लोग 5 किमी की दूरी से यहां प्रवेश करते हैं, उनकी गाड़ी चेक की जाती है, नाम नोट किया जा रहा है। आज ही इंडिया टुडे के ग्रुप को मुश्किल से आने दिया गया। उनके सामने शर्त रखी गई कि आप सिर्फ 30 मिनट ही मिल सकते हैं। यह कौन सा कानून है।  वे लोग वापस चले गये क्योंकि 30 मिनट में कुछ नहीं हो सकता था। वे हर उस कोशिश को कर रहे हैं जिससे मेरी आवाज दुनिया तक न पहुँच सके। उनकी गड़बड़ी का खुलासा न हो जाये। ऐसे हालात बना दिए गये हैं, जिसके चलते आज मजबूर होकर मुझे यह सब बताने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।” 

अपनी भूमिका के बारे में बताते हुए वे कहते हैं, “मैं तो सिर्फ पर्यावरण और उसके संरक्षण तक खुद को सीमित रखे हुए था, लेकिन उन्होंने मुझे रेस्ट्रिक्ट कर रखा है, यह आवाज आप तक पहुंचने की जरूरत है। कृपया इस बारे में आवाज उठाएं। भारत बनाना रिपब्लिक नहीं है। सर का ताज यदि अंधेर नगरी बन जाए तो दुनिया के सामने हम क्या बताने के काबिल रह जायेंगे।

वे आगे कहते हैं “आप सभी से विनती है कि आप मेरी आवाज को आगे, पीएम तक पहुंचाने में मदद करें, ताकि उनका ध्यान लद्दाख पर जाए। यहां के जो हालात हैं उन्हें ठीक करें और लद्दाख के नेताओं को तत्काल वार्तालाप के लिए बुलाएं और एक निर्णायक फैसला लेकर लद्दाख के संरक्षण, जो कि 6 शेड्यूल में ही संभव है, को अंतिम रूप दें। यूटी प्रशासन की इस चाल को कि मैं खर्दुन्गला न जा पाऊं, और मेरी आवाज देश और पीएम तक न पहुंच पाए।

“ऐसे में आप सभी लोग बहुत बड़ा करिश्मा कर सकते है। आप इस आवाज को इतना अधिक बढायें मीडिया, सोशल मीडिया के जरिये कि यह उससे भी अधिक बुलंद जाए। यह सब आप ही कर सकते हैं।  सलाम, नमस्कार और जयहिंद।”

वीडियो की समाप्ति के बाद एक और अपडेट को जोड़ने वाले संदेश में सोनम वांग्चुक कहते हैं, “आज जब मैंने इस अवैध हाउस अरेस्ट के बारे में देश को सूचित किया तो यूटी प्रशासन की ओर से दोपहर के समय एक अधिकारी को भेजा जाता है। उनकी ओर मुझे एक पत्र थमाया गया, जो एक एग्रीमेंट और साथ में बांड भी है। इसमें कहा गया है कि मैं लेह में किसी भी प्रकार की कोई टिप्पणी, बयान, सार्वजनिक भाषण, लोगों के बीच में सभा या उसमें हिस्सेदारी नहीं करूंगा, क्योंकि इससे संभावित शांति के भंग होने की आशंका है। प्रतीक रूप में मुझे अपने अनशन को सिर्फ हयाल कैंपस के भीतर ही करना होगा।

“यूटी चाहता है कि मैं अनुच्छेद 19 में मुझे हासिल अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, आने-जाने की आजादी को अपने हाथों ही खत्म कर दूँ। इतना ही नहीं मैं खुद से 50,000 रूपये का बांड भी भरूं। इस पर मैंने उस अधिकारी से कहा कि यदि मैं इसपर दस्तखत न करूं तो? उनका जवाब था फिर आपका डिटेंशन हो सकता है। मैंने इस पर कहा कि यह तो सबसे अच्छी बात होगी। मैं सहर्ष जेल जाना चाहूंगा। जो आदमी खर्दुन्गला के -40 डिग्री में मरने से नहीं डरता, वो आपके डिटेंशन से डरेगा?”

“एक ताजा अपडेट 9 बजे रात को आया है। इस एग्रीमेंट पर दस्तखत करने पर बाध्य करने के लिए हमारे स्कूल से तीन युवा शिक्षकों, जिनका कोई दोष नहीं है, को थाने ले जाकर सताया जा रहा है। ताकि उनको बचाने के लिए मैं इस समझौते पर दस्तखत कर दूं। एलजी साहब के ये हथकंडे हैं यूटी को चलाने के लिए।”

“एलजी साहब बहुत मेहनत कर रहे हैं लद्दाख जैसे शांत क्षेत्र में उग्रवाद के बीज बोने के लिए। जिस प्रकार से आपने युवाओं को बेरोजगार रखा, फिर ऊपर से एक के बाद एक जुल्म ढाए जा रहे हैं, बहुत संभव है कि ऐसा हो जाए। लेकिन याद रखियेगा, हम आपको कामयाब नहीं होने देंगे। लेकिन आज एक बाद मजबूर होकर कहना पड़ रहा है कि आज के यूटी से तो हम जम्मू-कश्मीर में ही बेहतर थे, लेकिन मुझे विश्वास है कि कल का लद्दाख बेहद सुनहरा होगा।“

“आपको यह भी बता दूं कि इस ईगो वार में आपने मुझे हाउस अरेस्ट में तो रखा है, लेकिन आपने जिन 20-25 पुलिसकर्मियों को मेरी निगरानी में तैनात कर रखा है, वे पुलिस के नौजवान कितने पिस रहे हैं। ये 3 रातों से -20 डिग्री तापमान में बगैर किसी हीटिंग, टेंट, कनात के अपनी ड्यूटी कर रहे हैं। यदि आप इन लोगों के लिए हीटिंग और टेंट का इंतजाम कर देते तो आपका बहुत धन्यवाद होता।“ 

(रविंद्र पटवाल स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)

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