“ज़रा सुन लो
‘पर’ (पंख) लगा लिए हैं हमने, पर लगा लिए हैं हमने
तो पिंजड़े में कौन बैठेगा
तो पिंजड़ों में कौन बैठेगा
औरों की मानी अब तक, औरों की मानी अब तक
अब खुद को बुलंद करेंगे
जरा सुन लो
पर लगा लिए हैं हमने….”
उपरोक्त गीत और कई नाटकों के साथ आज 8 मार्च अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर दिल्ली के जंतर-मंतर पर कई महिला संगठनों ने मिलकर एक आमसभा का आयोजन किया। इसमें नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वूमेन, नारी शक्ति मंच, नेशनल प्लेटफॉर्म फॉर डोमेस्टिक वर्कर्स (एनपीडीडब्ल्यू), सोलिडेरिटी सेंटर जीएलआरएफ – रांची झारखंड, ज्वाइंट वूमेन्स प्रोग्राम, सीएसडब्ल्यू, पिजरातोड़, पुरोगामी महिला संगठन, प्रगतिशील महिला संगठन, फेमिनिज्म इंड इंडिया (एफआईआई), नैशनल नेटवर्क ऑफ सेक्स वर्कर्स (एनएनएसडब्ल्यू), नजरिया, सहेली, स्वास्तिक महिला संगठन, ऐपवा, आजाद फाउंडेशन, यूनाइटेड नर्स एसोसिएशन, आयशा वूमेन राइट एक्टिविस्ट, एलिजाबेथ खान वूमेन एक्टिविस्ट, रितुपर्णा, वाणी, प्रभा एन, वैष्णवी, जशोधरा दासगुप्ता आदि शामिल हुए।
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इस आम सभा में महिला संगठनों ने मिलकर संविधान प्रतिष्ठापित लैंगिक बराबरी के लिए संघर्ष तेज करने की प्रतिबद्धता को दोहराया। सभी संगठनों की ओर से सामूहिक रूप से कहा गया कि “ट्रांस, सिस क्वीयर, हाशिए पर खड़ी विभिन्न जातियों आदिवासी, जनजाति, विकलांग,गैरविकलांग, विभिन्न धर्म, विभिन्न जाति, विभिन्न यौनिक पहचानों वाले, विभिन्न आजीविका और पहचानों से जुड़े लोग जिसमें यौन कर्म, घर आधारित कार्यक्रम और अवैतनिक कार्य शामिल हैं। हम उन सभी ताकतों के खिलाफ़ सामूहिक रूप से अपनी आवाज बुलंद करते हैं, जो हमारी पहचान और मानवाधिकार मिटाना चाहते हैं, जो हमने वर्षों के संघर्ष के बाद जीते हैं।”
कार्यक्रम में एनआरसी, सीएए, एनपीआर के खिलाफ, यौन हिंसा के खिलाफ़ और सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ़ संघर्ष का आह्वान किया गया।
सामाजिक कल्याणकारी नीतियों के बजट में कटौती, श्रम कानून को कमजोर करने, संसद में महिलाओं, हाशियाकृत महिलाओं और ट्रांसजन के प्रतिनिधियों की कमी के मुद्दे को पुरजोर उठाया गया।
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इसके अलावा नागरिकता संशोधन कानून-2019, सरोगेसी (विनियमन) विधेयक, व्यक्तियों की तस्करी (रोकथाम, संरक्षण और पुनर्वास) विधेयक 2018, अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम 2006, और मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) विधेयक 2019 और महिला आरक्षण विधेयक के मुद्दे को उठाया गया।
प्रगतिशील महिला संगठन अध्यक्ष पूनम कौशिक ने संबोधित करते हुए कहा, “असली सवाल है वजूद से बेदखली। हम स्त्रियां इसे स्वीकार नहीं करेंगी। अब की 8 मॉर्च ऐसे समय में आया है जब राजधानी दिल्ली का शाहीन बाग़ पूरे देश की औरतों के लिए देश की जनता के लिए दुनिया भर की औरतों के लिए, दुनिया भर के अमन पसंद व्यक्तियों के लिए शीहान बाग़ की औरतें एक जिंदा संघर्ष का उदाहरण बन गई हैं। न केवल शाहीन बाग़ पूरे दिल्ली के अंदर, जाने कितनी जगहों पर और पूरे देश में कम से कम दो सौ जगहों पर स्त्रियां बैठी हैं धरने पर पिछले 2 महीने से। देश में 200 शाहीन बाग़ बन गए हैं। ये औरतें जो निकलकर आई हैं आज वो किस बात को लेकर निकल कर आई हैं। वो भारत के संविधान को बचाने के लिए निकलकर आई हैं।
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वो संविधान जो भारत की महिलाओं और जनता को लैंगिक बराबरी के साथ-साथ वास्तविक बराबरी देता है। आज भारत की केंद्र सरकार आरएसएस परिवार वाली भाजपा की सरकार इस बराबरी के अधिकार पर हमला कर रही है। विविधता और अनेकता में एकता वाली संस्कृति पर हमला कर रही है। संविधान के मूल्यों पर सीएए कानून के जरिए हमला किया जा रहा है। हमारा संविधान इस विविधता कि रक्षा करता है। इस विविधता के ऊपर जो हमला है। लाखों की संख्या में औरतें घरों से निकलकर आईं और संविधान की रक्षा के लिए अग्रगामी पंक्तियों में खड़े होकर रक्षा कर रही हैं। हम मोदी के शुक्रगुजार हैं कि उन्होंने इन महिलाओं को एक झटके में घरों से निकालकर सड़कों पर खड़ा कर दिया है।
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आज महिलाओं की शिक्षा और स्वास्थ्य पर हमला हो रहा है। शिक्षा और स्वास्थ्य को निजीकरण के लिए सौंपा जा रहा है। बहुराष्ट्रीय कंपनियों की संस्कृति महिलाओं के जिस्म का व्यवसायीकरण करती है। जिसका परिणाम है कि महिलाओं को एक नुमाइश की चीज बनाकर पेश किया जा रहा है। शाहीन बाग की औरतों से प्रेरणा लेते हुए 24-27 फरवरी के बीच दिल्ली पुलिस ने भगवा दंगाईयों के साथ मिलकर पूर्वी दिल्ली के मुस्लिम नागरिकों का कत्लेआम मचाया है।
दिल्ली पुलिस ने जिस तरह से दिसंबर और जनवरी में जामिया और जेएनयू के बच्चों पर हमला किया है। हम महिलाएं उसकी कड़ी निंदा करती हैं। आज ज़रूरत है कि हम शाहीन बाग़ की महिलाओं के दिखाए रास्ते पर चलें, हमें सड़कों पर उतरकर संविधान को बचाना होगा।”
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ऑल इंडिया डेमोक्रेटिक वूमेन्स एसोसिएशन (AIDWA) की मैमुना मुल्लाह ने कहा कि “फरवरी 23 से 27 तक पूर्वी दिल्ली में जो हुआ वो दंगा नहीं मार थी, सरकार की मार। बहुत नाराज थे ये इलेक्शन हारने के बाद। ये नाराज थे कि लोगों में खासकर महिलाओं में वो हिम्मत आई कि इनके कानून करे खिलाफ, इनके गैरकानूनी कानून के खिलाफ, जो मजहब के नाम पर हिंदुस्तान के लोगों को बाँटना चाहता है उसके खिलाफ़ औरतें पूरे हिंदोस्तान में उठ खड़ी हुई हैं। बहुत नाराजगी थी न तो इन्होंने सबक सिखाना चाहा। क्या हमने वो सबक सीखा, नहीं, नहीं नहीं। तुम हमें दबाओगे हम फिर से उठेंगी। और ज़्यादा दबाओगे हम फिर से उठेंगे। ये हमारा आज आठ मार्च को नारा है।”
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कार्यक्रम में इस बात पर विशेष जोर दिया गया कि फासीवादी सत्ता और पूंजावादी व्यवस्था द्वारा लगातार हम स्त्रियों को हमारे वजूद से बेदखल किया जा रहा है। ऐसे में आज सावित्री बाई फुले की प्रासंगिकता बढ़ जाती है जिन्होंने इस देश की स्त्रियों को शिक्षित करके अपने वजूद को पहचानने, तलाशने और संवारने के लिए प्रेरित किया।
(संस्कृतिकर्मी अवधू आजाद की रिपोर्ट।)
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