गोपेश्वर। जोशीमठ में चल रहे आंदोलन को समर्थन देने आए ‘यूथ फॉर हिमालय’ समूह के सदस्यों ने गोपेश्वर में प्रेस वार्ता कर जोशीमठ व समूचे हिमालय की स्थिति पर अपनी चिंताएं और मांगे रखीं। यूथ फॉर हिमालय हिमालयी राज्यों के पर्यावरण प्रेमी युवाओं का समूह है जो हिमालयी क्षेत्र में पर्यावरणीय संकट के मुद्दों पर काम करता है।
युवाओं के इस 8 सदस्यीय दल ने 13 से 14 अप्रैल तक जोशीमठ के आपदाग्रस्त क्षेत्र का दौरा किया, प्रभावित लोगों से बातचीत की और उनकी समस्याओं को जाना। साथ ही 13 अप्रैल को जोशमीठ बचाओ संघर्ष समिति द्वारा चलाए जा रहे धरने के सौवें दिन उनके संघर्ष के प्रति अपना समर्थन प्रकट किया।
समूह की सदस्य व हिमाचल प्रदेश के मंडी की रहने वाली रितिका ठाकुर ने कहा कि हमने जोशीमठ में सिंहधार, सुनिल, मनोहर बाग, स्वी आदि का दौरा करते हुए पाया कि अधिकतर प्रभावित गरीब और दलित परिवारोंं से हैं, जिनके घर बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। सरकार द्वारा प्रभावितों को जो राहत दी गयी है वह पर्याप्त नहीं हैं। इस घटनाक्रम में बच्चों, बुजर्गों और महिलाओं को सबसे अधिक परेशानी उठानी पड़ रही है।
साथ ही प्रशासन द्वारा मुआवजे की जो प्रक्रिया तय की गयी है वह आम जनता के लिए बहुत जटिल है। बार-बार लोगों को कागज बनावने के लिए दफ्तरों के चक्कर काटने पड़ रहे हैं। इससे न केवल उनकी दिहाड़ी टूट रही है बल्कि समय भी बहुत बर्बाद हो रहा है।
रितिका ने कहा कि अभी तक प्रभावितों को जिन होटलों में ठहराया गया है उसकी मियाद भी अप्रैल के आखिर में खत्म हो रही है। लोगों को लग रहा है कि इसके बाद वो कहां जाएंगे। सरकार को राष्ट्रीय पुनर्वास नीति 2007 के तहत इनके लिए प्रबंध करना चाहिए।
यूथ फॉर हिमालय के सदस्यों ने कहा कि हमारी मांग है कि जोशीमठ के प्रभावितों को साथ लेते हुए एक अधिकार प्राप्त कमेटी का गठन किया जाए जो पुनर्वास, मुआवजा, विस्थापन व मूलभूत जरूरतों की निगरानी रखने का काम करे। साथ ही भविष्य में आने वाली आपदाओं के रोकथाम के लिए उपाय करे।
समूह के सदस्य व पिथौरागढ़ के रहने वाले सुमित ने भविष्य में आने वाले मानसून के खतरे को भांपते हुए कहा कि तमाम हिमालयी राज्य मानसून के समय भारी तबाही के साक्षी बनते हैं। हमने जून 2013 में उतराखंड त्रासदी और केदारनाथ की तबाही को देखी है और पूरा हिमालयी क्षेत्र गलत सरकारी नीतियों के चलते अति संवेदनशील बन गया है। पूरे जोशीमठ की वर्तमान स्थिति को हमने अपनी आंखों से देखा है। स्वतंत्र भूगर्भ वैज्ञानिकों ने भी बार-बार कहा है कि पूरे जोशीमठ को ही खतरा है।
सुमित ने आगे कहा कि अभी मानसून आने वाला है। घरों में आई दरारें बरसात के समय और गंभीर संकट पैदा करने वाली हैं। हाल ही में मुख्यमंत्री ने अपने दौरे में ‘सुरक्षित जोशीमठ’ का संदेश दिया है, बावजूद इसके स्थानीय लोगों में डर और शंकाएं बरकरार हैं। जोशीमठ अगर असल में सुरक्षित है तो सरकार को उन आठ संस्थाओं की रिपोर्ट को सार्वजनिक करना चाहिए जिन्होंने जोशीमठ का भूगर्भीय अध्ययन किया है ताकि स्थानीय लोगों की शंकाओं का समाधान हो सके और चारधाम यात्री अपने को सुरक्षित महसूस कर सकें।
उन्होंने कहा कि उतराखंड से लेकर जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, मणिपुर, सिक्किम, अरुणाचल आदि तमाम हिमालयी राज्यों में अंधाधुंध विकास परियोजनाओं से (जल विद्युत परियोजनाओं, सड़क परियोजनाओं, खनन) भंयकर पर्यावरण संकट पैदा हुआ है। इस संकट के चलते न केवल पर्यावरण प्रभावित हुआ है बल्कि हिमालय के लोगों की जिंदगी व आजिविका भी प्रभावित हुई है।
प्रेस वार्ता में संबोधित करते हुए समूह के सदस्य मोहम्मद ईशाक वन गुज्जर ने कहा कि यह आपदा कोई प्राकृतिक आपदा नहीं है बल्कि यह सरकारी नीतियों से उपजी हुई आपदा है। प्रशासन द्वारा घरों को चिन्हित कर जिस तरह खतरनाक घोषित किया गया है उससे स्थनीय जनता में डर का माहौल है। हमारा मानना है कि पूरा जोशीमठ ही खतरे की जद में है। अतः हम राज्य सरकार से मांग करते हैं कि पूरे जोशीमठ इलाके को ही पूर्ण आपदाग्रस्त घोषित किया जाए।
यूथ ऑर हिमालय से जुड़े अनमोल ने प्रेस को बताया कि हमारे समूह ने जोशीमठ की जनता के धरने के सौ दिन पूरे होने के समर्थन में अखिल भारतीय स्तर पर नौजवानों से अपील की थी कि वह ‘जोशीमठ बचाओ, हिमालय बचाओ’ नारे के साथ अपना समर्थन जताएं। इसके तहत हिमाचल प्रदेश के लाहौल-स्पिति, किन्नौर, जम्मू शहर, उतराखंड के ऋषिकेश, सिक्किम की तिस्ता घाटी, आंध्र प्रदेश के विशाखापटनम, तेलंगाना के हैदराबाद, उतर प्रदेश के गाजियाबाद, राजस्थान के जोधपुर समेत अन्य स्थानों पर विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किये गये हैं।
(उत्तराखंड के गोपेश्वर से गगनदीप की रिपोर्ट।)
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