भारत इन दिनों ‘निर्मित की गई नफरतों’ की चपेट में है। इस नफरत के नतीजे में समाज के कमजोर वर्गों, विशेषकर दलितों और धार्मिक अल्पसंख्यकों के विरुद्ध हिंसा हो रही है। इन समुदायों के विरुद्ध नफरत भड़काने के लिए झूठ का सहारा लिया जाता है और इस झूठ को फैलाने का सबसे अच्छा तरीका होता है ऐतिहासिक घटनाओं को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करना। इस समय भारतीय इतिहास के तीनों कालों- प्राचीन, मध्य और आधुनिक को तोड़ा-मरोड़ा जा रहा है। जो इतिहासविद् हमारे इतिहास की तार्किक विवेचना करना चाहते हैं, उसके बहुवादी चरित्र को सामने लाना चाहते हैं, उन पर वर्चस्वशाली राजनीतिक विचारधारा के झंडाबरदार कटु हमले करते हैं और उन्हें बदनाम करने का हर संभव प्रयास करते हैं।
भारत के अतीत को भारतीय राष्ट्रवादी और सांप्रदायिक राष्ट्रवादी एकदम अलग-अलग तरीकों से देखते हैं। दोनों की इतिहास की समझ और विवेचना एक दूसरे से अलग ही नहीं परस्पर विरोधाभासी भी है। कई इतिहासकारों ने सांप्रदायिक तत्वों द्वारा इतिहास के साथ छेड़छाड़ का अपनी पूरी ताकत से मुकाबला किया। उन्होंने इस बात की परवाह भी नहीं की कि जुनूनी फिरकापरस्त उनकी जान भी ले सकते हैं।
दिल्ली विश्वविद्यालय में इतिहास के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोफेसर डीएन झा ऐसे ही एक इतिहासविद् थे। उन्हें कई बार जान से मारने की धमकियां दी गईं। गत 4 फरवरी को प्रोफेसर झा की मृत्यु न केवल हमारे देश और दुनिया के इतिहासविदों के लिए एक बहुत बड़ी क्षति है, वरन् उस आंदोलन के लिए भी बड़ा धक्का है जो हमारे देश के बहुवादी और समावेशी चरित्र को बरकरार रखना चाहता है। प्रोफेसर झा इस आंदोलन को विचारधारा के स्तर पर मजबूती देने वालों में से थे। उन्होंने अपने गहन अध्ययन से प्राचीन और मध्यकालीन इतिहास को गहराई से समझने में हमारी मदद की।
उनकी पुस्तक ‘मिथ ऑफ़ होली काउ’ के प्रकाशन के बाद से ही उन्हें फोन पर जान से मारने की धमकियां मिलने लगीं थीं। ‘होली काउ’ (पवित्र गाय) के आख्यान का एकमात्र उद्धेश्य दलितों और मुसलमानों को आतंकित करना है। हम सबने देखा है कि किस प्रकार इस आख्यान ने मुसलमानों और दलितों की लिंचिंग का रूप अख्तियार कर लिया। क्या हम ऊना की उस घटना को भूल सकते हैं जहां एक मृत गाय की खाल उतारने पर चार दलितों की बेरहमी से पिटाई की गई थी?
झा की पुस्तक, जो कि हिंदू धर्मग्रंथों के गहन अध्ययन पर आधारित थी, में यह बताया गया था कि प्राचीन भारत में गौमांस आम लोगों के भोजन का हिस्सा था। वैदिक और उत्तर-वैदिक, दोनों कालों में भारत में गौमांस खाया जाता था। प्रोफेसर झा ने अपनी पुस्तक में मूल ग्रंथों को उद्धृत किया था और बीफ के भोजन का भाग होने के संबंध में अकाट्य तर्क दिए थे। प्रोफेसर झा ने अपने शोध से जो साबित किया वह अंबेडकर और उनके जैसे अन्य विद्वान पहले से भी कहते आ रहे थे। अंबेडकर ने अपनी पुस्तक ‘हू वर द शूद्राज’ में यही कहा था। स्वामी विवेकानंद की भी यही मान्यता थी।
उन्होंने कहा था, “तुम्हें आश्चर्य होगा कि पुराने समय में यह माना जाता था कि जो गौमांस नहीं खाता, वह अच्छा हिंदू नहीं है। एक अच्छे हिंदू के लिए कुछ मौकों पर सांड की बलि देकर उसका मांस खाना अनिवार्य था।” विवेकानंद ने यह बात 2 फरवरी 1900 को अमरीका के कैलिफोर्निया राज्य के पसाडेना में स्थित शेक्सपियर क्लब में ‘बुद्धिस्ट इंडिया’ विषय पर व्याख्यान देते हुए कही थी। इसका विवरण ‘द कंपलीट वर्क्स ऑफ़ स्वामी विवेकानंद’ खंड 3 (कलकत्ता: अद्वैत आश्रम, 1997) पृष्ठ 536 में दिया गया है।
प्रोफेसर झा की विद्वतापूर्ण पुस्तक ने उस आंदोलन को जबरदस्त ताकत दी जो भारत में खानपान संबंधी आदतों में विविधता को बनाए रखना चाहता था। सांप्रदायिक तत्वों को गौमाता से कोई प्रेम नहीं है। यह इस बात से स्पष्ट है कि हाल में राजस्थान के हिंगोनिया में एक गौशाला में सैकड़ों गायें भूख और बीमारी से मर गईं, परंतु गौभक्तों के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। विजय त्रिवेदी ने ‘हार नहीं मानूंगा’ शीर्षक की अटल बिहारी वाजपेयी की अपनी जीवनी में लिखा है कि वाजपेयी ने अमरीका में बीफ खाते हुए मजाक में कहा था कि वे कुछ भी गलत नहीं कर रहे हैं, क्योंकि यह बीफ अमरीकी गाय का है।
हाल में प्रधानमंत्री ने राम मंदिर के निर्माण कार्य का उद्घाटन किया। उसके बाद से राम मंदिर के लिए चंदा उगाही का काम जोरशोर से चल रहा है। चंदा मांगने वालों ने यह साफ कर दिया है कि वे ‘न’ सुनने के आदी नहीं हैं। राम मंदिर के मुद्दे पर इतिहासविदों ने एक रपट तैयार की थी। इस रपट का शीर्षक था ‘राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिदः ए हिस्टारियंस रिपोर्ट टू द नेशन’। इतिहासविदों के जिस पैनल ने यह रपट तैयार की थी उसमें प्रोफेसर झा भी शामिल थे।
इस रपट में स्पष्ट शब्दों में कहा गया था कि न तो इस बात के कोई ऐतिहासिक प्रमाण हैं कि बाबरी मस्जिद का निर्माण मंदिर को ढहा कर किया गया था और न ही इस बात के कि भगवान राम का जन्म उसी स्थान पर हुआ था, जहां कथित राम मंदिर था। उच्चतम न्यायालय ने इस रपट को ‘इतिहासविदों की राय’ कहकर खारिज कर दिया, परंतु वह जिस निष्कर्ष पर पहुंचा वह इस रपट के निष्कर्षों से मिलते-जुलते थे। यह बात अलग है कि न्यायालय ने उन लोगों को भी मस्जिद की जमीन में हिस्सा दे दिया, जिन्हें उसने मस्जिद को ढहाने के अपराध का दोषी ठहराया था।
अब बिहार में स्थित प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय को नष्ट करने का आरोप बख्तियार खिलजी पर लगाया जा रहा है। खिलजी ने भले ही देश के अन्य स्थानों पर उत्पात मचाया हो, परंतु नालंदा को ब्राह्मणवादियों ने नष्ट किया था। वे बौद्ध धर्म के बढ़ते प्रभाव से नाराज थे। विभिन्न स्रोतों के हवाले से प्रोफेसर झा लिखते हैं, ‘बौद्ध और ब्राह्मण भिक्षुओं के बीच कई मौकों पर हाथापाई हुई। ब्राह्मण इससे इतने नाराज हो गए कि उन्होंने 12 वर्ष तक भगवान सूर्य को समर्पित यज्ञ किया और फिर यज्ञ कुंड के जलते हुए अंगारों को बौद्ध मंदिरों में फेंका।
जिन बौद्ध इमारतों पर हमले हुए उनमें नालंदा विश्वविद्यालय शामिल था, जहां के अत्यंत समृद्ध और विशाल पुस्तकालय, जिसे रत्नबोधि कहा जाता था, को जलाकर राख कर दिया गया।’ इस प्राचीन अध्ययन केंद्र को नष्ट करने के लिए खिलजी को जिम्मेदार ठहराने का उद्धेश्य, दरअसल, बौद्ध धर्म और ब्राह्मणवाद के बीच संघर्ष, जो प्राचीन भारतीय इतिहास की धुरी था, से लोगों का ध्यान हटाना है।
मंगलौर में पूर्व आरएसएस प्रचारक प्रमोद मुताल्लिक के नेतृत्व वाली श्रीराम सेने द्वारा एक पब, जिसमें कुछ लड़कियां शराब पी रहीं थीं, पर हमले की घटना के बाद प्रोफेसर झा ने एक पुस्तक लिखी जिसका शीर्षक था ‘ड्रिंक ऑफ़ इमार्टेलिटी’। इस पुस्तक में प्रोफेसर झा ने बताया कि किस प्रकार प्राचीन भारत में तरह-तरह की शराबें तैयार की जातीं थीं और महिलाएं और पुरुष दोनों उसका भरपूर सेवन करते थे। उन्होंने सप्रमाण यह भी सिद्ध किया कि वेदों, रामायण और महाभारत में शराब के सेवन की चर्चा है।
झा उन विद्वानों में से थे, जिन्होंने सक्रिय रूप से एक बेहतर समाज के निर्माण के संघर्ष में अपना योगदान दिया, एक ऐसे समाज की जो विविधता और बहुवाद का सम्मान करता है, एक ऐसे समाज के, जो दमितों और हाशियाकृत समुदायों के अधिकारों की रक्षा करता है, एक ऐसे समाज के जो धार्मिक अल्पसंख्यकों को नीची निगाहों से नहीं देखता। देश की विविधवर्णी, बहुवादी संस्कृति को बढ़ावा देने में उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा।
(अंग्रेजी से हिंदी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया)
(राम पुनियानी आईआईटी मुंबई में पढ़ाते थे और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी अवार्ड से सम्मानित हैं।)
इस लेखक को इतिहास के बारे में कुछ भी नहीं पता
रामजन्म का प्रमाण नहीं ऐसा कहते इस लेखक को शर्म नहीं आई, हिंदू गौ मांस खाते थे इस बात पर भी लेखक को डूबकर मर जानी चाहिए
वाल्मीकि रामायण में इसका प्रमाण है, अष्ट् चक्र नव द्वारा नामक श्लोक मेंअष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या | तस्यां हिरण्ययः कोशः स्वर्गो ज्योतिषावृतः
दूसरा हिंदू धर्म में गाय को पवित्र माना गया है, वेद में गाय को जघण्या यानी न मारने योग्य कहा है, गाय सबसे पवित्र है
बल्कि तुम्हारे लेख में ही अराजकता है अब जो हिंदू इस लेख को पढ़ेगा की हिंदू मांस खाते थे, तो उन्हे गुसा तो आयेगा,
रही बात बाबरी मस्जिद की तो सुनो1528 में मुगल बादशाह बाबर (Babar) के सिपहसालार मीर बाकी (Mir Baqi) ने मंदिर गिराकर बाबरी मस्जिद (Babri Masjid) बनवाई थी।, इसकी खुदाई से किसी मस्जिद नहीं बल्कि मंदिर के अवशेष मिले।
किसी एक विशेष वर्ग को फायदे के लिए कुछ भी अनाब सनाब मत लिखो
लेखक आयआयटी का नाम बदनाम कर रहा है ऐसे लेखको को देखकर मन मे संशय आता है क्या सच मे आयआयटी की गुणवत्ता पहले के जमाने जैसी बची है? कल ये आयआयटी प्रोफेसर अगर सुर्य पर यान भेजेंगे तो बिल्कुल आचरज मत करना ..ब्राह्मण के लिये इनका विलाप देखकर लगता है मनुवादियो आर्यो ने इनके साथ सच मे अगर अत्याचार किये होंगे तो वो सच मे शक्तीशाली दिमाग के और शक्तीशाली शरीर से थे खुद कुवा खोदकर पानी की खोज की होगी और और सही कीया था कीसी को अपना कुवा पे आने नही दिया..ब्राह्मण की पूजनीय गौमाता के साथ इनके पुर्वजोने गलत करके पानी दुशित करने पानी मे फेका होगा ..तभी उनकी अगली पिढी ब्राह्मण के नाम से डरती है ..गौमांस किसको जादा पसंद है वो तो दुनिया देख रही है सिर्फ बोंब मारने से ब्राह्मण गलत नही होता..ईतिहास से आज तक कालचक्र गवाह है की दिमाग से पैदल कौन कौन किस रास्तेसे आगे गये है और किनके हातोसे एवार्ड ले रहे है और वहा जाकर घटीया कुकर्म करते हुवे वही पुरानी घिसीपीटी ब्राह्मण खत्म करने की चाल चल रहे है ..मुर्खो को पता नही साजिशे उनपर की जाती है जिनके पास खुदका दिमाग खुदके विचार और खुदके रास्ते होते है और कामयाबी के लिये अपने खुदके दिमाग के बलबुतेपर आगे गये है..खैर यहा सब चलता है श्री हरी के मर्जी से चलता है पाप का घडा भरते ही फीर ब्राह्मण और देवताओका सत्तयुग आनेवाला है क्यु पाप और झुठ तबतक छुपता है जब किसीको पता न हो पर जो सब आंखो के सामने है उसे ना अपनाकर दोशारोप सज्जन समाजपर लगाके अपने कुकर्म का किचड ब्राह्मण पर फेकनेवाले खुद तो कर्मो की सजा भुगतेंगे पर ना जाने अपनी आनेवाली कितनी पिढीयोका सत्यानाश करेंगे ..ब्राह्मण को मिटाने की कोशिश कभी सफल नही हुयी आगे भी नही होगी क्यु की ब्रह्मा ने ही विश्व निर्मिती की है जो ब्राह्मण को मिटाने चला उसका खानदान मिट गया है तुम एक स्वातंत्र्यवीर एक युगपुरुष का परिवार मिटाओगे तो एक मोदी एक योगी उसका समाचार लेने कब अवतरित होगे पता भी नही चलेगा जय सत्य सनातन
खिलजी ने नहीं, नालंदा को ब्राह्मणवादियों ने किया था नष्ट
तेरे बकने से क्या होगा, कोई स्त्रोत हो तो उसका प्रमाण दो, वरना आज तक जितने भी इतिहासकर हुए है, उनका तो एक ही मत है, बख्तियार खिलजी ने ही नालन्दा विश्वविद्यालय को नष्ट किया, कोई आश्चर्य ना होगा, आज से 100 ,200 साल बाद , तुम्ही लोग बामियान बुद्धा की अफगानिस्तान की सबसे ऊंची मूर्ति को नष्ट करने का आरोप भी ब्राह्मणवाद पर लगा दोगे और, पूर्वग्रस्त लोग इसको सच भी मान लेंगे जो आज इस बात को खुले मंच से बोल नही सकते, की बामियान बुद्धा को किसने नष्ट किया।।
तुम्हारे कहने से क्या होगा, कोई स्त्रोत हो तो उसका प्रमाण दो, वरना आज तक जितने भी इतिहासकर हुए है, उनका तो एक ही मत है, बख्तियार खिलजी ने ही नालन्दा विश्वविद्यालय को नष्ट किया, कोई आश्चर्य ना होगा, आज से 100 ,200 साल बाद , तुम्ही लोग बामियान बुद्धा की अफगानिस्तान की सबसे ऊंची मूर्ति को नष्ट करने का आरोप भी ब्राह्मणवाद पर लगा दोगे और, पूर्वग्रस्त लोग इसको सच भी मान लेंगे जो आज इस बात को खुले मंच से बोल नही सकते, की बामियान बुद्धा को किसने नष्ट किया।।
Ise koi itihas padhao Kabir bhai ye upar wale unhi ke vansaj hain na to kahan se manenge ye to ye bhi nhi manenge ki aaj ke 800 sal pahle horn nhi tha aur bina horn ke he sab hota tha har wqt
Ye bhi nhi manenge ki kuwwat ul Islam maszid pahli maszid hai jisko banne me kitne bauddh jain hindu sab ke mndir ghr toote
Koi fayda nhi Kabir bro inhe samjhane se ye wtsp University ke kehte hain to Nalanda ko kya janenge khaq
और सब राजनीतिक बातें हैं उनका सत्य से कोई संबंध नहीं
दलित मुस्लिम गठजोड़ की राजनीति जो एक होते हिंदुओं को बांटने की साजिश है उसकी तहत यह बातें फैलाई जा रही है जो की झूठी है
Islam will destroy all Liars,Unjust and Evil doers ultimately