कोलकाता रेप केस: महामहिम का ‘बहुत हो गया’ कहना एक पक्षीय क्यों?

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यकीनन ‘अब बहुत हो गया’ ये कहना भाजपा नेताओं का है। उनकी ही भाषा राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति और बंगाल के राज्यपाल बोल रहे हैं। यह सच है कि कोलकाता के एक सरकारी अस्पताल में एक ट्रेनी डाक्टर के साथ जो बर्बर ज़ुल्म और ज्यादती हुई, वह दिल दुखाने वाली है।

किंतु इस घटना के लिए ममता बनर्जी को जिम्मेदार बनाने पर भाजपा क्यों तुली है, जबकि उन्होंने सीबीआई से जांच की मांग की थी और सीबीआई जांच में जुटी है। मुख्य अपराधी को कोलकाता पुलिस पकड़ चुकी है। कहा जा रहा है यह गैंगरेप का मामला है जिसमें अस्पताल के प्राचार्य से लेकर पांच अन्य चिकित्सक शामिल हैं, जिसमें एक महिला चिकित्सक होने की बात की जा रही है।

इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता ये ‘प्री प्लांड’ मामला हो सकता है जिसकी तफ़्तीश जारी है। सीबीआई तल्लीनता से इस कार्य में लगी है। पहली बार जवाबदेही का सिग्नल सरकार ने आन किया है। इससे पहले कितने राज्यों में ऐसे ही वीभत्स कांड हुए हैं, जो भाजपा शासित राज्य थे। किंतु वहां मुख्यमंत्री को जवाबदेही के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया गया।

‘बहुत हो गया’ की गाज बंगाल में गिरने वाली है, जहां कई सर्वे महिलाओं के लिए सबसे सुरक्षित कोलकाता को बताते हैं। भारत महिलाओं के लिए दुनिया का सबसे ख़तरनाक देश है। ये बात ग्लोबल एक्सपोल के एक पोल में बताई गई है। इस पोल के नतीज़ों से यह बात सामने आई है कि यौन हिंसा और महिलाओं को नौकरानी बनाने में भारत सबसे आगे है।

यह पोल थॉमसन-रॉयटर्स फ़ाउंडेशन की तरफ़ से महिला मुद्दों पर काम करने वालीं 550 महिला विशेषज्ञों के साथ किया गया पोल में पाया गया कि भारत महिला सुरक्षा के मामले में युद्धग्रस्त अफ़ग़ानिस्तान और सीरिया से भी पीछे है। महिलाओं के लिए सबसे ख़तरनाक देश भारत है और उसके बाद अफ़ग़ानिस्तान और सीरिया है। इसके बाद सोमालिया और सऊदी अरब का नंबर है। इस पर चर्चा कभी नहीं होती।

निश्चित यह पूरा मामला राजनीति से प्रेरित है। इस घटना को तूल देने भाजपा के गुंडे और मवालियों ने कोलकाता को अशांत बना दिया है। उन्हें लंबे अर्से से ममता राज में घुसपैठ की वजह नहीं मिल रही थी, इसलिए उन्होंने ‘बहुत हो गया’ को यहां प्रवेश के लिए चुना है।

यह एक भावुक मामला ज़रुर है जिसका फायदा लेने की बिल्कुल नए सिरे से कोशिशें जारी हैं। इससे पहले संदेश खाली में भी यौन उत्पीड़न का मामला उछाला गया था लेकिन कारगर नहीं हुआ।

राष्ट्रपति पहली बार महिला उत्पीड़न पर हस्तक्षेप करती हुई कहती हैं कि “निर्भयाकांड के बाद ऐसा लगता है कि हमें सामूहिक तौर पर भूलने की बीमारी हो गई है। उन्होंने कहा ‘बस बहुत हो चुका’। पीटीआई से बात करते हुए उन्होंने कहा – कोलकाता में महिला डाक्टर के साथ बलात्कार और बर्बर हत्याकांड बहुत ही भयावह है मैं निराश और डरी हुई हूं “

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा कोलकाता में महिला डॉक्टर के साथ हुई अमानवीय घटना के प्रति व्यक्त चिंता पश्चिम बंगाल सरकार की नारीशक्ति के प्रति असंवेदनशीलता को दर्शाती है। “ममता जी, आपने भी मुख्यमंत्री पद की शपथ लेते हुए ‘भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगी…’ वाक्य को उच्चारित किया होगा लेकिन आपने इस पद को अपमानित किया है।विभाजनकारी मानसिकता से ग्रसित होकर आपके द्वारा दिया गया वक्तव्य देशवासियों को भयाक्रांत करने का कुत्सित प्रयास है, जो कभी सफल नहीं होगा।”

शर्मनाक है राष्ट्रपति का यह विचार। इससे पूर्व मणिपुर में हुए दर्दनाक और घिनौने हादसे, महिला पहलवानों यौनाचार की अनदेखी, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड की घटनाओं पर उनकी चुप्पी इस बात को साफ़ जाहिर करती है कि महिला उत्पीड़न के प्रति उनका ये वर्तमान रवैया दबाव वश आया हुआ है।

क्योंकि लगभग यही भाषा उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और बंगाल के राज्यपाल बोस भी बोल रहे हैं। राज्यपालों की गिरती तस्वीर तो पहले से उजागर हो चुकी इस भाजपाई मुहिम में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का शामिल होना इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि बंगाल में राष्ट्रपति शासन लगाने की तैयारी चल रही है। इसलिए ममता को चारों तरफ़ से घेरा जा रहा है।

किंतु भाजपा को इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि इस कांड के बाद ममता को बदनाम कर, राष्ट्रपति शासन लगाकर वे अपना झंडा यहां गाड़ देंगे। बंगाल की जनता सारा खेल देख रही है। इसमें यदि वे ज़रा भी कामयाब होते हैं, तो यहां वामपंथी दल और कांग्रेस का कद बढ़ेगा जो भाजपा के लिए ज़्यादा दुखदाई साबित होगा। उनकी इस मुहिम का उन्हें फायदा नहीं नुकसान ही अधिक होने वाला है।

‘बहुत हो गया’ और जवाबदेही का यह खेल भाजपा को मंहगा तो पड़ेगा ही साथ ही साथ राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद की गरिमा को भी धूमिल करेगा। क्योंकि जवाबदेही का यह सितम बंगाल में ही क्यों अन्य राज्यों में क्यों नहीं का सवाल हमेशा मुखर रहेगा।

(सुसंस्कृति परिहार एक्टिविस्ट और लेखिका हैं।)

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